मरावी : फिलीपींस में संकट और आसियान-भारत आतंकरोधी सहयोग की आवश्यकता
Varun Nambiar

इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) और दुनिया भर में उसके अनगिनत सहयोगियों के उभार की अंतरराष्ट्रीय घटना तथा उसके कारण वैश्विक शांति, सुरक्षा एवं स्थायित्व पर मंडरा रहा खतरा 2014 से ही शोध और चर्चा का लोकप्रिय विषय रहा है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इस्लामी चरमपंथ के सक्रिय ठिकानों का पता लगाने, पहचानने और उनसे ठीक तरीके से निपटने के अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रयासों में विश्लेषक, खुफिया एजेंसियां और सरकारें दक्षिण पूर्व एशिया को भूल ही गए हैं।1 हाल की घटनाएं इस बात की प्रमाण हैं कि एशिया के इस हिस्से में चरमपंथ के खतरे को अनदेखा करने के क्या दुष्परिणाम हैं।

फिलीपींस और मरावी की घेराबंदी

क्षेत्र में आईएसआईएस की उपस्थिति के बारे में हर ओर पसरी खामोशी एक झटके के साथ टूटी, जब मई, 2017 में दक्षिण फिलीपींस के मरावी शहर में चल रहे घटनाक्रम ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया। अबू सय्याफ और कम चर्चित मौटे गुट के विद्रोहियों ने शहर के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण कर लिया और घेराबंदी की शुरुआत हुई, जो आज तक जारी है।2

अबू सय्याफ और मौटे गुट दोनों ने ही आईएसआईएस का साथ देने का वायदा किया है।3 हालांकि फिलीपींस में इस्लामी आतंकवाद के झंडाबरदार के रूप में अबू सय्याफ अधिक बदनाम है और उसके नेता को अप्रैल, 2014 में “फिलीपींस में इस्लामिक स्टेट की सभी फौजों का अमीर” कबूल किया गया4, लेकिन चारों ओर से घिरे शहर मरावी में अपनी मजबूत उपस्थिति के साथ मौटे गुट फिलीपीन सुरक्षा बलों को टक्कर देने में आगे है।5

मौटे गुट

मरावी फिलीपींस के मुस्लिम मिंडानाओ स्वायत्तशासी क्षेत्र में लनाओ डेल सुर प्रांत की राजधानी है। मिंडानाओ लंबे अरसे से अलगाववादी आंदोलन का केंद्र बना हुआ है। कई दशकों से इस आंदोलन की सशस्त्र शाखा की अगुआई मोरो इस्लामिक लिबरेशन फ्रंट (एमआईएलएफ) कर रहा था, लेकिन 2014 में केंद्र सरकार के साथ कुआलालंपुर शांति समझौता हो गया।6 समझौते में सशस्त्र विद्रोह को समाप्त करने और 2016 तक मिंडानाओ में जातीय मोरो मुसलमानों का राजनीतिक रूप से स्वायत्तशासी क्षेत्र गठित करने की बात की गई थी। एमआईएलएफ के भीतर अधिक चरमपंथी इस्लामी तत्वों ने समझौते का विरोध किया और अंत में विभाजन हो गया, जिसके बाद मौटे गुट की अगुआई करने वाले मौटे बंधुओं समेत कई विद्रोहियों ने एमआईएलएफ छोड़ दिया7 और अपने-अपने गुट बना लिए। फिलीपींस के इस्लामी संगठनों में ऐसे विभाजन नए नहीं हैं क्योंकि एमआईएलएफ भी उस समय अपने मूल संगठन मोरो नेशनल लिबरेशन फ्रंट (एमएनएलएफ) से अलग हो गया था, जब एमएनएलएफ ने लीबिया के पूर्व नेता मुअम्मा गद्दाफी की देखरेख में 1976 में फिलीपींस सरकार के साथ शांति समझौता किया था।8

मौटे गुट को ‘पारिवारिक आतंकवादी’ गुट कहा जाता है क्योंकि पूरे गुट के राजनीतिक, वित्तीय, संचालन संबंधी, खुफिया जानकारी से जुड़े ओर परिचालन ढांचे में एक ही परिवार को प्रमुखता दी गई है।9 मिंडानाओ में मारानाओ समुदाय समुदाय (मोरो जातीय गुट का एक हिस्सा) जैसे अत्यंत धार्मिक और पारंपरिक समाजों में कई परिवार ही सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लनाओ डेल सुर के अमीर और ताकतवर परिवारों में से एक मौटे परिवार के उस क्षेत्र में पारिवारिक नेटवर्क भी हैं और वफादार लोग भी, जिनके कारण वही स्थानीय मुस्लिम समुदाय के असंतुष्ट तथा भ्रमित वर्गों का फायदा उठाकर उन्हें एकजुट विद्रोही आंदोलन में बदलने की सबसे अधिक क्षमता रखते हैं।

कुछ विश्लेषक मानते हैं कि गुट के वर्तमान नेता अब्दुल्ला मौटे और उमरखैयाम मौटे क्रमशः जॉर्डन और मिस्र मंब उच्च शिक्षा ग्रहण करते समय उग्रवाद के फेर में आ गए। उमरखैयाम काहिरा में अल-अजहर विश्वविद्यालय गया, जहां वह एक रूढ़िवादी इंडोनशियाई इस्लामी मौलवी की पुत्री से मिला। विवाह के बाद वे इंडोनेशिया चले गए, जहां उमरखैयाम अपने ससुर के मदरसे में पढ़ाने लगा।10 अन्य विश्लेषक मानते हैं कि उमरखैयाम मिस्र में अपने छात्र जीवन के बहुत बाद में चरमपंथी बना। इस धारणा को इस बात से बल मिलता है कि सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई उसकी तमाम तस्वीरों में एक ऐसा शख्स दिखता है, जो आम पारिवारिक जीवन जीता है, अपनी पत्नी और बच्चों के साथ छुट्टियां मनाने जाता है, उस तकफिरी जिहादी की तरह नहीं लगता, जो अपने ही देश की केंद्र सरकार के खिलाफ जंग छेड़ने पर आमादा है। अब्दुल्ला मौटे की जॉर्डन जाने के बाद की जिंदगी के बारे में बहुत जानकारी नहीं है और यह भी स्पष्ट नहीं है कि वह फिलीपींस कब लौटा। शस्त्र उठाने के अपने परिवार के फैसले के पीछे सबसे बड़ा हाथ उसी का दिखता है और वही मौटे गुट का आधिकारिक नेता है।11 परिवार में सात भाई आतंकी गतिविधियों में लिप्त हैं और उनमें से कम से कम एक को फिलीपींस के अधिकारियों ने गिरफ्तार किया है।12
मौटे के माता-पिता भी कुख्यात इस्लामी चरमपंथी हैं और जून, 2017 के आरंभ में प्रशासन ने उन्हें गिरफ्तार किया था।13 मौटे परिवार के मुखिया कयामोरा मौटे को “घोर कदाचार” के कारण एमआईएलएफ से निकाल दिया गया था।14 अधिकारियों ने उस पर संगठन को सहायता प्रदान करने वाला सरगना होने का आरोप लगाया, जो मौटै गुट को लंबे सशस्त्र संघर्ष के लिए जरूरी रकम और सामग्री मुहैया कराता रहा है।15 लगता है कि गुट के लिए आधुनिक हथियार और गोला-बारूद खरीदने में मुखिया का वित्तीय सहयोग बहुत अहम रहा है क्योंकि माना जाता है कि उसके पास भारी मात्रा में गोला-बारूद है और अत्याधुनिक एम4 से लेकर भद्दी एके-47 तक छोटे हथियारों का बड़ा जखीरा है।16

अबू सय्याफ

मरावी में घेराबंदी तब शुरू हुई, जब सुरक्षा बलों ने अबू सय्याफ और फिलीपींस में आईएसआईएस के नेता इस्निलोन हैपिलोन को पकड़ने के लिए अभियान छेड़ा।17 माना जा रहा है कि हैपिलोन शहर में ही है। मौटे का ठिकाना मिंडानाओ और लनाओ डेर सुर प्रांत है, लेकिन अबू सय्याफ का दबदबा हमेशा ही मिंडानाओ के पश्चिमी तट से दूर सुलू द्वीपसमूह में रहा है। वह मलेशिया के सबा प्रांत में आतंकी गतिविधियों और अपहरणों कीयोजना बनाने और उन्हें अंजाम देने के लिए जिम्मेदार रहा है।18 मौटे गुट की तुलना में अबू सय्याफ का दबदबे वाला स्थानीय इलाका नहीं है, जिससे पता चलता है कि मरावी में वह दूसरे नंबर पर रहकर भी संतुष्ट क्यो है, जबकि सभी उसे फिलीपींस में सक्रिय सबसे अहम तकफिरी जिहादी गुट मानते हैं।

अबू सय्याफ गुट अपना मकसद मिंडानाओ को फिलीपींस से अलग करना और गुट के द्वारा बताए गए इस्लामी शरिया कानून के मुताबिक चलने वाली सरकार की स्थापना बताता है। गुट ने आईएसआईएस का समर्थन किया है। जैसा पहले ही बताया गया है, उसका नेता इन्सिलोन हैपिलोन तो खुद को फिलीपींस में इस्लामिक स्टेट का अमीर तक घोषित कर चुका है। वित्तीय फायदे और विचारधारा का परचम फहराने के लिए नागरिकों - विशेषकर विदेशियों19 - का अपहरण करने के अलावा अबू सय्याफ ने सुरक्षा बलों के जवानों पर लक्षित हमले भी किए हैं।20

नागरिक ठिकानों पर बमबारी और विदेशियों समेत सैकड़ों निहत्थे लोगों की हत्या के पीछे भी उसी का हाथ रहा है। फरवरी, 2004 में मनीला बंदरगाह पर सुपरफेरी में बम विस्फोट सबसे घातक था, जिसमें 114 लोगों की मौत हो गई थी।21 मरावी में अपनी गतिविधियों के कारण ज्यादा नजर आ रहे मौटे गुट पर हाल में ज्यादा ध्यान होने के बाद भी अबू सय्याफ फिलीपींस में सबसे प्रमुख आतंकी गुट बना हुआ है। फिलीपींस सरकार मिंडानाओ के उस हिस्से में मौटे गुट और उसके नेटवर्क को निशाना बनाने के लिए लनाओ डेल सुर में अच्छे-खासे सैन्य संसाधनों का प्रयोग कर रही है, लेकिन सुलू द्वीपसमूह में अपने दबदबे वाला क्षेत्र अनछुआ रहने के कारण अबू सय्याफ के लिए खाली जगह भरने का अच्छा मौका होगा, जिससे वह पहले के मुकाबले अधिक मजबूत होकर उभर सकता है।

अन्य गुट

दो बड़े आतंकी संगठनों के अलावा फिलीपींस में इस्लामी आतंकवादियों के कई छोटे समूह और गुट मौजूद हैं। पूर्वी एशिया में कथित इस्लामिक स्टेट प्रांत दौला इस्लामिया विलायतुल मशरिक (डीआईडब्ल्यूएम) फिलीपींस के उन सभी जिहादी गुटों के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द है, जिन्होंने आईएसआईएस के प्रति वफादार रहने का वायदा किया है। मौटे गुट और अबू सय्याफ के अलावा डीआईडब्ल्यूएम में बंगसामोरो इस्लामिक फ्रीडम फाइटर्स (बीआईएफएफ), अंशार खलीफा फिलीपींस (एकेपी), खिलाफा इस्लामिया मिंडानाओ (किम) 22, अंसार आंवला फी फिलिबीन, जानुद अल-खिलाफा, जमात अंसार अल खिलाफा - बासित उस्मान गुट, जीमल याह्या इस्लामिक सेंटर और जेमा मरकत अल - अंसार जैसे कई छोटे गुट भी शामिल हैं।23

शेष दक्षिण पूर्व एशिया में चुनौतियां

दक्षिण पूर्व एशिया में सुरक्षा को आईएसआईएस और उसके सहयोगियों से होने वाले खतरा फिलीपींस में एकदम स्पष्ट दिख रहा है, लेकिन बाकी क्षेत्र भी बहुत अलग नहीं है। आईएसआईएस जिस तकफिरी विचारधारा को बढ़ावा देता है, उसने दूसरे दक्षिण पूर्व एशियाई समाजों में भी अच्छी-खासी पैठ बना ली है। इंडोनेशिया में जेमा इस्लामिया (जेआई) का उभार इसका सबूत रहा है। यह आतंकी संगठन इंडोनेशियाई सरकार और क्षेत्र की अन्य सरकारों को गैर-कानूनी मानता है। वह इंडोनेशिया और क्षेत्र में अन्य देशों को शरिया कानून की अपनी विशुद्ध व्याख्या के हिसाब से चलाना चाहता है तथा इंडोनेशिया के उस इस्लामी आंदोलन दारुल इस्लाम (डीआई) का विकसित रूप है, जिसने 1950 और 1960 के दशकों में इंडोनेशिया में इस्लामी शासन स्थापित करने के लिए हिंसक विद्रोह किया था।24

जेआई इंडोनेशिया और उसके बाहर कई आतंकी हमलों में लिप्त रहा है। उसने अक्टूबर, 2002 में बाली में बम विस्फोट किए, जिनमें 202 लोगों की मौत हुई थी।25 इसके बाद 2003 में जकार्ता में जेडब्ल्यू मैरियट होटल26 और 2004 में ऑस्ट्रेलियाई दूतावास में बम विस्फोट हुए।27 बाली में दूसरे बम विस्फोट 2005 में हुए। जेडब्ल्यू मैरियट होटल में 2009 में दूसरी बार बम विस्फोट हुए, जिनके साथ रिट्ज-कार्लटन बम विस्फोट हुए और 7 लोगों की मौत हो गई।28
मलेशिया व्यापक हिंसा से अपेक्षाकृत अछूता रहा है। किंतु उस देश में आईएसआईएस के साथ सहानुभूति रखने वाले कई धनी व्यक्ति हैं, जो मौका और समय आने पर हिंसक हो सकते हैं। लेशियाई नागरिक मरावी की जंग में हिस्सा लेने के लिए फिलीपींस तक जा चुके हैं। फिलीपींस में खुफिया एजेंसियों ने मरावी में मारे गए आईएसआईएस लड़ाकों में दो मलेशियावासियों की पहचान की है।29 यदि फिलीपींस के सुरक्षा बलों के हाथों हैपिलोन की मौत हो जाती है तो दक्षिण पूर्व एशिया में आईएसआईएस के अगले मुखिया बनने के दावेदारों में एक मलेशियाई डॉ. महमूद अहमद का नाम भी लिया गया है।30 डॉ. अहमद को मरावी में आईएसआईएस को वित्तीय मदद मुहैया कराने वाला भी बताया जाता है और कहा जाता है कि उसने 6 लाख डॉलर तक की रकम दी थी।31

मुख्य रूप से बौद्ध देश होने के बावजूद थाईलैंड भी आईएसआईएस के खतरे से पूरी तरह नहीं बच पाया है। दक्षिण थाईलैंड कई वर्षों से उग्रवादी हिंसा का गवाह बन रहा है क्योंकि दक्षिण थाईलैंड में अलग मलय-बहुल राज्य के गठन के लिए बारिसान रिवोल्यूसी नेशनल (बीआरएन) नाम का अलगाववादी और उग्रवादी गुट थाई सुरक्षा बलों से हिंसक संघर्ष कर रहा है। बीआरएन उस चरमपंथी तकफिरी विचारधारा को प्रश्रय देने वाला नहीं माना जाता है, जिसके लिए आईएसआईएस कुख्यात है, लेकिन दक्षिण थाईलैंड के मलय मुसलमानों का दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य हिस्सों में रहने वाले अपने सजातीय मुसलमानों से सांस्कृतिक रिश्ता है32 और यदि बीआरएन उनकी उम्मीदों तथा आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर पाता है तो उनमें से कुछ लोग आईएसआईएस में शामिल हो सकते हैं।33

आसियान पहलः इस समय की जरूरत

उग्र विचार या चरमपंथ ऐसी प्रक्रिया है, जिसे सूचना के इस युग में सरकारें ओर खुफिया एजेंसियां अनदेखा कर देती हैं क्योंकि उनके पास समझाने के लिए इस्तेमाल होने वाले भौतिक ढांचे की कमी होती है। यह स्पष्ट है कि कोई भी देश आईएसआईएस जैसी अंतरराष्ट्रीय समस्या से अपने दम पर नहीं निपट सकता। इसीलिए क्षेत्रीय पहल अनिवार्य हो जाती हैं। सरकारों को एक साथ मिलकर आतंकवाद-रोधी सिद्धांत विकसित करना चाहिए और रणनीतिक स्तर पर उसे लागू भी करना चाहिए था। चरमपंथ के सफाये के लिए आसियान की व्यापक योजना का निर्माण इस समस्या को सुलझाने में बड़ी भूमिका निभाएगा। आसियान देशों के रक्षा मंत्री यह घोषणा कर पहले ही इस दिशा में कदम उठा चुके हैं कि दक्षिण पूर्व एशिया में आईएसआईएस को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।34 लेकिन इस कथनी के साथ ठोस कार्रवाई भी होनी चाहिए और जिन उपायों पर अभी तक चर्चा की गई है, उनके साथ ही समूचे आसियान में सैन्य कार्यबल की स्थापना पर भी विचार किया जा सकता है।

भारत के लिए मौका
पिछले एक दशक में भारत ने अपनी क्षमता धीरे-धीरे बढ़ाई है ताकि वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ‘शुद्ध सुरक्षा प्रदाता’ बन जाए।35 भारत के पास कई दशकों से आतंकवाद से लड़ने का अकूत अनुभव भी है। दक्षिण पूर्व एशिया में आईएसआईएस का खतरा उभरने से भारत को ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ और आतंकवाद-रोधी रणनीति को मिलाने का मौक मिल गया है। आईएसआईएस के इस खतरे से पर्याप्त तरीके से निपटने की कई दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की क्षमता कम है। उदाहरण के लिए फिलीपींस का रक्षा बजट बहुत कम है36 और उसे अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिए बहुत कुछ करना होगा। भारत फिलीपींस जैसे देशों को जरूरी प्रशिक्षण एवं हथियार मुहैया करा सकता है, जो 2015 में प्रधानमंत्री द्वारा आहूत की गई व्यापक आसियान-भारत आतंकवाद-रोधी रणनीति से संबंधित होगा।37 प्रधानमंत्री इसी वर्ष जब 12वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के लिए फिलीपींस जाएंगे तो इस मामले को सामने लाना और सहायता करना भारत के हित में होगा।

संदर्भ

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36. जकारी अबुजा, ‘द फिलीपींस शुड स्पेंड मोर ऑन डिफेंस’, रैपलर, मई, 2015; www.rappler.com/thought-leaders/92616-philippines-defense-budget (26-06-2017 को देखा)
37. “पीएम मोदी कॉल्स फॉर एनहांसिंग काउंटर-टेरर कोऑपरेशन विद आसियान”, द इंडियन एक्सप्रेस, नवंबर, 2015; indianexpress.com/article/india/india-news-india/pm-modi-calls-for-enhancing-counter-terror-cooperation-with-asean/ (26-06-2017 को देखा)


Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: http://www.atimes.com/article/marawi-burns-duterte-fades-view/

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