देश चलाने का जनादेश
Arvind Gupta, Director, VIF

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2019 के लोकसभा चुनावों में तमाम चुनौतियों से जूझते हुए 300 से ज्यादा सीटें हासिल कीं और 2014 से भी बेहतर प्रदर्शन किया। बेहद नकारात्मक मोदी-विरोधी अभियान चलाने वाली विपक्षी पार्टियों की दुर्दशा हो गई है। जनता ने जाति और नस्ल, धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर मोदी और भाजपा को देश चलाने का जनादेश दिया है। यह जनादेश समावेशी विकास और मजबूत भारत के निर्माण के लिए है।

भाजपा ने दूसरी बार बहुमत कैसे हासिल कर लिया? वह कारनामा कैसे कर दिखाया, जो 1984 के बाद से कोई भी पार्टी नहीं कर पाई? प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव अभियान के दौरान एक साक्षात्कार में कहा था कि उन्हें जनता के बीच सत्ता-समर्थक रुख दिख रहा है, जिसे विपक्ष बिल्कुल भी नहीं देख पाया। विपक्ष को उम्मीद थी कि नोटबंदी, रोजगार, जीएसटी के क्रियान्वयन में समस्याएं, गोरक्षा जैसे मुद्दे भाजपा को डुबो देंगे। असल में वह जमीनी हकीकत को बिल्कुल भी नहीं भांप पाया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे विश्वास के साथ दिखाया कि पिछले पांच साल में उन्होंने किस तरह शासन चलाया है और काम करके दिखाए हैं। स्वच्छ भारत से लेकर मुद्रा ऋण और आयुष्मान भारत तक विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं (करीब 130 योजनाएं) गरीब तबके को बहुत पसंद आईं। मोदी के विरोधियों ने इन्हीं योजनाओं की खिल्ली उड़ाई थी और विरोध किया था। इसमें कोई शक नहीं कि पीटकर मार डालने (लिंचिंग) की घटनाओं, अर्थव्यवस्था, किसानों के संकट, रोजगार आदि मुद्दों पर प्रधानमंत्री मोदी दबाव में आ गए थे, लेकिन उन्होंने यह संदेश देकर स्थिति अच्छी तरह संभाल ली कि सड़क, मकान, बुनियादी ढांचा योजनाओं और मुद्रा ऋण के जरिये सरकार ने जो भारी खर्च किया है, उससे करोड़ों लोगों को रोजगार मिला है और विपक्ष जानबूझकर उसे अनदेखा कर रहा है। विपक्ष गैस सिलिंडरों की अहमियत और शौचालय क्रांति के असर को समझ ही नहीं पाया। जनता आंकड़े देखकर भ्रम में नहीं पड़ी और उसने सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को खुले मन से सराहा। इनमें से कई योजनाओं का लाभ एकदम निचले स्तर तक मिल गया था। विरोधियों के कामकाज को देखते हुए यह बहुत बड़ा बदलाव था क्योंकि वे डींगें तो हांक रहे थे, लेकिन काम करके नहीं दिखा पाए थे।

पुलवामा आतंकी हमले और बालाकोट हवाई हमलों के बाद प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रीय सुरक्षा तथा राष्ट्रवाद के मुद्दे को चुनाव अभियान के केंद्र में ले आए। विपक्ष इससे निपटने के लिए तैयार ही नहीं था। उसने बालाकोट हवाई हमलों पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए और जनता के बीच गहराती राष्ट्रवाद की भावना को कम करके आंका। विपक्ष राफेल सौदे पर डटा रहा, जो उस पर उलटा पड़ गया। इसके उलट मोदी को मजबूत, निर्णायक नेता माना गया, जो पाकिस्तान को सबक सिखा सकते थे।

विपक्ष कभी एकजुट हो ही नहीं पाया। महागठबंधन और यहां-वहां इक्का-दुक्का सभाओं के बावजूद विपक्ष बंटा हुआ दिखा और आपस में झगड़ता ही रहा। उसके पास ‘मोदी हटाओ’ के अलावा कोई एजेंडा ही नहीं था। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर उसके पास कोई नेता ही नहीं था। उसकी बात में कोई दृष्टि ही नहीं थी, मकसद ही नहीं था। उसका जोर उन्हीं पुराने जातिगत समीकरणों और सोशल इंजीनियरिंग पर था। इसके उलट मोदी के अभियान में बताया जाता था कि विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं ने किस तरह समाज के गरीब वर्ग विशेषकर महिलाओं और युवा मतदाताओं की मदद की है।

प्रधानमंत्री मोदी ने दिखाया कि वह जो कहते हैं, वह करते भी हैं। उनकी बात को लगभग अचूक, ऊर्जा भरे अभियान का साथ मिल रहा था, जो विपक्ष के फीके, बंटे हुए अभियान से एकदम विपरीत था। भाजपा के वित्तीय संसाधनों, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के सांगठनिक कौशल, कार्यकर्ताओं के समर्पण, बेहतर रणनीति और कमियों से पार पाने पर लगातार जोर ने भाजपा की जीत में बड़ा योगदान किया। अमित शाह को महसूस हुआ कि महागठबंधन चुनौती बन सकता है और उत्तर प्रदेश में भाजपा कुछ सीटें गंवा सकती है। उन्होंने नुकसान कम से कम रखने और उसकी भरपाई पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, ओडिशा तथा पूर्वोत्तर से करने की रणनीति बनाई।

यह चुनाव नेताओं की विश्वसनीयता के बारे में भी था। चुनावी अभियान में भाषा भारतीय राजनीति के निम्नतम स्तर तक पहुंच गई। व्यक्तिगत हमले आम हो गए थे। विपक्ष ने मोदी को बदनाम करने के लिए “चौकीदार चोर है” का नारा लगाया तो बदले में मोदी ने विपक्षी गठबंधन को “महामिलावट” कह दिया। अंत में लोगों ने मोदी को गंभीर, निर्णायक तथा भविष्य के लिए काम करने वाले नेता के रूप में स्वीकार कर लिया और विपक्ष को ठुकरा दिया।

अब आगे क्या होगा? प्रधानमंत्री मोदी ने सबको साथ लेकर चलने वाले “विजयी भारत” की बात कही है। गरीबों को ऊपर उठाना और विश्व में भारत का कद ऊंचा करना उनकी प्राथमिकता होगी। कठिन परिस्थितियों में बेहद संघर्ष के साथ हासिल की गई अपनी जीत का भाजपा स्वाभाविक तौर पर पूरा आनंद उठाएगी। लेकिन उसे समझना होगा कि यह प्रधानमंत्री मोदी और उनके करिश्मे की जीत है। “विजयी भारत” का लक्ष्य पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत अब शुरू करनी है। सबसे पहले पार्टी को जीत के बाद भी विनम्रता और उदरारता दिखानी होगी ताकि हारी हुई पार्टियों को संबल मिले।

चुनाव अभियान के दौरान देश में ‘ध्रुवीकरण’ पर बहुत बहस हुई है। जीत के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं के सामने प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद भी मीडिया में यह बहस जारी है। कई मीडिया चैनलों ने एक विदेशी पत्रिका के उस आलेख की बात की, जिसमें मोदी को “डिवाइडर-इन-चीफ” कहा गया है। इसकी कोई जरूरत नहीं थी। भाजपा के नेताओं को जीत के दंभ में आने से बचना चाहिए और शालीनता दिखानी चाहिए। चुनाव अभियान में भाजपा के जिन अति-उत्साहित और बड़बोले तत्वों को स्वयं मोदी ने चुनाव अभियान के दौरान फटकरा था, उन्हें अब जनता के बीच बातचीत में संयमित रहना चाहिए। भाजपा ने अपना अभियान सबका साथ सबका विकास के सिद्धांत पर चलाया था। देखना होगा कि अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को उस पर भरोसा हुआ है या नहीं। भाजपा को सभी को साथ लेने का तरीका तलाशना होगा।

भारतीय लोकतंत्र की कई संस्थाओं पर सवाल खड़ा किया गया है और यह बेवजह नहीं है। पिछले पांच साल में कई बार संसद में गतिरोध उत्पन्न किया गया है। लोकतंत्र में सुधार करना होगा। नजर रखने और गलती रोकने की संवैधानिक योजना को मजबूत बनाना होगा। चुनावों में धनबल की भूमिका को कम करना होगा। चुनाव प्रक्रिया में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ानी होगी। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जारी रहनी चाहिए। इसके लिए चुनावों में आमूल-चूल सुधार की जरूरत है।

विदेश नीति की बात करें तो सामने आती चुनौतियों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। अफगानिस्तान में संकट गहरा सकता है। पाकिस्तान सुरक्षा के लिहाज से चुनौती बना रहेगा। चीन-पाकिस्तान सांठगांठ मजबूत होती जा रही है। अमेरिका-ईरान तनाव से भारत को नुकसान होगा। पड़ोस में लगातार ध्यान देना होगा। संपर्क परियोजनाओं को समय से पूरा करना होगा। ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ में नए तत्व जोड़ने होंगे। पश्चिम एशिया में जारी उथलपुथल से भारत के सुरक्षा हितों पर असर पड़ सकता है।

श्रीलंका में आईएसआईएस की शह पर हाल ही में हुए जघन्य हमलों को देखते हुए भारत उग्रवाद, चरमपंथ और आतंकवाद के खतरों को अनदेखा नहीं कर सकता। आतंकवाद निरोधक प्रणाली को मजबूत करना होगा। पुलिस में सुधार की जरूरत लंबे अरसे से महसूस की जा रही है। पिछले पांच साल में शुरू की गई योजनाओं की पड़ताल करनी होगी। सीमा पार आतंकवाद, कश्मीर में अलगाववाद से निपटना होगा। उग्रवाद को रोकने के तरीके ढूंढने होंगे।

रक्षा संबंधी तैयारी, खरीद और स्वदेशीकरण में विशेषज्ञों ने ढेरों खामियां ढूंढी हैं। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में रक्षा पर व्यय की हिस्सेदारी बढ़ानी होगी। ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को बढ़ावा देना होगा।

आर्थिक मोर्चे पर कुछ मुद्दों की ओर फौरन ध्यान देना होगा। तेल की ऊंची कीमत से अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव होगा। किसानों के संकट का दीर्घकालिक और टिकाऊ समाधान तलाशना होगा। कृषि क्षेत्र में फौरन सुधार की जरूरत है। भारत के जीडीपी में विनिर्माण की हिस्सेदारी घट रही है। इसे रोकना होगा।

विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी कम है। निर्यात में वृद्धि नहीं हो रही है, लेकिन आयात लगातार बढ़ रहा है। भारत ने अब तक जिन मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, उनसे भारत का निर्यात बढ़ाने में मदद नहीं मिली है। भारत को ‘क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी’ या आरसीईपी पर सावधानी के साथ बातचीत करनी होगी। सरकार को भारत का निर्यात दोगुना करने के लिए कारगर रणनीतियां और योजनाएं तैयार करनी होंगी।

निर्यात बाजार में होड़ करने लायक बनना है तो भारतीय अर्थव्यवस्था की उत्पादकता बढ़ानी होगी। सागरमाला परियोजना को समय पर पूरा करना होगा। पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक जहाजरानी और पोत निर्माण में भारत की हिस्सेदारी कम हुई है। भारत को बड़ी ताकत बनना है तो अपना बुनियादी ढांचा बेहतर करना होगा और भारतीय उत्पादकों विशेषकर छोटे और मझोले उद्यमों के लिए लेनदेन की लागत कम करनी होगी। श्रम सुधार तत्काल लागू करने होंगे। स्टार्ट-अप के लिए वातावरण बेहतर करना होगा।

नई तकनीकों से कार्यस्थल और रोजगार बाजार की सूरत बदल रही है। नए तरीके की नौकरियों के लिए नए कौशल भी चाहिए। यदि युवाओं की समस्याओं पर फौरन ध्यान नहीं दिया गया तो कामकाजी तबके की उम्र के लिहाज से भारत के पास मौजूद बढ़त किसी दुःस्वप्न में भी बदल सकती है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए भारत को शिक्षा, प्रशिक्षण और कौशल में निवेश करना होगा। शिक्षा क्षेत्र में आमूल-चूल सुधार की जरूरत है। शैक्षिक पाठ्यक्रम में भारतीय मूल्यों को शामिल करना ही होगा। भारत को प्रौद्योगिकी में नई पहलों और आविष्कारों का केंद्र बनना होगा। अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) पर खर्च की जीडीपी में हिस्सेदारी जल्द से जल्द दोगुनी करनी होगी। आरएंडडी, सरकार और उद्योग के बीच हिस्सेदारी मजबूत करनी होगी।

पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर उतना ध्यान नहीं दिया गया है, जितना दिया जाना चाहिए। भारत के ज्यादातर शहर और नदियां प्रदूषण के शिकार हैं। अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण भूजल स्तर गिर रहा है। झीलें और गीली जमीन खतरनाक रफ्तार से सूख रही हैं। वायु एवं जल प्रदूषण का नागरिकों के स्वास्थ्य पर बुरा असर हो रहा है। अर्थव्यवस्था और समाज के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे। इन समस्याओं से युद्धस्तर पर निपटना होगा। गीली जमीन में पानी बढ़ाने के लिए उचित कार्यक्रमों से न केवल रोजगार उत्पन्न होगा बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था को फायदा भी होगा। खाद्य, ऊर्जा और जल सुरक्षा नई सरकार की प्राथमिकता सूची में होनी चाहिए।

मोदी 2.0 यानी मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल अधिक सुरक्षित और भरोसे भरा होगा। विपक्ष के साथ और केंद्र तथा राज्यों के बीच स्वस्थ संवाद से समावेशी और टिकाऊ नीतियां बनाने में मदद मिलेगी। अगले पांच वर्ष मजबूती हासिल करने, अधूरा एजेंडा पूरा करने और ‘नए भारत’ के लिए नई रणनीतियां तैयार करने में खर्च करने चाहिए।

दूसरे कार्यकाल में मोदी से बहुत अधिक अपेक्षाएं होंगी। उन्होंने “आकांक्षाओं भरे भारत” की बात की है। श्री मोदी के पास अब नागरिकों की अपेक्षाएं पूरी करने के लिए जरूरी जनादेश है।


Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
https://in.reuters.com/article/india-election/modi-stuns-opposition-with-huge-election-win-idINKCN1SS2WA

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