रूसी विदेश मंत्री की भारत यात्रा: क्या और कितना हासिल
Amb JK Tripathi

रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव भारतीय विदेश मंत्री के आमंत्रण पर अपनी दो दिवसीय यात्रा पर 5 अप्रैल को भारत आए। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने मुलाकात के बाद प्रेस को सम्बोधित करते हुए द्विपक्षीय वार्ता को विस्तृत तथा फलप्रद बताया। उन्होंने बताया की वार्ता के काफी भाग में रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन की आगामी भारत यात्रा पर चर्चा हुई। अतिथि मंत्री की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाक़ात होनी थी किन्तु मोदी जी के दिल्ली से बहार होने के कारण यह संभव न हो सका।

भारतीय विदेश मंत्री के अनुसार, इसके अतिरिक्त नाभिकीय, अंतरिक्ष तथा सुरक्षा क्षेत्रों में हो रही दीर्घकालीन भागीदारी, सुदूर पूर्व रूस में आर्थिक सहयोग की संभावनाओं, कनेक्टिविटी के क्षेत्र में विशेषकर अंतर्राष्ट्रीय उत्तर- दक्षिण आवागमन गलियारा, चेन्नई-व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री गलियारा तथा आत्मनिर्भर भारत की आर्थिक संकल्पना के तहत आपदोत्तर काल में आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर भी विचार विमर्श हुआ। अफ़ग़ानिस्तान, मध्य-पूर्व तथा इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की स्थिति, ऊर्जा तथा कोरोना के टीके पर भी चर्चा की गयी। लावरोव भारत से दो दिन की यात्रा पर पाकिस्तान रवाना हुए।

यह विचारणीय है कि रूसी मंत्री की इस यात्रा का क्या महत्त्व है। वस्तुतः इस यात्रा का समय ही इसके महत्त्व को दर्शाता है। इस वर्ष के उत्तरार्ध में दोनों देशों कि बीच वार्षिक शीर्ष वार्ता होनी है जो विगत वर्ष कोरोना के कारण नहीं हो पाई थी। साथ ही भारत द्वारा इस वर्ष ब्रिक्स तथा आरआईसी की अध्यक्षता ग्रहण करने के कारण राष्ट्रपति पुतिन को भारत आना ही है। किन्तु यह दलील कुछ पचती नहीं कि वर्ष कि उत्तरार्ध में होने वाली पुतिन की संभावित यात्रा कि लिए अभी से भारत आना लावरोव का मुख्य उद्देश्य रहा होगा। आज की त्वरित संचार साधनों की व्यवस्था में राजकीय यात्राओं की तैयारियां इतने पहले से नहीं शुरू की जातीं! दरअसल, यह यात्रा अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाली के लिए रूस के प्रयासों की एक कड़ी है। पिछले माह मॉस्को में बुलाए गए ट्रोइका + पाकिस्तान सम्मेलन के बाद जारी किए गए तालिबान के असंतोष वाले बयान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी की समय -सीमा दूर नहीं है और कुछ ठोस काम अभी तक नहीं हो पाया है। संभवतः रूस द्वारा समयावधि में ही एक शांति समझौता करा सकने के उतावलेपन के कारण यह यात्रा की गयी, यह इसीसे पता चलता है कि भारत के बाद रूसी राजनयिक पाकिस्तान गए जो कि विगत नौ वर्षों में उनकी पहली पाक-यात्रा है। यदि कोइ और कारण होता तो यह यात्रा बाद में भी हो सकती थी। लावरोव की इस भारत- यात्रा के दो और उद्देश्य प्रतीत होते हैं-पहला, पिछले माह मास्को में हुई ट्रोइका+ बैठक में न बुलाए जाने से उपजे भारतीय क्षोभ को शांत करना और दूसरा, यह सुनिश्चित करना कि पिछले माह ही हुई अमेरिकी रक्षा सचिव की भारत यात्रा से रूस-भारत रक्षा संबंधों और रूस से शस्त्रों और सैन्य उपकरणों की आपूर्ति पर पड़ने वाले किसी संभावित प्रतिकूल प्रभाव को समाप्त करना। यह कयास लगाया जा रहा है कि जयशंकर से वार्ता के दौरान लावरोव ने यह समझाने का प्रयास किया कि रूस भारत की अनदेखी नहीं कर रहा है और उनकी पाकिस्तान यात्रा अफ़ग़ानिस्तान में शांति एवं स्थायित्व की कोशिश का एक हिस्सा है। लावरोव ने प्रेस को यह भी स्पष्ट किया कि पाक को केवल वही सैन्य उपकरण दिए जाएंगे जो उसके आतंकवादनिरोधी प्रयासों से सुसंगत हों। यही उन्होंने बाद में इस्लामाबाद की प्रेस कांफ्रेंस में भी दोहराया।

अब विचारणीय प्रश्न यह है कि लावरोव की इस यात्रा से किसको क्या मिला? कुछ विश्लेषक यह मान सकते हैं कि इससे भारत को कुछ हासिल नहीं हुआ और अपनी बात के समर्थन में वे यह दलील दे सकते हैं कि रूसी विदेश मंत्री का भारत के बाद पाकिस्तान जाने का कार्यक्रम पाक सरकार से रूस की बढ़ती नज़दीकियों का प्रमाण है जो भारत को अखरा और संभवतः इसी से रुष्ट होकर प्रधान मंत्री रूसी नेता से नहीं मिले। किन्तु यह बहुत दूर की कौड़ी लाने वाली बात है। यह सही है कि रूस के सम्बन्ध पकिस्तान के साथ सुधर रहे हैं और इसमें अमेरिका को एशिया में प्रभुत्व बढ़ाने से रोकने के लिए रूस की भू-रणनीतिक योजना भी काम कर रही है किन्तु दो बिंदु विचरणीय हैं-एक तो यह कि भले ही विश्व कूटनीति में कोई भी सम्बन्ध चिरस्थायी नहीं होता, फिर भी भारत-रूस के रिश्तों में निकट भविष्य में ही कोई आमूलचूल परिवर्तन होना उतना ही असंभव है जितना अनेक व्यवधानों के बावजूद चीन-पाक की "तथाकथित "सदाबहार" दोस्ती में शीघ्र दरारें पड़ना। आखिर, सं. रा. अमेरिका के साथ पकिस्तान की सैनिक संधि -आधारित मित्रता को टूटने में भी पचास साल से अधिक लग गए! दूसरे, रूसी अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग रक्षा उद्योग को भी बाजार चाहिए जो भारत और पकिस्तान, दोनों में उपलब्ध है। इसका लाभ उठा कर रूस अमेरिका के बढ़ते प्रभाव को भी रोकने का प्रयास कर सकता है। दूसरा बिंदु है भारत के साथ किए गए रक्षा उपकरण समझौते, विशेषकर एस-400 मिसाइल प्रणाली, जो हमें इस साल के अंत तक मिलने की सम्भावना है। जैसा कि डॉ. जयशंकर ने प्रेस को बताया, “मेड इन इंडिया” के तहत कई रूसी हथियार और उनके हिस्से भारत में ही बनाने पर 'सकारात्मक' विमर्श हुआ जो इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर एक बड़ा कदम है। दोनों देशों के बीच में सैन्य-तकनीकी सहयोग (MTC) बढ़ाने पर भी वार्ता हुई जो भारतीय सेना की क्षमता बढ़ाने में कारगर होगी।

भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने और इसके लिए चेन्नई- व्लादिवोस्तोक ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर विकसित करने पर हुई चर्चा कई दृष्टियों से बहुत महत्वपूर्ण है। पिछले पांच सालों से द्विपक्षीय व्यापार 10 -11 अरब डॉलर प्रति वर्ष के बीच में अटका पड़ा है जिसे दोनों देशों द्वारा 2025 तक 30 अरब डॉलर के लक्ष्य तक ले जाना तब तक संभव नहीं होगा जब तक नए और सस्ते व्यापारिक समुद्री मार्ग नहीं खोले जाते। वर्तमान में दोनों देशों के बीच समुद्री व्यापार भारत के पश्चिमी तट के बंदरगाहों से स्वेज़ नहर होते हुए पूरे यूरोप का चक्कर काट कर सेंट पीटर्सबर्ग तक है जिसके 8675 समुद्री मील लम्बा होने के कारण नौवहन में 40 दिन लग जाते हैं। इसके विपरीत व्लादिवोस्तोक से दक्षिणी चीन सागर और मलक्का जलसंधि होते हुए चेन्नई का फ़ासला सिर्फ 5647 समुद्री मील है जो 24 दिनों में तय किया जा सकता है। इस रास्ते के विकास से ईंधन और समय, दोनों की बचत होने से व्यापार अधिक लाभप्रद होगा। दोनों देशों के बीच ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग और विकास की काफी संभावनाएं हैं। भारत सरकार द्वारा कच्चे तेल के लिए अरब देशों पर निर्भरता उत्तरोत्तर काम करने के हाल के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में रूस से तेल आयात बढ़ाना ज़रूरी हो जाता है । सखालिन- II में 49 .9 % भागीदारी के साथ ओे. एन. जी. सी. (विदेश) पहले से ही मौजूद है। गैस अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड ने 2018 में गाजप्रोम से प्रतिवर्ष 2 अरब डॉलर कीमत की द्रवीकृत प्राकृतिक गैस आयात करने का समझौता किया हुआ है। चूंकि रूस के बड़े तेल भंडार साइबेरिया में ही हैं, भारत ने 2018 में रूसी सुदूर पूर्व (RFE) के विकास के लिए एक अरब डॉलर का ऋण दिया था जो इस क्षेत्र में भारत की रूचि का परिचायक है। चूंकि रूस से ऊर्जा का आयात चेन्नई व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर से ही सस्ता पड़ेगा, इस गलियारे का विकास का महत्त्व बहुत आवश्यक हो जाता है। इससे हमें एक और भू-रणनीतिक फायदा भी है। इस गलियारे के इस्तेमाल से हमें द. चीन सागर में औपचारिक प्रवेश का बहाना मिल जाएगा जो चीन की अति महत्वाकांक्षी बेल्ट रोड इनिशिएटिव और स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स योजनाओं के लिए एक असहज स्थिति होगी। ज़ाहिर है चीन को यह गलियारा रास नहीं आएगा और वह इसमें अड़ंगा डालने की हरचंद कोशिश करेगा। लेकिन इस परिकल्पना (इसे परिकल्पना ही कहेंगे क्योंकि विगत दो वर्षों में इस पर कोई ठोस काम नहीं हो पाया है) को साकार करने के लिए हमें अपने पूर्वी तट के बंदरगाहों को विकसित करना होगा और इस क्षेत्र में कई तेल शोधक संयंत्र लगाने होंगे वरना ऊर्जा आयात वाणिज्यिक रूप से लाभकारी नहीं हो पाएगा ।

वर्तमान महामारी काल में एक और विषय, जिस पर सार्थक चर्चा हुई, है करोनारोधी टीके पर सहयोग। लावरोव ने प्रेस को बताया कि रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष भारतीय वैक्सीन उत्पादकों के साथ 75 करोड़ स्पुतनिक V वैक्सीन के भारत में उत्पादन पर चर्चा कर रहा है। यदि इसको जल्दी ही हरी झंडी मिल जाती है तो इससे वैक्सीन की कमी के कारण भारत की अटकी हुई वैक्सीन कूटनीति को एक नया बल मिलेगा। जो भी हो, यह सब इस पर निर्भर करता है कि दोनों सरकारें कितनी तेज़ी से निर्णय लेती हैं और उनके अमल पर एकरूपता से कायम रहती हैं।

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


Image Source: https://cdn.dnaindia.com/sites/default/files/styles/full/public/2021/04/04/967997-india-russia.jpg

Post new comment

The content of this field is kept private and will not be shown publicly.
2 + 2 =
Solve this simple math problem and enter the result. E.g. for 1+3, enter 4.
Contact Us