उच्च सदन के लिए 10 जुलाई के चुनाव में किशिदा के लिए नई चुनौतियां
Prof Rajaram Panda

जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा को सत्ता में आए अभी साल भर नहीं हुए हैं और उन्हें जापान के उच्च सदन के लिए होनेवाले चुनाव से पहले घरेलू राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इस चुनाव में किशिदा की सत्ताधारी पार्टी बहुमत हासिल करने की उम्मीद कर रही है, जिससे उनको अपनी कुछ ऐसी योजनाओं को लागू करने का मौक़ा मिलेगा जिनके बारे में वे काफ़ी समय से सोचते रहे थे क्योंकि बहुमत हासिल हो जाने के बाद क़ानून बनाना उनके लिए आसान हो जाएगा। असाही शिंबन के एक सर्वेक्षण के अनुसार सत्ताधारी गठबंधन को विपक्षी निप्पोन इशिन (जापान इनोवेशन पार्टी) की कुछ सीटें मिलने की उम्मीद है। सदन में कुल 247 सीटें हैं, और इनमें से 125 सीटों के लिए चुनाव होंगे और एलडीपी-कोमेटो संगठन को 63 सीटों पर जीत की उम्मीद है क्योंकि विपक्ष बिखरा हुआ है और उस खेमे में चुनाव को लेकर आपसी सहयोग नहीं है। मुख्य विपक्षी कॉन्स्टिटूशनल डेमक्रैटिक पार्टी (CDP) के पास इस समय 23 सीटें हैं पर इनमें से कुछ सीटों के उसके हाथ से निकल जाने का अंदेशा है।

उच्च सदन का चुनाव हर तीन साल में एक बार होता है और एक चुनाव में आधे सीटों पर चुनाव होते हैं। 125 सीटों के लिए नए सदस्यों का चुनाव होगा और कानागावा प्रीफ़ेक्चर के लिए उपचुनाव होना है। 2016 और 2019 में जो चुनाव हुए थे, उसमें विपक्षी दलों ने अच्छा प्रदर्शन किया था पर इसके उलट इस बार विपक्षी खेमों में एका नहीं होने का फ़ायदा सत्ताधारी गठबंधन को मिलेगा जिसकी संयुक्त संख्या बहुमत के क़रीब पहुँच सकती है।[1]

क्योदो न्यूज़ ने जो मत सर्वेक्षण किया है, उसमें भी कहा गया है कि सत्ताधारी गठबँधन उच्च सदन में बहुमत हासिल कर लेगा। क्योदो के सर्वेक्षण में भविष्यवाणी की गयी है कि एलडीपी और उसकी कनिष्ठ सहयोगी कोमेटो 63 से अधिक सीटों पर जीत हासिल करेंगी। अगर यह सच साबित होता है तो किशिदा और उनके गठबंधन के सहयोगी को उच्च सदन में बहुमत हासिल हो जाएगा। चूंकि 248 में से 50 फ़ीसदी सीटों पर चुनाव नहीं हो रहे हैं, ऐसे में गठबंधन के सहयोगी दल को बहुमत हासिल करने के लिए 56 सीट जीतने की ज़रूरत है। विपक्षी दलों को मिलनेवाले फ़ायदे सीमित होंगे क्योंकि समूह साझा उमीदवार खड़ा करने में विफल रहा है।

जापान के पड़ोस में सुरक्षा के मुश्किल हालात को देखते हुए पिछले कुछ समय से सुरक्षा के मुद्दे ही विचार-विमर्श के केंद्र में रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अबे शिंजो, जो कि अपने राष्ट्रवादी विचारों के लिए जाने जाते थे, उन्होंने संविधान के आर्टिकल-9 को संशोधित करने की पूरी कोशिश की जो कि जापान को एक सामान्य देश बनने से रोकता है पर वे ऐसा कर नहीं पाए। हालांकि शिंजो ने शांति की शर्तों की व्याख्या करके सामूहिक स्व-रक्षा के सिद्धांत का क़ानून बनाकर अपनी अपेक्षित दिशा में आंशिक सफलता हासिल की। [2] पर यह पर्याप्त नहीं है, और उनकी जगह लेनेवाले, पहले योशिहिदे सुगा सरकार और अब किशिदा, के लिए यह एक बहुत ही ज्वलंत मुद्दा बना रहा है।

अब जबकि संविधान-समर्थक और सुधार की समर्थक पार्टियों, जिसमें किशिदा की एलडीपी और कुछ अन्य छोटी पार्टियाँ शामिल हैं, के 248 सदस्यों वाले उच्च सदन में बहुमत हासिल कर लेने की उम्मीद है, जो संशोधन की दिशा में एक और कदम बढ़ाने जैसा होगा। [3] इससे आर्टिकल 96 के तहत लगाई गयी पाबंदी से छुटकारा मिल जाएगा। इसके बावजूद, बाधाएँ अभी और भी हैं, क्योंकि राष्ट्रीय जनमत संग्रह कराना आसान नहीं होगा। एलडीपी संविधान संशोधन-समर्थक ताक़तों का नेतृत्व करती है, जिसमें कोमेतो, जापान इनोवेशन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी फ़ॉर द पीपल भी शामिल हैं। 1946 में इसको बनाए जाने के बाद से संविधान को कभी संशोधित नहीं किया गया है और सेल्फ़-डिफ़ेंस फ़ॉर्सेज़ (SDF) की स्थिति जैसी है, उसमें उसको एक पूर्ण सेना नहीं कहा जा सकता। जापान के दरवाज़े पर जो स्पष्ट बाहरी ख़तरे मंडरा रहे हैं, उनकी वजह से जापान को अपनी सुरक्षा की चिंता बढ़ गयी है पर उसको अपने हितों की रक्षा के लिए ताक़त के इस्तेमाल का अभी भी क़ानूनी अधिकार नहीं है और इसके लिए उसे बाहरी ताक़त पर निर्भर रहना होता है, विशेषकर अमेरिका पर। इसके बावजूद, इस सीमा को तोड़ने की जापान की कोशिश का अभी तक कोई वांछित परिणाम नहीं निकला है। अमेरिका के साथ गठबंधन के रिश्ते के अलावा, जापान ने भारत और आस्ट्रेलिया के साथ अपने सुरक्षा संबंधों को मज़बूत किया है।

असाही शिंबन सर्वेक्षण का कहना है कि 68 प्रतिशत उम्मीदवार जापान की प्रतिरक्षा को मज़बूत करने के पक्ष में हैं। यह तीन साल पहले के 37 प्रतिशत की तुलना में लगभग दोगुना से भी अधिक है और यह यूक्रेन में रूस की सैनिक कार्रवाई से प्रभावित लगता है। इस सर्वेक्षण का नेतृत्व मसाकी तनिगूची ने किया जो टोक्यो विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक हैं।[4] सर्वेक्षण में उम्मीदवारों को जापान की रक्षा स्थिति को मज़बूत करने और संविधान को संशोधित करने से संबंधित प्रश्नों के पाँच उत्तरों के विकल्प दिए गए थे : पक्ष में, कुछ हद तक पक्ष में, कुछ हद तक विरोध में, और विरोध में। रिकार्ड उत्तर 99 प्रतिशत ‘पक्ष में’ और ‘कुछ हद तक सुरक्षा को मज़बूत करने के पक्ष’ में थे, जो कि 2013 में प्रधानमंत्री अबे के अधीन हुए उच्च सदन के चुनावों के 95 प्रतिशत परिणाम से अधिक है। यहाँ तक कि गठबंधन की कनिष्ठ सहयोगी पार्टी कोमेटो जो कि अपनी युद्ध-विरोधी नीतियों के लिए जानी जाती है, का इसको 83 प्रतिशत समर्थन था, जो कि तीन साल पहले की तुलना में 13 प्रतिशत अधिक है।

यहाँ तक कि सुरक्षा मुद्दे पर विपक्ष भी साथ था। यह संभव है कि जापान के पड़ोस में सुरक्षा के बिगड़ते हालात ने विपक्ष के इस फ़ैसले को प्रभावित किया हो, जिसने महसूस किया कि जापान की प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ाने की ज़रूरत है। देश की प्रतिरक्षा को मज़बूत बनाने को सीडीपी के समर्थन की बात का पता इस बार इस मुद्दे को मिले 31 प्रतिशत समर्थन में भी दिखाई देता है, जो कि तीन साल पहले के 2 प्रतिशत से यह अधिक है।

जापानी कम्युनिस्ट पार्टी को छोड़कर अन्य विपक्षी पार्टियों ने संशोधन की प्रक्रिया शुरू करने के सरकार के फ़ैसले का अधिकांशतः समर्थन किया। सिर्फ 85 प्रतिशत रेवा शिनसेंगूमि उम्मीदवारों ने ही इसका विरोध किया।

अपनी सुरक्षा के बारे में जापान की इस सोच में यह धारणा क्या संकेत देता है? इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि यूक्रेन पर रूसी हमले ने अपने देश के सुरक्षा के बारे में जापानियों की चिंता बढ़ा दी है। जिस मुद्दे पर ज़्यादा ग़ौर करने की ज़रूरत है, वह यह है कि शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जापान का जल्द से जल्द सैनिक ताक़त बढ़ाने की चिंता आगे बढ़ पाएगी कि नहीं।[5] यह ज़िम्मेदारी अब क़ानून बनानेवालों की है कि वे एक व्यापाक सुरक्षा और विदेश नीति की रणनीति तैयार करें, जो काम का हो और जिसके परिणाम निकलें। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से विभिन्न सर्वेक्षणों के द्वारा जो आम राय प्राप्त हुई है, उससे पता चलता है कि जापान के लोग जापान से एक ठोस सुरक्षात्मक प्रतिकार की उम्मीद करेंगे जिसमें देश की सुरक्षा को मज़बूत बनाना एक अहम हिस्सा होगा। क्या इसका यह अर्थ है कि राष्ट्रीय जनमत संग्रह किया जाएगा? इसका उत्तर है ‘नहीं’ क्योंकि यह बहुत ही जटिल मामला है।

जैसा कि कहा जा चुका है, ऐसा लगता है कि जापान में बड़ी पार्टियों के लिए पसंदीदा विकल्प है जापान-अमरीका गठबंधन के मौलिक सिद्धांतों को समर्थन देना और समान विचारों वाले एशियाई और यूरोपीय देशों के साथ सहयोग का विस्तार करना, और अपने जरूरी प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाना। इसका मतलब यह नहीं है कि अपने डेटरेंस को बढ़ाने को लेकर कोई असहमति नहीं है। सत्ताधारी एलडीपी के लिए परीक्षा का सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि देश के रक्षा बजट को पाँच साल के अंदर देश की जीडीपी के 2 प्रतिशत या इससे अधिक की वृद्धि करने के उसके फ़ैसले पर देश की प्रमुख विपक्षी पार्टियों में सहमति नहीं हो सकती है। इस लक्ष्य को NATO ने एक मानदंड के रूप में तैयार किया है और जिसको किशिदा ने मान लिया है। अपने चुनाव अभियान में किशिदा की एलडीपी ने यह सुनिश्चित करने का वादा किया कि जापान अपने दुश्मनों के अड्डों पर हमला करने की क्षमता “हासिल” कर लेगा जिसे अब “काउंटर-स्ट्राइक क्षमता” कहा जाता है, जिसमें न केवल दुश्मनों की ज़मीन पर मौजूद प्रक्षेपास्त्र के अड्डे शामिल होंगे बल्कि संचालन केंद्र (कमांड फ़ंक्शन सुविधाएं) भी शामिल होंगे। अगर किशिदा अपने देश की रक्षा बजट को 1 प्रतिशत से आगे 2 प्रतिशत और इससे अधिक तक बढ़ाने में सफल रहते हैं तो इससे जापान दुनिया में अमेरिका और चीन के बाद तीसरा सबसे ताकतवर सैनिक देश बन जाएगा। इससे शांति चाहनेवाले देश के रूप में जापान की अंतरराष्ट्रीय छवि में व्यापाक बदलाव आएगा।

इस सर्वेक्षण से एक और महत्त्वपूर्ण बात यह सामने आयी कि उच्च सदन का चुनाव लड़नेवाले सत्ताधारी एलडीपी उम्मीदवार सेक्सुअल अल्पसंख्यकों के अधिकारों का समर्थन करते हैं और उन्होंने शादी-शुदा जोड़ों को अपना अलग नाम चुनने का क़ानूनी अधिकार देने के पक्ष में हैं। सर्वेक्षण से पता चला कि 10 जुलाई के चुनाव में सिर्फ 40 प्रतिशत एलडीपी उम्मीदवारों ने इस तरह के क़ानून बनाए जाने का समर्थन किया था, उनका 96 प्रतिशत मुख्य विपक्षी कॉन्स्टिटूशनल डेमोक्रेटिक पार्टी, 70 प्रतिशत कोमेतो (सत्ताधारी गठबंधन का कनिष्ठ दल), 93 प्रतिशत निप्पोन इशिन, 100 प्रतिशत जापान कम्युनिस्ट पार्टी, 82 प्रतिशत डेमोक्रेटिक पार्टी फ़ॉर द पीपल, 100 प्रतिशत रेवा, 91 प्रतिशत सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, और एनएचके पार्टी के 52 प्रतिशत ने इस तरह के क़ानून को समर्थन देने का वादा किया है।[6]

10 जुलाई को होनेवाले उच्च सदन के चुनाव की एक और महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि 33 प्रतिशत उम्मीदवार महिला हैं, जो अब तक का सर्वाधिक हैं। 10 जुलाई के चुनाव में जो 545 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, उसमें रिकार्ड 181 महिलाएँ हैं।[7] इस तरह यह संख्या उच्च सदन के लिए 2019 में हुए चुनावों की तुलना में 77 अधिक है। जेंडर समानता के लिए 2020 में जो पाँचवीं मौलिक योजना बनी, उसमें 2025 तक उच्च सदन में महिला उम्मीदवारों के प्रतिशत को बढ़ाकर 35 प्रतिशत करने की बात कही गयी है। उच्च सदन का अगला चुनाव 2025 में होना है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए हर पार्टी को एक निश्चित प्रतिशत महिला उम्मीदवारों को टिकट देने के बारे में एक कोटा प्रणाली को लागू करना होगा।

इस चुनाव अभियान में जो महत्त्वपूर्ण बात नहीं दिख रही है, वह यह है कि देश में जन्म दर के भयानक रूप से गिरते स्तर को भुला दिया गया है। वैसे तो चुनाव अभियान में भूराजनीतिक और आर्थिक चिंताओं का मुद्दा खूब प्रमुखता से छाया रहा पर गिरती जन्म दर को अमूमन नज़रअंदाज़ किया गया। जनसांख्यिकी का यह मुद्दा अधिकांश राजनीतिक पार्टियों के एजेंडे में ऊपर होने चाहिए था पर अफ़सोस की बात है कि इसे पीछे धकेल दिया गया।[8] जन्म दर में जारी गिरावट और लोगों की आयु में वृद्धि के कारण भविष्य में जो संकट पैदा होनेवाला है, उसको देखते हुए बच्चों की देखभाल पर निवेश और दूसरे तरह के इंसेंटिव्स को तत्काल बढ़ाए जाने की ज़रूरत है और सभी राजनीतिक पार्टियों को इस समस्या के समाधान की चिंता करनी चाहिए। यद्यपि जन्म दर में कमी को उलटना जटिल मुद्दा है क्योंकि इसमें कई तरह के सामाजिक मुद्दे शामिल हैं, पर राजनीतिक नेताओं की ओर से इस बारे में कोई दृढ़ निर्णय समय की माँग है; अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश का भविष्य आधार में होगा।

पाद टिप्पणियां:

[1] “सर्वें: कोलिएशन टु विन मैजोरिटी ऑफ अपर हाउस सीट्स कंटेस्टेड”, दि अशी शिम्बुन,24 जून 2022, https://www.asahi.com/ajw/articles/14652769
[2]सी, राजाराम पंडा, “डिबेट ऑन कलेक्टिव सेल्फ़ -डिफ़ेंस एंड कॉन्स्टिटूशनल रिवीज़न इन जापान,”रेतकु जर्नल ऑफ़ इंटरडिसिप्लिनेरी स्टडीज़,वॉल्यूम 26, 2018, पेज 1-19.
https://reitaku.repo.nii.ac.jp/index.php?action=pages_view_main&active_action=repository_view_main_item_snippet&index_id=476&pn=1&count=20&order=17&lang=japanese&page_id=13&block_id=29
[3] “जापान रूलिंग ब्लॉक टु सिक्यर मजॉरिटी इन जुलाई अपर हाउस रेस: पॉल”, क्योदो न्यूज़, 24 जून 2022, https://english.kyodonews.net/news/2022/06/173821f88d76-japan-ruling-bloc-to-secure-majority-in-july-upper-house-race-poll.html; https://www.japantimes.co.jp/news/2022/06/24/national/politics-diplomacy/upper-house-election-constitution-revision/
[4] “सर्वे: 68% ऑफ़ कैंडिडेट्स फ़ेवर बोल्स्टरिंग जापाँस डिफ़ेंस”, द असाही शिंबन, 24 जून 2022, https://www.asahi.com/ajw/articles/14652834
[5] “सिक्यरिटी स्ट्रैटेजी नीड नोट रिलाइ ऑन मिलिटरी पावर अलोन”, द असाही शिंबन, 24 जून 2022, https://www.asahi.com/ajw/articles/14652484
[6]युति ओगी, “सर्वे: एलडीपी लैग्ज़ फ़ार बिहाइंड अदर पार्टीज़ ऑन जेंडर इशूज़”, द असाही शिंबन, 26 जून 2022, https://www.asahi.com/ajw/articles/14654161
[7] “33% ऑफ़ कैंडिडेट्स इन जापान्स अपर हाउस इलेक्शन आर विमन, हाइयस्ट एवर”, मैनीचि डेली न्यूज़, 23 जून 2022, https://mainichi.jp/english/articles/20220623/p2a/00m/0na/010000c
[8] “जापान्स पेरिलस्ली लो बर्थ रेट अ फ़र्गॉटेन इलेक्शन इशू”, मैनीचि डेली न्यूज़ 4 जुलाई 2022,
https://mainichi.jp/english/articles/20220702/p2g/00m/0na/045000c

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Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
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