चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने शताब्दी समारोह मना लिया, अब आगे क्या होगा?
Jayadeva Ranade

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के शताब्दी समारोह से संबंधित समाचारों एवं विश्लेषणों को चीनी मीडिया ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था। शी जिनपिंग, जो चीन के सीसीपी महासचिव, केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) के अध्यक्ष और चीनी राष्ट्रपति के तीन शीर्ष पदों पर सुशोभित हैं, उन्होंने 1 जुलाई 2021 के इस अवसर पर एक महत्त्वपूर्ण भाषण दिया था। उनके भाषण से चीन के भविष्य की योजनाओं के बारे में कुछ संकेत उभरे थे, उन्हीं में एक संकेत यह भी था कि वे सत्ता में आगे भी बने रहना चाहते हैं। उनके उद्गार ने इसको पुष्ट किया कि कम्युनिस्ट पार्टी उनके द्वारा 2017 में दिए गए नुस्खे का पालन करेगीः "पार्टी, सरकार, सैन्य, नागरिक और अकादमिक, पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर और केंद्र, पार्टी हर चीज का नेतृत्व करती है"।

मख्य बिंदु और शी जिनपिंग का भाषण

सीसीपी के शताब्दी समारोह का एक दिलचस्प और संभवतः कम ध्यान दिया गया पक्ष था-पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की समारोह में भागीदारी के संबंध में पूर्व के निर्णय का पलटा जाना। चीन के राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने 23 मार्च 2021 को एक प्रेस वार्ता में कहा कि पीएलए द्वारा कोई परेड नहीं की जाएगी और न ही पार्टी के समारोहों में सेना की कोई भूमिका होगी। फिर भी, 1 जुलाई को पीएलए वायु सेना (पीएलएएएफ) की तरफ से विमानों का परेड हुआ, थल सेना का परेड हुआ और फिर सेना की टुकड़ी ने 100 तोपों की सलामी दी। सीसीपी नेतृत्व ने शायद यह तय किया था कि पीएलए की भागीदारी पार्टी के प्रति अपनी "पूर्ण आज्ञाकारिता" प्रदर्शित करने और पीएलए पर पार्टी की मजबूत पकड़ को रेखांकित करने के लिए आवश्यक है।

शी जिनपिंग का जोर 7,000 कैरेक्टर स्पीच चीन के लोगों, सीसीपी, विचारधारा और 'कायाकल्प' करने पर था। यह फोकस काफी तेज और सघन था क्योंकि यह 2002 में आयोजित हुई सीसीपी की 80वीं वर्षगांठ में जियांग जेमिन के दिए गए 21,000 कैरेक्टर स्पीच की लंबाई का एक तिहाई था। शी जिनपिंग ने अपने भाषण में सीसीपी का 200 बार और 'कायाकल्प' का 26 बार उल्लेख किया था। उनका विचारधारा पर जोर पार्टी की नीतियों को देश-विदेश के संदर्भ में सही ठहराने और स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में वैचारिक शिक्षा के साथ-साथ अकादमिक बिरादरी की वैचारिक निगरानी को बढ़ाने की मांग करता है। यह दावा कि 'केवल समाजवाद ही चीन को बचा सकता है और केवल समाजवाद ही चीन का विकास कर सकता है' ने पार्टी की नीति को एक वैधता दी है। यह राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों (एसओई) और निजी उद्यमों के साथ विदेश उद्यमों में पार्टी प्रकोष्ठ स्थापित करने पर जोर देता है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि चीन की प्रगति के लिए पार्टी अपरिहार्य है। शी जिनपिंग ने घोषणा की: 'चीन की सफलता पार्टी पर टिकी है' और 'चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बिना, कोई नया चीन नहीं होगा और कोई राष्ट्रीय कायाकल्प नहीं होगा'।

इसमें स्पष्ट ध्यान देने योग्य था कि आलोचनाओं को स्वीकृति देना, जो शी जिनपिंग की निजी तौर पर और सीसीपी को लेकर की जा रही थी। ये आलोचनाएं चीन के सोशल मीडिया और साइबरस्पेस में फैल गई थीं। ये विभिन्न कारकों से प्रेरित थे, जैसे कि वरिष्ठ कैडरों की नियुक्तियों के लिए कार्यकाल की सीमा की अनदेखी करना, अपने प्रारंभिक चरणों में कोविड महामारी के प्रकोप से निपटने के काम में कुप्रबंधन आदि। आलोचना से ध्यान हटाने की कोशिश में, शी जिनपिंग ने कहा, "पार्टी को लोगों का समर्थन उपार्जित करना है और उसे बनाए रखना है"। इसी संदर्भ में उन्होंने कहा, 'पार्टी किसी व्यक्तिगत हित समूह, सत्ता समूह या विशेषाधिकार प्राप्त तबके का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। संयोगवश, इसी समय के आसपास चीनी मीडिया ने चीन एयरोस्पेस इन्वेस्टमेंट होल्डिंग्स के अध्यक्ष और कम्युनिस्ट पार्टी सचिव झांग ताओ की घटना को खूब प्रचारित किया था, जिन्होंने 6 जून को चीन एयरोस्पेस कॉर्पोरेशन के दो वरिष्ठ शिक्षाविदों और वैज्ञानिकों को बुरी तरह पीटा था, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था। झांग ताओ एक अत्यधिक सरोकारी 'राजकुमार' हैं और उन्हें 4 जुलाई के बाद दंडित किया गया था। शी जिनपिंग की टिप्पणी उनके इस आग्रह को पुष्ट करती है कि पार्टी के कार्यकर्ताओं को सादगी से रहने और एक बार फिर लोगों के करीब आने की जरूरत है।

शी जिनपिंग ने सीसीपी नेतृत्व की गंभीर और प्रचारित आशंकाओं की ओर इशारा करते हुए कि अमेरिका और पश्चिम चीन को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्होंने विदेशियों को चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की चेतावनी दी। अन्यथा, उन्होंने कहा, वे "उनका सिर ठोस स्टील से बने चीनी लोगों से टकरा कर फोड़ डालेंगे।" शी की इस टिप्पणी को चीनी मीडिया और चीन के राज्य सुरक्षा मंत्रालय (MoSS) ने अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों द्वारा चीन में 'रंग क्रांति' को भड़काने के प्रयासों की सार्वजनिक चेतावनी के रूप में पेश प्रचारित किया। शी जिनपिंग द्वारा चीन की प्रमुख परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) का संदर्भ दिया जाना महत्त्वपूर्ण था। यह चीन को उसकी "दूसरी शताब्दी" के लक्ष्य की तरफ जाने वाली एकमात्र ठोस परियोजना थी, जिसका उल्लेख चीनी राष्ट्रपति के भाषण में किया गया था। उन्होंने जोर देकर कहा कि उसकी यह "प्रगति जारी रहेगी"। बीआरआइ राज्य की शक्ति को प्रक्षेपित करती है और यह चीन तथा शी जिनपिंग की वैश्विक महत्त्वाकांक्षा का प्रतिनिधित्व करती है। इसका उल्लेख स्पष्ट रूप से यह संकेत देता है कि शी जिनपिंग चीन को 2049 तक एक प्रमुख विश्व शक्ति बनाने के अपने विस्तृत वैश्विक एजेंडे को पूरी तरह से जारी रखने का इरादा रखते हैं। शी जिनपिंग द्वारा ताइवान के प्रसंग में चीन के "पूर्ण एकीकरण" का उल्लेख इस बात को पुष्ट करता है।

चीन की 'दूसरी शताब्दी' का लक्ष्य

चीन ने अब अपने 'दूसरी सदी' के लक्ष्य की शुरुआत कर दी है। हालांकि अगले 20 और 30 साल महत्त्वपूर्ण होंगे, जब तक शी जिनपिंग चीन को "अग्रणी वैश्विक प्रभाव वाली शक्ति" बनाने और अपने प्रतिद्वंद्वी या अमेरिका से 2049/2050 तक आगे निकल जाने का इरादा रखते हैं। वर्तमान संकेत हैं कि चीन के नेतृत्व के लिए यह लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा। शी जिनपिंग के अगले दो कार्यकालों के लिए सत्ता में बने रहने के अलावा, कम से कम दो अन्य मुद्दे हैं जिनका चीन के नेताओं को सामना करना होगा।

आंतरिक कठिनाइयां

इसी साल बेइदैहे के समुद्र तटीय रिसॉर्ट में अपनी चर्चा के दौरान अनुभवी नेताओं के अनौपचारिक वार्षिक शरद सम्मेलन ने कथित तौर पर सहमति व्यक्त की कि चीन एक 'गंभीर आर्थिक संकट' का सामना कर रहा है।

यह सहमति उन रिपोर्टों की पुष्टि करती है कि चीन की आधिकारिक मीडिया द्वारा उत्साहित रिपोर्टिंग के बावजूद चीन की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में है। दूसरा चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संभावित रूप से अलग-थलग पड़ रहा है, खासकर दुनिया के प्रमुख उन्नत देशों द्वारा। चीन की आक्रामक नीतियों पर प्रतिक्रिया के अलावा, सरकारों के लिए एक महत्त्वपूर्ण कारक कोविड महामारी के कारण वैश्विक चीन विरोधी भावना के कारण जनता का दबाव होगा। चीन-अमेरिका के बीच बिगड़े संबंधों के चलते ये दबाव और सघन हो गए हैं। अब जबकि अमेरिका और यूरोपीय संघ कोविड महामारी के विनाशकारी प्रभावों से उबरना शुरू कर दिया है, फिर भी इसकी संभावना कम ही है कि वे पहले की तरह अपने बाजारों को चीन के लिए खोल देंगे। यह स्थिति चीन की अर्थव्यवस्था को गहरे संकट में डाल देगी, जो निर्यात पर अधिक निर्भर है।

वर्तमान में चीन के सामने अन्य आर्थिक कठिनाइयाँ हैं। आधिकारिक चीनी आंकड़ों के अनुसार, शहरी केंद्रों को छोड़कर अपने गांवों को जाने वाले 300 मिलियन श्रमिक अभी तक अपने काम पर नहीं लौटे हैं। इस तथ्य की पुष्टि चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने अगस्त 2021 में अप्रत्यक्ष रूप से की है, जिसमें शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की आय में पहले से विद्यमान 32 फीसदी की असमानता को और व्यापक होने की बात कही गई है। चीन में 60 फीसदी छोटे और मध्यम व्यवसायों के आधिकारिक तौर पर बंद होने की पुष्टि की गई है। अधिकतर कॉलेज स्नातकों को रोजगार देने वाले सेवा क्षेत्र में भी बहुत कमजोर सुधार हुआ है। इसके कारण पहले से ही 16 से 24 साल के युवा आयुवर्ग समूह में 2019 से चली आ रही 14 फीसद युवा बेरोजगारी की दर को और बढ़ा दिया है। इससे लोगों के जीवन स्तर में गिरावट की संभावना है और मुद्रास्फीति बढ़ रही है। चीन की आर्थिक कठिनाइयों का एक महत्त्वपूर्ण संकेत यह है कि नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी)-चीनी संसद-द्वारा मार्च में अनुमोदित बजट में मार्च 2021 के लिए सभी सरकारी मंत्रालयों और विभागों के लिए बजट में 50 फीसदी की कटौती कर दी गई थी और इसके आगे 2022 में 5 फीसदी की कटौती की गई थी। हालांकि, चीन के सार्वजनिक सुरक्षा तंत्र का बजट दोनों वित्तीय वर्षों में बढ़ाया गया है, जबकि विदेश मंत्रालय के बजट में इस वर्ष मामूली वृद्धि हुई।

इसके अलावा, अन्य दीर्घकालिक मुद्दे भी हैं, जैसे चीन की बूढ़ी होती आबादी जिसने राजस्व, पेंशन और सामाजिक कल्याण कोषों पर बोझ डालना शुरू कर दिया है। बड़ी आबादी के बुढ़ाते जाने ने श्रम शक्ति और उत्पादकता को भी प्रभावित किया है।

इसी समय, उद्योग को विनियमित करने की जरूरत है। फिर प्रतिकूल होते अंतरराष्ट्रीय वातावरण में पार्टी के नियंत्रण को बढ़ाने के लिए चीनी अधिकारियों ने पिछले साल से बड़े व्यवसायों और फिनटेक पर नकेल कसना शुरू कर दिया है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें उन्होंने विदेशी स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होने वाली कंपनियों में हस्तक्षेप किया, जिससे स्टॉक की कीमतों में तेज गिरावट आई और विदेशी निवेशकों को भारी नुकसान हुआ। इस तरह सबसे पहले 'अनुशासित' होने वाले जैक मा की कंपनी अलीबाबा थी। इसके अलावा, कई अन्य कंपनियों पर जांच चल रही है और उन्हें दंडित किया गया है, उनमें मीटुआन की वांग जिंग और फीनिक्स टीवी की लियू चांगल हैं।

अभी 17अगस्त को शी जिनपिंग द्वारा प्रतिपादित "सामान्य समृद्धि" के नारे के तहत चीन के सफल अरबपति व्यवसायी उद्यमियों और लाभदायक व्यवसायों पर एक अतिरिक्त राजनीतिक लेवी लगाई गई थी। डर के मारे कई व्यवसायों ने इसका तुरंत अनुपालन किया।18 अगस्त को टेन्सेंट (Tencent) ने 50 अरब युआन (US$ 7.73 अरब) कम आय वाले समूहों, बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के लिए योगदान करने का संकल्प लिया। 24 अगस्त को, इंटरनेट कॉमर्स फर्म पिंडुओडुओ और अलीबाबा की एक प्रतिद्वंद्वी ने इस साल की पहली तिमाही के पूरे लाभ का कुल $374 मिलियन डॉलर कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए दान करने की घोषणा की। इसने भविष्य के मुनाफे को कुल 10 अरब युआन तक दान करने का वादा किया। मितुआन के संस्थापक वांग जिंग ने जून में अपने परोपकारी संगठन में अपनी 10 फीसदी हिस्सेदारी दान में दे दी।

द इकोनॉमिस्ट की रिपोर्ट है कि विदेशों में शरण मांगने वाले चीनी नागरिकों की संख्या में वृद्धि हुई है, वह 2012 के 15,362 से 2020 में बढ़ कर 1,07,864 तक पहुंच गई है। इसमें वे लोग शामिल नहीं हैं, जो अवैध रूप से चीन छोड़ रहे हैं या जिन्होंने अवैध तरीकों से विदेशों में पैसा जमा किया हुआ है। इन गतिविधियों से चीन के निवेश के माहौल को तो नुकसान पहुंचा ही है और विदेशी निवेशक चीन में निवेश करने से कतरान लगे हैं। चीनी कारोबारी भी विदेशी स्टॉक एक्सचेंजों में अपने उपक्रमों की लिस्टिंग को लेकर सतर्क हो गए हैं।

चीन का बाहरी वातावरण

बिगड़ते चीन-अमेरिका संबंध चीनी नेतृत्व के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है। अमेरिकी कांग्रेस में द्विदलीय सहमति है कि चीन को नियंत्रित करने की आवश्यकता है और, बाइडेन प्रशासन की नीतियां अपने पूर्ववर्ती की तरह ही कठोर हैं। अमेरिका का कठोर रवैया ताइवान और तिब्बत सहित कई क्षेत्रों में दिखाई देता है, जो चीन के "मुख्य चिंता" के क्षेत्र हैं। खास कर तिब्बत पर अमेरिकी नीति अधिनियम के पारित होने के साथ यह चिंता और बढ़ गई है।

चीन के हाई-टेक कार्यक्रम 'मेड इन चाइना-2025' पर अमेरिकी दबाब परिणामस्वरूप यह कम से कम एक दशक पीछे चला गया है और अन्य क्षेत्रों में भी प्रतिकूल गिरावट की संभावना है।

इसके अलावा, दूसरे देशों से झड़प की भी संभावना है। चीन का नेतृत्व और विश्लेषक चीन के उद्देश्य से और अधिक अमेरिकी कार्रवाइयों से बहुत आशंकित हैं, खासकर अब जब अमेरिका अफगानिस्तान से हट गया है। दक्षिण चीन सागर और उससे सटे जलक्षेत्र और क्वाड में अमेरिका के नेतृत्व वाले अभ्यासों को बहुत सावधानी से देखा जा रहा है। चीन के 'अपमान की सदी' की यादें ताजा करने वाले ब्रिटिश, फ्रांसीसी और जर्मन युद्धपोतों का आगमन पेइचिंग के लिए चिंताजनक होगा। अमेरिका के वरिष्ठ एडमिरलों के दक्षिण चीन सागर में चीन के साथ झड़पों की बढ़ती संभावना पर बात करने से ऐसी आशंकाएं बढ़ गई हैं।

हाल के महीनों में ताइवान संभावित संघर्ष के क्षेत्र के रूप में उभरा है। PLAAF और PLA नेवी की आक्रामक कार्रवाइयों ने सरगर्मी को बढ़ा दिया है। ताइवान को अमेरिकी हथियारों की बिक्री और ट्रंप और उसके बाद के प्रशासन द्वारा ताइवान को दी गई प्रमुखता ने इस दबाव को और बढ़ा दिया है। अंतर्राष्ट्रीय वातावरण भी अधिक प्रतिकूल हो गया है। यह बिगाड़ जापान के रक्षा मंत्री द्वारा ताइवान और उसके आसपास के जल को जापान के लिए "महत्त्वपूर्ण महत्त्व" के रूप में पहचानने, और जापान के रक्षा श्वेत पत्र में की गई टिप्पणियों और अगस्त के अंतिम सप्ताह में एलडीपी के नेताओं और ताइवान के सत्तारूढ़ डीपीपी के बीच बातचीत के बाद आया है।

चीन और भारत के बीच तनाव कुछ समय तक के लिए कम होने की संभावना नहीं है बल्कि उनमें अचानक से गंभीर झड़पें होने की आशंका बलबती हो गई हैं। भारत के लद्दाख और अन्य क्षेत्रों पर चीन का दावा जारी रखे हुए है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भारत के नेताओं के साथ इस मुद्दे पर जारी चर्चा में वह कोई झुकाव नहीं दिखा रहा है। ऐसी रिपोर्ट है कि चीन सीमा के आसपास लगातार सैन्य निर्माण कर रहा है। चीनी राष्ट्रपति और केंद्रीय सैन्य आयोग के अध्यक्ष शी जिनपिंग की 23 जुलाई 2021 को ल्हासा में पीएलए अधिकारियों के साथ "विशेष" बैठक में सेना को अतिरिक्त तैयारी करने का सुझाव दिया है। जब तक चीनी नेतृत्व अपनी सेना को मई 2020 की पहले की अपनी पॉजिशन पर नहीं बुलाती, सीमा पर तनाव बना रहेगा। स्थिति यह है कि आगे यहां कोई भी चीनी कार्रवाई सशस्त्र संघर्षों की बड़ी आशंका को बढ़ाती है।

इस पृष्ठभूमि में चीन को विदेशों में बाजारों की जरूरत है। चीन के लिए पहले की तरह ही अमेरिका और यूरोपीय बाजारों को खुलने की संभावना नहीं है, जबकि भारतीय बाजार चीन के लिए उत्तरोत्तर प्रतिबंधित हो रहे हैं, और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला चीन की भूमिका को प्रतिबंधित करने, या समाप्त करने के लिए पुन: उन्मुख हो रही है, इनके मद्देनजर पेइचिंग को आगे गंभीर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। यदि चीन की आर्थिक स्थिति बिगड़ती है, तो लोगों में असंतोष और बढ़ेगा, और इससे शी जिनपिंग की विश्वसनीयता और सीसीपी की वैधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। चीनी विश्लेषक पहले से ही निजी तौर पर शी जिनपिंग की आक्रामक नीतियों को चीन के पड़ोसियों से दुश्मनी और अमेरिका के साथ संबंधों में तेजी से गिरावट के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं।

चीनी नेतृत्व

20वीं पार्टी कांग्रेस के साथ अगले साल शायद शी जिनपिंग को उनके तीसरे कार्यकाल के लिए मंजूरी देने जा रही है। ऐसे में नहीं लगता कि शी अपने एजेंडे से समझौता करेंगे या अमेरिका के साथ संबंधों को सुधारने के लिए आवश्यक रियायतें देंगे। सीसीपी नेतृत्व में वर्तमान सोच यह प्रतीत होती है कि अमेरिका अब अपूरणीय गिरावट के दौर में है और यह चीन के लिए अवसर की एक खिड़की खुलने की तरह है। अमेरिका की तरफ से संपर्क के लिए हाल की गई पहल को उसकी "कमजोरी" के रूप में देखा जा रहा है और चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने जलवायु पर दिए गए अपने व्याख्यान में अमेरिका के विशेष दूत जॉन केरी को इसका अहसास कराया है। यह आकलन, निश्चित रूप से, संघर्ष के जोखिम को काफी हद तक बढ़ाता है। चीन को पूर्व-प्रतिष्ठित क्षेत्रीय शक्ति बनाने की शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षा का अर्थ होगा चीन के दावे वाले क्षेत्रों को '' फिर से हासिल” करने के लिए आक्रामक नीतियों की निरंतर खोज और भारत, ताइवान, जापान और अन्य पर समुद्री क्षेत्रीय दावों के साथ दबाव बनाए रखना। यदि चीन का नेतृत्व यह मानता है कि अमेरिका अब हस्तक्षेप करने के लिहाज से बहुत कमजोर हो गया है, या वह अनिच्छुक है, तो शी जिनपिंग ताइवान को मुख्य भूमि के साथ 'पुनर्मिलन' के सैन्य प्रयास पर अपना दांव लगा सकते हैं। शी जिनपिंग की बढ़ी महत्वाकांक्षाएं, अफगानिस्तान में बदलती स्थिति और बीआरआइ को आगे बढ़ाने का प्रलोभन भी शी जिनपिंग को जन एवं पदार्थ के साथ तालिबान की 'सहायता' करने के लिए प्रेरित कर सकता है।

उभरते आंतरिक राजनीतिक परिदृश्य

हालांकि यह असंभव दिखाई देता है कि घरेलू असंतोष शी जिनपिंग को उनकी नीतियों को बदलने या पद पर बने रहने के लिए अपने कहे से हटने के लिए मजबूर करेगा।
विगत में 2-3 वर्षों में शी जिनपिंग द्वारा किए गए उपायों ने सीसीपी,सीसी, पोलित ब्यूरो और पोलित ब्यूरो स्थायी समिति पर उनके नियंत्रण को मजबूत किया है और एक अप्रत्याशित एजेंडा या विकास से आश्चर्यचकित होने की संभावना को कम कर दिया है। जब तक सीसी में असंतुष्ट या असंतुष्ट कैडरों की संख्या एक महत्त्वपूर्ण अंक तक नहीं पहुंचती, तब तक यह बहुत कम संभावना है कि पार्टी के अनुभवी कैडर शी जिनपिंग को हटाने के लिए अपना समर्थन देंगे। न ही रिपोर्टों से पता चलता है कि हाल ही में हुई बेइदाई बैठक में शी जिनपिंग की आलोचना की गई थी।

यदि जन असंतोष बढ़ता है, तो शी जिनपिंग सुरक्षा तंत्र पर अपनी पहले से ही भारी निर्भरता को तेजी से बढ़ाएंगे। पीएलए और पीपुल्स आर्म्ड पुलिस फोर्स (पीएपीएफ) सहित सुरक्षातंत्र स्पष्ट रूप से प्रभावी हो जाएगा। पीएलए की सीसीपी और शी जिनपिंग के प्रति आज्ञाकारिता और वफादारी को पहले से ही लगातार जारी वैचारिक अभियानों और राजनीतिक विश्वसनीयता पर जोर देने के माध्यम से निरंतर मजबूत किया जा रहा है और उसे जांचा-परखा जा रहा है। शी जिनपिंग पेइचिंग के बाहर की यात्रा के दौरान भी उस क्षेत्र के पीएलए प्रतिष्ठानों का दौरा करने और सैन्यकर्मियों से बात करने के लिए एक मौका चुनते हैं। पहले के इनकार के बावजूद, पार्टी शताब्दी समारोह के दौरान पीएलए को एक भूमिका दी गई थी। पार्टी के शताब्दी वर्ष से ठीक पहले पीएलए के सेवानिवृत्त पूर्व सैनिकों के लिए एवं सेवारत सैन्यकर्मियों के परिवारों के लिए अतिरिक्त भत्तों की घोषणा की गई। सुरक्षा बलों पर बढ़ती निर्भरता सीसीपी केंद्रीय समिति या पोलित ब्यूरो में बड़ी संख्या में उनके शामिल होने को देख सकती है।

यह बहुत कुछ अमेरिका और चीन के पड़ोसियों के रवैये पर निर्भर करता है। यह बहुत कम संभावना है कि भारत, जापान, वियतनाम और, शायद इंडोनेशिया, आसानी से चीनी प्रभुत्व के आगे झुक जाएंगे। अमेरिका और यूरोप ने भी अंततः यह देखना शुरू कर दिया है कि चीन एशिया, या इंडो-पैसिफिक के प्रभुत्व को विश्व की अग्रणी शक्ति बनने की सीढ़ी के रूप में देखता है। अमेरिका के लिए दांव ऊंचे हैं क्योंकि पेइचिंग ने खुले तौर पर एकमात्र महाशक्ति के रूप में वाशिंगटन की स्थिति को चुनौती दी है। जब तक अमेरिका चीन के साथ समझौता नहीं करना चाहता और अपनी स्थिति से नहीं लौटता, चीन के पड़ोसी अगले 30 साल तक किसी मुश्किल की आशंका कर सकते हैं। यदि, जैसी कि संभावना है, अमेरिका-चीन संबंध आगे भी बिगड़ते रहे और वाशिंगटन लगातार पेइचिंग पर दबाव बनाए रखता है, तो चीन का अभ्युदय पटरी से उतर जाएगा। इसलिए अगले 10 साल वैश्विक भू-राजनीति में महत्त्वपूर्ण होंगे।

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
Image source: https://www.globaltimes.cn/Portals/0//attachment/2019/2019-11-07/f9314556-4e88-4f5e-902e-e033a58cc870.jpeg

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