यूक्रेन के जारी संकट पर आसियान की प्रतिक्रिया को समझें
Brig Vinod Anand, Senior Fellow, VIF

फिलहाल जारी यूक्रेन संकट ने इस तथ्य को और ज्यादा शिद्द्त से खुलासा किया है कि आज की अंतर्गुम्फित दुनिया के एक हिस्से में पैदा हुआ संकट विश्व के अन्य क्षेत्रों पर भी असर डाल सकता है, चाहे वह कार्रवाई स्थल से कितनी दूर क्यों न हो। और खासकर जब विश्व की प्रमुख शक्तियां या उनके प्रॉक्सी इस तरह के संघर्ष में शामिल हैं; तो संघर्ष के ऐसे सभी मामलों में शामिल नहीं हुए पक्ष/राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप ही चलना चाहते हैं।

रूसी-यूक्रेन युद्ध पर एक बहुपक्षीय समूह के रूप में आसियान की प्रतिक्रिया और इसके सदस्य देशों की निजी स्तर पर व्यक्त की गई प्रतिक्रियाएं सामान्यतः इसी सिद्धांत का पालन करती हैं।

आसियान के विदेश मंत्रियों ने यूक्रेन में युद्ध पर 28 फरवरी को अपनी ‘गहरी चिंताएं' व्यक्त कीं और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के साथ-साथ दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी दोस्ती और सहयोग की संधि का पालन करने वाले संयम, संवाद और उपयोग जैसे राजनयिक साधनों की पैरोकारी की। उन्होंने इस पर भी जोर दिया कि "सभी पक्षों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे सभी राष्ट्रों की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और उनके समान अधिकारों का परस्पर सम्मान करने के सिद्धांतों का पालन करें।"

देखा जाए तो आसियान के इस बयान में रूस को किसी भी तरह से दुनिया की बिरादरी से अलग-थलग करने की बात तो दूर उसके नाम के उल्लेख तक से परहेज किया गया है। इस तरह रूस को आक्रामणकर्ता कहने, और उसका अपनी कार्रवाई के जरिए यूक्रेन की सम्प्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करने की बात को छोड़ दिया गया है। जाहिर है, आसियान एक या दूसरे शिविर का समर्थन करने को लेकर काफी सावधान था। आसियान का यही दृष्टिकोण दक्षिण चीन सागर और उसके आसपास के क्षेत्रों में भी परिलक्षित होता है,जहां एक तरफ अमेरिका और पश्चिमी देश हैं, और दूसरी तरफ चीन है। दरअसल,एक संगठन के रूप में आसियान का समग्र उद्देश्य उभरती सामरिक-रणनीतिक गतिशीलता में सूझबूझ के साथ चलने की कोशिश करते हुए अपने हितों को साधना है।

कई अन्य देशों की तरह आसियान देशों की एक मुख्य प्राथमिकता यूक्रेन से अपने नागरिकों को सुरक्षित क्षेत्रों में यानी अपने-अपने देशों तक पहुंचाना भी है। युद्ध से बने इस संकट के प्रति उनकी प्रतिक्रिया भी इसके संभावित भू-राजनीतिक और आर्थिक प्रभावों से तय की गई है, जो कि एक या दूसरे पक्ष का समर्थन की एवज में हो सकती है।

इसलिए, आसियान में शामिल सदस्य देश ज्यादातर गैर-प्रतिबद्धता या नपे-तुले दृष्टिकोण के साथ सामने आए हैं, जबकि इनमें सिंगापुर कुछ हद तक मुखर रहा है, जब उसके विदेश मंत्रालय ने 24 फरवरी को "किसी भी बहाने किसी भी संप्रभु देश के किसी भी तरह के अकारण आक्रमण की कड़ी निंदा की।" इसके बाद, 02 मार्च को भी सिंगापुर ने संयुक्त राष्ट्र संघ के उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसमें "अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानी गई देश की सीमाओं के भीतर यूक्रेन के क्षेत्र से अपने सभी सैन्य बलों को तुरंत और बिना शर्त पूरी तरह से वापस लेने" का रूस का आह्वान किया गया था। इसके दूसरे छोर पर म्यांमार का सैन्य शासन था, जिसने अपनी प्रारंभिक प्रतिक्रिया में रूस की कार्रवाई को"अपनी संप्रभुता को संरक्षित करने का एक उपयुक्त उपाय" करार दिया था। हालांकि बाद में म्यांमार ने रूस की कार्रवाई की आलोचना करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, लेकिन यहां यह याद रखने की आवश्यकता है कि म्यांमार में आंग सान सू की का ही पिछला नागरिक शासन है,जिसके द्वारा नियुक्त राजदूत ही संयुक्त राष्ट्र संघ में कार्यरत हैं।

आसियान समूह से संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस के खिलाफ प्रस्ताव का ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस और थाईलैंड ने समर्थन किया था जबकि लाओस और वियतनाम मतदान से गैरहाजिर रहे थे। हालांकि प्रस्ताव के पक्ष में आसियान के कुछेक देशों के मतदान करने का मतलब यह नहीं है कि उन्होंने यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की निंदा की है। इसलिए कि यूक्रेन में घटनाओं पर इन देशों की प्रारंभिक प्रतिक्रियाएं मिली-जुली रही हैं, उनमें एक या दूसरे शिविर का स्पष्ट पक्ष नहीं लिया गया है।

कंबोडियाई प्रधानमंत्री हुन सेन ने यूक्रेन संकट पर 24 फरवरी को अपनी पहली प्रारंभिक प्रतिक्रिया में स्थिति को 'बहुत चिंताजनक' कहा था और मसले के 'शांतिपूर्ण समाधान' की उम्मीद जताई थी। इंडोनेशिया के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक देश (यूक्रेन) की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के संबंध में अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया था। मलेशियाई प्रधानमंत्री ने यूक्रेन और रूस के बीच 'सर्वोत्तम संभव शांतिपूर्ण समाधान' की उम्मीद की थी। लाओस ने भी 26 फरवरी को संयम बरतने और शांतिपूर्ण समझौते का आह्वान किया था। इसी तरह, थाईलैंड के विदेश मंत्रालय ने मसले पर गहरी चिंता व्यक्त की और शांतिपूर्ण समाधान खोजने की आवश्यकता पर बल दिया। वियतनामी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने पहले ‘संबंधित पक्षों को आत्मसंयम बरतने, बातचीत के प्रयासों को आगे बढ़ाने और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुरूप संघर्ष से निपटने के लिए राजनयिक उपायों को बढ़ावा देने' की सलाह दी थी, इससे पहले कि वह रूसी-यूक्रेन संघर्ष पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के वोट के दौरान अपने को अनुपस्थित रखा था।

रूस-यूक्रेन संकट पर 2 मार्च को यूएनजीए मतदान से पहले, ब्रुनेई और फिलीपींस ने कुछ हद तक चुप रहने का फैसला किया था।

वियतनाम को रूस से न केवल विभिन्न प्रकार के रक्षा उपकरण और प्लेटफॉर्म प्राप्त हुए हैं, बल्कि उसे चीन के दावे वाले दक्षिण चीन सागर के कुछ क्षेत्रों में रूस द्वारा तेल/गैस अन्वेषण में भी मदद मिली है। दरअसल,ऐतिहासिक रूप से रूस चीन के साथ वियतनाम के संघर्ष में उसका समर्थक रहा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद रूस को वीटो की शक्तिसंपन्न होने के नाते वह आसियान देशों के बीच अपने प्रभाव का खूब उपयोग करता है। और रूस ने UNSC में कई अवसरों पर म्यांमार को बचाने के अलावा म्यांमार की सेना को हथियार भी उपलब्ध कराए हैं। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि रूस ने हाल ही में इंडोनेशिया को लड़ाकू विमानों की आपूर्ति की थी,हालांकि बाद में जकार्ता ने अमेरिकी रक्षा उपकरण और लड़ाकू विमान हासिल कर लिया।

तेल और कमोडिटी की बढ़ती कीमतों से पड़ने वाले प्रतिकूल आर्थिक प्रभावों को आसियान देश भी अलग-अलग डिग्री पर महसूस करेंगे और इसलिए वे उत्सुक होंगे कि रूस और यूक्रेन में जारी संघर्ष जल्द से जल्द खत्म हो जाए। उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया अपनी जरूरतों के गेहूं का एक बड़ा हिस्सा यूक्रेन से ही आयात करता है। इसी तरह, तेल और खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों से फिलीपींस और थाईलैंड पीड़ित होंगे। इसके अलावा, अधिकांश आसियान पर्यटन उद्योग चल रहे रूसी-यूक्रेन संकट से काफी हद तक बाधित होगा। सबसे बड़ी बात है कि आसियान अर्थव्यवस्थाएं अभी तक कोविड महामारी के दुष्प्रभावों से पूरी तरह उबर नहीं पाई हैं।

अंत में यह कहा जा सकता है कि यद्यपि अधिकांश आसियान देश अपने घरेलू हितों के आधार पर रूसी यूक्रेन संघर्ष पर चिंता व्यक्त करते हैं, हालांकि सिंगापुर एकमात्र ऐसा देश है जिसने अपना रुख स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है और रूस की आक्रामकता के लिए उसकी आलोचना की है। आसियान जबकि भू-राजनीतिक मुद्दों पर केंद्रीयता के अपने सिद्धांत का पालन करना चाहता है, फिर भी इस तरह के मामलों पर 10 सदस्यों वाले संगठन-समूह के लिए आम सहमति बनाना कोई आसान काम नहीं है। इसके अलावा, यह संभावना नहीं है कि आसियान या इसके सदस्य अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों में शामिल होंगे, शायद सिंगापुर को छोड़कर वह भी कुछ हद तक अप्रत्यक्ष तरीके से ही शामिल हो सकता है। संगठन के एक प्रमुख देश के रूप में माने जाने वाले इंडोनेशिया ने घोषणा की थी कि रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगाने से कोई हल होने की संभावना नहीं हैं और यह मुद्दे का समाधान नहीं होने का ही कारण बन सकता है।

इसके अतिरिक्त, यूक्रेन संघर्ष पर आसियान की प्रतिक्रिया को हिंद-प्रशांत की उभरती रणनीतिक गतिशीलता के लिए अपने दृष्टिकोण के संदर्भ में भी देखा जा सकता है, जहां उसने अमेरिका और चीन के बीच मध्य मार्ग का पालन किया है और जो एक हद तक अपने दस्तावेज ‘हिंद-प्रशांत पर आसियान आउटलुक' में उल्लिखित है। जबकि आसियान अपने संगठन के नेतृत्व वाले तंत्र के माध्यम से अपने आर्थिक और सुरक्षा मुद्दों को हल करना चाहता है और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत यह एक एकीकृत प्रतिक्रिया बनाने में सक्षम नहीं है और इसलिए यह रूसी-यूक्रेन संघर्ष के दृष्टिकोण में उसी तरह परिलक्षित होता है। हालांकि, आसियान इस तथ्य से अवगत है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों का ध्यान और ऊर्जा यूक्रेन के मुद्दे पर बदल रही है, चीन इस स्थिति का लाभ दक्षिण चीन सागर और ताइवान जलडमरूमध्य में उठा सकता है, जो आसियान देशों की सुरक्षा चिंताओं के लिए हानिकारक होगा।

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>



Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
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