एशिया प्रशांत क्षेत्र में स्थित वियतनाम भारत का एक घनिष्ट मित्र राष्ट्र है। चीन, वियतनाम और भारत का पड़ोसी देश है, इस प्रकार चीनी राष्ट्रवादी आकांक्षाओं से निपटने में जटिलताओं के कारण दोनों देशों के बीच रणनीतिक सोच में समानता है। चीन की सैन्य शक्ति में उल्लेखनीय वृद्धि के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) इस क्षेत्र में अपनी सेना का पुनर्संतुलन कर रही है। यह उल्लेखनीय है कि अमेरिका के आयात का अधिकांश भाग इस क्षेत्र से आता है और निर्यात की बात करें तो अमेरिका के लिए यह दूसरा सबसे बड़ा गंतव्य है। इस क्षेत्र में अमेरिका के लिए जापान और कोरिया गणराज्य में आधार हैं और अमेरिकी युद्धक जहाजों के लिए सिंगापुर, थाईलैंड और फिलीपींस में भी अनुकूल बंदरगाह सुविधाएं हैं।
ऑस्ट्रेलिया के साथ हुए समझौते में डार्विन बंदरगाह पर अमेरिकी पनडुब्बी की तैनाती की गई है। इसके अलावा अमेरिका पूर्वी चीन सागर और दक्षिण चीन सागर में चीनी समुद्री दावों के खिलाफ इस क्षेत्र में नौवहन की स्वतंत्रता की बात करता है। पूर्वी चीन सागर विवाद जापान के साथ हैं और दक्षिण चीन सागर विवाद वियतनाम, फिलीपींस, ताइवान, मलेशिया और ब्रुनेई के साथ हैं। जहां, एक ओर चीन का भारत के साथ अस्थिर भूमि सीमा है, वहीं भारत को इस बात पर हैरानी है कि वियतनाम द्वारा तेल ब्लॉक में ओएनजीसी विदेश द्वारा तेल के लिए खुदाई करने पर चीन आपत्ति दर्ज कराता है। अंतरराष्ट्रीय जल सीमा में वाणिज्यिक गतिविधियों को शुरू करने की बात भारत ने बिल्कुल ठीक ही कहा है। भारतीय और वियतनामी सरकार द्वारा इस साहसिक कदम से इस मुद्दे पर चीन को चुप रहने पर मजबूर होना पड़ा है। इसके अलावा इस कदम ने इन दोनों देशों के बीच दोस्ती के बंधन को और मजबूत बनाया है।
भारत वियतनाम मैत्री
भारत और वियतनाम के बीच दोस्ती के बीज लगभग 2 ई. पू. में तब पड़े थे जब भारतीय व्यापारी, भारत चीन के क्षेत्रों के लिए रवाना हुए। इस लेनदेन से विशेष रूप से मध्य और दक्षिण वियतनाम के क्षेत्रों में भारतीय संस्कृति का प्रसार हुआ। भारतीय प्रभाव वियतनामी लोकगीत, कला और दर्शन में आज भी मौजूद हैं।
मध्य और दक्षिण वियतनाम में स्थित चंपा मंदिरों से दोनों संस्कृतियों के बीच निकटता झलकती है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर विशेषज्ञ डा. त्रिदीब चक्रबर्ती, स्वतंत्रता हासिल करने के चले राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों में दोनों देशों की समानता के कारण दोनों के बीच सोच में निकटता को स्पष्ट करते हैं। इसके अलावा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गैर-उपनिवेशवाद और निर्गुट की साझा धारणा के कारण दोनों देशों के नेता एक-दूसरे के करीब आए और मैत्री, सहयोग और समझ के आपसी संबंधों की ठोस नींव रखी। भारत ने वियतनाम को अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के खिलाफ उसके राष्ट्रवादी संघर्ष में समर्थन किया। उसकी स्वतंत्रता आंदोलन में वियतनाम का समर्थन करने के लिए बड़ी रैलियां आयोजित की गईं। एकीकरण के लिए वियतनाम के संघर्ष के दौरान कोलकाता की गलियों में ‘‘अमार नाम, तोमार नाम, वियतनाम, वियतनाम,’’ (मेरा नाम, तुम्हारा नाम और हम सभी का नाम है वियतनाम) एक लोकप्रिय नारा था। इस प्रकार दो सदियों तक दोनों देशों के बीच समान विचार वाला संबंध था।
शीत युद्ध के दौर में भारत ने वियतनाम के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध कायम रखे। तब दोनों देशों के मध्य सामरिक हितों में समानता थी, जिसके परिणामस्वरूप दोनों के बीच आपसी सहयोग की भावना विकसित हुई। जून 1966 में, खुले तौर पर भारत से तत्काल बम विस्फोट बंद करने और जिनेवा समझौते की संरचना के भीतर संघर्ष का प्रस्ताव पेश करने का आह्वान किया गया। 1975 में वियतनाम के एकीकरण के बाद भारत ने वियतनाम के कंबोडिया पहल का समर्थन किया और 1979 के चीन के हमले के खिलाफ अपने समर्थन को आगे बढ़ाया। यह एक बड़ा कदम था और इसके कारण भारत-आसियान संबंध पर बुरा असर पड़ा। भारत ने आर्थिक रूप से वियतनाम को सहायता प्रदान की और 18 दिसंबर, 1982 को सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र (एमएफएन) समझौते पर हस्ताक्षर किए।
दिसंबर 1991 में सोवियत संघ के विघटन से दोनों देश प्रभावित हुए। उसके बाद की अवधि में वियतनाम आसियान का हिस्सा बन गया और भारत ने अपनी पूरब की ओर देखो नीति (लुक ईस्ट पॉलिसी) का शुभारंभ किया, जिससे भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बीच सहयोग के एक नए युग की शुरुआत हुई। इस अवधि के दौरान भारत और वियतनाम के बीच आर्थिक संबंध और मजबूत हुए। सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों में समुद्र में समुद्री डकैती और बचाव सहित संचार के महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्षमता निर्माण, तकनीकी सहायता और जानकारी साझा करना शामिल था।
चीन फैक्टर
शीत युद्ध के बाद के काल में चीन ने दक्षिण पूर्व एशिया में एक सक्रिय भूमिका निभाई। 03 अक्टूबर, 1990 को चीन ने सिंगापुर के साथ राजनयिक संबंधों की स्थापना की। 111 ईसा पूर्व से 938 ईस्वी के बीच वियतनाम चीनी शासक हान के अंतर्गत था। फ्रांस के खिलाफ युद्ध और अमेरिका के खिलाफ युद्ध में चीन ने वियतनाम को जरूरी सहायता प्रदान की। हालांकि, वियतनाम के एकीकरण से पहले, चीनी पीएलए ने 1974 में पार्सेल द्वीपों पर कब्जा कर लिया। उसके बाद जनवरी 1978 में वियतनाम ने चीनी समर्थित खमेर रूज सरकार पर आक्रमण कर तानाशाही शासकों को अपदस्थ कर दिया, जिससे चीन को आघात पहुंचा। 17 फरवरी, 1979 को चीन ने वियतनामी लोगों को सबक सिखाने के लिए वियतनाम के उत्तरी सीमाओं पर घावा बोल दिया। यह संघर्ष 06 मार्च, 1979 तक चला और इसमें चीनियों को कोई बड़ा लाभ नहीं हुआ। यह उल्लेखनीय है कि जब चीन ने वियतनाम पर हमले शुरू किए तब भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी चीन के दौरे पर था, वे अपना दौरा बीच में रोक कर भारत वापस आ गए। इसके बाद से चीन ने आसियान के सभी देशों के साथ द्विपक्षीय सहयोग की शुरुआत की और वियतनाम के साथ व्यापार संबंध में सुधार करते हुए उसे सहायता प्रदान की।
चीन शांतिपूर्ण तरीके से वियतनाम के साथ सीमा मुद्दों को हल करने पर सहमत हुआ। इसके परिणामस्वरूप टोंकीन की खाड़ी में देश की सीमा और समुद्री सीमा विवाद का हल हुआ। हालांकि पार्सेल और स्प्रैटली द्वीपों पर विवाद अनसुलझे रहे। 1988 में, वहां चीनी और वियतनामी नौसेनाओं के बीच संघर्ष हुआ जिसमें भारी क्षति हुई। उसके बाद दोनों पक्षों ने सुरक्षा बलों के रूप में इन द्वीपों के कुछ हिस्सों में सैनिकों की तैनाती की। 1995 में चीन ने फिलीपींस के दावे वाले मिश्चिफ चट्टान पर कब्जा कर लिया। मई 2011 में चीन ने वियतनामी तेल अन्वेषण के केबल काट दिया, जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया। दक्षिण चीन सागर में वियतनाम ने भारत को तेल ब्लॉक आवंटित किया है। चीन ने इस मामले में भारत को आगाह किया है, लेकिन भारत ने यह कहकर कि अंतरराष्ट्रीय जल सीमा में व्यावसायिक गतिविधि जारी रहेगा, एक साहसिक कदम उठाया है।
राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में नई सरकार अधिक मुखर हो गई है और मई 2014 में इसने दक्षिण चीन सागर में एक मोबाइल तेल रिग स्थापित किया। तभी फिलीपींस ने हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (पीसीए) में इस मामले की शिकायत की। 12 जुलाई, 2016 को पीसीए ने अपना फैसला दिया। पीसीए ने चीन के नाइन डैश लाइन के निहितार्थ को समझा और पूछा कि चीन को यूएनसीएलओएस के मुताबिक दक्षिण चीन सागर में समुद्री क्षेत्रों की सीमा से परे संसाधनों पर ऐतिहासिक अधिकार है या नहीं। यूएनसीएलओएस में प्रवेश करने से पहले चीन को वास्तव में दक्षिण चीन सागर में संसाधनों पर ऐतिहासिक अधिकार था, इसके निर्धारण के लिए ट्रिब्यूनल ने ऐतिहासिक रिकॉर्ड की जांच की। ट्रिब्यूनल ने पाया कि उस संधि से पहले, दक्षिण चीन सागर का जल, क्षेत्रीय सीमाओं से परे कानूनी तौर पर गहरे समुद्र का हिस्सा था, जहां किसी भी देश के जहाज नौवहन कर सकते थे और मछली मारने का काम कर सकते थे। तदनुसार गहरे समुद्र में चीन के पास ऐतिहासिक दृष्टि से कोई विशेष अधिकार नहीं था। ट्रिब्यूनल ने यह निष्कर्ष निकाला कि नाइन डैश लाइन से गहरे समुद्र में चीन को विशेष अधिकार नहीं मिला है। चीन इस फैसले से परेशान था और उसने पीसीए के निर्णय को मानने से इंकार कर दिया। भारत और वियतनाम दोनों ने कहा कि वे यूएनसीएलओएस और गहरे सागरों में नौवहन की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं। अमेरिका, भारत और सभी प्रभावित पक्ष धैर्यपूर्वक, चीन की हठधर्मी रवैये का अवलोकन कर रहे हैं और जरूरत पड़ने पर कार्रवाई करेंगे।
मुद्दे जो महत्व रखते हैं
दोनों देशों के शीर्ष नेताओं ने कई यात्राएं की हैं। नवीनतम दौरा हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 02-03 सितंबर, 2016 को किया गया था। वियतनाम की यह यात्रा पिछले 15 साल में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी। इस दौरान दोनों पक्षों के बीच बाहरी अंतरिक्ष, संयुक्त राष्ट्र में शांति बनाए रखने, दोहरे कराधान के परिहार, साइबर सुरक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी, सफेद शिपिंग के बारे में जानकारी और अपतटीय गश्ती पोतों की खरीद के लिए अनुबंध सहित 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए।
इसके अलावा पिछले 44 साल के राजनयिक संबंधों और नौ साल की सामरिक भागीदारी के दौरान उभरे मजबूत संबंधों को को देखते हुए दोनों देश आपसी सामरिक संबंध को मौजूदा स्तर से ऊपर उठाने पर सहमत हुए। व्यापक सामरिक भागीदारी के स्तर को उस स्तर पर ले जाने के लिए जहां, वर्तमान में वियतनाम का संबंध रूस और चीन के साथ है, संबंध को उन्नत किया जाएगा। ऐसा किया जाना जरूरी है क्योंकि इससे हमारे प्रशिक्षण और दैनिक लेने देन में प्रदर्शित होने वाले हमारे परस्पर विश्वास पर एक आधिकारिक मोहर लगता है। रक्षा मुद्दे के संबंध में, इसमें कोई शक नहीं है कि दोनों देश स्थायी मध्यस्थता न्यायालय की वर्तमान फैसले का सम्मान करते हैं और वे गहरे समुद्र में नौवहन की स्वतंत्रता के लिए सहमत हैं। आपसी रक्षा संबंधों को और अधिक मजबूत बनाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए 500 मिलियन डॉलर की ऋण की सीमा को बढ़ा दिया है। किन उपकरणों की खरीद की जाएगी यह अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन इसकी प्रबल संभावना है कि ये फ्रिगेट, पनडुब्बी या ब्रह्मोस मिसाइल हो सकते हैं। यात्रा के दौरान वियतनाम ने चार अपतटीय गश्ती जहाजों की खरीद के लिए एलएंडटी के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने न्हा ट्रांग स्थित टेली कम्युनिकेशंस विश्वविद्यालय में सेना के एक सॉफ्टवेयर पार्क के निर्माण के लिए 5 लाख डालर का अनुदान देने की घोषणा की। उससे आगे वहां निगरानी में सहायता के लिए बाह्य अंतरिक्ष से छवियों को डाउनलोड करने के लिए सहयोग किया जाएगा ताकि वियतनाम के हित वाले क्षेत्र में गतिविधियों की वास्तविक समय वाली तस्वीर मुहैया कराया जा सके।
आर्थिक मुद्दों ने यात्रा में एक महत्वपूर्ण पहलू जोड़ दिया। द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को बढ़ाना एक रणनीतिक उद्देश्य है। दोनों देश 2020 तक द्विपक्षीय व्यापार को 15 अरब डाॅलर पर पहुंचाने के लिए पूरी कोशिश करेंगे। इसके लिए अत्यधिक प्रयासों की आवश्यकता होगी। अगर दोनों देश अपने व्यापार संबंधों को बढ़ाने और वाणिज्यिक गतिविधियों की अपनी सीमा में विविधता बढ़ाने के लिए कदम उठाएं तो इसे हासिल किया जा सकता है। इसके अलावा दोनों पक्षों की ओर से विशेषकर दोनों देशों के निजी निवेशकों द्वारा निवेश बढ़ाया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी ने विशेष रूप से टाटा की 1320 मेगावाट वाली साकट्रान्ह संयंत्र के शीघ्र अति शीघ्र संविदात्मक सरलीकरण की मांग की। दोनों देश अन्वेषण के लिए आवंटित नए ब्लॉक में तेल और गैस की खोज को बढ़ाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे। दोनों देशों के बीच संपर्क को अनुकूलित किया जाना चाहिए। सीधी अबाधित उड़ानें, समर्पित जहाज और भूमि संपर्क को स्थापित किए जाने की जरूरत है। यह दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को स्वचालित रूप से मजबूत करेंगे।
यह वास्तव में सराहनीय है कि दोनों देशों के क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर घनिष्ठतम सहयोग उभर रहे हैं। सुरक्षा परिषद में सुधार होने की स्थिति में स्थायी सीट के लिए भारत की उम्मीदवारी का वियतनाम की ओर से लगातार समर्थन जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसका विशेष आभारी थे। इससे भी आगे बढ़कर यह तय किया गया कि 2020-2021 की अवधि के लिए गैर-स्थायी सीट पर वियतनाम की उम्मीदवारी का भारत समर्थन करेगा और वियतनाम इसी तरह 2021-2022 में उस सीट के लिए भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करेगा। कुल मिलाकर उस दौरे के दौरान भारत और वियतनाम के संबंध ने एक नई ऊंचाई प्राप्त की।
आगे का रास्ता
आज भारत और वियतनाम जिस मजबूत सामरिक संबंधों का आनंद ले रहे हैं वह 1994 में हस्ताक्षरित प्रथम रक्षा समझौता ज्ञापन (एमओयू), 2000 में औपचारिक रक्षा प्रोटोकॉल और 2007 में सामरिक भागीदारी के साथ साकार हुए। यहां तक कि हम वार्षिक सामरिक रक्षा वार्ता करते हैं जिसमें भारत का प्रतिनिधित्व भारत के रक्षा सचिव करते हैं। हमारे संबंधों की गहनता को देखते हुए, इन वार्ताओं का उन्नयन कर इसे मंत्रिस्तरीय स्तर पर शुरू की जाएगी। कैमरान्हा खाड़ी को अक्सर वियतनाम के आभूषणों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है। लंबे सुरक्षात्मक समुद्रोन्मुखी प्रायद्वीप, भीतरी और बाहरी प्राकृतिक बंदरगाहों जिसके बारे में बहुत लोगों का मानना है कि यह पूरी दुनिया में संभवतः सबसे अच्छा गहरे जल का समुद्री बंदरगाह सुविधा है। वहां अत्याधुनिक विमान के लिए उत्कृष्ट रनवे के साथ एक वायु सेना बेस भी है। भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना द्वारा इन सुविधाओं के उपयोग से हमें अपनी सामरिक भागीदारी को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी और दक्षिण चीन सागर में अपनी संपत्ति की रक्षा के लिए कार्रवाई शुरू करने के लिए सक्षम बनाएगी। दो देशों के बीच इस क्षेत्र का मौन अवलोकन किया जा रहा है।
वियतनाम की आवश्यकताओं के आधार पर भारत उसे डोर्नियर निगरानी विमान, मिनी मानवरहित यान (यूएवी), उन्नत टी -72 टैंक और स्वदेश में निर्मित आर्टिलरी उपकरण जो एक बार परीक्षणों से साबित हो चुका है और भारतीय नौसेना के हमारे पुराने जहाज प्रदान कर सकता है। वर्तमान में वियतनाम, हमारी ओर से पेशकश की गई ऋण की सीमा में अपतटीय गश्ती पोतों की खरीद कर रहा है। वियतनाम हमारे मिसाइल विकास से प्रभावित है और हमारे सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस जो भूमि और समुद्र पर इस्तेमाल किया जा सकता है, की खरीद करने के लिए उत्सुक है। इस मुद्दे पर योग्यता के आधार पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि इस पर विदेशी संयुक्त विकासकर्ता की ओर से कोई आपत्ति नहीं है। वियतनाम इस बात को लेकर भी उत्सुक है कि मिसाइल तकनीक और परमाणु रिएक्टरों के संचालन में उसके वैज्ञानिकों को प्रशिक्षित करने के अवसर दिए जाने चाहिए।
वियतनाम हमारे सशस्त्र बलों के पेशेवर प्रशिक्षण की तारीफ करता है और निम्नलिखित क्षेत्रों में उसने हमारी ओर से प्रशिक्षण में सहायता दिए जाने की इच्छा जताई हैः –
कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के रूप में भी वियतनामी राष्ट्रपति और उनके प्रधानमंत्री भारत के साथ रक्षा संबंधों को मजबूत बनाने के खुलकर पक्षधर थे। वियतनाम प्रशिक्षण के क्षेत्र में सहयोग की चाहत के साथ ही रॉकेट और मिसाइलों के क्षेत्र में जानकारी जुटा रहा है। वियतनाम को मजबूत करना और उसे सामरिक पहलुओं में सहयोग करना, चीन को किसी दुस्साहस के उपक्रम से दूर रखने में हमारे लिए लाभदायक होगा।
वियतनाम, भारत के साथ बाह्य अंतरिक्ष के क्षेत्र में सहयोग की उम्मीद कर रहा है। वे पहले ही दो उपग्रह छोड़ चुके हैं और अपने स्वयं के नेविगेशन उपग्रहों की योजना बना रहे हैं। भारत के साथ सहयोग परस्पर रूप से दोनों देशों के लिए फायदेमंद होगा। दक्षिण चीन सागर से घिरे क्षेत्रों पर वियतनाम को हमारे टोही उपग्रहों से डाउनलोड प्राप्त करने के लिए सक्षम बनाने हेतु रिसीविंग स्टेशन भी स्थापित कर रहा है।
निष्कर्ष
भारत की एक्ट ईस्ट नीति के तहत वियतनाम, जापान के साथ मिलकर दो स्तंभ बन गए हैं। चीन की बढ़ती मुखरता का मुकाबला करने के लिए सामरिक क्षेत्र में भागीदारी महत्वपूर्ण है। भारत में नई सरकार दोस्ती के बंधन को और अधिक मजबूत करने के लिए तेजी से उपाय कर रही है। इससे भारत प्रशांत क्षेत्र में बेहतर स्थिरता की स्थिति बनेगी।
Links:
[1] https://www.vifindia.org/article/hindi/2016/october/28/bharat-vietnam-riste-me-adyatan-sthith
[2] https://www.vifindia.org/node/1677
[3] http://www.vifindia.org/article/2016/october/04/update-on-india-vietnam-relationship
[4] http://thediplomat.com
[5] http://www.facebook.com/sharer.php?title=भारत वियतनाम रिश्ते में अद्यतन स्थित&desc=&images=https://www.vifindia.org/sites/default/files/-वियतनाम-रिश्ते-में-अद्यतन-स्थित.jpg&u=https://www.vifindia.org/article/hindi/2016/october/28/bharat-vietnam-riste-me-adyatan-sthith
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