केन्या के राष्ट्रपति विलियम रुतो अपनी दो दिवसीय यात्रा पर 04 दिसम्बर को भारत आए।राष्ट्रपति विलियम रूतो केन्याई राजनीति के एक अनुभवी राजनेता हैं जो वर्ष 2022 में राष्ट्रपति बनने से पहले केन्या के उप-राष्ट्रपति, गृह मंत्री, कृषि मंत्री और शिक्षा मंत्री के पद पर रह चुके हैं। अपने इन कार्यकालों के दौरान वह कई बार भारत यात्रा पर आ चुके हैं लेकिन राष्ट्रपति के तौर पर उनकी यह पहली भारत यात्रा थी। राष्ट्रपति रुतो अपने एक उच्च-स्त्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ आये जहां तमाम खास पहलुओं पर बात-चीत और समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इन मुद्दों में राजनीतिक, व्यापार और निवेश, विकासात्मक साझेदारी, क्षमता-निर्माण और शिक्षा, अंतरिक्ष सहयोग, रक्षा और सुरक्षा सहयोग, समुद्री सहयोग, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और नवीकरणीय ऊर्जा, वैश्विक मुद्दे और बहुपक्षीय सहयोग, और साझा संपर्क जैसे मुद्दे खास तौर पर शामिल थे।
राष्ट्रपति रुतो भारत से खास लगाव रखते हैं और दो देशों के बीच मजबूत संबंधों की वकालत करते रहे हैं। आजादी के बाद से ही भारत ने केन्या के साथ सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, आर्थिक और सामरिक संबंधों को महत्व दिया लेकिन मौजूदा समय में दो देशों ने डिजिटल, शिक्षा, तकनीकी और समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में मजबूत पहलें की हैं जो इक्कीसवी सदी की विदेश नीति और राष्ट्रीय हितों से मेल खाती हैं और साथ ही परस्पर सम्मान की भावना और हितों की बातें, भारत और केन्या के बीच मित्रता प्रगाढ़ करती हैं। अपने एक साक्षात्कार में राष्ट्रपति रुतो ने प्रधानमंत्री मोदी की राजनैतिक कुशलता, दक्षता और उनका देश के लोगों के प्रति समर्पणभाव को एक सीख के तौर पर बताया जो दो नेताओं के बीच एक मित्रवत भाव को स्पष्ट करती है जो विदेश नीति के क्षेत्र में एक खास महत्व रखता है। ‘मेरे भाई नरेंद्र मोदी’ के सम्बोधन के साथ राष्ट्रपति रुतो ने भारत की प्रगति की प्रशंसा की और साथ ही भारत की डिजिटल क्रांति को एक मील का पत्थर कहा जिससे केन्या बहोत कुछ सीख रहा है।
यात्रा का आयोजन भारत की G20 देशों की सफल अध्यक्षता के बाद हुई जिसमें भारत ने G20 में अफ़्रीकी संघ को सफलतापूर्वक स्थायी सदस्यता दिलाई। जहाँ अफ़्रीकन यूनियन का G20 देशों के समूह में शामिल करवाना भारत की एक सफल कूटनीति काप्रमाणहै। भारत के इस प्रयास के लिए तमाम अफ़्रीकी देशों ने भारत का आभार प्रकट किया है जिसमें केन्या भी शामिल है। नवम्बर में संपन्न हुए ‘वैश्विक दक्षिण की आवाज’ सम्मलेन में केन्या के राष्ट्रपति रुतोने भी भाग लिया था जो न केवल अफ़्रीकी देशों का भारत के प्रति दृढ विश्वास दिखाता है बल्कि सदियों से अफ्रीकी महाद्वीप और भारत के बीच सदियों पुराने संबंधों को नया दृष्टिकोण देता है। ऐतिहासिक दृष्टि से भारत और केन्या के बीच मजबूत संबंध रहे हैं जो आज के समय में एक मजबूत राजनयिक ढाँचे से बंधे हुए हैं जिनमें विदेश मंत्रालयों के बीच विमर्श, संयुक्त आयोग की बैठकें, और संयुक्त व्यापार समिति की बैठकें शामिल हैं जो नियमित रूप से होती रहती हैं।
भारत और केन्या सदियों से जुडी दो मानव सभ्यताएं हैं जो आपसी मेल-मिलाप, सांस्कृतिक साझेदारी, और यात्राओं का एक सुनहरा काल दर्शाते हैं। केन्या पूर्वी अफ्रीका में स्थित एक महत्त्वपूर्ण अफ़्रीकी मित्र देश है जहाँ भारतीय लोगों की उपस्थिति को मशहूर ऐतिहासिक किताबों जैसे ‘पेरिप्लस ऑफ़ दा एरिथ्रियाँ सी’ और ‘गाइडबुक ऑफ़ दा रेड सी’ में उल्लेख पाया जाता है। दोनों देश अंग्रेजी उपनिवेशवाद का शिकार रहे और बीसवीं सदी के शुरुआती दशको में अंग्रेजी भारतीय सेना के सैनिकों को अंग्रेजी पूर्वी अफ्रीका में बंधुआ श्रमिकों के तौर पर ले जाया गया था जो बाद के दशकों में वहीँ बस गए और आज एक ठोस आबादी का हिस्सा हैं।
आजादी के एक वर्ष बाद ही भारत ने पूर्वी अफ्रीका में अपने एक रेजिडेंशियल आयुक्त का कार्यालय स्थापित किया और वर्ष 1963 में केन्या के स्वतंत्र होते ही राजधानी नैरोबी में भारतीय उच्चायोग की स्थापना हुई।भारत से पहला प्रतिनिधिमंडल तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन के साथ वर्ष 1956 में गया थाऔर वर्ष 1963 में केन्या के आजादी समारोह में इंदिरा गाँधी ने भाग लिया था और फिर वर्ष 1970 और 1981 में प्रधानमंत्री के तौर पर वह केन्या गयीं। वहीं केन्या से वर्ष 1981 में राष्ट्रपति डेनियल मोई गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मलेन में भाग लेने भारत आये थे। इन तमाम महत्वपूर्ण यात्राओं में पूर्व राष्ट्रपति उहुरू केन्यात्ता की 2017 की भारत यात्रा भी शामिल है।
प्रधानमंत्री मोदी के शासनकालके दौरान भारत ने अफ्रीका के देशों के साथ जुड़ाव को महत्व दिया है और पिछले नौ वर्षों के कार्यकाल के दौरान तमाम उच्चस्तरीय यात्रों से साफ दिखता है जिसमें भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और मंत्री स्तर की यात्राएँ शामिल हैं। साथ ही भारत को अफ्रीका महाद्वीप के देशों से जोड़ने में इंडिया-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मलेन का वर्ष 2008 से एक महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री मोदी की केन्या यात्रा एक ऐतिहासिक यात्रा रही क्योंकि यह 35 वर्षों बाद था की किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने केन्या की यात्रा की थी। प्रधानमंत्री मोदी की इस ऐतिहासिक यात्रा के दौरान कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे जिनमें रक्षा सहयोग महत्त्वपूर्ण था। वर्ष 2021 में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की तीन दिन की यात्रा, भारत-केन्या संबंधों में द्विपक्षीय संबंधों में गति बनाये रखने में कारगर शामिल हुई थी। भारत आर्थिक सहयोग के साथ सैन्य, व्यापार, उद्योग, सूचना, संचार और तकनीक, ऊर्जा, शिक्षा और स्वाथ्य क्षेत्रों में केन्या को सामयिक मदद पहुंचाता रहा है। कोविड-19 के दौरान ने भारत ने ऑपरेशन वैक्सीन मैत्री के तहत केन्या को भारत निर्मित कोविशील्ड की एक लाख खुराकें भेज एक महत्वपूर्ण मदद की थी।
भारत-केन्या संबंधों के आधुनिक इतिहास के साठ वर्ष पूरे हो रहे हैं। जहां मुंबई और मोम्बासा को जोड़ने वाला विशाल हिंद महासागर दो देशों के संबंधो का प्रतीक है वहीं दो देशों ने आज प्रगतिशील भविष्य की नींव रखते हुए सभी क्षेत्रों में अपने सहयोग को मजबूत करने का निर्णय लिया है और उसके साथ ही नई पहलों से सामयिकता को बनाए रखा है। हाल के वर्षों में भारत और केन्या के बीच आपसी व्यापार और निवेश में एक खास प्रगति हुई है वह फिर चाहे व्यापार, सुरक्षा सहयोग या फिर विकास सहयोग में क्रेडिट लाइंस के तौर पर, भारत केन्या के साथ हर तरह से खड़ा रहा है। वहीं केन्या भी भारत को तमाम अंतरराष्ट्रीय पटलों पर सहयोग करता रहा है जिसमें भारत के संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद की सदस्यता बात भी शामिल है।
भारत और केन्या के बीच द्विपक्षीय व्यापार 3.3 बिलियन अमरीकी डॉलर का है जिसमें ज्यादातर केन्या भारत से आयात करता है। भारत अपने पेट्रोलियम उत्पादों के अलावा दवाएँ, भारी मशीनरी, स्टील, वाहन, और कृषि उत्पादों को केन्या निर्यात करता है। यह बात ध्यान देने की है की केन्या अपनी जरूरत की लगभग सत्तर प्रतिशत खाद्य अवश्यकताएं बाहर से आयात करता है जो लगभग 500 मिलियन अमरीकी डॉलर तक है। चूंकि केन्या का 15 प्रतिशत भू भाग उपजाऊ है, ऐसे में केन्या के पास मजबूरी है की वह ज्यादा से ज्यादा आयात करे।
ऐसे में राष्ट्रपति रुतो देश में कृषि उत्पादन वैज्ञानिक तकनीकों से दोगुना से भी ज्यादा करना चाहते हैं जिसके लिए केन्या भारत से सहयोग की मांग कर रहा है। राष्ट्रपति रुतो की यात्रा के दौरान जारी हुए संयुक्त वतव्य में कहा गया है कि, “दोनों पक्ष कृषि के क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने पर सहमत हुए। इस संबंध में, केन्या ने केन्याई कानूनों के अनुरूप, केन्या में बाजरा सहित फसलों की खेती के लिए भारतीय कंपनियों और संस्थानों को जमीन उपलब्ध कराने की पेशकश की।“ द्विपक्षीय कृषि सहयोग बढ़ाने से वास्तव में द्विपक्षीय व्यापार बढ़ेगा और केन्या की खाद्य सुरक्षा में योगदान होगा।
केन्या में भारतीय निवेश लगभग 3.2 बिलियन अमरीकी डॉलर का है जो की दोनों देशों के लिए एक सफल उद्यम रहा है। निवेश को बढ़ाने के लिए, राष्ट्रपति रुतो ने भारतीय कंपनियों को केन्या में निवेश करने के लिए आकर्षक माहौल वादा किया है, खासकर कृषि, विनिर्माण, फार्मास्युटिकल, स्वास्थ्य, आईसीटी, हरित ऊर्जा, हरित गतिशीलता, आवास, और जल क्षेत्र में। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति रुतो ने दीर्घकालिक आर्थिक साझेदारी की स्थापना के लिए आपसी समर्थन व्यक्त किया है। वहीं स्वास्थ्य देखभाल और फार्मास्युटिकल क्षेत्रों को महत्वपूर्ण मानते हुए केन्या ने इन क्षेत्रों में भारतीय निवेश को बढ़ाने की बात की है, जिससे केन्याई लोगों को किफायती स्वास्थ्य सुविधाएं मिलेंगी। भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में भी केन्या के छात्रों के लिए भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषदकी छात्रवृत्तियों को प्रति वर्ष 48 से बढ़ाकर 80 करने का फैसला किया है।
भारत और केन्या रक्षा क्षेत्र में लंबे समय से आपसी सहयोग पर काम करते या रहे हैं। इस बढ़ते सहयोग का अंदाजा 2018 में भारत के तीन सदस्यीय रक्षा प्रतिनिधिमंडल की केन्या यात्रा थी और राष्ट्रपति रुतो की 05 दिसम्बर की भारत यात्रा में भी रक्षा सहयोग महत्वपूर्ण रहा है। हर वर्ष, भारत अपने सैन्य संस्थानों में केन्या रक्षा बलों के कर्मियों को अनेक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम प्रदान करता है। दोनों देशों के सैन्य प्रतिनिधिमंडल नियमित रूप से एक-दूसरे के साथ बातचीत करते हैं और आपसी समर्थन के लिए जुड़ाव को बढ़ाते हैं। भारतीय नौसेना के जहाज केन्या के मोम्बासा पोर्ट का सद्भावना दौरा करते हैं और इसमें केन्या रक्षा बलों के कर्मियों के साथ बातचीत होती है। भारत ने 2013 और 2014 में केन्या के जल क्षेत्र में हाइड्रोग्राफी सर्वेक्षण किया था। हाइड्रोग्राफी सर्वेक्षण जो भारत लगभग अपने सभी समुद्री पड़ोसियों के साथ करता रहा है और हाल के महीनों में मालदीव के साथ संबंधों में यह एक मुद्दा बना हुआ है।
जुलाई 2016 में, भारत और केन्या ने रक्षा सहयोग पर समझौता किया था। दोनों देश सुरक्षा के क्षेत्र में सूचना और जानकारी साझा करने से लेकर आतंकवाद, साइबर सुरक्षा, काला धन, हथियारों की तस्करी को रोकनी से लेकर अन्य कई क्षेत्रों में साथ कार्य करते रहे हैं। आतंकवाद के विषय में राष्ट्रपति रुतो ने भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की बात कही है। हालांकि उन्होंने पाकिस्तान मुद्दे पर कोई बात नहीं की लेकिन आतंक के मुद्दे का राजनीतिकरणन करने और बात-चीत के जरिए मुद्दों को सुलझाने की बात कही।
दूसरी ओर, भारत और केन्या समुद्री पड़ोसी हैं। दोनों ही देश अरब सागर में एक खास दिलचस्पी रखते हैं और हिन्द महासागर में सुरक्षा की दृष्टि से साझा हित रखते हैं। खास बात यह है की केन्या भी एक शांतिपूर्ण, समृद्ध, और एक मजबूत हिन्द महासागर मे विश्वास रखता है साथ ही उसका दृष्टिकोण ‘ब्लू ईकानमी’ में भारत के साथ मिलकर काम करने का है जो भारत को हिन्द-महासागर और पूरे हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग की दृष्टि से काफी दूरगामी प्रभाव वाला सिद्ध हो सकता है। संयुक्त वक्तव्य में दोनों देश “समुद्री सुरक्षा में सहयोग बढ़ाने और व्हाइट शिपिंग जानकारी साझा करने को क्रियान्वित करने पर भी सहमत हुए हैं। भारत ने भारत में समुद्री कार्यक्रमों और अभ्यासों में केन्या की नियमित भागीदारी का स्वागत किया, जिसमें 2024 में ‘मिलन अभ्यास’ के अगले संस्करण में उसकी आगामी भागीदारी भी शामिल है।“
इस संदर्भ मे राष्ट्रपति रुतो की भारत यात्रा के दौरान जारी किया गया “हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सहयोग पर भारत-केन्या संयुक्त दृष्टिकोण वक्तव्य –बहारी” एक खास महत्व रखता है । इस दूरगामी सोंचके तहत भारत और केन्या के बीच हिन्द महासागर क्षेत्र में संयुक्त सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक कारगर राह प्रस्तुत की गई है। इसमें बढ़ते बाजार और उद्यम को लेकर प्रोत्साहन, महासागरीय सुरक्षा में सुधार, ब्लू इकोनॉमी के संभावनाओं का सही रूप से उपयोग, और आत्मनिर्भरता में उन्नति के साथ संचार को तेजी से बढ़ावा देने का एक रोडमैप प्रस्तुत किया गया है जिससे दोनों देशों के बीच समृद्धिपूर्ण संबंधों को बनाए रखने के लिए एक सुरक्षित और सहयोगी आधार विकसित होगा। यह विज़न भारत की 'सागर’ नीति के दृष्टिकोण और केन्या के विजन 2030 को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है।
भारत और केन्या ने कुल मिलकर पाँच समझौतों पर हस्ताक्षर किए जिनमें डिजिटल परिवर्तन के लिए जनसंख्या पैमाने पर कार्यान्वित सफल डिजिटल समाधानों को साझा करने के क्षेत्र में सहयोग भी शामिल है। पिछले दस वर्षों में भारत ने जिस तरह से डिजिटल क्षेत्र मे प्रगति की है उसका विश्व न केवल अनुसरण कर रहा है बल्कि अपने यहाँ डिजिटल क्रांति लाने के लिए भारत से सहयोग की आशा कर रहे हैं। राष्ट्रपति रुतो मानतें हैं की सरकारी सुविधाओं में डिजिटल तकनीक के उपयोग से भ्रष्टाचार जैसी मुसीबतों से कारगर तरीके से छुटकारा पाया जा सकता है। ज्ञात है की केन्या भ्रष्टाचार से बुरी तरह प्रभावित है और रुतो सरकार इस मुद्दे से निजात पाने के लिए काफी प्रयास कर रही है।
भारत की अफ्रीका नीति में केन्या एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, खासकर केन्या की भौगोलिक स्थिति की वजह से । केन्या भारत को अफ्रीका में प्रवेश का माध्यम प्रदान करता है। ऐसे में सुरक्षा और व्यपार जैसे क्षेत्र मे साझेदारी दोनों देशों के लिए हितकारी और महत्वपूर्ण है। भारत की वृहद अफ्रीका नीति में विकासात्मक साझेदारी एक महत्वपूर्ण पहल है। भारत तमाम अफ्रीकी देशों जिसमें केन्या भी शामिल है को विकास कार्यों में मदद करता है जिसमें आर्थिक सहायता और सहयोग भी शामिल है। कोविद काल के दौरान भारत ने अफ्रीका महाद्वीप में अपने अथक प्रयासों से अपने विश्व की फार्मेसी होने की पूरी भूमिका निभाई है और साथ ही जलवायु जैसे मुद्दों पर बात कर रहा है। चूंकि चीन और अन्य ताकतवर देश अफ्रीका में खुले आम वहाँ की क्षेत्रीय राजनीतिक अशान्ति और सैन्य संघर्ष का फायदा लेते हुए वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करते या रहे हैं ऐसे मे भारत एक मददगार के तौर पर अफ्रीकी देशों अलग पहचान बना चुका है।
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