चीनी विदेश मंत्री की यूरोप यात्रा: जनसम्पर्क की असफल कवायद
Amb JK Tripathi

चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने 25 अगस्त से 1 सितम्बर तक यूरोप का दौरा किया। उनकी यह यात्रा कुछ चुनिंदा देशोंइटली,फ्रांस,नीदरलैंड्स,नार्वे और जर्मनी तक सीमित रही। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लीजियन के अनुसार यह यात्रा "चीन-यूरोपीय संघ के संबंधों की दृष्टि से दोनों पक्षों के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी और इसका उद्देश्य महामारी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता को सुदृढ़ करना, बहुपक्षीयता की रक्षा करना तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था को पुनः तेज़ी से ऊपर उठाना" था।

यात्रा के प्रथम चरण में वांग यी इटली पहुंचे जहां उन्होंने इटली के विदेश मंत्री लुइगी डी मेयो के साथ विचार विमर्श किया। यात्रा को इटली से प्रारम्भ करने का कारण था - यूरोपियन समुदाय के अन्य देशों की अपेक्षा इटली के चीन से निकट सम्बन्ध।जी-7 देशों में इटली, चीन की अतिमहत्वाकांक्षी योजना " बेल्ट और रोड इनिशिएटिव" का पहला सदस्य था। इसके अतिरिक्त कोविड-19 के शुरुआती दिनों में रहे दोनों देशों के सम्बन्ध इटली को प्राथमिकता देने की एक बड़ी वज़ह है, साथ ही यह वर्ष दोनों देशों की कूटनीतिक संबंधों की स्वर्ण जयन्ती का भी है। चीन की शिन्हुआ समाचार एजेंसी द्वारा उद्धृत वांग यी के बयान से ही उनकी यात्रा का असली मंतव्य ज़ाहिर हो जाता है। वांग यी ने द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने की सामान्य-सी अपील के साथ ही "बहुपक्षीयता और व्यापार के उदारीकरण" पर जोर दिया। व्यापार पर कई देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के चलते चीन के लिए यह अपरिहार्य हो गया है कि वह अपने निर्यातोन्मुखी व्यापार को फ़िलहाल सुरक्षित रखने के लिए उदारीकरण का राग अलापे।

आखिर लगभग सात माह की चुप्पी के बाद चीनी विदेश मंत्री के यूरोप के कुछ देशों के इस दौरे के क्या कारण हैं? सबसे पहले तो चीन के द्वारा क्षति नियंत्रण (डैमेज कण्ट्रोल) की दिशा में उठाया जाने वाला यह पहला कदम है। विश्व समुदाय को कोविड-19 की समय पर सही जानकारी देने में संभवतः जानबूझ कर की गयी देरी ने कई देशों में चीन की नीयत पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए। साथ ही, चीनी शासन द्वारा शिनजियांग में उइग़र मुसलामानों, तिब्बत में वहां के बाशिंदों और हांगकांग के निवासियों के मानवाधिकारों के हनन के आरोपों ने दुनिया के विकसित देशों द्वारा चीन की तीव्र आलोचना को जन्म दिया। तीसरा कारण है कि संयुक्त राज्य अमेरिका,जापान,ऑस्ट्रेलिया और भारत द्वारा चीनी व्यापार पर लगाए गए प्रतिबंधों के चलते चीन के वैश्विक व्यापार और वाणिज्यिक साख़ में कमी आई है। औद्योगिक उत्पादन और निर्यात भी कम हुआ है। एक आकलन के मुताबिक़ चीन में घरेलू उपभोग भी 19% घटा है, क्योंकि अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। दक्षिण चीन सागर में सामरिक तनाव,भारत के साथ सीमा पर अतिक्रमण के प्रयास और युद्ध के वातावरण के निर्माण ने भी चीन की विस्तारवादी मंशा को पूर्णतः प्रकट कर दिया है। रही सही कसर चीन के गरीब देशों को क़र्ज़ के मकड़जाल में फांसने के दृष्टांतों ने पूरी कर दी।

विगत वर्षों में आई चीनियों की आर्थिक सम्पन्नता के कारण उनके खानपान के स्तर में बहुत सुधार हुआ था और खाद्यान्नों की कमी को चीन कई देशों से आयात और विदेशों (ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील जैसे देशों) में ज़मीन लेकर खेती करा के पूरी कर रहा था, लेकिन प्रतिबंधों के कारण अब वह स्रोत भी क्षीण हो गया है, जिसके चलते पिछले सप्ताह चीन को "क्लीन प्लेट" अभियान शुरू करना पड़ाIचीन के दो प्रतिष्ठाबिंदुओं, बी. आर. आई. और 5G नेटवर्क, की राह में आ रहे रोड़ों ने उसे अपनी उद्धत नीतियों पर पुनर्विचार के लिए मज़बूर कर दिया है।

इस सम्बन्ध में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 25 अगस्त को नीति निर्धारक सलाहकारों के समूह को संबोधित करते हुए माना कि चीन इस समय "अशांत परिवर्तनों और बाहरी बाज़ार के बढ़ते हुए जोख़िमों के दौर से गुज़र रहा है"I साथ ही, उन्होंने घरेलू बाजार पर ज़्यादा भरोसा करने की आवश्यकता पर जोर दिया। चीनी विदेश नीति में एक बड़े परिवर्तन का संकेत देते हुए चीनी रष्ट्रपति ने कहा कि चीन के लिए "संयुक्त राज्य अमेरिका और उसकी संस्थाओं सहित उन सारे देशों और संस्थाओं के साथ सक्रिय सहयोग करना आवश्यक है जो इसके इच्छुक हैं।" मज़बूरन ही सही,यह बयान चीन के उद्धत रुख में एक परिवर्तन का परिचायक है।

शी जिनपिंग का यह बयान और वांग यी की यूरोप यात्रा का प्रारम्भ एक ही दिन होना कोई संयोग नहीं है, बल्कि एक सोची समझी नीति की शुरूआत है। यहाँ कुछ प्रश्न उठ सकते हैं कि चीनी विदेश मंत्री आख़िर यूरोप ही क्यों गए,यूरोप के कुछ चुनिंदा देशों में ही क्यों गए और अभी ही क्यों गए? उत्तर आसान हैं- चारों ओर से घिर जाने के बाद चीन के पास फ़िलहाल जो गुंजाइशबचती है, वह यूरोप में है। दक्षिणी एशिया के देशों को और अपने दो शक्तिशाली पड़ोसियों-भारत और जापान- को नाराज़ करने के बाद एशिया में चीन के पास एक ही लाभकारी और शक्तिशाली देश बचता है-ईरान,जो स्वयं प्रतिबंधों के चलते आर्थिक संकट से जूझ रहा है।ऑस्ट्रेलिया,संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा पहले ही चीन से खफा हैं और उनके रुख में निकट भविष्य में किसे बड़े परिवर्तन की सम्भावना नहीं है। लैटिन अमेरिकी देशों की शक्ति और निरंतर सहयोग की विश्वसनीयता पर चीन भरोसा नहीं कर सकता तथा अफ़्रीकी देश इस स्थिति में नहीं हैं कि चीन की निर्यात-आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ा सकें।

ऐसे में यूरोप के कुछ देशों से ही चीन शुरुआत कर सकता है। यूरोप के सिर्फ पांच देशों से शुरुआत करने का कारण यह है कि इन्हीं में (जैसे कि इटली) चीन को गतिरोध दूर करने में प्रारंभिक सफलता मिल सकती है। इंग्लैंड,फ्रांस,जर्मनी और इटली, यूरोपीय संघ और G-7 के शक्तिशाली सदस्य हैंI यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रिया पहले ही चीन के खिलाफ हैंI फ्रांस और जर्मनी आधिकारिक रूप से बी. आर. आई. के सहयोगी नहीं हैं।हालांकि जर्मनी के कॉमर्स बैंक और चीन के इंडस्ट्रियल एंड कॉमर्स बैंक के बीच 2018 में 5 खरब अमेरिकी डॉलर की लागत से बी.आर.आई. के अंतर्गत लघु और सूक्ष्म उद्योगों के विकास के लिए एक समझौता हुआ था, जिसका क्रियान्वयन अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण रुक गया।* फ्रांस भी हालाँकि चीन के खिलाफ है, लेकिन कोविड 19 के प्रसार से पूर्व 5G वहां प्रारंभिक चरण में था, इसीलिए शायद चीन को वहां एक उम्मीद की खिड़की खुली नज़र आ रही थी। जर्मनी में एंजेला मर्केल पर 5G का विरोध करने के लिए दबाव बढ़ रहा है। नॉर्वे और नीदरलैंड्स में बी. आर. आई. की कुछ छोटी परियोजनाएं चल रही हैं।वहां 5G की भी शुरुआत हो चुकी है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद चीन का सबसे अधिक व्यापार यूरोपीय संघ के देशों से होता है और उनमें भी जर्मनी तथा नीदरलैण्ड्स शीर्ष पर हैं। अतः स्वाभाविक है कि चीन, यूरोप में इन्हीं देशों पर पहले ध्यान देगा।

चीनी विदेश मंत्री के अभी ही यूरोप जाने का कारण यह है कि अभी तीन सप्ताह पहले ही चीन के प्रमुख विरोधी अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट माइक पोम्पिओ ने चेक गणराज्य,पोलैंड,ऑस्ट्रिया और स्लोवेनिया की यात्रा की थी, जिसका उद्देश्य इन मित्र देशों में 5G के प्रसार को रोकना और चीन के खिलाफ ज़्यादा मज़बूत साझेदारी तैयार करना था। चीन ने अमेरिका पर यूरोप को भड़काने के विरुद्ध चेतावनी भी दी थी। ऐसी स्थिति में चीन के लिए यह आवश्यक हो गया था कि शीघ्र ही अमेरिका के इस कदम का विरोध किया जाए।

वांग यी की इस यात्रा से चीन को क्या उपलब्धि हुई? नीदरलैंड्स से,जो यूरोपियन संघ का प्रवेश द्वार भी माना जाता है,वांग यी को द्विपक्षीय व्यापार के चलते बड़ी आशाएं थीं जो सफल नहीं हुईं। डच विदेशी मामलों की समिति से मिलने से इंकार करने के बाद इस यात्रा को लेकर वहां की संसद में काफी असंतोष रहा। द्विपक्षीय वार्ता के बाद डच विदेश मंत्री स्टेफ ब्लोक का हांगकांग की स्थिति को "चिंताजनक" बताना ही वहां की यात्रा का परिणाम स्पष्ट कर देता है। वहीं हुआवे को फ्रांस में प्रविष्ट कराने की चीनी तमन्ना को इस यात्रा के तुरंत बाद झटका लगाते हुए फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुअल मैक्रो ने स्पष्ट कर दिया कि फ्रांस किसी चीनी टेलीकॉम कंपनी के बजाय यूरोपियन कंपनियों को 5G के लिए प्राथमिकता देगा। नॉर्वे से शीघ्र ही मुक्त व्यापार समझौता करने की अपील करते हुए वांग यी ने हांगकांग के लोकतंत्र और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को नोबेल शान्ति पुरस्कार देने के खिलाफ चेतावनी भी दे डाली। जर्मनी से भी चीन को वार्ता करने के अलावा कुछ हासिल नहीं हो पाया। यात्रा के दौरान चीनी अतिथि द्वारा चेक गणराज्य को ताइवान से सम्बन्ध रखने के लिए धमकी की आलोचना पर उन्हें जर्मन विशेष मंत्री से प्रेस कांफ्रेंस के दौरान ही सुनना पड़ा कि "यूरोपीय संघ के सदस्य समस्याओं का हल मिलकर और पारस्परिक आदर की भावना से करते हैं जहां धमकियों की गुंजाइश नहीं होती"। कुल मिला कर वांग यी के इस यूरोप दौरे से इटली के साथ हुए एक समझौते को छोड़ कर और कुछ हासिल नहीं हुआ और यूरोप ने अपनी एकजुटता दिखा दी।

*जर्मन कॉमर्स बैंक की फोकस रिपोर्ट

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


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