पूरे विश्व में हिंसा तथा आतंक के विरूद्ध फतवा जारी करने का समय
कर्नल शिवदान सिंह

बरेली की आला हज़रत दरगाह की संस्था मंजर-ए-इस्लाम सौदागरान ने पाकिस्तान के जमात-उल-दावा के संस्थापक तथा लश्कर-ए-तैय्यबा के प्रमुख हाफिज़ सईद के विरूद्ध फतवा जारी करते हुए उसे गैर इस्लामिक करार देते हुये हुक़्म जारी किया है कि हाफिज़ सईद के साथ सम्बन्ध रखने वाला या उसकी बातों को सुनने वाले को काफिर माना जायेगा। मुस्लिम धर्म गुरूओं का यह कदम एक स्वागत योग्य कदम है, क्योंकि काफी लम्बे समय से हाफिज सईद दक्षिण एशिया के इस हिस्से में अशान्ति तथा हिंसा का पर्याय बन चुका था।

कश्मीर घाटी तथा पाकिस्तान के जिन नौजवानों को अपने-अपने देशों में राष्ट्र निर्माण तथा स्वयं के उत्थान में लगा होना चाहिये उन्हें हाफिज सईद के क़ुरान में वर्णित जिहाद का गलत मतलब निकालकर उन्हें निर्दोष लोगों की हत्या के लिये प्रेरित करके आतंकी बना दिया है। जबकि क़ुरान शरीफ में मायदा की आयत 32 में साफ-साफ कहा गया कि एक भी बेगुनाह की मौत पूरी इंसानियत की मौत के बराबर है और इस प्रकार की हत्या करने वाला मुस्लमान कहाने योग्य नहीं है। बरेली के सुन्नी उलेमाओं की यह जद्दो जहद न केवल आतंक की कड़ी आलोचना है। बल्कि यह नौजवाना पीड़ी को गुमराही से बचाना भी है। जिस तरह दुनियाभर में आतंकी घटनाएँ हो रही है, उससे इस्लाम के स्वरूप पर ही सवाल खड़े हो रहे थे जबकि इस्लाम का मतलब ही अमन और मोहब्बद है। हाफिज़ सईद की तरही पिछले लम्बे समय से विश्व के अलग-अलग भागों में और ख़ासकर मध्यपूर्व एशिया तथा अफ्रीकी महाद्वीप के मुस्लिम देशों में इसी प्रकार के कट्टरपंथियों ने सत्ता और ताक़त के लिये मुस्लिम युवाओं को गुमराह करके उन्हें शिक्षा तथा उन्नति से दूर रखा।

ओसामा बिन लोदन का उदय सऊदी अरब में हुआ तथा अमेरिका की मदद से उसे रूसी सेना के विरूद्ध तालिबानी लड़ाकों के रूप में पाकिस्तानी तथा अफगानी नौजवानों को जिहाद के नाम पर आतंकी बनाया। रूसी सेनाएँ तो अफगानिस्तान से वापस चली गई, परन्तु अमेरिका की सी॰आई॰ए॰ द्वारा खड़े किये ओसामा ने पूरे पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान को आतंक की फैक्ट्री बनाकर यहाँ के नौजवानों को शिक्षा व आर्थिक विकास से कोसों दूर कर दिया और इसी प्रकार पिछले कुछ समय से अल-बगदादी ने इस्लामिक स्टेट नाम के आतंकी संगठन के द्वारा पूरे इराक़ तथा सीरिया को हिंसा तथा अशान्ति की आग में झोंक रखा है। इसी तरह से इराक़, सीरिया तथा पड़ोसी देशों के ऊर्जा का भण्डार प्राकृतिक तेल इस हिंसा तथा आंतक के कारण इस क्षेत्र के विकास के स्थान पर गोला बारूद तथा अन्य युद्ध सामग्री के खरीद पर बर्बाद होता रहा है। विश्व का ज़्यादातर तेल मध्यपूर्व एशिया के इसी भाग में पाया जाता है और इस तेल को पाने के लिये विश्व की महाशक्तियाँ अमेरिका तथा पूर्व में संयुक्त सोवियत गणराज्य प्रयास रत रही है। अरब देशों के तेल के लिये महाशक्तियों ने इन देशों में राजशाही तथा तानाशाहों को भरपूर समर्थना दिया। इन तानाशाहों तथा सुल्तानों ने अपनी सत्ता क़ायम रखने के लिये इस्लामी कट्टरपंथ का सहारा लेते हुये इस क्षेत्र को आधुनिक शिक्षा तथा विकास से कोसों दूर रखा और आज इसी का परिणाम है कि पूरा मध्यपूर्व एशिया तथा अरब क्षेत्र अशान्त तथा आंतकवाद की आग में जल रहा है जैसे सीरिया-इराक़ में इस्लामिक स्टेट तथा इज़रायल-फिलीस्तीन, इरान-इराक़ संघर्ष इत्यादि।

ऊपर वर्णित इस्लाम के नाम पर कट्टरवाद, हिंसा तथा सत्ता संघर्ष के कारण इस्लामिक देशों तथा इनकी जनता पर बहुत व्यापक दुष्परिणाम नज़र आते हैं। आँकड़ो के अनुसार इस समय विश्व में 140 करोड़ मुस्लिम आबादी है और इसमें से 80 करोड़ अल्पशिक्षित या अशिक्षित हैं। विश्व भर के 57 मुस्लिम देशों का सकल घरेलू उत्पाद केवल 2 लाख करोड़ पाउण्ड हैं, जबकि अकेले अमेरिका का 10 लाख करोड़ पाउण्ड, जापान का 3.5 लाख करोड पाउण्ड, तथा भारत जैसे विकासशील देश का भी उत्पादन 3 लाख करोड़ पाउण्ड आंका गया है जो कि पूरे मुस्लिम देशों से ज़्यादा है। मुस्लिम आबादी विश्व का 22% है और आँकड़ों के अनुसार इनका सकल घरेलू उत्पादन केवल विश्व का 5% है। दुनिया के पाँच सबसे गरीब देशों में अफ्रीकी देश इथोपिया, सोमालिया तथा नाइजीरिया के साथ-सााि अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के नाम शामिल है जो सबके सब मुस्लिम देश है। अरब देशों में पर्दा तथा महिलाओं को इस्लाम के नाम पर शिक्षा से दूर रखने के कारण 50% महिलाएँ इन देशों में लिख-पढ़ नहीं सकती। इस प्रकार देखा जा सकता है कि जब पूरा विश्व पिछली सदी में मंदी आने से पहले दिन-रात आर्थिक तथा शैक्षिक विकास कर रहा था तब ये देश हिंसा, तथा इस्लामीकरण के नाम पर इस सबसे दूर थे और आज आर्थिक तथा अन्य आँकड़े इस सबकी साफ-साफ गवाही दे रहे हैं। भारत में भी कमोबेश हालात इसी प्रकार हैं। जनसंख्या के अनुसार मुस्लिम आबादी 18% है जिनमें 40% अशिक्षिति है। वर्ष 2004-05 में सच्चर कमैटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि 31% मुस्लिम गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं और इनमें भी 13.4% बहुत गरीब है।

भारत में मुस्लिमों के आर्थिक एवं शैक्षिक पिछड़ेपन के जहाँ बहुत से कारण गिनाएँ जा सकते हैं, वहीं पर इसका मुख्य कारण हैं कि इस समाज को नई दिशा तथा विकास देने वाले राजनैतिक तथा सामाजिक नेताओं का अभाव। इनके जो भी नेता हैं वो केवल मुस्लिमों की वोटों का सौदा करने तक ही सीमित हैं। इसका उदाहरण है, अभी कुछ समय पहले भारतीय मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक के खिलाफ देशव्यापी हस्ताक्षर अभियान तथा टेलीविजन पर ज़ोर-शोर से वकालत की परन्तु किसी भी प्रमुख राजनैतिक या सामाजिक मुस्लिम नेता ने इसका समर्थन नहीं किया। उदारवादी मुस्लिम बुद्धिजीवी तूफैल अहमद के अनुसार 14 वर्ष तक प्रत्येक मुस्लिम बच्चे को प्राईमरी शिक्षा मिलनी चाहिये परन्तु देखा जाता है कि इन्हीं के सामाजिक एवं धार्मिक नेता इनके बच्चों का रूख मदरसों की तरफ कर देते हैं और इस प्रकार के बच्चें आधुनिक शिक्षा एवं विकास से वंचित हो जाते हैं।

एक ऊर्दू की कहावत है कि जो खुद स्वयं की मदद करता है, खुदा भी उसी की मदद करते हैं। जब ये बच्चे आधुनिक शिक्षा नहीं ले पाते, तब इन्हें रोजगार भी नहीं मिल पाता इसलिये इनके नौजवान छोटे-मोटे हस्तशिल्प या अन्य काम धन्धा करके अपना गुजारा करते हैं। जनसंख्या के अनुसार अब इन्हें अल्पसंख्यक कहना गलत होगा, क्योंकि इनकी आबादी देश के प्रत्येक हिस्से में है, परन्तु हाँ इस समाज को आर्थिक एवं शिक्षा के नज़रिये से पिछड़ा जरूर कहा जा सकता है। इनके नेता इन्हें अल्पसंख्यक कहकर इनमें हीन भावना तथा असुरक्षा की भावना जाग्रत करके इनका ध्रवीकरण करके इनको वोट बैंक की तरह इनका सौदा सत्ता प्राप्ती के लिये करते हैं। इस अकाल्पनिक असुरक्षा के कारण इनकी 30ः आबादी महानगरों की मलिन बस्तियों में समूहों के रूप में रहतीत है, जहाँ पर जीवन की मूलभूत सुविधाओं का प्रत्येक जगह अभाव है।

यदि देश में सच्चे रूप में कोई अल्पसंख्यक हैं तो वह है सिख एवं पारसी। क्या कभी इस समाज में गरीबी या अशिक्षा देखी गई जबकि सिख केवल जनसंख्या का 2% और पारसी पूरे देश में 70000 हैं। इन दोनों को उदाहरण के रूप में रखकर मुस्लिमों को भी अपना विकास करना चाहिये। सिखों को उनके धार्मिक तथा सामाजिक नेता शिक्षित बनने तथा जीवन में आगे बढ़ने की शिक्षा देते हैं। अब जहाँ सूचना के नये-नये माध्यम जैसे-टी॰वी॰, सोशल मीडिया इत्यादि का विकास हो चुका है। अब चाहिये कि ज़ाकिर नायक जैसे धर्मगुरू जो मुस्लिम नौजवानों को क़ुरान शरीफ की गलत व्याख्या करके उन्हें आतंकी बनाते हैं के स्थान पर ऐसे सामाजिक शिक्षक आगे आये जो इन्हें अशिक्षा के अन्धकार से शिक्षा के प्रकाश की तरफ ले जायें।

मुस्लिमों के प्रसिद्ध तथा आधुनिक प्रणाली से शिक्षा देने वाले संस्थान जैसे अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी, जामिया मिलिया इस्लामिया इत्यादि में इस्लाम की व्याख्या तथा अध्ययन सकारात्मक रूप में करके मुस्लिम युवाओं को नई दिशा दिखानी चाहिये। इनमें पढ़ने वाले विद्यार्थी को मुस्लिमों की मलिन बस्तियों एवं देहातों में शिक्षा को बढ़ावा देने का प्रोजेक्ट दिया जाना चाहिये। इस समय हिन्दु-मुस्लिम के स्थान पर केवल प्रत्येक देशवासी की पहचान भारतवासी के रूप में होनी चाहिये। जैसा कि अमेरिका तथा पश्चिमी देशों में हो रहा है। हमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा अन्य अरब देशों का उदाहरण सामने रखना चाहिये कि किस प्रकार सारे संसाधन तथा प्राकृतिक सम्पदा होते हुये भी ये देश विकास के स्थान पर विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं। इन देशों में अमन चैन का नामोनिशान नहीं है।

भारत में बदलाव की लड़ाई इस्लाम के वैज्ञानिक सोच वाले लोगों को स्वयं ही लड़नी होगी, हाँ सरकार तथा गैर सरकारी संस्थाएँ इन्हें परोक्ष रूप में कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ने में मदद कर सकते हैं। अब समय आ गया है, जब ना केवल हाफिज सईद के विरूद्ध बल्कि पूरे विश्व में फैले हाफिज़ सईद जैसे आतंकी सरगनाओं के विरूद्ध फतवा तथा इनका धार्मिक बहिष्कार करने का, क्योंकि इन्होंने पूरी की पूरी एक पीढ़ी को बर्बादी के रास्ते पर डाल दिया है। उदारवादी मुस्लिम धर्मगुरूओं तथा राजनीतिज्ञों को धर्मग्रन्थों जैसे कु़रान शरीफ तथा हदीसों की सही तथा सकारात्मक व्याख्या नौजवान पीढ़ी को बतानी चाहिये, जिससे वे अमन चैन का पैग़ाम लेकर शान्ति दूत कहलायें।


Published Date: 14th September 2016
(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of the Vivekananda International Foundation)

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