रूस-यूक्रेन युद्ध: व्यर्थ का सैन्य उपक्रम का खेल?
Lt Gen Gautam Banerjee, Editor, VIF
सैन्य सिद्धांतों की जानबूझकर अवहेलना

रूसी लोग परंपरागत रूप से,सदियों से, मूल सैन्य रणनीतिक सोच के अग्रदूत रहे हैं। यहां तक कि दुनिया के अग्रणी सैन्य विचारक-मुख्य रूप से प्रशियन/जर्मनों और ब्रिटिश-रूसी जनरल स्टाफ द्वारा अपनाए गए युद्ध के दर्शन और सिद्धांतों से काफी प्रभावित होते रहे हैं। लेकिन अमेरिकियों से अलग रूसी अपने दर्शन के प्रति समर्थन बढ़ाने की नीयत से परंपरागत रूप से संकोची रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि अमेरिकी सैन्य सिद्धांत ही आज के युग में युद्ध-क्षेत्र में नेतृत्व की भूमिका निभाते हैं। लेकिन उसका यह नेतृत्व मुख्य रूप से सैन्यवादी सिद्धांत और दुनिया भर में इसके गहन प्रचार के लिए उसकी विशाल शैक्षणिक और औद्योगिक प्रतिबद्धताओं से आया है। उनके लिए 'रणनीतिक थिंक टैंक्स' की तदाद को खूब बढ़ावा देना, ये सभी थिंक टैंक गंभीर और 'सैन्य सिद्धांतकारों' का स्वांग करना उनके लिए एक अत्यधिक लाभदायक व्यवसाय है।[1] लेकिन सतह से परे देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि बहुश्रुत 'सैन्य मामलों में क्रांति',' साइकोट्रोनिक युद्ध', 'हाइब्रिड वारफेयर' आदि समेत सबसे आकर्षक सिद्धांतों सहित इस तरह के अधिकांश सैन्य सिद्धांत मूल रूसी सोच से ही अंकुरित हैं।

इसलिए,यूक्रेन में रूस के मौजूदा ‘विशेष सैन्य अभियान' के ज्ञात पाठ्यक्रम को देखते हुए, यह तथ्य थोड़ा परेशान करने वाला है कि अपने मेधावी जनरल स्टाफ की अगुवाई में और एक दुर्जेय जनरल गेरासिमोव की कमान में लड़ रही रूसी सेना, अब तक किसी निर्णायक सैन्य लक्ष्य को हासिल किए बिना एक महीने से अधिक समय तक फायर-फाइट में उलझी रह सकती है-मगर वास्तव में यह ऐसा ही युद्ध है। इस प्रक्रिया में, युद्ध के मूल दर्शन का दुरुपयोग किया गया है, जब नतीजा मृत्यु और विनाश की गणना के एक व्यापक अभ्यास द्वारा निर्धारित किए जाते हैं, जो वास्तव में इसके वैचारिक अभिशाप है; युद्ध अंधाधुंध हत्या और विनाश नहीं है लेकिन यह दुश्मन को घुटने टेकने पर मजबूर कर देने का एक कौशल है। विडंबना यह है कि रूस के तथाकथित 'विशेष सैन्य संचालन' ने न केवल लक्षित यूक्रेन, उसको उकसाने वाली पश्चिमी ताकतों को और बड़े पैमाने पर विश्व को गंभीर दुख पहुंचाया है, किंतु रूस को भी क्षति पहुंचाया है। यह दुरभिसंधि से नाक कटाने का एक मामला है।

युद्ध के लिए कैवलियर दृष्टिकोण

इस लेख का तर्क है कि विशुद्ध सैन्य नजरिए से, यूक्रेन पर रूस का आक्रामण सैन्य ऑपरेशन की शास्त्रीय अवधारणाओं की अनदेखी करने से दलदल में धंस गया है। इसी का नतीजा है कि युद्ध के नाम पर अंधाधुंध हत्या और विनाश का कोलाहल मचाया जा रहा है। यहां तक कि बाहरी, यह आंतरिक भी हो सकता है, राजनीतिक व्यवस्थाओं ने रूस की सैन्य बाजीगरी पर कुछ प्रतिबंध लगाए हैं, पर इसने युद्ध जैसे गंभीर उपक्रम में मास्को को एक पेशेवरना दृष्टिकोण की अनदेखी न करने से नहीं रोक सका है।

वहीं दूसरी ओर, यूक्रेन एक अनुकूल सामरिक विषमता पैदा करने में सक्षम रहा है जिससे कि वह अपने से बेहतर और ताकतवर आक्रमणकारी को उसके परिकल्पित लक्ष्य को आसानी से हासिल करने से रोकने में कामयाब रहा है। लेकिन उसके उत्साही रक्षा अभियानों और धुंआधार प्रचार के बावजूद, यूक्रेन को कोई गौरव नहीं मिला है क्योंकि उसके लोगों, शहरों और राष्ट्रीय संपत्ति-परिसंपत्तियां को रूस की रणनीतिक संवेदनशीलता के बरअक्स कीव की मूर्खतापूर्ण अशिष्टता के कारण तबाह-बरबाद पाते हैं।

यहां भविष्यवक्ता होने का कोई दावा किए यह बगैर कहा जा सकता है कि इस तरह की स्थिति न तो पहली बार उत्पन्न हुई है, और न ही यह अंतिम होगी। लेकिन इस युद्ध से कुछ सबक लिए जाने चाहिए।

रूसी सैन्य दुस्साहसिकता की जड़ कहां है

सत्य प्रतीत होने वाले कुछ उपलब्ध विश्लेषणों,यूक्रेनी नेतृत्व के आधे सच्चे, झूठे और तोड़-मरोड़ कर किए गए दुष्प्रचार और स्व-हितसाधने वाले कीव के सहयोगियों एवं रूस की तरफ से उसी तरह का गुमराह करने वाला तथा खुद को वाजिब ठहराने वाली कुछ हद तक आक्रामक कार्रवाइयों से कोई भी यह देख सकता है कि इस विनाशकारी दुस्साहिकता की कई जड़ें हैं।

सांस्कृतिक बाध्यताएं : यह युद्ध रूसियों और अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के गठबंधन की सांस्कृतिक बाध्यताओं से उत्पन्न हुआ है। जब मास्को अपनी बेरहम कुलीन प्रवृत्ति को नहीं सुधार सकता है, और दूसरा वाला, पूरी मानवता को खून से लथपथ करने के बाद, दुनिया को 'मानव अधिकार',' लोकतंत्र', 'कानून का शासन' आदि के अपने लाभदायक संस्करणों को तय करने या उन्हें दूसरों पर थोपने से बाज नहीं आ सकता है। समस्या तब और बढ़ जाती है, जब दोनों अपनी सीमाओं के आर-पार दासवत जी-हुजूरी की चाह रखते हैं और दूसरे के ऐसा करने पर पागल हो जाते हैं। लेकिन यह युगों-युगों से चली आ रही एक सामान्य कहानी है, और जब तक मानव ‘सभ्यता' है, तब तक मजबूत रहेगी। इसलिए रूस के यूक्रेन युद्ध का विश्लेषण करने के लिए इसी वजह को अलग करने की आवश्यकता नहीं है। रूस अपने प्रवेश द्वार पर दुश्मन ताकतों की दखल को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा, और पश्चिमी शक्ति खंड ठीक ऐसा करने के लिए अपने संप्रभु अधिकारों को नियंत्रित नहीं करेगा। बेशक, यह सब यूक्रेनी नागरिकों की जानमाल की लागत पर और उनकी अपनी सैन्य-औद्योगिक लाभप्रदता के नजरिये से किया जाएगा।

सैन्य सिद्धांतों की अनदेखीः मूल सैन्य सिद्धांत का उल्लंघन करने में, रूस स्पष्ट रूप से अपने अभियान के 'स्ट्रेटेजिक इंड-स्टेट' की तैयारी में विफल हो गया, जो उसके सैन्य उद्देश्यों और उनके परिणामस्वरूप आकस्मिकताओं से मेल खाता था। इस तरह के पेशेवर रूप से लक्ष कर बनाए गए रणनीतिक क्षेत्र, सापेक्ष बलों, रसद और अभियानों के संज्ञानात्मक और सहायक पहलुओं के वास्तविक मूल्यांकन से प्रेरित होते हैं, जो सभी राजनयिक और राजनीतिक सौदेबाजियों से पोषित किए जाते हैं। क्या यह अपने ‘जनरल' के अचूक होने के साथ पुतिन का हिटलर जैसा जुनून था या यह रूसी जनरल स्टाफ की अक्षमता का मामला था? क्या यह बहस और असहमति के उचित संज्ञान के साथ युद्ध के खेल का परिदृश्य था? क्या युद्ध की इन योजनाओं को सैनिकों के साथ या उनके बिना ही सामरिक अभ्यास के जरिए परीक्षण किया गया था? वर्तमान परिदृश्य तो इसके विपरीत हालात बताता है।

क्षेत्रीय आक्रमण के लिए उतावलापन। यूक्रेन के प्रमुख शहरों के सामरिक दलदल में न पड़ने को लेकर रूसी उचित ही बहुत स्पष्ट थे, और इस प्रकार, वे शहरी युद्ध से होने वाले बड़े पैमाने पर हताहतों और तबाही से बचे रहे थे, जिसको कि वे अपने आधे चचेरे भाई के खिलाफ नहीं करना चाहते थे। लेकिन यूक्रेन के शहरी और औद्योगिक केंद्रों के अलावा, उसके विशाल और विरल आबादी वाले क्षेत्रों में रूस को शायद ही कोई सार्थक लक्ष्य मिल सकता था, जिससे कि सरोकारों के आगे कीव समर्पण कर देता; फिर कंड्यूट्स और कनेक्टिविटी के काम के अलावा, उसके विशाल बाहरी इलाके रूस के बहुत कम रणनीतिक महत्त्व के थे। इसलिए, रूसियों ने शहरों में कम झड़पों के जरिए यूक्रेन के प्रमुख शहरों में विरोध को कम करने और लंबे समय तक युद्ध को जारी रखने की योजना बनाई। लगातार और प्रभावी घेराबंदी, यद्धपि समय लेने वाली और सघन सैन्य लामबंदी है लेकिन अपेक्षाकृत कम विनाशकारी है, जो चुनिंदा लक्षित शहरी केंद्रों पर अधिक प्रभावी चोट कर सकती है। आखिरकार, यह यूक्रेन के बड़बोले नेतृत्व को नरम बना सकता था।

रणनीतिक विरोधाभासः मजे की बात यह है कि रूसियों ने यहां एक सामरिक विरोधाभास को जन्म दे दिया है। वे शहरी झड़पों और लंबी घेराबंदी के लिए आवश्यक पर्याप्त सैनिकों, हथियारों, रसद और भंडारण को पूरा करने में विफल रहे हैं। इस प्रकार उन्होंने अपनी रणनीति को निष्पादित करने के लिए नौसिखिया रंगरूटों और भाड़े के सैनिकों पर निर्भर रह कर एक वैश्विक शक्ति का तमाशा बना दिया है। वे यह विश्वास करने में भी असफल रहे कि सिर्फ इमारतों में दनादन किए गए जा रहे विस्फोटों के जरिए यूक्रेनी प्रतिरोध को तोड़ कर रख देंगे। रूसियों ने अपने सामरिक अनुकूलन में, युद्ध के मैदानों में ठोस तैनाती के लिए अपने दुर्जेय युद्ध समूहों को व्यवस्थित करने की आवश्यकता पर विचार नहीं किया। जाहिर है, विशेष सैन्य अभियानों की उनकी योजना अभियान के दौरान उत्पन्न होने वाली आकस्मिकताओं के विवेचन की बजाय केवल आशावाद और उम्मीदों से संचालित थी, जो कि गलत थी। अपने गलत अनुमानों को ढंकने के लिए, रूसियों ने बदले में विरोधी यूक्रेन की परिसंपत्तियों पर ताबड़तोड़ बमबारी करने का विकल्प चुना, जो रूस के खिलाफ विश्वव्यापी अभियोग बनाने के लिए बहुत आधार था।[2]

स्लैप-डैश बल अनुप्रयोग। रूस उच्च विनाशकारी अभियानों के खिलाफ संयम रखने की अपनी सैन्य रणनीति को अनुकूलित करने के मामले में सही थे। लेकिन वे 'बल के न्यूनतम अनुप्रयोग' के लिए तैयार करने में सबसे अधिक अकुशल थे और इस प्रकार वे यूक्रेन के प्रतिरोध की काट न कर सकने के कारण फंस गए लगते हैं। वैचारिक रूप से, सैन्य अभियानों को अधिकतम सैन्य बल की तैनाती के साथ अंजाम दिया जाता है, भले ही कम से कम विनाश होने देने की रणनीति अपनाई जाए, लेकिन अधिकतम बल के साथ विपक्ष पर भारी पड़ने और त्रासदी को जल्दी और कम क्षति के साथ खत्म करने का विकल्प होना चाहिए। स्पष्ट तौर पर, यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की कवायद निरर्थक थी।

यूक्रेनी नेतृत्व की विफलता

यूक्रेन के नेतृत्व की भूमिका का आकलन करने के यहां गंभीर कारण हैं जिनकी प्राथमिक प्रतिबद्धता अपने नागरिकों और राष्ट्रीय संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होनी चाहिए। क्या यूक्रेनी नेतृत्व और उसके राष्ट्रपति जेलेंस्की भव्य प्रासाद में मौज-मस्ती करने वाले और चाटुकारों की खुशामदी बातों में (डॉन क्विक्सोट डे ला मंच की भांति!) डूबने की हद तक ऊभ-चुभ कर रहे हैं?

इस सन्दर्भ में कुछ सवाल उठते हैं, जो इस प्रकार हैं:-

  • यूक्रेनी नेतृत्व रूस की वास्तविक सुरक्षा चिंताओं को मानने से क्यों इनकार करता रहा; रूस की नाभि के नीचे नाटो की युद्ध मशीन को निमंत्रण इतना बाध्यकारी क्यों बन गया था?
  • क्या यह यूक्रेनी नेतृत्व के अधकचरे दिमाग की सनक थी, या पश्चिमी तर्ज के लोकतंत्र लाने के लिए लोगों की इच्छा इस कदर बलबती हो गई थी कि यह मानव त्रासदी को उकसाए जाने, उसमें तेजी लाने का इंतजार नहीं कर सकती थी? क्या व्यापक आर्थिक संबंधों के अलावा कोई और रास्ता नहीं था?
  • क्या यह यूक्रेन की नाटो सदस्यता हासिल करने की बेताबी पर रूस की घबराहट की गंभीरता को मापने में कीव की एक खुफिया विफलता का नतीजा थी? या, क्या यह भोले-भाले यूक्रेनी नेतृत्व को बहका-भड़का कर पश्चिमी शक्तियों का अपनी हथेलियों को खून से रंगे बिना ही स्वार्थों को साधने का दुष्परिणाम था? [3] क्या बड़े पैमाने पर रूस की सैन्य लामबंदी का झांसा दिया गया था?
  • इसमें कोई संदेह नहीं कि रूसी हमलों ने मानवीय त्रासदी देने के अलावा यूक्रेनवासियों को दशकों पीछे खींच लिया है। क्या यह पश्चिमी शक्ति का (दूर खड़े होकर) ताली बजाना था, जो कि युद्ध में तबाह हुए यूक्रेन के परिदृश्य के पुनर्निर्माण में व्यावसायिक फायदे की संभावना से किया गया छल था? क्या यह संभावना इतनी मोहक थी कि युद्ध की तबाही और उससे होने वाली मानव पीड़ा की भी उपेक्षा कर दी जाए? क्या यह यूक्रेनी नेतृत्व के लिए राष्ट्र की रक्षा करने की अपनी सर्वोच्च जिम्मेदारी को त्यागने के लिए पर्याप्त था?
  • यहां तक कि अगर शक्तिशाली, जिद्दी और जुझारू रूसियों ने यूक्रेन के लिए कोई विकल्प भी नहीं छोड़ा था, लेकिन रूस की मनमर्जी से खींची गई ‘रेड लाइन्स' को पार करने पर यूक्रेन के नेतृत्व के प्रयासों पर यह संदेह बना रहा कि वह रूस की आक्रामकता को पूर्णतः स्थगित नहीं कर सकता था तो कम से कम उसे अस्थायी तौर पर तो रोक ही सकता है।
  • क्या रूस अपने एक पड़ोसी राष्ट्र से बहुत अधिक मांग कर रहा था, जिसका समंजन किसी भी तरह से नहीं किया जा सकता था, कम से कम उसकी आक्रामकता को कुछ तक टालने के लिए अस्थायी रूप से भी नहीं किया सकता था? ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसा किया जा सकता था। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब सैन्य संघर्ष को टाल दिया गया है या कम से कम कूटनीति को अधिक समय देने के लिए तात्कालिक तौर पर उसे स्थगित कर दिया गया है। यहां, यूक्रेनी राष्ट्रपति शक्तिशाली पड़ोसी का मजाक उड़ाने तक उतर गए-उनका रूसी सेनाओं से 'आत्मसमर्पण' करने का आह्वान उनकी कॉमेडी का एक उदाहरण माना जा रहा है।
भटकाव, मिथ्याकरण और सुई चुभाने का प्रहसन

प्रतिद्वंद्वी के सत्ता प्रतिष्ठान में सार्वजनिक अफवाह फैलाना और भ्रम उत्पन्न करना युद्ध की स्थिति में आजमाए गए पुराने हथियार हैं। हालांकि, रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में, परम्परागत युद्ध के नवाचार इस तरह के बेतुकीपन से बिगड़ गए हैं, लेकिन इसके रक्तरंजित विषयवस्तु के लिहाज से इन्हें हास्यास्पद कहा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति ऐसे किसी राष्ट्राध्यक्ष को अपने देश को किसी अति बलशाली देश से लड़ कर भारी आत्मविनाश को आमंत्रित करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजे जाने का प्रस्ताव करते नहीं देखा है और न ही ताकतवर दुश्मन देश (रूस) के 15,000 सैनिकों, 1 हजार बख्तरबंद वाहनों और 500 से अधिक लड़ाकू विमानों को मार गिराने के हास्यास्पद दावे को पचा सकता है जबकि इस युद्ध में खुद उसके 1000 नागरिक और 1300 सैनिकों को मारे गए हों। जाहिर है कि वह नेता अपने राष्ट्र की सुरक्षा करने की बजाए अपने लोगों के शवों की अतिरंजित गिनती से अपनी सैन्य उपलब्धियों को मापता है, वह भी सीमा पार बैठे अपने उनके मित्रों से प्रशंसा पाने के लिए जो उन्हें जंग के लिए भड़काया है।

सैनिकों और राजनयिकों की बात जाने दें तो जेलेंस्की को झाड़ पर चढ़ानेवालों में पश्चिमी राजनेताओं, प्रेस और सोशल मीडिया शामिल हैं। इस स्वांग में रिंग-साइड के दांव के ‘युद्ध अपराधों’ के लिए राष्ट्रपति पुतिन पर अभियोग लगाने का आह्वान सबसे ऊपर है! यह खुद गुनहगार होकर दूसरों को दोषी कहने का मामला है! यह प्रहसन पुतिन को 'अपराधी' और अमेरिकी राष्ट्रपति को 'रूस में शासन के बदलाव पर विचार करने' (उनके शर्मिंदा अमेरिकी विदेश मंत्री ने बाद में इसको ‘स्पष्ट’ किया) के बयानों के साथ निरंतर जारी रहता है।[4]

'संघर्ष विराम' का गपशप

सप्ताहों की संघर्ष विराम वार्ता एक और प्रहसन में बदल रही हैं। ऐसी बातचीत का क्या मतलब जब तक विरोधी अपने दावों पर विचार न करें? रूस अपनी अतार्किक ‘लाल रेखाओं' से पीछे नहीं हटेगा जबकि यूक्रेन रूस को अस्थिर करने पर अपनी चालबाजियों से बाज नहीं आएगा। क्या यूक्रेनवासी रूस-यूक्रेन सीमा की बगल में ‘पश्चिमी गलियारे' में नाटो सेना की तैनाती रहते निकट भविष्य में रूस से मेल-मिलाप की संभावना देखते हैं? या क्या रूसियों का मानना है कि यूक्रेनवासियों को बेहतर आर्थिक संभावनाओं के लिए और पसंद की राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए छोड़ा जा सकता है?

वास्तव में, अपने रिंग-साइड दांवों पर उल्लासपूर्ण हाथ से ताली बजाने के लिए, यूक्रेन खुद के विनाश से तब तक अपने को आजाद मानता है, जब तक कि वह अपने आक्रमणकर्ता को उसकी खुद की तबाही के लिए ‘शर्मिंदा’ न कर दे। इस घटना में, यह स्पष्ट है कि युद्धविराम वार्ता एक लंबे समय की जंग में एक-दूसरे को थका देने के उद्देश्य से एक छल में बदल गई है।

उदात्त मूल्य, गंदा इरादा

सार्वभौमिक मूल्य प्रणाली में, एक संप्रभु राष्ट्र को अपने विरोधी द्वारा निरावरण क्षेत्र में किसी भी सैन्य लामबंदी के खिलाफ, किसी भी तरह से जवाबी कार्रवाई कर सकता है। इसी तरह, एक संप्रभु राष्ट्र को अपनी पसंद के राजनीतिक और आर्थिक गठबंधन में प्रवेश करने की सभी स्वतंत्रता हासिल है। फिर भी, शांति और समृद्धि के लिए एक-दूसरे की चिंताओं की समझ भी परिपक्व होनी चाहिए। जब तक कि युद्धग्रस्त देशों के बीच न्यूनतम निभाव नहीं है-या गतिरोध या यथास्थिति पर भी एक मौन समझौता नहीं है-यह युद्ध जारी रहेगा लेकिन यह क्रूर जुआरियों के कुचक्र द्वारा घातक मुर्गा-लड़ाई का एक निराशाजनक उदाहरण है।

यह दुर्भाग्य है कि अपने अस्तित्व के लिए रोजमर्रा जद्दोजहद करने वाले वैश्विक समुदाय के असहाय लोगों को उस पागलपन का खमियाजा भुगतना होगा।

पाद-टिप्पणियां:

[1]यह इस तथ्य के बावजूद है कि अमेरिकी अपने 'पाखंडी‘ सैन्य सिद्धांतकारों की चेतावनियों के विरुद्ध पिछली आधी सदी के दौरान पूरी दुनिया भर में अपने अधिकांश प्रमुख सैन्य अभियानों के जरिए बहुत गड़बड़ी करने में कामयाब रहे हैं।
[2]यहाँ सैन्य रूप से भोले राष्ट्रों के लिए एक सबक है,अगर कभी कोई आवश्यकता थी, वह यह कि उन्हें सैन्य संस्कृति का आदर करना चाहिए।
[3]नाटो आखिरकार एक शीत युद्धकालीन अवशेष है, जिसे 'साम्यवाद (पूर्ववर्ती यूएसएसआर पढ़ें) का प्रसार रोकने और मुक्त-विश्व मूल्यों की रक्षा करने' के लिए बनाया गया था, जो अपने उद्देश्य में पुराना पड़ गया है और अब वह पश्चिमी आधिपत्य और हथियार उद्योग की लाभप्रदता में अपनी प्रासंगिकता पा रहा है।
[4]फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने इस तरह के विचारहीन बयानों (WION, 27 मार्च 2022) से स्थिति बिगड़ने के खिलाफ चेतावनी दी है।

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
Image Source: inews.uk.co

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