अंततः टोक्यो ओलंपिक 2020 के भव्य समारोह का शुभ आरंभ हो ही गया। तीन घंटे का यह शुरुआती समारोह इस पृथ्वी पर मानव के इतिहास में अब तक के देखे गए आयोजनों में सबसे अनूठा था। तब से ओलंपिक आयोजन दुनिया भर के टेलीविजन पर विचारोत्तेजक विमर्शों से सनसनाया हुआ है तो सोशलमीडिया या अकादमिक साइटें जैसी इंटरनेट की तमाम अभिव्यंजनाएं लोगों की सक्रियताओं से लस्तपस्तम हुई पड़ी हैं। सामान्य से सामान्य व्यक्ति एवं समुदाय-समूह अगले दो हफ्ते तक अपनी रोजमर्रें की जिंदगी में जापानी तकनीक के अनुप्रयोगों के चमत्कारों पर दांतों तले उंगली दबाएंगे। कमाल की प्रौद्योगिकी के शानदार प्रदर्शन से न केवल जापान का आम नागरिक मन ही मन मुदित होगा बल्कि वे लोग भी रीझेंगे जो किसी न किसी कारण से ओलंपिक के आयोजन के विरोध में खड़े रहे हैं। जन-विरोध एवं जानलेवा संक्रामक महामारी कोरोना के बीच ओलंपिक का आयोजन अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों को किसी भी कीमत पर पूरा करने की जापान की सक्षमता एवं उभरती वैश्विक राजनीतिक प्रणाली में वैश्विक राजनीतिक-आर्थिक प्रबंधन के स्वायत्त केंद्र के रूप में उसकी पहचान की जापानी प्रतिबद्धता का दुनिया के समक्ष एक उम्दा प्रदर्शन है। यह नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में उभरती ‘फूलों की शक्ति’ का आत्मविश्वास से लबरेज एक सार्थक प्रयाण है।
इस दौरान, उभर आईं कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं और कुछ विवाद ओलंपिक-विवादों में अंतरराष्ट्रीय से कहीं अधिक राष्ट्रीय स्तर को प्रभावित करेंगे। अफ्रीकी प्रतिभागियों का सहसा गायब होना और दो अधिकारियों पर गोलियां चलाना, ये छोटी-मोटी घटनाएं कही जा सकती हैं और ये ज्यादा से ज्यादा प्रशासनिक मसले कहे जा सकते हैं, जो जापान तो क्या, दुनिया में कहीं भी हो सकते हैं, और दुनिया में ऐसे आयोजनों के समय हुए भी हैं। हालांकि शुभारंभ के दिन ही कोविड-19 मामलों का एकदम अचानक से उभर आना, सच में एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति थी। इससे विरोधियों को सरकार के प्रयास पर हमला बोलने का एक नया हथियार मिल गया। लेकिन इसका परीक्षण किया जाना बाकी है कि क्या यह संक्रमण ओलंपिक के प्रतिभागियों के आगमन का परिणाम है अथवा कि प्रदर्शनकारियों के समूह में जुटने का नतीजा है। किंतु, उम्मीद की जाती है कि जैसे-जैसे खेल आगे बढ़ेगा, कोविड-19 की भयावह स्थिति में सुधार होता चला जाएगा क्योंकि इसके बाद अधिकतर जापानी अपने-अपने घरों में टेलीविजन से चिपके रहेंगे, और इस तरह उनकी बाहरी गतिविधियां ठप रहेंगी। इससे सामाजिक दूरी का पालन करने तथा आगे संक्रमण के फैलने के खतरे कम हो जाएंगे। फिर जन स्वास्थ्य्य की देखभाल करने वाली सरकारी मशीनरियां भी तो कोरोना का संक्रमण न फैलने देने के लिए अपनी तरफ से कुछ भी उठा नहीं रखेंगी।
लेकिन जापानी राष्ट्र-गान किमिगायो एवं उसके राष्ट्रीय ध्वज क्योकुजित्सु-की को लेकर उत्पन्न विवाद सबसे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद से ही ये मसले जापान के भीतर एवं बाहर दोनों ही जगह विवाद के विषय रहे हैं। एक तो घरेलू स्तर पर जापान की व्यापक आबादी में मौजूद शांतिप्रिय मानसिकता के कारण और इसके बाहर के देशों, खास कर चीन एवं कोरिया द्वारा, जापानी नेतृत्व को लांछित करने का राजनयिक उपकरण रहा है। हालांकि महत्त्वपूर्ण आयोजनों पर राष्ट्रीय मानसिकता की अभिव्यक्ति के लिए राष्ट्र-गान का गाया जाना एवं राष्ट्र-ध्वज लहराया जाना एक स्वाभाविक एवं स्वीकृत रिवाज है। जापान के इन राष्ट्रीय प्रतीकों के वास्तविक मायने समझने के क्रम में, उनके उद्भव को सही संदर्भ में रखा जाना अहम है। राष्ट्र-गान एवं राष्ट्र-ध्वज का उद्भव जापान के ऐतिहासिक अतीत में गहरे स्तर पर संपृक्त हैं।
किमिगायो गान का अर्थ है, “उनके शाही महामहिम का सत्ताकाल है, जो जापान की अति पुरातन कविता की संरचना वाली वाका कविता1 से निसृत है। “किमिगायो” का गीत संभवतः विश्व के राष्ट्र-गानों में सबसे पुराना है, और मात्र 32 शब्दों के साथ यह दुनिया का सबसे संक्षिप्त राष्ट्र-गान है। इसके गीत जापान के हैयान (794–1185). अवधि में हुए एक अनाम कवि की रचना है, जो वाका की कविता से ली गई है। ‘हिज एम्पीरियल मैजिस्टी रिजन’ का अर्थ उनके शाही महामहिम का सत्ताकाल होने के बावजूद यह किसी भी तरीके से साम्राज्य से नहीं जुड़ता है। चूंकि इसकी रचना जापान के क्लासिकल पीरिएड में एक समृद्ध सांस्कृतिक चित्रयवनिका की बुनियाद रखे जाने के दौर में हुई है और इस लिहाजन, इसमें राष्ट्रवादी मानसिकता के नवजात राष्ट्रवादी तत्व देखे जा सकते हैं।
जापानी राष्ट्र-ध्वज क्योकुजित्सु-की2 की कहानी एक लाल डिस्क एवं उससे निकलने वाली 16 लाल पट्टियों की है, जिसकी जड़ें सुदूर इतिहास की गहराई में जाती हैं। जापान ने आधिकारिक तौर पर जिस राष्ट्र-ध्वज को अपनाया हुआ है, वह “हि-नो-मारू” कहा जाता है, जिसकी पृष्ठभूमि तो सफेद है पर उसके बीच में लाल डिस्क बना हुआ है-ये दोनों ही ध्वज काफी जमाने से देश में चलन में हैं। क्योकुजित्सु-की उत्पत्ति मध्यकालीन जापान में हुई थी, जिसे तोकुगवा काल में जापान के सामंतवादी युद्धवीर उपयोग करते थे। लेकिन मेजी के फिर से सत्ता में आने के बाद और 15 मई 1870 के बाकुफू ताकतों के लामबंद होने के बाद, मेजी सरकार ने इस ध्वज को जापान की साम्राज्यवादी सेना के ध्वज के रूप में स्वीकार किया था। साम्राज्यवादी सेना के साथ क्योकुजित्सु-की का संबंध अविवादित है, लेकिन यह आम आबादी के बीच भी उतना ही लोकप्रिय रहा है। इस लेखक ने जापान प्रवास के दौरान इस ध्वज को बिक्री एवं विपणन की मुहिमों के लिए डिपार्टमेंट स्टोर में लगे देखा है।
‘उगता हुआ सूरज’ एक राष्ट्र के रूप में जापान से संयुक्त है। दो चीनी चरित्र जिसका उपयोग निहोन या निप्पन (जापान) के लिए किया जाता था, उसमें निचि का मतलब ‘सूरज’ से है और होन का अर्थ ‘उद्गम’ से है। सदियों से, पश्चिमी देश जापान के लिए “उगते सूरज के देश” का उपयोग करते रहे हैं। यहां तक कि 607 ईसा पूर्व के चीनी अभिलेख बताते हैं कि जापानी सरकार जब भी चीनी सरकार से पत्राचार करती थी तो अपने संप्रभु संदेशों में एक मुहावरे दोहराती थी, “उगते सूरज के देश के सम्राट की तरफ से डूबते सूरज के सम्राट को।”3
हालांकि, 1870 में जापान की स्थिति युद्ध करने लायक नहीं रह गई थी और न ही वह किसी आक्रामक जंग की योजना ही बना रहा था। एक मजबूत सेना-क्योहेई-की सरकारी नीति के अंतर्गत, जापान पश्चिमी साम्राज्यवाद से अपनी आजादी की हिफाजत के लिए अपनी सैन्य शक्ति को संघटित कर रहा था। यह इतिहास की विडम्बना है कि वह युद्ध के बाद भी सेना के साथ संयुक्त रहा। अब, ओलंपिक के दौरान ध्वज लहराने के जरिए, जापाfन यह नहीं कहेगा कि वह विश्व के साथ युद्ध की घोषणा करने की तैयारी कर रहा है।4. इसके विपरीत, ‘फूल की शक्ति’ के लिए यह कहना ज्यादा समीचीन होगा कि ‘असल जंग लड़ने के दिनों पर अब ओलंपिक के खेल काबिज हो रहे हैं ‘
नाजी ध्वज के साथ जापानी ध्वज की तुलना करना सत्य के साथ खिलवाड़ करना है। नाजी ध्वज विचारधारात्मक रूप से एक खास जाति की सर्वोच्चता के प्रदर्शन की अवधारणा की निर्मिति था। 1935 के पहले की जर्मनी के ध्वज में एक प्रतीक चिह्न के साथ जर्मन के बुनियादी रंग की तीन धारियों होती थीं, जैसा कि नीचे दिखाया गया है। यह ध्वज 1848 में जर्मनी के कन्फेडरेट पर पहली बार लहराया गया था और बाद में इसे वीमर गणराज्य ने 1919-1935 के बीच अपनाया था। इसको नाजियों ने 1935-1945 में स्वास्तिक ध्वज के लिए निरस्त कर दिया, जिसका कोई इतिहास नहीं है लेकिन यह जर्मन संस्कृति और विश्व की सभी नस्लों में सर्वोच्चता का यह एक प्रतीक चिह्न के रूप में समादृत है। नाजियों की इस अवधारणा में और जापानी ध्वज के उद्गम-विचार में कोई सानी नहीं है।
जापान चाहता है कि विश्व ओलंपिक को मानवीय उद्मिता की दुर्धर्ष भावना के प्रदर्शन को समझे और यह खुद के लिए उभरते ‘फ्लॉवर पॉवर’ की दिशा में एक बड़ी छलांग है।
आज से हजारों साल पहले की नो त्सुरायुकी नामक एक कवि ने इस काव्य-रूप की महत्ता के बारे में लिखा था,: "जापान की कविता की जड़ें इसके मानव ह्रदय में हैं और अनगिनत शब्दों के पतों में यह पनपती हैं। चूंकि मानव प्राणी कई तरह की चीजों में दिलचस्पी रखता है पर कविता में वह अपने ह्रदय की अनुभूतियों को दृश्य के रूप में अभिव्यक्त करता है, जो उसके सामने उपस्थित होते हैं और जिनकी ध्वनियां उनके कानों में गूंजती हैं। प्रस्फुटित फूलों का आलाप लेना एवं ताजे पानी में मेढ़कों का टर्र-टर्राना काफी दिलचस्प है-इनको देखते हुए कहा जा सकता है कि इस सृष्टि में शायद ही ऐसा कोई प्राणी है, जिसे प्रकृति ने संगीत से वंचित रखा हो!"
एलेक्सिस डुडेन, जापान’ज राइजिंग सन फ्लैग हैज ए हिस्ट्री ऑफ हॉरर। इट मस्ट बी बैन्ड एट दि टोक्यो ओलंपिक्स. दि गार्डियन, 1 नवम्बर, 2019.
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma(Original Article in English)
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