शंघाई सहयोग संगठन की बदलती गतिशीलता का मूल्यांकन
Dr Pravesh Kumar Gupta, Associate Fellow, VIF

हाल ही में भारत की अध्यक्षता में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का 22वां शिखर सम्मेलन वर्चुअल प्रारूप में संपन्न हुआ। 2001 में इसकी स्थापना से लेकर अभी तक, SCO में बहुत सारे परिवर्तन देखने को मिले हैं। इसके परिणामस्वरूप इस संगठन की गतिशीलता पर भी प्रभाव पड़ा है जिस पर विस्तार से चर्चा होनी आवश्यक है। भारत 2005 से इस संगठन से एक पर्यवेक्षक की भूमिका में जुड़ा हुआ था। 2017 में कजाकिस्तान में अस्ताना शिखर सम्मेलन में भारत SCO का स्थायी सदस्य बना । भारत के साथ-साथ पाकिस्तान को भी SCO की पूर्ण सदस्यता प्रदान की गई। जब से भारत इस संगठन का स्थायी सदस्य बना है तब से रणनीतिक विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहे हैं की भारत को इस समूह से जुड़ने का क्या फायदा हो सकता है ? इस मुद्दे को उठाने का मुख्य कारण चीन का SCO पर प्रभुत्व है । SCO में शामिल होने का भारत का मुख्य उद्देश्य मध्य एशियाई देशों से जुड़ना था । मध्य एशियाई देश भी चाहते थे कि भारत इस संगठन का सदस्य बने ताकि समूह में रूस और चीन के प्रभाव को संतुलित किया जा सके। अपनी स्थायी सदस्यता के परिणामस्वरूप, नई दिल्ली SCO में सकारात्मक योगदान देने का प्रयास करती रही है। इस संदर्भ में इस वर्ष भारत की SCO की अध्यक्षता भी महत्वपूर्ण रही है। शिखर सम्मेलन के समापन पर सदस्य राष्ट्रों द्वारा नई दिल्ली घोषणा पर हस्ताक्षर किए गए, जिसमें कहा गया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को आतंकवादी, अलगाववादी और चरमपंथी समूहों की गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए एक साथ आना चाहिए। इसके साथ साथ, धार्मिक असहिष्णुता, आक्रामक राष्ट्रवाद, नस्लीय भेदभाव, ज़ेनोफोबिया, और फासीवाद के प्रसार को रोकने पर विशेष ध्यान देना चाहिए। सभी नेताओं ने भारत के द्वारा प्रस्तावित दो अन्य विषयगत संयुक्त वक्तव्यों को भी अपनाया – पहला अलगाववाद, उग्रवाद और आतंकवाद की ओर ले जाने वाले कट्टरपंथ का मुकाबला करने में सहयोग पर और दूसरा डिजिटल परिवर्तन के क्षेत्र में सहयोग पर। नयी दिल्ली घोषणा के साथ ये दोनों संयुक्त वक्तव्य अंत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्यूंकि आतंकवाद को रोकना और भारतीय क्षमताओं को अन्य समान विचारधारा वाले देशो के साथ साझा करना भारत का उद्देश्य रहा है।

SCO में भारत की उपस्थिति दो मुख्य कारणों से महत्वपूर्ण है - पहला यह कि भारत के पश्चिमी दुनिया के साथ अच्छे संबंध हैं और भारत का इस संगठन का हिस्सा होना, SCO के पश्चिम विरोधी संगठन न दर्शाने में सहयोग करता हैं । हालांकि चीन और रूस इसे पश्चिम विरोधी देशों के समूह के रूप में प्रचारित करने का प्रयास करते रहते हैं । दूसरा कारण यह है कि समूह के भीतर शक्ति समरूपता बनाए रखने के लिए भारतीय उपस्थिति महत्वपूर्ण है। मध्य एशियाई देश चाहते हैं कि भारत SCO में बड़ी भूमिका निभाए, जबकि इसके विपरीत भारतीय रणनीतिक जानकर इस बात पर जोर देते हैं कि चीन के कारण भारत इस संगठन से बहुत आशावान न हो । चीन मध्य एशियाई देशों को अपनी पकड़ में रखने के लिए भी ज्यादा ध्यान दे रहा है। हाल ही में आयोजित चीन-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन के माध्यम से, बीजिंग ने इन देशों के साथ अपने राजनीतिक संबंधों को संस्थागत बना दिया है। हालाँकि, एक बात जिस पर यहाँ ध्यान देने की आवश्यकता है वह यह है कि यद्यपि मध्य एशिया में राजनीतिक अभिजात वर्ग के भीतर चीन का प्रभाव है, लेकिन स्थानीय आबादी में चीन विरोधी भावनाएँ भी हैं। इसके विपरीत, मध्य एशिया में अल्प उपस्थिति होने के बावजूद, इन देशों में भारत के प्रति सद्भावना मौजूद है। इसके पीछे मुख्य कारण भारत और मध्य एशिया के बीच सभ्यतागत, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जुड़ाव है।

SCO में भारत और पाकिस्तान के प्रवेश के साथ, अन्य समान विचारधारा वाले देशों के लिए भी पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल होने के दरवाजे खुल गए हैं। इस क्रम में, भारत की अध्यक्षता में, ईरान SCO का सबसे नया सदस्य बन गया है जो 2005 से पर्यवेक्षक था। इसके अलावा, बेलारूस ने भी इस यूरेशियन संगठन में स्थायी सदस्य के रूप में शामिल होने की औपचारिकताएं शुरू कर दी हैं। पश्चिम एशियाई, दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण एशियाई क्षेत्र के कुछ अन्य देश SCO में संवाद भागीदार के रूप में शामिल हो गए हैं । इस प्रकार SCO की भौगोलिक और आर्थिक क्षमताओं का विस्तार हो रहा है। और इस विस्तार के साथ साथ समूह की गतिशीलता पर भी काफी प्रभाव पड़ेगा । रूस और भारत दो ऐसे देश हैं जो SCO के विस्तार से लाभान्वित होते दिख रहे हैं। ईरान के प्रवेश से कनेक्टिविटी पहल को बढ़ावा मिलेगा जिसका भारत और रूस एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जैसे कि अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) ।

इसके अलावा यूक्रेन संकट शुरू होने के बाद से ईरान और रूस के संबंध भी काफी विकसित हो रहे हैं। बेलारूस भी रूस का एक सहयोगी देश है. इन देशों के स्थायी सदस्य के रूप में प्रवेश से SCO में रूस की स्थिति भी मजबूत होगी, जिसे चीन का कनिष्ठ भागीदार (जूनियर पार्टनर) माना जाता है। यह जूनियर पार्टनर शब्दावली एक पश्चिमी निर्माण है, हालाँकि, इसे परिस्थितिजन्य माना जा सकता है। अनुकूल परिस्थितियाँ उपलब्ध होने पर, यूरेशिया में चीनी प्रवेश के ख़िलाफ़ रूस की ओर से असहमति जाहिर होगी।

अंत में यह कहना सही रहेगा कि इस संगठन में शामिल होने के बाद से भारत अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहा है। चीन के प्रभुत्व वाले समूह कहे जाने वाले इस संगठन में भारत एकलौता देश हैं जिसने चीन के महत्वाकांक्षी पहल बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को सपोर्ट करने से मना कर दिया । इसके अलावा दिल्ली घोषणा में उल्लिखित आर्थिक विकास रणनीति 2030, जिस पर चीनी प्रभाव साफ तौर से दिख रहा था, उसको भी हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया । इन उदाहरणों से पता चलता है कि SCO में भारतीय उपस्थिति बहुत महत्वपूर्ण है। और भारत को अपनी यूरेशियन रणनीति के उपयुक्त सर्वोत्तम प्रस्ताव पेश करके इस संगठन के साथ जुड़ाव जारी रखना चाहिए । SCO में बने रहने के बावजूद, भारत को मध्य एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को विकसित करने के तरीको पर और जोर देने की आवश्यकता है ।

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