प्रधानमंत्री मोदी की फ्रांस यात्रा ऐतिहासिक
Dr Rishi Gupta
ऐतिहासिक यात्रा

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 जुलाई 2023 को फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस समारोह जिसे बैस्टिल दिवस के नाम से भी जाना जाता है में सम्मानित अतिथि के रूप में शामिल होंगे। फ्रांस के इतिहास में बैस्टिल दिवस एक महत्वपूर्ण दिन है जो 1789 की फ्रांसीसी क्रांति से जनित हुआ और 1880 से फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन "स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व" के विचारों का स्मरण कराता हैं।

चूंकि यह दिन प्रजतन्त्र और प्रजातान्त्रिक मूल्यों का अवसर है और भारत विश्व की सबसे बड़ा प्रजातंत्र है प्रधानमंत्री मोदी का वहां होना अपने आप में महत्वपूर्ण है। साथ ही यह यात्रा फ्रांस और भारत की "रणनीतिक साझेदारी" की 25वीं वर्षगांठ का भी प्रतीक है जिसकी स्थापना वर्ष 1998 में हुई थी जब फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति भारत के गणतंत्र दिवस उत्सव के मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए थे।

ऐसा बहोत ही कम अवसरों पर हुआ है जब फ्रांस बैस्टिल दिवस उत्सव पर किसी मुख्य अतिथि को न्योता भेजे। ऐसे में प्रधानमत्री मोदी को मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होना भारत के बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय कद की निशानी है। इतना ही नहीं, भारतीय सेना की एक टुकड़ी भी बैस्टिल दिवस परेड में फ्रांसीसी सैनिकों के साथ पैरिस शहर के ऐतिहासिक चैंप्स-एलिसीस पर मार्च करेगी, जो देखने में बहुत ही शानदार नजारा होगा।

जहाँ दो देश प्रजातान्त्रिक विचारधारा पर साथ खड़े दिखते हैं वहीँ वैश्विक मुद्दों पर दो देशों के विचारों में काफी मेल-जोल देखने को मिलता हैं जिनमें 'बहुध्रुवीयता' की विचारधारा में विश्वास एक मजबूत आधार रहा है। शीत युद्ध के साथ सोवियत संघ का पतन हुआ जिसमे अमेरिका एक निर्विरोध शक्ति के तौर पर उभरा और उसी के साथ एक "एकध्रुवीय" विश्व का स्थापना हुइ । लेकिन आज के दौर में शक्ति विकेन्द्रीकरण के साथ नयी ताकतें उभर रही है जीने भारत भी शामिल है और ऐसे में भारत और फ्रांस का साथ होना विश्व शांति संतुलन और विश्व शान्ति के लिए महत्वपूर्ण है।

मजबूत रणनीतिक साझेदारी

वैश्विक "बहुध्रुवीयता" में वैचारिक एकता और कोविद जैसी महामारी के खिलाफ साथ लड़ने के अलावा, भारत और फ्रांस की "रणनीतिक साझेदारी" दो देशों के बीच सहयोग की सफल कहानी बयां करता हैं जिसके चार मुख्य आधार रहे हैं जिनमें रक्षा, अंतरिक्ष, असैन्य परमाणु और आतंकवाद के खिलाफ मुकाबले पर सहयोग शामिल हैं। सहयोग के इन पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा, भारत और फ्रांस जलवायु परिवर्तन, सतत वृद्धि और विकास, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसे सहयोग के नए क्षेत्रों में तेजी से लगे हुए हैं।

रक्षा क्षेत्र

रक्षा क्षेत्र में सहयोग भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। दोनों देशों के बीच मंत्रियों की स्तर पर वार्ता होती है, जो 2018 से हर साल होती आयी है। सेनाओं के बीच नियमित रक्षा अभ्यास भी होते हैं। भारतीय नौसेना ने अन्य क्वाड सदस्यों के साथ फ्रांसीसी नेतृत्व वाले ला पेरोस अभ्यास में भी भाग लिया है । यहाँ इस बात पर ध्यान देने की बात है की भारत के लिए यह जरूरी नहीं की वह वैश्विक परिप्रेक्ष्य में फ्रांस के हर नीतिगत निर्णय पर साथ हो पर कहीं न कहीं चीन की इंडो-पसिफ़िक क्षेत्र में चीन की आक्रामक नीतियों पर कुछ हद तक सहमति दिखती है।

रक्षा अभ्यासो के अलावा राफेल विमानों की खरीद और पी-75 स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के निर्माण को भी आगे तक ले जाय गया है। प्रधानमंत्री की फ्रांस यात्रा के दौरान स्टील्थ फाइटर जेट कार्यक्रम के लिए एक हाई-थ्रस्ट इंजन के सह-विकास पर बातचीत, रक्षा सहयोग क्षेत्र में एक बड़ा कदम हो सकता है। शक्तिशाली इंजन के सह-विकास के अलावा, दोनों पक्षों के बीच विचार-विमर्श के दौरान भारतीय नौसेना द्वारा विमान वाहक पोत और अतिरिक्त स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों के लिए लड़ाकू जेट के अधिग्रहण पर भी ध्यान दिया जा सकता है। प्रधानमंत्री की यात्रा की तैयारियों पर चर्चा के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने हाल ही में अपने फ्रांसीसी समकक्ष के साथ मुलाकात की और माना जा रहा है की राफेल-एम विमानों और लड़ाकू विमानों के लिए जेट इंजन के संयुक्त विकास के सौदे पर बातचीत हुई।

अंतरिक्ष क्षेत्र

अंतरिक्ष क्षेत्र में फ्रांस भारत का एक परम सहयोगी रहा है जिसकी शुरुआत 1960 में हुई जब फ्रांस की सहायता से भारत ने ऐतिहासिक श्रीहरिकोटा लॉन्च-पैड का निर्माण किया । इस संदर्भ में, भारत और फ्रांस ने मार्च 2018 में राष्ट्रपति मैक्रोन की भारत यात्रा के दौरान "अंतरिक्ष सहयोग के लिए संयुक्त विजन" घोषित किया था। इसरो और फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी, सीएनईएस, विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं, जिसमें संयुक्त अनुसंधान कार्यक्रम, उपग्रह प्रक्षेपण और तकनीकी सहायता शामिल हैं। फ्रांस भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता बना हुआ है। इसके अलावा फ्रांस सीएनईएस भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम - गगनयान का समर्थन कर रहा है।

असैन्य परमाणु सहयोग

असैन्य परमाणु सहयोग के मामले में भारत और फ्रांस के बीच सहयोग लगभग पद्रह वर्षा पहले शुरू हुआ। 30 सितंबर 2008 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की फ्रांस यात्रा के दौरान, असैन्य परमाणु सहयोग पर समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके बाद, दिसंबर 2010 में तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी की भारत यात्रा के दौरान, जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना (जेएनपीपी) के लिए ईपीआर के कार्यान्वयन के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। आज भारत आईटीईआर का सदस्य है, जो एक बहु-राष्ट्रीय संघ है जो फ्रांस के कैडराचे में स्थित एक प्रायोगिक संलयन रिएक्टर के निर्माण के लिए गठित किया गया है।

आतंकवाद के खिलाफ सहयोग

भारत और फ्रांस दोनों ही इस्लामिक आंतकवाद के शिकार रहे हैं। ऐसे में दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद की निंदा में साथ खड़े रहे हैं और संयुक्त राष्ट्र में पूर्ण समर्थन के साथ काम करते आये हैं। मार्च 2018 में, राष्ट्रपति मैक्रॉन की भारत यात्रा के दौरान, दो देशों ने आतंकवाद के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता दिखाई थी और सीमा पार आतंकवाद और फ्रांस और भारत में आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं सहित सभी अभिव्यक्तियों में आतंकवाद की निंदा की। फरवरी 2019 में पुलवामा हमले के बाद, फ्रांस ने भारत का समर्थन किया और पाकिस्तान में स्थित 'वैश्विक आतंकी' हाफिज सईद को राष्ट्रीय स्तर पर सूचीबद्ध किया, जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र में भी उसे सूचीबद्ध किया गया। 2020 में फ्रांस ने कई आतंकवादी हमलों का सामना किया, विशेष रूप से सितंबर में "पेरिस चाकू हमले" रहे और भारत ने इस दुःखद घटना पर शोक व्यक्त किया। इसी क्रम में दोनों पक्षों ने 16 नवंबर 2021 को पेरिस में आतंकवाद के विरोध पर 15वीं जॉइंट वर्किंग ग्रुप का आयोजन किया।

जलवायु परिवर्तन और हरित ऊर्जा

रणनीतिक सहयोग के आलावा, पर्यावरण और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत और फ्रांस के बीच सहयोग के नए आधार बिंदु हैं । ज्ञात है की प्रधानमंत्री मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) की घोषणा 2015 में फ्रांस में की थी जिसका फ्रांस एक सहयोगी देश और सदस्य है। साथ ही दोनों देशों ने नवंबर 2021 में नवीकरणीय ऊर्जा पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग को प्रोत्साहित करने का उद्देश्य रखता है। इसमें सौर, पवन, हाइड्रोजन, और बायोमास ऊर्जा से संबंधित प्रौद्योगिकियां शामिल हैं। भारत और फ्रांस जलवायु और जैव विविधता क्षेत्र में भी सहयोग कर रहे हैं।

इस संदर्भ में, भारत ने फ्रांस की पहल "उच्च महत्वाकांक्षा गठबंधन" में शामिल होने की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य 2030 तक दुनिया की कम से कम 30प्रतिशत भूमि और महासागरों की रक्षा करना है। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान ग्रीन हाइड्रोजन की दिशा में भी समझौता हो सकता है जो दो देशों की पर्यावरण सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शायेगा।

लोग और शैक्षिक सम्बन्ध

भारत और फ्रांस के लोगों के बीच भी मजबूत संबंध हैं जिसमे भाषा, संस्कृति, फ़िल्में और वेश-भूसा एक मजबूत भूमिका सदा करते हैं। इस संदर्भ में आज छात्र एक महत्वपूर्ण भूमिका रोल अदा करते हैं। भारतीय छात्रों के लिए फ्रांस न केवल शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र है बल्कि ब्रेक्सिट के बाद भारतीय छात्रों के यूरोप में एंट्री का एक महत्त्वपूर्ण रास्ता। ब्रेक्सिट ने भारतीय छात्रों के लिए यूरोप में काम प्राप्त करने के दरवाजे बंद कर दिए हैं, लेकिन फ्रांस भारतीय छात्रों की मदद कर सकता हैं। फ्रांस भारतीय छात्रों को यूरोपीय शिक्षा के लिए आकर्षक विकल्प प्रदान कर सकता है, जिससे वे उच्च शिक्षा और अनुसंधान क्षेत्र में अधिक बेहतर हो सकते हैं।

दूसरा, फ्रांस भारतीय छात्रों के लिए कार्य अवसरों को बढ़ा सकता है, जैसे कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, प्रौद्योगिकी, संगठनात्मक प्रबंधन आदि क्षेत्र में। तीसरा, फ्रांस यूरोपीय यूनियन के सदस्य राष्ट्र होने के कारण, वह भारतीय छात्रों को यूनियन के अन्य सदस्य देशों के साथ सहयोग करने का माध्यम बना सकता है। इसके लिए, फ्रांस भारतीय छात्रों के लिए विशेष वीजा और काम करने के अनुमति के आसानी से प्रदान कर सकता है। प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान छात्र वीज़ा मुद्दे पर भी कई तरह के निर्णय और समझौते किये जा सकते हैं।

भारत की नीति "शून्य संयोजक सिद्धांत" से परे

इन सभी महत्ववपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग और भागेदारी भारत-फ्रांस रिश्तों को आने वाले दिनों में मजबूत और प्रगाढ़ करेगा लेकिन ऐसे में इस बात पर ध्यान देने की जरूरी है कि आज भारत कई अन्य देशों के साथ भी रणनीतिक साझेदारी कर रहा है। हाल ही में संपन्न हुई प्रधामंत्री की अमेरिका की यात्रा भारत के बढ़ते अंतराष्ट्रीय कद का प्रमाण है और इस बात को भी दर्शाता है की भारत को अकेले इन देशों की जरूरत नहीं बल्कि इन देशों को भी भारत की बराबर जरूरत है। अन्तर्रष्ट्रीय संबंधों में "शून्य संयोजक" सिद्धांत की बात की जाती है जहाँ एक देश के साथ सम्बन्ध मजबूत होने पर दूसरे देश के साथ सम्बन्ध बिखर जाते हैं और यह सिद्धांत भारत के रूस और अमरीका के साथ संबंधों में अक्सर प्रयोग किया गया है। भारत के सामरिक मामलों में अमेरिका और फ्रांस के साथ के संबंध यह स्पष्ट करते हैं कि भारत शून्य संयोजन में रुचि नहीं रखता, बल्कि सभी के साथ मिलकर काम करने को तत्पर है। चूंकि आज भारत विकास की गति में आगे ही नहीं बल्कि कई विकाशील देशों के टक्कर देने में समर्थ है, भारत के सभी "रणनीतिक संबध" नए भारत की नयी सोंच को प्रदर्शित करते हैं।

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


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