भारतीय अभिलेखागार के कई पहलू
Ankit Mohonto

एक अभिलेखागार (आर्काइव) और इसके उपयोग के महत्त्व के विचार के संबंध में बहसें होती रही हैं। वर्तमान संदर्भ में, अभिलेखागार (सरकारी और निजी तौर पर संचालित) पुस्तकालय के विपरीत और अकादमिक के बाहर हलकों में, एक कम लोकप्रिय संरचना है, जो अपने वास्तविक उद्देश्य के बारे में पूरी तरह से सुनिश्चित नहीं है। इस तरह, किसी की विरासत को अधिमान्य रखने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका का काफी हद तक भुला देना है। प्रस्तुत लेख के दोनों लेखकों ने कई वर्षों से नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय के लिए पुरालेखपाल के रूप में काम करते रहे हैं। हालांकि, इस लेखकद्वय ने लोगों, खास कर अकादमिक क्षेत्र के बाहर के लोगों, के बीच इस अभिलेखागार का उल्लेख करने पर उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ती देखी हैं कि यह आखिर क्या बला है। अभिलेखागार का रोजमर्रा उल्लेख या उपयोग अक्सर पुस्तकालय के साथ भी किया जाता है, लेकिन कोई व्यक्ति देश के विभिन्न क्षेत्रों के दस्तावेजों और आधिकारिक रिकॉर्ड को सम्हाल कर रखने के वास्तविक उद्देश्य के बारे में पूरी तरह से अवगत नहीं है। प्रस्तुत लेख लिखने का शुरुआती मकसद ही लोगों के अभिलेखागार के बारे में जानकारी देना और उन्हें इसके महत्त्व के बारे में बताना है।

आमतौर पर अभिलेखागार कहने से सीलन भर कमरे में धूल भरे पुराने रिकॉर्ड का एक चित्र दिमाग में आता है, जो किसी भी अनुसंधान के लिए ज्यादातर प्राथमिक स्रोतों के रूप में काम आता है, यह पुरानी यादों और अनकही कहानियों के नास्टेलजिया का भी एक प्लेटफार्म है। यह किन्हीं प्रसंगों की याद ताजा करने/रखने और उन्हें भुला देने का भी एक ठौर है, अनसुनी रह गई आवाज़ों और मौन रह गए अतीत का भी एक स्थान है। यह जीवित एवं मृत व्यक्तियों के दस्तावेजों के संरक्षण और उन्हें नष्ट करने की भी जगह है। यह विरोधाभासों और जटिलताओं भरा का एक स्थान है। अभिलेखागार वह जगह है, जहां व्यक्तिगत जीवन राज्य के तंत्र के साथ छेड़छाड़ करता है। दस्तावेजों और पुरालेखों पर जमी धूल एवं उन्हें बचाने के लिए उपयोग किए जाने वाले रसायन उन्हें एक निश्चित गंध देते हैं, जो इस बात के प्रमाण है कि अतीत का सफर लगातार जारी है और उसने वर्तमान में भी अपना रास्ता बना लिया है। अभिलेखागार सिर्फ "साफ पुरानी चीजें" नहीं हैं बल्कि वे एक प्रभावी तकनीक प्रदान करते हैं, जिसके माध्यम से हम वर्तमान से गुत्थमगुत्था हुए अतीत के पद-चिह्नों की तलाश करते हैं। वे केवल दस्तावेजी सबूत के एक स्रोत नहीं हैं बल्कि शाब्दिक और रूपक अभिलेखीय दोनों लिहाज से, भविष्य की संभावनाओं के निर्धारण में अपना योगदान देते हैं।

हालांकि, अभिलेख के प्रति अपना एक खिंचाव होता है। यह निश्चित रूप से पुस्तकालय से कहीं अधिक संशलिष्ट संस्थान है। फिर भी अभिलेखागार क्यों किसी का इतना ध्यान आकर्षित करते हैं? उसके प्रति बरबस खिंचाव की वजह क्या है? [1]

ये कुछ सवाल हैं, जिन पर हम अपने इस आलेख में गौर करना चाहते हैं।

अभिलेखीय मोड़:

प्रारंभ में, पुस्तकालय और अभिलेखगार के बीच के अंतर को स्पष्ट करना उचित है। दिलचस्प है कि हम दोनों "संस्थानों को संग्रहणशील" के रूप में पाते हैं, जो मुख्य रूप से व्यापक दायरे में दस्तावेजों का अभिलेखीकरण, उनके संग्रहण, उनके संरक्षण और उन्हें व्यवस्थित रखने का काम करते हैं।

ये दोनों संस्थान सार्वजनिक या निजी (लाभकारी या अ-लाभकारी) हो सकते हैं। यद्यपि दोनों संस्थाओं की पारिभाषिक समझ के बीच फिसलन है, तथापि इन दोनों के बीच काफी अंतर है। पुस्तकालय मुख्य रूप से प्रकाशित दस्तावेजों या मुद्रित सामग्री के संग्रह से संबंधित एक संस्था है। यह शैक्षिक अनुसंधान के माध्यमिक स्रोतों से संबंधित है। इसके विपरीत, अभिलेखागार एक अलग जगह है। पुस्तकालय के विपरीत, अभिलेखागार अपरिष्कृत, अप्रकाशित दस्तावेजों के संग्रहण पर केंद्रित है, जिसे रिकॉर्ड कहा जाता है। जैक देरिदा ने अपने अग्रणी निबंध में इसे "आर्काइव फीवर" कहा है, जो अभिलेख के अर्थ को स्पष्टता से रेखांकित करता है।[2] वे सचमुच शब्द के मूल में गहरे उतरे हैं। वे कहते हैं,"इसका एकमात्र अर्थ ग्रीक आर्कियन से मिला है: प्रारंभ में इसका मतलब एक घर, एक रिहाइश, एक पता, वरिष्ठ मजिस्ट्रेटों का निवास, प्राचीन एथेंस के नौ में हरेक मजिस्ट्रेट, लोगों को आदेश देनेवाला आदि होता था। इसलिए, अभिलेखागार, दोनों एक जगह है और यह घरों को रिकॉर्ड करता है।” [3]

यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि अभिलेखागार को इतिहास के केवल एक "स्रोत" से अधिक उसे एक विषय के रूप में पुनर्विचार किया जा रहा है। बाद में, हम देखते हैं कि अलग-अलग अनुशासनात्मक संदर्भों में अभिलेखागार की प्रकृति को लेकर लोगों में जिज्ञासाएं बढ़ी हैं। यह बिल्कुल स्वाभाविक है कि शिक्षाविदों ने इसे शैक्षणिक क्षेत्र में एक “अभिलेखीय मोड़” कहा है।[4] यह मिशेल फौकॉल्ट के अग्रणी काम और ज्ञान उत्पादन की एक कलाकृति के रूप में अभिलेखागार के बारे में व्यक्त किए गए उनके विचारों के प्रति ऋणी है। फोकॉल्ट ने हमें यह सोचने के लिए प्रेरित किया कि "अभिलेखागार का विचार" केवल उन सभी पाठों का योग नहीं है, जो एक संस्कृति को संरक्षित करता है और न ही उन संस्थानों का, जो उस रिकॉर्ड के संरक्षण की अनुमति देते हैं। इसकी बजाय अभिलेखागार "व्यवस्था के वक्तव्य” हैं, उन "आचरणों के नियम," है, जो “क्या कर सकते हैं और क्या नहीं कहा जा सकता है”,के खास नियमन को आकार देते हैं।” [5]

फौकॉल्ट के काम से प्रभावित होकर अभिलेखागार के स्वभाव को समझने के लिए सैद्धांतिक हस्तक्षेप किए गए हैं। इन अधिकांश अध्ययनों ने औपनिवेशिक अभिलेखों की प्रकृति की जांच की है और ब्रिटिश सरकार द्वारा उपयोग की जाने वाली श्रेणियों और वर्गीकरणों की समस्याग्रस्त प्रणाली को रेखांकित किया है। ये अध्ययन अभिलेख की प्रकृति को संदर्भित करते हैं और रेखांकित करते हैं कि वे किस प्रकार सत्ता में अंतर्निहित हैं।

हालांकि, जैसा कि अधिकतर विद्वानों ने अभिलेख की अवधारणा की जांच की है, उनमें भी ज्यादतर ने इसके संस्थागतकरण की प्रक्रिया में रुचि व्यक्त की है। अभिलेख का निर्माण कौन करता है और यह किस उद्देश्य के लिए किया जाता है? यह कैसे व्यवस्थित होता है और फिर उस तक कैसे पहुंच होती है? प्रस्तुत आलेख में, हमने विशेष रूप से भारत में अभिलेखागार पर ध्यान केंद्रित किया है,लेकिन हम एक संस्थान के रूप में अभिलेखागार के सवालों को समझने के साथ-साथ इसे अनुसंधान के एक उपकरण और इसकी प्रकृति को भी समझने का प्रयास किया है।

संस्थान के रूप में आर्काइव, भारत में अभिलेखागार की जड़ों का पता लगाना:

जहां तक भारत का संबंध है, अभिलेख की जड़ें औपनिवेशिक हैं। औपनिवेशिक स्थिति का इस बात पर गहरा प्रभाव पड़ा कि भारत में अभिलेखागार की अवधारणा कैसे लाई जाए। ब्रिटिश प्रशासन ने दस्तावेजों को स्पष्ट रूप से वर्गीकृत और संरक्षित किया जो औपनिवेशिक सरकार की जरूरतों को पूरा करते थे। यह याद रखना अहम है कि ब्रिटिश भारत में विशेष रूप से कई प्रकार की तकनीक का उपयोग करते थे। औपनिवेशिक अभिलेख इस तरह के ज्ञान का हिस्सा था जिसमें आधुनिक राजकाज के उपकरण शामिल थे[6] जैसे कि जनगणना और सांख्यिकी। औपनिवेशिक अभिलेख के उन्हीं उपकरणों को तब 'इसके बारे में जानकारी का उत्पादन, वितरण और उपभोग करके क्षेत्र को नियंत्रित करने' के लिए एक तंत्र बनाकर वर्चस्व की वैश्विक प्रणाली पर भविष्यवाणी की गई थी। इसी वजह से हमने ब्रिटिश साम्राज्य को प्रथम सूचना समाज के रूप में उभरता देखा।

इस संदर्भ में, भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार की उत्पत्ति भी औपनिवेशिक है। भारत सरकार के रिकॉर्ड के संरक्षक के रूप में इसे इम्पीरियल रिकार्डस डिपार्टमेंट के रूप में कलकत्ता में स्थापित किया गया था। इंपीरियल रिकॉर्ड्स विभाग को 1911 में कलकत्ता (अब कोलकाता) से नई दिल्ली लाए जाने के बाद उसे 1926 में वर्तमान भवन में स्थानांतरित कर दिया गया।

भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार अब भारत में सबसे बड़ा अभिलेखीय भंडार है। यह सार्वजनिक रिकॉर्ड, निजी कागजात, प्राच्य रिकॉर्ड, कार्टोग्राफिक रिकॉर्ड और अन्य आधिकारिक रिकॉर्ड जैसे रिकॉर्ड के विशाल कोष का गठन करता है, जिसमें शोधकर्ताओं और अभिलेखागार के उपयोगकर्ताओं के लिए जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत शामिल होता है। राष्ट्रीय अभिलेखागार की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषताओं में से एक यह है कि यह राज्य के नियमों द्वारा शासित है। अभिलेखीय दस्तावेज को राज्य की मांगों के साथ अलग रखा जाता है।

जैसा कि राष्ट्रीय अभिलेखागार की आधिकारिक वेबसाइट कहती है, 'भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार भारत सरकार के स्थायी मूल्य के रिकॉर्ड का संरक्षक है'।[7] इन दस्तावेजों में दिलचस्प रूप से प्रामाणिकता की एक आभा और प्राधिकरण की गंध है। वे एक औपचारिक स्वर और एक निश्चित स्पष्टता में हमसे बात करते हैं। अभिलेख की भौतिकता को अतीत की परतों के साथ बनाया गया है। ये सार्वजनिक रिकॉर्ड हैं और उनकी पहुंच सीमित है। भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार में भारत सरकार के 'सार्वजनिक' रिकॉर्ड शामिल हैं और वे 'प्रामाणिक' अनुसंधान के उपयोग किए जाने के लिए उपलब्ध हैं। भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार में अभिलेखों तक पहुंच लोक अभिलेख नियम,1997 के प्रावधानों द्वारा शासित है। इसलिए ये रिकॉर्ड राज्य के एक वर्गीकृत तंत्र का एक उत्पाद हैं। वे एक उद्देश्य को पूरा करने की गरज से लाए गए हैं और इसलिए राज्य के नियमों के आधिकारिक नौकरशाही तंत्र में उलझे हुए हैं।

सवाल यह है कि अधिक व्यक्तिगत और निजी कागजात कहां से मिलते हैं? हम अतीत की अधिक अंतरंग, और अपरिष्कृत आवाज़ों के साथ कैसे संलग्न होते हैं? इस संदर्भ में, हम भारत में निजी अभिलेख संस्थान को देखेंगे।

निजी अभिलेखागार: क्या राज्य अभिलेखागार का एक विकल्प है?

अभिलेखागार एकरूपीय नहीं हैं; बल्कि हम भांति-भांति के अभिलेखागार को देखते हैं। राज्य-नियंत्रित अभिलेखागार के बिल्कुल विपरीत एक निजी अभिलेखागार है। अभिलेखीय विज्ञान और इसके इतिहास पर किए जाने वाले विमर्श में, निजी अभिलेखागार को आम तौर पर सरकारों, सरकारी एजेंसियों और विभागों के सार्वजनिक क्षेत्र के बाहर व्यक्तियों और कॉर्पोरेट संस्थाओं (गैर-लाभकारी संगठनों सहित) द्वारा बनाए गए रिकॉर्ड के रूप में परिभाषित किया जाता है। इन गैर-सरकारी अभिलेखागार में आमतौर पर शौकिया (एक ही मूल के साथ दस्तावेजों का एक समूह) व्यक्तियों, परिवारों, गैर-लाभकारी संगठनों, लाभकारी व्यवसायों और समारोहों में काम करने वाले बहुत ही कम औपचारिक समूह के लोग, जैसे सामाजिक संलग्नता या एक बार आयोजित होने वाले सम्मेलन या विशेष कार्यक्रम को शामिल किया जाता है।[8]

लेकिन भारतीय संदर्भ में यह काफी अलग है। अलग-अलग परिवारों और कॉर्पोरेट संस्थाओं द्वारा बनाए गए रिकॉर्ड के अलावा, सरकार और अन्य वित्त पोषण एजेंसियों द्वारा समर्थित संस्थान हैं, जो रिकॉर्ड के संग्रहालय के रूप में काम करते हैं। निजी अभिलेखागार भारत में एक नया अर्थ लेते हैं क्योंकि यह स्वामित्व के मुद्दे की बजाय ज्यादातर दस्तावेजों की प्रकृति के साथ जुड़ा होता है।

उपर्युक्त बिंदु को ध्यान में रखते हुए, यह कहा जा सकता है कि नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय देश के सबसे बड़े निजी अभिलेखागार में से एक है, जिसका प्राथमिक स्रोत भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय है। उनमें से एनएमएमएल के निजी अभिलेखागार विद्वानों को उनके शोध-कार्यों के लिए "प्राथमिक" और "गैर-आधिकारिक" स्रोत सामग्री उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पांडुलिपि अनुभाग की प्राथमिक जिम्मेदारियों में उन भारतीयों के कागजात का अधिग्रहण, संरक्षण, वर्गीकरण और रखरखाव शामिल है, जिन्होंने राजनीति, प्रशासन, कूटनीति, सामाजिक सुधार, पत्रकारिता, उद्योग और शिक्षा के कई क्षेत्रों में खुद को प्रतिष्ठित किया है।[9] यह गैर-सरकारी संगठनों और संघों के रिकॉर्ड का भी गठन करता है,जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दिलचस्प बात यह है कि निजी अभिलेखागार दो अनिवार्य अभिलेखों: जवाहरलाल नेहरू के दस्तावेजों और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के कागजात के अधिग्रहण के साथ शुरू किए गए थे। समय बीतने के साथ-साथ गैर-अधिकारिक स्रोतों और गैर-सरकारी स्रोतों का एक पूर्ण भंडार स्थापित किया गया।[10] इसका मुख्य उद्देश्य देश भर में निजी हाथों में बिखरे हुए कागजात को एकत्र करना और उन्हें एक स्थान पर व्यवस्थित करना था, इस प्रकार आधुनिक भारतीय इतिहास पर काम करने वाले शोधार्थियों एवं विद्वानों को उन तक पहुंच को आसान बनाना था। यह भारत में निजी दस्तावेजों का सबसे बड़ा संग्रह किए जाने का मूल है। यह कहना न होगा कि आधुनिक और समकालीन भारत पर किसी भी शोध कार्य को व्यापक परिप्रेक्ष्य प्रदान करने के लिए उसे आधिकारिक और गैर-आधिकारिक दोनों स्रोतों के अध्ययन पर आधारित होना चाहिए।

इसी सिद्धांत के आधार पर देश भर में अन्य अभिलेखागार स्थापित किए गए हैं। समकालीन भारत में अशोक अभिलेखागार का मामला सबसे हाल का है, जिसे इसी दृष्टिकोण के साथ स्थापित किया जा रहा है।

तो इन भारतीय निजी अभिलेखागार को क्या विशिष्ट बनाता है? उल्लिखित निजी अभिलेखागार में, दस्तावेजों का स्वामित्व दाता के पास ही बना रहता है और एक लिखित समझौते में केवल यह कह दिया जाता है कि संग्रहालय इन दस्तावेजों के संग्रहणकर्ता के रूप में कार्य करेगा। लेकिन जो अधिक महत्त्वपूर्ण है वह इसके प्रति चाव और इसकी प्रकृति है। निजी शब्द एक अनिश्चित मोड़ लेता है क्योंकि ये दस्तावेज़ आधिकारिक कागजात तक ही सीमित नहीं हैं। सभी दस्तावेजों, दाता के साथ पहले से रखे हुए है, उनका संग्रह करने एवं उनकी छंटाई करने और एक शोध विद्वान के अपने शोध कार्य में आसान उपयोग के लिए आवश्यक सूचीकरण का रूप दे रहे हैं। ड्राफ्ट, मामूली सुधार के साथ पत्रों की प्रतियां, प्रकाशित सामग्री जो एक समय में दाता के लिए दिलचस्प लग सकती थी और जो कुछ भी दाता की गहरी रुचि को पूरा करता था, वह इस निजी संग्रह का हिस्सा बनता है। इसे ध्यान में रखते हुए, सामाजिक विज्ञान के किसी भी पहलू में अनुसंधान के लिए एक गहरी नजर की आवश्यकता होती है क्योंकि कभी-कभी, इन अस्पष्ट ड्राफ्ट और स्क्रिबल नोट्स में किसी भी आधिकारिक दस्तावेज की तुलना में अनुसंधान के कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण तत्व छिपे हुए होते हैं, जो पहली बार अत्यधिक महत्त्वपूर्ण लग सकते हैं।

निजी अभिलेखागार के इस संस्करण का एक और दिलचस्प पहलू वह तरीका है,जिसमें नए प्राथमिक स्रोतों का अधिग्रहण किया जाता है। जबकि राज्य अभिलेखागार राज्य के आधिकारिक रिकॉर्ड का नामित आधिकारिक संरक्षक है, निजी अभिलेखागार उन भावी दाताओं (व्यक्तियों और संस्थानों) की तलाश करता है, जो अपने दस्तावेजों को समकालीन अनुसंधान के लिहाज से मूल्यवान समझते हुए उन्हें दान करने के इच्छुक हैं। इस प्रकार, इन दोनों संस्थानों के अभिलेख को समृद्ध करने और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में विद्वानों के लिए प्राथमिक स्रोतों को अधिक सुलभ बनाने के लिए अन्य समान संस्थानों के साथ संसाधनों का आदान-प्रदान भी किया जाता है।

न सिर्फ इतिहास-अभिलेखागार के भी कई जीवन

अभिलेखीय कहानियां हर जगह उपलब्ध हैं; वे केवल इतिहासकारों और पुरालेखाकारों के लिए ही प्रासंगिक नहीं हैं। एक आम गलतफहमी है कि अभिलेखागार एक ऐसी जगह है जहां केवल इतिहासकार जाते हैं। यह उजागर करना महत्त्वपूर्ण है कि अभिलेख केवल एक ऐतिहासिक कलाकृति नहीं है। अगर कोई कह सकता है कि अभिलेखागार को एक बार इतिहास के छात्रों द्वारा समाप्त करने के साधन के रूप में माना गया था, तो यह आज वैसा नहीं है। पुरालेख की अंतर्निहित प्रकृति एक नहीं बल्कि कई विषयों से संबंधित है। अभिलेखागार मानविकी और सामाजिक विज्ञान विषयों के लिए कार्य करता है जबकि प्रयोगशाला विज्ञान के लिए कार्य करती है। प्रयोगशाला और अभिलेखागार ज्ञान उत्पादन के स्थानों साइटों के रूप में अन्तर्विभाजक हैं। यहां हम देखते हैं कि अभिलेखागार अन्य विषयों के लिए भी एक महत्त्वपूर्ण आकार स्रोत बनकर उभरता है।

दिलचस्प बात यह है कि हम देखते हैं कि अभिलेखागार की प्रकृति हमारे लिए यह सोचने के आकर्षक तरीके खोलती है कि कैसे और क्यों आम लोग, व्यक्तिगत रूप से और समूह में पहचान और इतिहास का निर्माण करते हैं। इसे सरल शब्दों में कहें, तो एक अभिलेखीय रिकॉर्ड एक बड़े कथानक का एक टुकड़ा है। किसी के जीवन की कहानियां उस चीज की नींव होती हैं जिसे हम संग्रह, पांडुलिपियां, मौखिक इतिहास, साक्षात्कार कहते हैं, इनमें से प्रत्येक एक अमूर्त आइटम है, जो भौतिक और डिजिटल अभिलेखागार का आधार बनाता है। अभिलेखागार कई कहानियों को सहुलियतें देते हैं। जब हम एक विषय से संबंधित अभिलेखीय सामग्री की तलाश करते हैं, तो यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि इन थीमों के अनेक क्षेत्र होने के बावजूद कई आवाजें हैं। अभिलेखागार वह जगह है, जहां कोई विषयों के पार एक बड़ी कथा के पीछे के व्यापक मार्गदर्शक सिद्धांतों का पुनर्मूल्यांकन कर सकता है। इसका अंतिम उद्देश्य वैज्ञानिकों, इतिहासकारों, पत्रकारों, संचारकों और एक विशेष नैरेटिव में शामिल सभी लोगों को परस्पर जोड़ना है।[11]

अंत में, यह कहा जा सकता है कि लोगों, घटनाओं, निर्णयों और सरकारों के कामकाज और उपलब्धियों के हजारों और लाखों रिकॉर्ड ने हमारे राष्ट्र के इतिहास का निर्माण किया है। भौतिक या डिजिटल रिकॉर्ड समय के माध्यम से उत्पन्न सभी जानकारी, संचार, विचार और राय का योग है। हालांकि, अभिलेखागार, चाहे भौतिक हो या डिजिटल, वह मूर्त है। रोज हजारों लोग दुनिया भर के अभिलेखागारों और लॉगिन अभिलेखागार प्रणालियों पर जाते हैं और यहां की विशाल जानकारी का प्रवाह शोधकर्ताओं और अभिलेखीय संस्थानों के बीच तेजी से होता है। एक राष्ट्र की स्मृति से संबंधित रिकॉर्ड की उपलब्धता के बारे में व्यापक दर्शकों को सूचित करने के लिए इन अभिलेखों तक विद्वानों के समुदाय और आम जनता की पहुंच बनाना एक अभिलेखागार का दायित्व है। इस प्रकार, अभिलेखागार सूचना के एक स्रोत का प्रतिनिधित्व करता है, जो एक राष्ट्र की स्मृति की कुंजी के रूप में कार्य करने वाला एक केन्द्र बिन्दु है।

संदर्भ

[1]कैरोलिन स्टीडमैन, डस्ट: दि आर्चिवल एंड कल्चरल हिस्ट्री, (न्यू ब्रंसविक, एनजे: रटगर्स यूनिवर्सिटी प्रेस,2002),पीपी- 20-25
[2]जॉक देरिदा, आर्काइव फीवर: ए फ्रायडियन इम्प्रेशन,(शिकागो: यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो प्रेस,1996),पीपी-5-7
[3]वही, पीपी-17
[4] [5]माइकेल फॉकौल्ट,“दि स्टेटमेंट एंड दि आर्काइव”,दि आर्कियोलॉजी ऑफ नालेज एंड दि डिस्कोर्स ऑन नॉलेज”, पीपी-79-134
[6]माथियास हेन जेसेन, निकोलाई वॉन एगर्स, “गर्वनमेंटलिटि एंड स्ट्राटिफेकशन: टुवार्ड्स फॉकल्डियन थियरी ऑफ दि स्टेट”, सेज जनरल्स, वोल्यूम:37(पीपी-58)
[7]http://nationalarchives.nic.in
[8]रॉबर्ट फिशर, “इन सर्च ऑफ ए थियरी ऑफ प्राइवेट आर्काइव्स: दि फांउडेशनल राइटिंग्स ऑफ जेन्किंसन एवं स्केलेनबर्ग रिविजिटेड”,आर्किवरिया 67,पीपी-15-16
[9]एनएमएमएल मैन्युस्क्रिप्टस, एन इंट्रोडक्शन (2003), पीपी-8
[10]वही,पीपी-10-11
[11]मार्लीन मेन ऑफ, “थियरिज ऑफ दि आर्काइव फ्रॉम अक्रॉस दि डिस्पिलिन्स”, लाइब्रेरिज एंड एकेडेमी, वोल्यूम 4 (पीपी-9-25)
(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
Image Source: https://www.vifindia.org/article/2022/may/03/many-facets-of-the-indian-archive

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