इमरान खान का 'नया पाकिस्तान' हुआ ध्वस्त
Dr Rishi Gupta

पाकिस्तानी अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ नेता इमरान खान को प्रसिद्ध तोशखाना मामले में भ्रष्टाचार के आरोप में तीन साल जेल की सजा सुनाई। इमरान खान ने पाकिस्तानी सेना के एक ख़ास राजनेता के रूप में शुरुआत की और अपने उग्र भाषणों के लिए प्रसिद्धि हासिल की । लेकिन इमरान खान द्वारा पाकिस्तानी राजनीति के उन पहलुओं और ढांचे की खुली आलोचना की जिन पर रहकर सात दशकों में आज के पाकिस्तान की स्थापना हुई है, काफी महंगी पड़ी और अंततः जेल जाना पड़ा। 2023 में इमरान खान की पहली गिरफ्तारी से पाकिस्तान के प्रमुख शहरों में हलचल मच गई, मुख्य रूप से इमरान खान के समर्थकों ने सेना को निशाना बनाया। हालाँकि तब अदालत ने उन्हें जमानत दे दी थी, लेकिन इमरान खान का सीधा टकराव सेना और पूरे 'इस्टैब्लिशमेंट' को रास नहीं आया।

इमरान खान की वर्तमान गिरफ्तारी एक पाकिस्तानी राजनीती की पसंदीदा शैली का मुजायरा है। जिसे अक्सर पाकिस्तान के कई पूर्व प्रधानमंत्रियों के साथ दोहराया गया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति को इसी इच्छाशक्ति के साथ गद्दी सम्हालनी चाहिए की उसे कभी भी जेल जाना पड़ सकता है और इमरान खान कोई अपवाद नहीं थे। जिस चीज़ ने इमरान खान को अपने पूर्ववर्तियों से अलग बनाया, वह यह सोचने का साहसी प्रयास था कि वह पाकिस्तानी सेना और सेना प्रमुख मुनीर को चुनौती दे सकते हैं और इन सभी चीजों में 'अवाम' उनके बचाव में आएगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इमरान खान के इस एपिसोड ने पाकिस्तान को फिर पाकिस्तान बना दिया जिसमे न ही कुछ इमरान खान वाला 'नया पाकिस्तान' है और न पूर्ण।

इमरान खान के पास अब एकमात्र उम्मीद शीर्ष अदालत में अपील की बची है लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह इमरान खान के राजनीतिक करियर में अंतिम विश्राम का प्रतीक है। संविधान के अनुसार, इमरान खान पांच साल तक किसी भी पब्लिक पद पर नहीं रह सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप नेशनल असेंबली में एक मजबूत विपक्षी चेहरा और आगामी चुनावों में एक महत्वपूर्ण आवाज की अनुपस्थिति महसूस हो सकती है।

हालाँकि पाकिस्तानी सेना का इमरान खान के राजनीतिक सफर सबसे बड़ा रोल रहा है लेकिन सेना को ही अकेले जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए। इमरान खान के प्रधानमंत्री बनते ही पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लिए तमाम तरह की मुसीबतें कड़ी की। यहाँ तक मेडिकल और व्यक्तिगत मामलों पर भी इमरान खान ने नवाज शरीफ को परेशान किया और ज्यों ही नवाज शरीफ के छोटे भाई शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाले पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन), बिलावल भुट्टो के नेतृत्व वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और अन्य छोटे दलों ने सरकार बनाई वैसे ही यह साफ़ हो गया था की अब इमरान खान के लिए वापसी करना न मुमकिन था। शहबाज शरीफ अपने बड़े भाई को पाकिस्तान वापस लाने के लिए इमरान खान को राजनीतिक पटल से हटाना जरूरी था। ऐसे में यह कहना की इमरान खान का पतन केवल राजनीतिक था तो वह गलत होगा क्योंकि व्यक्तिगत मसले काफी हद तक इस सारे घटनाक्रम में भूमिका अदा कर रहे हैं।

यह देखने वाली बात होगी की क्या नवाज़ शरीफ लंदन से पाकिस्तान वापसी कर पाएंगे क्योंकि अभी भी उनकी राजनीतिक पकड़ उनकी पार्टी के लिए आने वाले चुनावों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। लेकिन नवाज़ शरीफ पर पाकिस्तानी सेना को कितना भरोसा है यह साफ़ नहीं है क्योंकि नवाज़ शरीफ अपने राजनीतिक कार्यकाल में प्रधानमंत्री के तौर पर सेना के अनुरूप पूरी तरह नहीं रहे। और अगर नवाज़ शरीफ की वापसी होती है तो सेमुमकिन है सेना काम से काम आंत्रिक पार्टी मुद्दों में उलझे और इस बात पर ही फोकस करे की प्रधानमंत्री पर के लिए सही उम्मीदवार कौन है।

एक कार्यवाहक सरकार की चुनौतियाँ

राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की सिफारिश पर नेशनल असेंबली को भंग कर दिया है। अब एक कार्यवाहक प्रधान मंत्री के पास नए सिरे से चुनाव कराने का तकनीकी कार्य होगा जो 90 दिनों में असंभावित और असंभव है। चुनाव अधिनियम की धारा 17(1) के अनुसार, पाकिस्तान का चुनाव आयोग नेशनल असेंबली, प्रांतीय असेंबली और स्थानीय सरकार के चुनावों के लिए "प्रत्येक जनगणना के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करेगा"। प्रत्येक आधिकारिक जनगणना डेटा जारी होने के बाद ऐसा करना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, नई मतदाता सूची और मतदान योजना चुनाव आयोग के लिए 90 दिनों के भीतर निष्पादित करने का एक और बड़ा काम होगा। साथ ही, 05 अगस्त को काउंसिल ऑफ कॉमन इंटरेस्ट्स द्वारा एक नई जनगणना को मंजूरी दिए जाने के बाद नेशनल असेंबली के चुनावों के लिए क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन आवश्यक है और इसके लिए 90 दिनों से अधिक की भी आवश्यकता हो सकती है। इसलिए यमौजूदा मुद्दों के मद्देनज़र कार्यवाहक सरकार के आते ही 90 दिनों में चुनाव मुश्किल है।

दूसरा, आर्थिक मोर्चे पर इमरान खान और शाहबाज शरीफ दोनों प्रशासन मुद्रास्फीति, खराब नीतियों और बाहरी कर्ज से निपटने में विफल रहे। एक कार्यवाहक सरकार को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ आर्थिक व्यवस्था से निपटना होगा, जिसके लिए सहबाज सरकार सरकार ने आईएमएफ सौदे को जारी रखने के लिए कार्यवाहक सरकार को 'सशक्त' करने के लिए रियायतें दी थीं। पाकिस्तान के लिए आईएमएफ से संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रमों में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रबंधन करना कार्यवाहक के लिए एक कठिन काम होगा। हालाँकि, पाकिस्तान अधिक विदेशी निवेश लाने की कोशिश कर रहा है और कई बंदरगाहों सहित सार्वजनिक संपत्तियों को तीसरे देशों, विशेष रूप से संयुक्त अरब अमीरात को बेचना शुरू कर दिया है। संयुक्त अरब अमीरात को ऐसा देश जिसे पाकिस्तान को आर्थिक संकट से बाहर निकालने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है लेकिन मुद्दा यह है की क्या आईएमएफ और संयुक्त अरब अमीरात की मदद पाकिस्तान को आर्थिक संकट से निकाल पायेगी।

आर्थिक संकट के अलावा, राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद, पाकिस्तान की समग्र स्थिरता में महत्वपूर्ण चुनौतियां होंगी। अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को पाकिस्तानी सरकारों ने हर तरह की मदद पहुंचाई है लेकिन पिछले डेढ़ साल में यह साफ़ हो गया है की तालिबान मदद के बावजूद पाकिस्तान के लिए मुसीबत का सबब बन चुका है। तहरीक-ए-तालिबान जिसे अफगानी तालिबान का समर्थन है और जो एक एक आतंकवादी समूह है को अक्सर पाकिस्तानी तालिबान के रूप में देखा जाता है वह पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहा है। साथ ही, पाकिस्तान ने स्वयं सैकड़ों आतंकवादी समूहों को विकसित और राज्य संरक्षण दिया है और सीमा पार आतंकवादी हमलों को अंजाम देने के लिए उन्हें वित्त पोषित किया है। अच्छा या बुरा, आज ये आतंकवादी समूह स्वयं राज्य के लिए एक चुनौती हैं क्योंकि वे बेहद अप्रत्याशित बने हुए हैं और यह आने वाले दिनों में पाकिस्तान के राजनीति अस्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


Image Source: https://im.rediff.com/news/2023/mar/15pakistan1.jpg

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