21 अप्रैल को सिविल सेवा दिवस पर दिल्ली के विज्ञान भवन में एक उत्सव में प्रधानमंत्री मोदी ने देश की नौकरशाही को सम्बोधित करते हुए कहा था कि इस समय देशवासियों के हृदय में नौकरशाहों के प्रति अभाव है अर्थात उनके प्रति कोई भावना नहीं है। देशवासियों को हृदय भाव शून्य होकर उनके प्रति उदासीन हो गयी है। यह प्रधानमंत्री का नौकरशाही के कार्यकलापों का आकलन करके एक प्रकार से प्रमाण-पत्र था, उनके सिविल सेवा दिवस पर। उन्होंने इस स्थिति को समझाते हुए कहा कि उनमें सीनियर-जूनियर का बहुत बड़ा अन्तर प्रचलित है जिस कारण सीनियर जूनियर से ना कुछ समझना चाहता है और ना उसकी बात ही सुनना चाहता है और यह गुलामी की दासता की सबसे बड़ी निशानी है। देश में अपेक्षाओं के अनुसार विकास न होने के पीछे उन्होंने नौकर शाही को ही जिम्मेदार बताया क्योंकि कार्यपालिका में योजना बनाना, उसका क्रियान्वयन तथा उसका आकलन सबकी जिम्मेदारी नौकरशाही की है। जब हर स्तर पर इन्हीं की जिम्मेदारी है तब अपेक्षाकृत परिणाम नहीं होने पर उसकी जिम्मेवारी भी नौकरशाही की ही होगी। ये शब्द अक्षरस प्रधानमंत्री के ही है। इसके अलावा उन्होंने रिफार्म, परफार्म तथा ट्रांसफार्म को समझाते हुए कहा कि प्रजातंत्र में राजनैतिक इच्छा शक्ति जो देश की जनता की इच्छा शक्ति है वह सुधार ला सकती है यदि नौकरशाही इच्छा शक्ति को वास्तविकता में बदले काम करके और जब नौकरशाह जनहित में कार्य करके जनता का हृदय जीतेंगे तब जनता इसमें सहयोग देगी और प्रकार देश में अपेक्षित बदलाव आयेगा परन्तु देखने में आता है कि नौकरशाही में भारी संवेदनहीनता तथा आत्मकेन्द्रित नजर आती है। इसका मुख्य कारण है सरकार की पूरी शक्ति इन्हीं के हाथों में होना और शासन की इस शक्ति का उपयोग ज्यादातर केवल स्वयं के लिए करने की कोशिश करना। जनता के हर काम को बहाने लगाकर टालना तथा जब जनता घुटने टेक दे तब भ्रष्टाचार में धन कमाना, आजादी के रूप से अब तक देखने मं आया है कि विकास की योजनाओं का ज्यादातर धन इन्हीं के पास कमीशन तथा भ्रष्टाचार के रूप में जाता रहा है। नौकरशाही में भ्रष्टाचार के उदाहरण देश के हर हिस्से, उ0प्र0, म0प्र0, महाराष्ट्र में देखने में आते है। उ0प्र0 में नीरा यादव, ए0पी0 सिंह, प्रदीप शुक्ला तथा यादव सिंह इसके उदाहरण है और अभी यमुना एक्सप्रेस वे, ग्रेटर नोएडा तथा नोएडा विकास प्राधिकरण के विशेष कार्य अधिकारी यशपाल त्यागी के यहाँ 2000 करोड़ की मिली सम्पत्ति से अनुमान लगाया जा सकता है कि इसके बदले में यशपाल त्यागी ने कितनी बड़ी रकम के गलत काम किये होंगे। एक रिपोर्ट के अनुसार त्यागी के कारण ग्रेटर नोएडा तथा यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरणों के 30000 करोड़ ऐसी योजनाओं में फंस गये हैं जो योजना फेल हो चुकी है। इस समय इन प्राधिकरणों के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है। इसके अलावा यशपाल त्यागी जैसे और भी अधिकारी उ0प्र0 के उन 29 विकास प्राधिकरणों में है जिनकी सी0ए0जी0 जांच के आर्डर उ0प्र0 के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिये हैं।
समाज शास्त्रियों के अनुसार देश में फैली अव्यवस्था तथा हिंसा का मुख्य कारण ही नौकरशाहों की असंवेदनशीलता भ्रष्टाचार ही है। नौकरशाह स्वयं का आदेश सबसे मनवाना चाहते हैं परन्तु वे स्वयं किसी का आदेश मानना नहीं चाहते, इसका सबसे बड़ा उदाहरण अभी अभी उ0प्र0 में देखने को मिला जब उ0प्र0 के मुख्यमंत्री श्री आदित्यनाथ योगी ने सत्ता सम्भालते ही प्रशासन में पारदर्शिता लाने के लिए अपने मंत्रीमंडल के सहयोगियों एवं उ0प्र0 के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) अधिकारियों को आदेश जारी किया था कि वे शीघ्र अति शीघ्र 15 दिन की समय सीमा में अपनी चल-अचल सम्पत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करते हुए सरकार को सौंपे। नौकरशाहों की तो सेवा शर्तों में यह नियम पहले से ही है कि वे वित्तीय वर्ष के आखिर में अपनी चल-अचल सम्पत्ति का ब्यौरा सरकार को एक निश्चित प्रक्रिया के अनुसार सौंपें। इसका उद्देश्य सत्ता की महत्वपूर्ण धुरी कहाने वाले नौकरशाहों की सम्पत्ति पर नजर रखकर उन्हें साफ सुथरा एवं भृष्टाचार मुक्त रखा जा सके। परन्तु हर साल इस नियम की अनदेखी करते हुए अधिकांश आइएएस अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा सरकार को नहीं सौंपते हैं तथा इसके साथ सबसे आश्चर्यजनक है कि इस नियम का उल्लंघन करने के बावजूद इन अधिकारियों के विरूद्ध कोई अनुशासनिक कार्यवाही नहीं होती।
अभी अभी देश के प्रमुख समाचार पत्रों में खबर छपी है कि अकेले उ0प्र0 में वर्ष 2015-16 के लिए जो ब्यौरा 31 मार्च 2016 तक जमा होना चाहिए था उसे प्रदेश के कुल 138 अधिकारियों के पूरा एक साल बीतने के बाद भी जमा नहीं किया है। जबकि उ0प्र0 आइएएस अधिकारियों की कुल संख्या 621 है तथा उसमें 138 के जमा न करने से यह साफ है कि करीब 25 प्रतिशत उ0प्र0 के नौकरशाह इस प्रक्रिया के अधीन डिफाल्टर की श्रेणी में आते हैं। इस प्रकार सम्पत्ति का ब्यौरा जमा न कराने के पीछे केवल दो ही उद्देश्य हो सकते हैं पहला भूल तथा दूसरा जानबूझकर अपनी सम्पत्ति को छुपाने की मंशा। पहली सम्भावना इसलिए नहीं हो सकती क्योंकि ये अधिकारी हर वर्ष अपनी आयकर रिटर्न समय से भरते हैं तब केवल जानबूझकर इस ब्यौरे को छुपाया जाने के पीछे केवल इस सम्पत्ति में लगे धन का ब्यौरा देने में असमर्थता। कमोवेश यही स्थिति पूरे देश की है परन्तु आज तक किसी भी इस प्रक्रिया के अधिकारी के विरूद्ध कोई ऐसी कार्यवाही नहीं हुई जिसमें पूरे देश में संदेश जाये कि भृष्टाचार के मामले में सरकार जीरो टालरेंस का फार्मूला अपना रही है। जबकि 2012 तक इस कैडर के 450 अधिकारियों के विरूद्ध भृष्टाचार एवं पद की गरिमा के विरूद्ध आचरण में चार्जशीट दाखिल हो चुकी थी तथा 943 के विरूद्ध सीबीआई जॉंच चल रही थी जबकि उस समय इस कैडर की कुल संख्या 4526 थी और इस प्रकार एक सेवा के करीब 25 प्रतिशत अधिकारियों का संदेह के घेरे में होना इस सेवा के प्रति देशवासियों के मन में भ्रम पैदा करता है और अब उ0प्र0 की घटना ने इस भ्रम को ओर पक्का कर दिया है।
सिविल सर्विस सेवा नियम 16(3) के अनुसार इस सेवा के अधिकारी को अचल सम्पत्ति खरीदने या बेचने के समय सम्पत्ति की बाजार कीमत, खरीदने या बेचने की कीमत तथा इसमें लगने वाले धन का ब्यौरा उसी समय सरकार को देना होता है। परन्तु एक रिर्पोट के अनुसार इस नियम की अनदेखी 90 प्रतिशत अधिकारी करते हैं। इसके अलावा इस सेवा के अधिकारी के पास यदि कोई आवासीय सम्पत्ति पहले से ही है तो उसके द्वारा सरकार या विकास प्राधिकरणों द्वारा विकसित सम्पत्ति की खरीद पर रोक है। परन्तु जब ये अधिकारी अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा ही नहीं देते हैं तो ये बिना रोक टोक के इस प्रकार की स्कीमों में सस्ते दामों पर अच्छी सम्पत्तियां खरीदकर उन्हें ऊंचे दाम पर बेच देते हैं। इसका उदाहरण ग्रेटर नोएडा की आइएएस कालौनी में देखा जा सकता है जिसके 300 प्लाटों में केवल 5 पर सेवानिव्त अधिकारी रह रहे हैं बाकी या तो बिकने का इंतजार कर रहे हैं या बेचे जा चुके हैं। ज्यादातर प्राधिकरणों को इसी सेवा के अधिकारी ही संचालित कर रहे हैं इसलिए अपनी सेवा के सदस्यों के लिए ये नियमों कानूनों की धज्जियां खूब उड़ाते रहते हैं।
ऊपर वर्णित हालातों से यह साफ हो जाता है कि जब देश की नौकरशाही में अभी तक इतना भृष्टाचार ब्याप्त है कि सरेआम ये अधिकारी दिन रात नयी सम्पत्तियां भृष्टाचार से बनाकर सरकार को कोई हिसाब नहीं दे रहे हैं तब किस प्रकार सरकारी तंत्र के निचले स्तर तथा तंत्र के हर स्तर से भृष्टाचार मिटेगा। इसलिए यदि केन्द्रीय तथा प्रादेशिक सरकारें भृष्टाचार पर लगाम लगाना चाहती है तो पहले देश की नौकरशाही को भृष्टाचार मुक्त करे। इसके लिए इनकी सेवा शर्तों में दिये नियमों का कड़ाई से पालन होना चाहिए। इस प्रकार यदि देश का तंत्र संभालने वाली नौकरशाही यदि साफ होगी तो स्वतः ही देश के हर स्तर से भृष्टाचार समाप्त हो जायेगा। यह नौकरशाहों के स्वयं के लिए भी उचित होगा। क्योंकि यदि उनका स्वयं का दामन साफ है तो वे अपने अधीनस्थों को भी साफ होने के लिए कह सकेंगे। परन्तु इस समय ज्यादातर नौकरशाह आदर्शता, पारदर्शिता तथा ईमानदारी को केवल किताबी बातें मानकर इन्हें केवल किताबों तक ही रखना चाहते हैं।
समाज शास्त्रियों के अनुसार हमारे देश में सामाजिक असंतोष का सबसे बड़ा कारण नौकरशाही में फैला भृष्टाचार ही है। जैसाकि 2012 में देखा गया कि आइएएस के कुल 4526 अधिकारियों में से 450 के विरूद्ध भृष्टाचार तथा पद की गरिमा के विरूद्ध कार्य करने के अपराधों में अदालतों में चार्जशीट पेश की जा चुकी है तथा 943 के विरूद्ध इसी प्रकार के अपराधों में जॉंच की जा रही थी। अर्थात् इनका करीब 1/4 कैडर भृष्टाचार तथा पद का दुरूपयोग करने में चिन्हित है यह संख्या भी तब है जब इनके विरूद्ध किसी प्रकार की जॉंच या अदालत की कार्यवाही करना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि इस प्रक्रिया के लिए इसी सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों से इनके विरूद्ध इस प्रकार की कार्यवाही की आज्ञा लेनी होती है और ये अधिकारी अपने कैडर के अधिकारी को बचाने की हर संभव कोशिश करते हैं।
नौकरशाही के इस प्रकार के हालातों के पीछे सबसे बड़ा करण है कि 1947 में स्वतंत्रता सेनानियों तथा अन्य देशभक्तों के भारी विरोध के बावजूद सरकार पटेल ने अंग्रेजी नौकरशाही उसी रूप में इसलिए अपना लिया क्योंकि उन्हें स्टील फ्रेम कहा जाता था और इस कारण वे ब्रिटिश शासन को बहुत अच्छी तरह चला रहे थे। परन्तु अंग्रेजों तथा भारतीयों में एक बड़ा अंतर था कि अंग्रेजों ने कभी गुलामी न देखने के कारण उनका राष्ट्रीय चरित्र बहुत ऊंचा था। जबकि 1000 वर्ष की गुलामी के कारण भारतीयों का चरित्र अभी तक दास्ता से मुक्त नहीं हो पाया है। इसलिए जहां भी वे सत्ता पाते हैं वे वहां पर सर्वप्रथम केवल स्वयं के बारे में सोचते हैं बल्कि होना चाहिए देश एवं देशवासी की भलाई एवं सुरक्षा पहले, जैसे अंग्रेज सोचते थे। भारतीय नौकरशाहों ने अंग्रेजों से चरित्र की अच्छी आदतें जैसे अनुशासन, समयबद्धता, ईमानदारी, तथा सम्य व्यवहार तो नहीं सीखा हॉं परन्तु बुरी बातें जैसे उदंणता, बॉंटो और राज करो, दंभ, षडयंत्र, शोषण तथा सरकारी कामों में केवल अपने हित के अनुसार व्यवहार इत्यादि को अपना लिया। जनता को जबाव राजनीतिज्ञों को चुनावों में देना होता है इसलिए नौकरशाही की कोई जबावदेही ना होने के कारण इन्होंने अपने को स्टीलफ्रेम के बजाय अपने चारों तरफ स्टीलफ्रेम बना लिया है। जैसाकि देखा जाता है कि भृष्टाचार तथा पद के दुर्व्यवहार के मामले में भी इन तक पहुंचना बहुत मुश्किल समझा जाता है।
अब यदि मोदी सरकार नौकरशाही का स्वरूप बदलना चाहती है तो इनके भर्ती प्रक्रिया तथा इनके प्रशिक्षण को सेना की भांति इस प्रकार बनाना पढ़ेगा जैसे कि पूरी ट्रेनिंग के समय एक सैनिक अधिकारी को जैन्टलमैन कैडिट अर्थात् एक सभ्य प्रशिक्षक बुलाया जाता है और उसको सर्वप्रथम एक अच्छा नागरिक बनकर देश सेवा की शिक्षा दी जाती है। प्रशिक्षण के बाद भी शुरू की सेवा में उसे अपने अधीनस्थों के साथ रखकर स्वच्छ तथा पारदर्शी जीवनशैली की शिक्षा दी जाती है। इस प्रकार अपने पूरे सेवाकाल में ज्यादातार फौजी अधिकारी स्वच्छ छवि के साथ देश की सेवा करते हुए रिटायर होते हैं। जबकि भारतीय नौकरशाह अपने आपको शुरू से सामंत तथा आम भारतीय से अलग समझते हैं। केवल छोटे मोटे ऊपरी सुधारों से यह समस्या नहीं सुलझेगी इसके लिए विशेषज्ञों की राय के अनुसार इनकी सेवा में सैन्य अधिकारियों की तरह आमूलचूल तथा सख्त परिवर्तन करने होंगे। सम्पत्ति का ब्यौरा छुपाना तथा 25 प्रतिशत के करीब नौकरशाही का भृष्टाचार में लिप्त होना सामंती प्रवृत्ति का ही उदाहरण है।
आइये देश की नौकरशाही को भृष्टाचार मुक्त करके देश से भृष्टाचार मिटाने की शुरूआत करें।
संदर्भ -
1. प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का 21 अप्रैल को विज्ञान भवन में दिया गया भाषण।
2. सिविल सर्विस एक्ट 1947 तथा 1919
3. प्रशासनिक सुधारों पर महेन्द्र प्रसाद सिंह का TATA INSTITUTE OF SOCIAL SCIENCES HYDRABAD में दिया भाषण।
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