राजनयिक सफलता: नेपाल के साथ सहयोग के नए दौर की शुरुआत
Nikhil Sahu

भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर दो-दिवसीय नेपाल यात्रा हेतु 4 जनवरी को काठमांडू पहुंचे। वह मुख्य रूप से भारत-नेपाल संयुक्त आयोग की सातवीं बैठक की सह-अध्यक्षता करने हेतु नेपाल गए थे। आयोग की बैठक के साथ ही उनकी यात्रा के दौरान चार बहुत ही महत्वपूर्ण समझौते पर भी दोनों देशों ने हस्ताक्षर किये जिनके दूरगामी और गहरी मायने हैं। इसमें सबसे प्रमुख विद्युत व्यापार समझौता है।

भारतीय विदेश मंत्री की यह यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण है इस यात्रा के माध्यम से दोनों देशों के मध्य विवाद सुलझाने और संवाद हेतु जो सर्वोच्च मशीनरी स्थापित है उसमें नियमितता आयी है जिससे दोनों देशों के मध्य आपसी विश्वास में बड़ोती कायम हुई है। ध्यान रहे कि भारत-नेपाल संयुक्त आयोग की शुरुआत वर्ष 1987 में हुई थी परंतु पिछले 37 सालों में केवल इसकी 7 बैठक हुई हैं । इस बात को यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि विदेश मंत्री की सह-अध्यक्षता वाला यह आयोग दोनों देशों के मध्य किसी भी प्रकार के विवाद सुलझाने हेतु सर्वोच्च इकाई है परंतु दोनों देशों के मध्य सीमा-विवाद, व्यापार घाटा एवं 1950 की संधि जैसे अनेक मामले ठंडे बस्ते में लंबित पड़े हुए हैं और इसके बावजूद 1987 से अब तक इस आयोग की केवल 7 बैठक होना आश्चर्यजनक प्रतीत होता है।

4 जनवरी को हुई सातवीं बैठक में लगभग 24 से अधिक विषयों पर विचार-विमर्श किया गया। इसमें व्यापार घाटा, रेल और हवाई कनेक्टिविटी, डिफेंस, सुरक्षा व टूरिज्म पर विस्तार से चर्चा हुई। नेपाली विदेश मंत्री नारायण प्रसाद सऊद के अनुसार मीटिंग से पहले भारत द्वारा नेपाली पक्ष को इस बात से अवगत कराया गया था कि सातवीं बैठक में नेपाल सीमा विवाद (मुख्य रूप से लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख), प्रतिष्ठित व्यक्तियों के समूह रिपोर्ट (ईपीजी-2018) एवं 1950 की भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि संबंधी विषयों को न उठाएं । विदेश मंत्री सऊद ने इसमें आगे जोड़ते हुए कहा कि संभव है कि कुछ विषयों को लेकर भारतीय पक्ष हमसे सहमत ना हो और हम किसी निष्कर्ष पर ना पहुंच पाए परंतु मीटिंग के दौरान हम सभी विषयों पर खुली चर्चा चाहते हैं। मीटिंग के बाद विदेश मंत्री जयशंकर ने x (ट्विटर) पर लिखते हुए विस्तार से कहा कि मीटिंग के दौरान कई प्रकार के विषयों पर चर्चा हुई एवं मीटिंग बहुत ही सकारात्मक बिंदु पर समाप्त हुई । नेपाली विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया कि दोनों ही पक्ष अधिकांश विषयों पर सहमत नजर आए साथ ही नेपाल द्वारा सीमा-विवाद, 1950 की शांति और मित्रता संधि पर नेपाल ने अपनी मंशा स्पष्ट रूप से भारत के सामने जाहिर की। आयोग की बैठक से इतर लंबे समय से लंबित कई समझौते पर हस्ताक्षर भी हुए इनमें सबसे महत्वपूर्ण है ऊर्जा संबंधी दस-वर्षीय विद्युत व्यापार समझौता।

विद्युत व्यापार समझौते के तहत नेपाल आने वाले दस वर्षों में भारत को 10,000 मेगावाट विद्युत का निर्यात करेगा। यह विद्युत नवीकरण स्रोतों पर आधारित होगी। नेपाल के ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार यह समझौता एक दूरगामी समझौता होगा जो कि प्रत्येक 10 वर्ष बाद अपने आप नवीकृत हो जाएगा एवं यह व्यवस्था अगले 25 वर्षों की समय अवधि हेतु लागू रहेगी। वास्तव में अगर समग्र रूप से इस समझौते को देखा जाए तो यह स्पष्ट होता है कि दक्षिण एशिया में विद्युत व्यापार एवं संपूर्ण दक्षिण एशिया को एकल विद्युत ग्रिड से जोड़ने हेतु यह पहला ठोस कदम साबित होगा। ध्यान रहे कि बांग्लादेश भारत के पूर्वी विद्युत ग्रिड की शाखा बहरामपुर (भारत)-भेरामारा (बांग्लादेश) और सूरजमणिनगर-कोमिला से
1,660 मेगावाट विद्युत का आयात पहले से ही कर रहा है ।

बांग्लादेश विश्व की तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था है एवं अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं हेतु बांग्लादेश जीवाश्म ईंधन पर आश्रित है बांग्लादेश चाहता है कि 2050 तक उसकी कुल ऊर्जा खपत का 40% भाग नवीकरणीय ऊर्जा पर आधारित हो जो कि वर्तमान समय में केवल तीन प्रतिशत है। भारत, बांग्लादेश और नेपाल नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने एवं अवरुद्ध विहीन, समावेशी एवं सतत ऊर्जा को लेकर प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए मई 2023 को हुई 21वीं संयुक्त संचालन समिति मीटिंग में बांग्लादेश, नेपाल और भारत ने ट्राई-पार्टी पावर परचेज एग्रीमेंट पर सहमति जताई है। भारत के साथ 10 वर्षीय विद्युत व्यापार समझौते को लेकर प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने कहा कि यह समझौता मिल का पत्थर साबित होगा। यह नेपाल-भारत द्विपक्षीय संबंधों में लंबी छलांग है साथ ही यह समझौते के बाद नेपाल बांग्लादेश को भी विद्युत निर्यात कर पाएगा।

भारत और नेपाल के मध्य हुआ दूसरा समझौता भी ऊर्जा से संबंधित है। समझौते के अनुसार दोनों देश नवीकरणीय ऊर्जा विकसित करने हेतु जलविद्युत सहित अन्य क्षेत्रों में काम मिलकर करेंगे। ध्यात्वय है कि विभिन्न रिपोर्टर्स ने इस बात को स्पष्ट रूप से इंगित किया है कि नेपाल केवल जल विद्युत के माध्यम से 80,000 मेगावाट स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन करने में सक्षम हो सकता है जो वर्तमान में केवल 2,000 मेगावाट तक सीमित है । हालांकि भारत इस संबंध में पहले से ही आर्थिक व तकनीकी मदद नेपाल को उपलब्ध कराता आ रहा है परंतु भारत द्वारा नेपाल को हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट में निवेश किया गया पैसा अनियमित हैं । मसलन की अनेक प्रोजेक्ट मुद्रा तरलता ना होने के कारण 10 वर्षों से अधिक की देरी से चल रहे हैं इन में सबसे प्रमुख के पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना (पीएमपी)।

ऊर्जा उत्पादन एवं ऊर्जा व्यापार से इतर दो अन्य महत्वपूर्ण समझौते पर भी हस्ताक्षर हुए हैं इसमें पहला समझौता नेपाली उपग्रह को अंतरिक्ष में स्थापित करने हेतु नेपाल एकेडमी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी तथा न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड के मध्य हुआ । समझौते के अनुसार भारतीय अंतरिक्ष कंपनी इसरो पीएसएलवी के माध्यम से नेपाली उपग्रह को पृथ्वी की ध्रुवीय-कक्षा में स्थापित करेगी । दूसरे समझौते के अनुसार भारत नेपाल को हाई इंपैक्ट कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम (एचआईसीडीपी) के तहत प्रति प्रोजेक्ट 200 मिलियन नेपाली रुपए की राशि उपलब्ध कराएगी । ध्यान रहे कि भारत सरकार द्वारा नेपाल में 2003 से स्मॉल डेवलपमेंट प्रोग्राम (नवीन नाम हाई इंपैक्ट कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम)के तहत क्षेत्रीय विकास हेतु आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जा रही है । एचआईसीडीपी का लक्ष्य स्कूल, अस्पताल, ट्रेनिंग सेंटर खोल कर नेपाल के ग्रामीण और दूर-दराज के क्षेत्र में सीधा लाभ पहुंचाना है । 2003 से अब तक कुल 535 हाई इंपैक्ट कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम को भारत सरकार द्वारा वित्त उपलब्ध कराया गया है इसमें से 476 प्रोजेक्ट पूर्ण हो चुके हैं जिसकी कुल लागत 11.55 बिलियन नेपाली रुपए है । शुरुआती चरण में भारत द्वारा एचआईसीडीपी के लिए वर्ष 2003 से 2011 तक 30 मिलियन नेपाली रुपए प्रति प्रोजेक्ट आर्थिक सहायता दी जाती थी जो की 2011 के बाद से बढ़कर 50 मिलियन रुपए कर दी गई। वर्तमान समझौते में इस राशि में भारी बढ़ोतरी कर 200 मिलियन नेपाली रुपए प्रति प्रोजेक्ट कर दी गई है।

इस बढ़ोतरी को लेकर विपक्षी पार्टियों और कुछ स्वतंत्र संगठनों ने नकारात्मक टिप्पणियां दी है नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (मा-ले) द्वारा कहा गया कि यह हाई इंपैक्ट कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम एग्रीमेंट नेपाल के संविधान की भावना के विरुद्ध है जिसके अनुसार नेपाल के स्थानीय निकाय विकास हेतु सीधे विदेशी सहायता प्राप्त नहीं कर सकते । पूर्व विदेश मंत्री कमल थापा ने कहा कि लोकल बॉडीज को डायरेक्ट फॉरेन असिस्टेंट देना नेपाल में समानांतरित सरकार चलाने के समान है। हालांकि इन सभी वक्तव्य को दरकिनार करते हुए प्रधानमंत्री प्रचंड ने संसद में कहा कि हाई इंपैक्ट कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम नेपाल के हित में है इससे भारत व नेपाल संयुक्त रूप से निवेश व नीति निर्माण कर सकेंगे। समझौते के अलावा विदेश मंत्री जयशंकर ने नेपाल में नवंबर 2023 में आए भूकंप पीड़ितों को राहत सहायता की पांचवी खेप के साथ पुनर्निर्माण हेतु 10 बिलियन नेपाली रुपए की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है जिसमें 75 प्रतिशत सॉफ्ट लोन तथा 25 प्रतिशत ग्रांट होगी।

इन सभी समझौते और संयुक्त बयान के आधार पर कहा जा सकता है कि भारतीय विदेश मंत्री की यह यात्रा महत्वपूर्ण एवं सफल रही या नेपाली विदेश मंत्री सऊद के शब्दों में यह पहली मीटिंग रही जो किसी विवादों में नहीं उलझी। वास्तव में वर्तमान भारत और नेपाल की सरकारों द्वारा 2015 में उपजे विवाद और आविश्वास को सुलझाने हेतु लगातार शीर्ष स्तर पर मुलाकातें और बैठके हो रही हैं। जिसका प्रतिफल हम इस सफल यात्रा के रूप में देख सकते हैं। आवश्यक रूप से सीमा विवाद और 1950 की संधि को लेकर दोनों देशों में असहमति है परंतु इस प्रकार की नियमित बैठकों से न केवल दोनों देशों के मध्य गंभीर मुद्दों पर आम सहमति बनाई जा सकती है बल्कि विद्युत व्यापार जैसे बड़े समझौते को भी अंजाम दिया जा सकता है । भारत और नेपाल के सुहाद्र द्विपक्षीय संबंध दक्षिण एशिया के समीकरणों को अंतत दूरगामी लाभ पहुंचाएंगे।

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


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