भारत-भूटान संबंधों के बदलते आयाम
Alakh Ranjan

भूटान महत्वपूर्ण पड़ोसी है और भारत के नए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पहले द्विपक्षीय दौरे पर दो दिन (7-8 जून) की यात्रा के लिए भूटान को ही चुना। इस यात्रा से दोनों देशों के बीच नियमित यात्राओं तथा सर्वोच्च स्तर पर विचारों के आदान-प्रदान की परंपरा आगे बढ़ी। अपने पिछले कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पड़ोसी प्रथम यानी ‘नेबरहुड फर्स्ट’ की नीति लाए थे और उन्होंने भी 2014 में अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भूटान को ही चुना था। 2018 में भूटान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री डॉ. लोते शेरिंग ने भी मोदी की तर्ज पर ही अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुना।

अपनी यात्रा के दौरान विदेश मंत्री ने भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्येल वांगचुक से भेंट की और भूटान के प्रधानमंत्री डॉ. लोते शेरिंग से भी मुलाकात की। वे भूटान के विदेश मंत्री ल्योनपो डॉ. तांदी दोरजी से भी मिले और विभिन्न द्विपक्षीय मसलों विशेषकर विकास में साझेदारी तथा पनबिजली सहयोग से जुड़े मामलों पर चर्चा की। पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के रिश्तों में प्रगाढ़ता आई है। जयशंकर की यात्रा के दौरान इस पुरानी दोस्ती को नई मजबूती देने पर जोर दिया गया। भूटान को मिलने वाली विदेशी सहायता तथा वहां पहुंचने वाले निवेश में सबसे बड़ा योगदान भारत का ही होता है भारत उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है।

भारत और भूटान के बीच सहयोग का सबसे प्रमुख क्षेत्र पनबिजली है। यह दोनों देशों के आर्थिक संबंधों का केंद्रबिंदु है। भूटान के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इसका सबसे बड़ा योगदान है और भारत विभिन्न पनबिजली संयंत्र बनाने में भूटान की सक्रिय मदद करता रहा है। भूटान में पानी की प्रचुरता है और उसके पास हर साल 30,000 मेगावाट पनबिजली बनाने की क्षमता है।1 भारत इस लक्ष्य को प्राप्त करने में भूटान की मदद करता रहा है। भारत और भूटान के बीच पनबिजली सहयोग का पहला समझौता 1961 में हुआ था, जिसके तहत जलढाका नदी के पानी से बिजली बनाने की बात थी।2 1987 में शुरू हुई चुखा पनबिजली परियोजना भारत और भूटान के जल संबंधी रिश्तों के लिए बहुत बड़ा क्षण थी। भूटान ने 1991 में इस संयंत्र का नियंत्रण पूरी तरह अपने हाथ में ले लिया।3 दोनों पक्षों ने 2008 में पनबिजली के क्षेत्र में सहयोग के 2006 के समझौते के मसौदे पर हस्ताक्षर किए, जिसका मकसद भूटान से भारत को निर्यात होने वाली बिजली की मात्रा 5,000 मेगावाट से बढ़ाकर 2020 तक 10,000 मेगावाट करना था।4

पनबिजली भारत और भूटान के बीच चिंता का प्रमुख कारण भी है। भूटान की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है इसका बढ़ता पनबिजली कर्ज। रॉयल मॉनिटरी अथॉरिटी ऑफ भूटान की 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि देश पर भारत का कुल 118.77 अरब रुपये का कर्ज है और इसमें से 94.11 प्रतिशत पनबिजली परियोजनाओं पर बकाया सार्वजनिक ऋण है।5 पनबिजली परियोजना से निर्यात का शुल्क भी भूटान के लिए चिंता का विषय है और वह इसमें इजाफा करना चाहता है ताकि उसे अपना कर्ज और भारत पर अपनी निर्भरता कम करने में मदद मिल सके तथा उसकी आय बढ़ सके। दोनों देशों के बीच कई दौर की बातचीत के बाद भी इस क्षेत्र में कोई सहमति नहीं बन सकी है।

भूटान में द्रक न्यामरुप शोग्पा (डीएनटी) पार्टी की सरकार है, जिसने अपने घोषणापत्र में कहा था कि वह भारत को निर्यात की जाने वाली पनबिजली पर भूटान की अत्यधिक निर्भरता घटाना चाहती है। उसके घोषणापत्र में कहा गया था, “हम अपनी अर्थव्यवस्था में पनबिजली क्षेत्र की केंद्रीय भूमिका को स्वीकार करते हैं, लेकिन चूंकि यह जलवायु के प्रति संवेदनशील क्षेत्र है और भविष्य में इससे भू-जलवायु नुकसान हो सकते हैं, इसलिए देश की अर्थव्यवस्था को केवल इसी क्षेत्र के सहारे रखना बुद्धिमानी नहीं होगी।”6 इस बयान से भूटान की वर्तमान सरकार की मंशा पता चलती है और अर्थव्यवस्था में विविधता के इस सवाल का जवाब चीन हो सकता है। हालांकि चीन के साथ भूटान के व्यापारिक एवं आर्थिक रिश्ते बेहद सीमित हैं। चीन से भूटान को केवल 161 करोड़ रुपये और भूटान से चीन को केवल 14.6 लाख रुपये का निर्यात होता है। लेकिन भूटान में होने वाले वस्तु आयात में एक तिहाई हिस्सा चीनी उपभोक्ता वस्तु आयात का है।7 स्पष्ट है कि चीन भूटान के साथ व्यापार के मामले में पांव जमाने की कोशिश कर रहा है।

चीन की बढ़ती पैठ भारत के लिए सुरक्षा संबंधी बड़ी चिंता का विषय है। 72 दिन के दोकलाम संघर्ष के दौरान भूटान ने भारत का समर्थन किया था, लेकिन भूटान के भीतर रिश्तों में विविधता लाने और पनबिजली आय पर निर्भरता कम करने की धारणा भी जोर पकड़ रही है। चीन को यह भूटान में कदम रखने का मौका लग रहा है। चीन और भूटान के अभी तक औपचारिक रिश्ते नहीं हैं, लेकिन चीनी अधिकारियों की उच्च स्तरीय भूटान यात्राएं बढ़ती रही हैं। भारत में चीन के पूर्व राजदूत ली यूचेंग ने 2015 में भूटान की यात्रा की, जिसके बाद 2018 में चीन के उप विदेश मंत्री कोंग शुआनयू तीन दिन के भूटान दौरे पर पहुंचे। अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने भूटान को बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) कार्यक्रम में शामिल होने और ‘चीन के विकास लाभांश’ का फायदा उठाने का न्योता दिया। भारत में चीन के राजदूत लुओ झाहुई ने भी जनवरी 2019 में भूटान की यात्रा की। अपनी यात्रा के दौरान राजदूत लुओ ने भूटान नरेश, प्रधानमंत्री लोते शेरिंग और विदेश मंत्री तांदी दोरजी से मुलाकात की तथा विभिन्न क्षेत्रों में व्यावहारिक सहयोग मजबूत करने एवं द्विपक्षीय संबंधों में नए आयाम जोड़ने के बारे में चर्चा की।

चीन इस हिमालयी साम्राज्य में अपना दखल बढ़ाने के लिए संस्कृति और पर्यटन जैसी सॉफ्ट पावर की कूटनीति का प्रयोग कर रहा है। टूरिज्म काउंसिल ऑफ भूटान की एक रिपोर्ट के अनुसार भूटान की यात्रा करने वाले चीनियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है और एक दशक पहले के 20 के आंकड़े से बढ़कर 2016 में यह 9,220 तक पहुंच गई। हालांकि दोकलाम संघर्ष के बाद संख्या गिरकर 6,421 ही रह गई, लेकिन 2017 में कुल 70,000 विदेशी भूटान पहुंचे थे, जिन्हें देखते हुए यह संख्या भी काफी अहम है। चीनी पर्यटकों को आर्थिक बढ़त के रूप में देख रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि पनबिजली के बाद भूटान की जीडीपी में दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी पर्यटन की ही है और यह वहां का सबसे तेज बढ़ता उद्योग है। भूटान में बड़ी संख्या में चीनी सैलानियों के आने से दोनों देशों की जनता के बीच ज्यादा से ज्यादा संपर्क होगा और दोनों के बीच सकारात्मक रिश्ते पनपेंगे।

भारत को भूटान के साथ अपने रिश्तों में विविधता लानी होगी और उसकी अर्थव्यवस्था के विकास एवं विस्तार में भूटान की मदद करनी होगी। भारत को अपनी भूमिका बदलनी होगी और सबसे बड़े विकास साझेदार के बजाय अब भूटान में सबसे बड़ा निवेशक बनना होगा। भूटान अपनी पंचवर्षीय योजना में विदेशी सहायता पर निर्भरता पूरी तरह खत्म करने की योजना बना रहा है और 12वीं पंचवर्षीय योजना का एक प्रमुख लक्ष्य इसे विदेशी सहायता एवं सहयोग वाली आखिरी पंचवर्षीय योजना बनाना है। भूटान कम विकसित देशों के समूह से निकलना चाहता है और भारत भूटान को आर्थिक रूप से अधिक आत्मनिर्भर बनाकर इसमें उसकी मदद कर सकता है। इससे द्विपक्षीय संबंध मजबूत करने और भूटान के भीतर विविधता लाने की धारणा का सामना करने में मदद मिलेगी। पहले भी देखा गया है कि चीन खुद को आर्थिक संबंधों तक ही सीमित नहीं रखना चाहता बल्कि भूटान की घरेलू एवं विदेशी नीतियों को भी प्रभावित करना चाहता है। भूटान में भारत के लिए अभी तो खतरे की घंटी नहीं बज रही, मगर अफसोस करने से पहले सुरक्षित हो जाना हमेशा बेहतर रहता है।

एस जयशंकर की यात्रा से स्पष्ट है कि वर्तमान सरकार की मंशा क्या है और भारत की विदेश नीति में भूटान का कितना महत्वपूर्ण स्थान है। भारत दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसियों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करना चाहता है। मौजूदा विश्व व्यवस्था में जहां चीन पूरी दुनिया में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, वहां भारत अपने पड़ोसियों की अहमियत अच्छी तरह समझता है। भारत के लिए भूटान दक्षिण पूर्व एशिया का द्वार भी है। इस सरकार में दक्षिण पूर्व एशिया और बिम्सटेक को दक्षेस से अधिक महत्व मिला है और नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में बिम्सटेक के नेताओं तथा मालदीव एवं कजाखस्तान के राष्ट्रपतियों को न्योता दिए जाने से साफ है कि भारत बिम्सटेक को ऐसे नए क्षेत्र के रूप में देख रहा है, जो दक्षिण एशिया व दक्षिण पूर्व एशिया के बीच की खाई पाटने में मदद कर सकता है। बिम्सटेक वह मंच होगा, जहां भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ और ‘एक्ट ईस्ट’ नीतियां एक साथ मिल जाएंगी।

मंत्रालय की कमान संभालने के बाद एस जयशंकर पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने तब आए, जब उन्होंने “चेंजिंग वर्ल्ड, चेंजिंग इंडिया” विषय पर एक सत्र को संबोधित किया। उस संबोधन में उन्होंने कहा कि भारत दक्षिण एशिया एवं दक्षिण पूर्व एशिया में क्षेत्रीय एकीकरण तथा संपर्क के लिए काम करेगा। दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण एशिया का एकीकरण दोनों क्षेत्रों के विकास की दृष्टि से फायदेमंद हो सकता है। दक्षिण एशिया और बिम्सटेक मौजूदा सरकार की विदेश नीति के दो मुख्य स्तंभ होंगे।

संदर्भः
  1. https://www.hydropower.org/country-profiles/bhutan
  2. https://sarienergy.org/oldsite/PageFiles/What_We_Do/activities/Bhutan/Overview_of_Bhutan-India_Cooperation_in_the_Power_Sector.pdf
  3. https://www.mfa.gov.bt/rbedelhi/?page_id=28
  4. https://www.mfa.gov.bt/rbedelhi/?page_id=28
  5. https://www.rma.org.bt/RMA%20Publication/Annual%20Report/annual%20report%20%202016-2017.pdf
  6. http://www.druknyamrup.info/manifestos/
  7. http://www.nsb.gov.bt/publication/files/SYB_2018.pdf

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: https://slideplayer.com/slide/13521800/82/images/1/INDIA+%E2%80%93+BHUTAN+Relations.jp

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