चीन और मलेशिया के बीच दक्षिण चीन सागर में पनपता टकराव
Amb Skand Ranjan Tayal

दुनिया इस समय वुहान से निकले जानलेवा कोविड-19 वायरस से निपटने में जुटी है और चीन दक्षिण चीन सागर पर कब्जा करने की अपनी खतरनाक नीति को पूरी बेशर्मी से आगे बढ़ा रहा है। चीन की विस्तारवादी नीति का हालिया निशाना मलेशियाई विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र या एक्सक्लूसिव इकनॉमिक जोन (ईईजेड) में मलेशिया सरकार की कंपनी पेट्रोनास द्वारा संचालित एक खोजी जहाज है। चाइना का निगरानी करने वाला जहाज “हाइयांग दिझी 8” को मलेशियाई जहाज के बेहद करीब तैनात कर दिया गया है और अवैध चीनी दावे ठोके जा रहे हैं।

पिछले साल नवंबर में अल जजीरा के साथ साक्षात्कार में मलेशिया के विदेश मंत्री सैफुद्दीन ने कथित तौर पर कहा, “मेरे हिसाब से चीन का यह दावा बेवकूफाना है कि पूरा दक्षिण चीन सागर चीन का ही है।” उन्होंने यह भी कहा कि “हम खुद के बनाए ईईजेड पर दावा कर रहे हैं और अपना दावा हम खत्म नहीं होने देंगे।”

चीन और मलेशिया दोनों ने ही समुद्रों के कानून पर संयुक्त राष्ट्र संधि (अनक्लोस) पर हस्ताक्षर किया है, जिसमें समुद्र के प्रयोग में सदस्य देशों के अधिकारों और जिम्मेदारियों को स्पष्ट किया गया है। मलेशिया ने 12 दिसंबर 2019 को अनक्लोस के अनुच्छेद 76 के अंतर्गत ‘महाद्वीपीय चट्टानों की सीमाओं के आयोग’ से 200 समुद्री मील के बाद अपनी महाद्वीपीय समुद्री चट्टानों की सीमा के बारे में औपचारिक तौर पर पूछा। न्यूयॉर्क में 6 जुलाई से 21 अगस्त 2021 तक होने वाले आयोग के 53वें सम्मेलन के अस्थायी एजेंडा में इसे शामिल किया जाएगा।

दक्षिण चीन सागर में चीन के अधिकार की अनक्लोस द्वारा की गई व्याख्या चीन के विस्तारवारदी दावों से एकदम अलग है। फिलीपींस के अनुरोध पर हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता अदालत ने 2016 में फैसला दिया कि पूरे दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावे बेबुनियाद हैं। लेकिन चीन ने फैसला नकार दिया और विवादित क्षेत्रों में कृत्रिम द्वीप, हवाई पट्टी, बंदरगाह बनाकर तथा उन्नत मिसाइल प्रणालियां तैनात कर अपनी मौजूदगी बढ़ाना जारी रखा। अमेरिका के साथ अपने तनाव भरे संबंधों को देखते हुए फिलीपींस के राष्ट्रपति रॉड्रिगो डुटेर्टे ने चीन से टकराव नहीं करने का फैसला किया और चीन से मिले आर्थिक पैकेज के बदले वहां के क्षेत्रों पर फिलीपींस का दावा छोड़ दिया। यह उस बयान का जीता-जागता सबूत था, जो 2010 में चीन के तत्कालीन विदेश मंत्री यांग चिएची ने आसियान के विदेश मंत्रियों के सामने दिया था। उन्होंने कहा था, “चीन बड़ा देश है; और दूसरे देश छोटे-छोटे हैं और यह सच्चाई है।”

दक्षिण चीन सागर में चीन की कुख्या 9-डैश लाइन पर आसियान के कई सदस्य सवाल उठा रहे हैं, जिनमें वियतनाम और इंडोनेशिया भी शामिल हैं। आसियान 2002 से ही चीन के साथ एकीकृत ‘आचार संहिता’ तैयार करने में जुटा है, जिसका पालन दक्षिण चीन सागर में काम करने वाले सभी देश करेंगे। लेकिन चीन इसे रोक रहा है और आसियान सदस्यों की एकता को ठेंगा दिखाने में सफल रहा है। चीन की दरियादिली से दबे लाओस और कंबोडिया चीन के हितों की रक्षा में लग गए हैं। आसियान में सभी फैसले सर्वसम्मति से लिए जाते हैं और केवल एक सदस्य की असहमति भी गतिरोध पैदा की सकती है।

चीन की घोषित नीति यह है कि दक्षिण चीन सागर से जुड़े सभी मुद्दे ‘द्विपक्षीय’ तरीके से ‘निपटाए’ जाएंगे क्योंकि वह अधिक मजबूत पक्ष है और आसियान के किसी भी देश को अगर पूरे संगठन के साथ बात करने की इजाजत नहीं हो तो उसे वह आसानी से दबा सकता है। चीन का यह रवैया 19वीं सदी की ‘असमानता भरी संधियों’ की याद दिलाता है, जब पश्चिमी ताकतों ने चीन के कमजोर सम्राट पर अनुचित शर्तें लादी थीं। दुर्भाग्य से राष्ट्रपति शी चिनफिंग के नेतृत्व में चीन भी छोटे पड़ोसियों के साथ वही कर रहा है, जो पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने उस वक्त चीन के साथ किया था।

डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहनते हुए अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी नौसेना की नियमित अवाजाही बढ़ा दी और उसके बड़े जहाज अक्सर चीन द्वारा बनाए गए कृत्रिम द्वीपों के गरीब से गुजरते हैं, जिसकी चीन तीखी आलोचना करता है।

नवंबर 2019 में मनीला में ‘आसियान डिफेंस मिनिस्टर प्लस’ की एक बैठक में चीन के रक्षा मंत्री वेई फेंगहे ने अमेरिकी रक्षा मंत्री मार्क एस्पर को आगाह किया कि अमेरिका “दक्षिण चीन सागर में ताकत आजमाना बंद कर दे और दक्षिण चीन सागर में तनाव न तो भड़काए और न ही बढ़ाए।” यह बयान अमेरिकी रक्षा मंत्री के उस बयान के बाद आया, जिसमें उन्होंने सार्वजनिक तौर पर आरोप लगाया कि पेइचिंग “अपने सामरिक उद्देश्य पूरे करने के लिए धमकाने और दबाने की हरकतें बढ़ाता जा रहा है।”

अमेरिका दिसंबर 2019 में और उग्र हो गया, जब अमेरिकी नौसेना के प्रशांत बेड़े के कमांडर एडमिरल जॉन अकिलिनो ने कहा कि चीन दक्षिण चीन सागर में जिन क्षेत्रों पर दावा करता है, वहां चीन की गतिविधियां दूसरे देशों को डराने के लिए होती हैं। बैंकॉक में एडमिरल अकिलिनो ने कहा कि अमेरिका की भूमिका अपने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर “राष्ट्रों और क्षेत्र को सुरक्षित रखने” की है। उन्होंने दोटूक लहजे में कहा, “इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिका चीनी गणराज्य के संग होड़ में है।”

इसके बाद इसी 20 अप्रैल को अमेरिका के दो युद्धपोत यूएसएस अमेरिका और यूएसएस बंकर हिल चीन के निगरानी पोत ‘हाइयांग दिझी 8’ के करीब पहुंच गए हैं।

मलेशिया इससे घबरा गया है। मलेशिया के विदेश मंत्री ने 23 अप्रैल को शांत रहने की अपील की और दक्षिण चीन सागर में शांति का मलेशिया का संकल्प दोहराया। लेकिन उन्होंने साथ में यह भी कहा, “मलेशिया दक्षिण चीन सागर में अपने हितों और अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।” उन्होंने यह भी कहा कि उनके देश का चीन और अमेरिका दोनों के साथ खुला और सतत संवाद चल रहा है।

मलेशिया अपने दावों पर कायम है मगर उसने चीन के साथ टकराव से बचने के लिए दूरदर्शिता दिखाते हुए कहा है कि “हमारा मानना है कि कोई भी विवाद शांतिपूर्ण तरीकों, कूटनीति और पारस्परिक विश्वास के जरिये मैत्रीपूर्ण ढंग से सुलझाया जाना चाहिए।” अब चीन को अपना निरीक्षण जहाज वापस बुलाकर इसका जवाब देना चाहिए।

दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी नौसेना की मौजूदगी चीन के लिए बड़ा संकेत है और इससे सभी पीड़ित पक्षों को ताकत मिलती है चाहे वह मलेशिया हो या वियतनाम या इंडोनेशिया। इससे समूचे पूर्वी एशिया को यह संकेत भी मिलता है कि राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका अपने सामरिक हितों की रक्षा करने और क्षेत्र में अपने दोस्तों के आर्थिक हितों की रक्षा करने के लिए चीन के खिलाफ कड़ा रुख अपना सकता है।


Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: https://economictimes.indiatimes.com/thumb/msid-75318886,width-1200,height-900,resizemode-4,imgsize-858638/south-china-sea.jpg?from=mdr

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