मालदीव की संयुक्त राष्ट्रसंघ आम सभा की अध्यक्षता: भारत के लिए संभावनाएं
Dr Cchavi Vasisht, Research Associate, VIF

मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह ने 21 सितंबर 2021 संयुक्त राष्ट्र आम सभा में अपना पहला भाषण दिया। उन्होंने अपना भाषण मालदीव की आधिकारिक भाषा धिवेही में दिया और इसमें देश की समृद्ध संस्कृति और विरासत पर प्रकाश डाला। सोलिह ने मालदीव के 1965 में स्वतंत्र होने के मात्र 26 दिनों बाद संयुक्त राष्ट्र में शामिल होने की यात्रा को याद करते हुए कहा कि उनका देश तब इस बात को लेकर संशय में था कि एक छोटा सा राष्ट्र मालदीव संयुक्त राष्ट्र के महत्तर लक्ष्यों और उद्देश्यों में प्रभावी रूप से कैसे अपना योगदान दे सकता है।

हालांकि, संयुक्त राष्ट्र के साथ वर्षों के अपने जुड़ाव के साथ, मालदीव ने खुद को बेहतर रूप में साबित किया है और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए बहुपक्षवाद के मानदंडों को बरकरार रखा है; उदाहरण के लिए, इसके द्वारा 1989 में "समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी पर छोटे राज्यों के सम्मेलन" की मेजबानी, और इसी तरह की अनेक कवायदें की हैं। अब्दुल्ला यमीन (2013-18) के संक्षिप्त कार्यकाल के अलावा, मालदीव ने संगठन के बहुआयामी बनाने में सक्रिय भूमिका निभायी है।

यमीन के शासनकाल में, मालदीव ने राष्ट्रमंडल (कॉमनवेल्थ) से अपनी सदस्यता वापल ले ली और 2018 में एशिया-प्रशांत महासागर के क्षेत्र से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक अस्थायी सदस्यता की कोशिश से वंचित हो गया था। इसके बाद, सोलिह के शासनकाल में, मालदीव फिर से राष्ट्रमंडल का सदस्य बन गया है।

सोलिह ने कहा कि "इन कठिन समय में आशा एक अत्यधिक वांछनीय वस्तु है" और इसके साथ ही, अधिकारों और दृढ़ संकल्प, न्याय और स्थिरता के लक्ष्यों को पाने की उम्मीद जताई। इसके पहले, मालदीव के विदेश मंत्री शाहिद ने अप्रैल 2021 में अपने ए प्रेसिडेंसी ऑफ होपः डिलवरिंग फॉर पीपुल, प्लानेट एंड प्रॉस्पिरिटी शीर्षक से एक विजन वक्तव्य दिया था। शाहिद ने अपने भाषण में "आशा की पांच किरणों" के नाम से एक थीम पेश की। ये पांच किरणें हैं-"कोविड19 से उबरना, स्थायी रूप से पुनर्निर्माण, पृथ्वी की तकाजों को पूरी करना, सभी के अधिकारों का सम्मान करना और संयुक्त राष्ट्र में अपेक्षित सुधार करना"।

भारत के लिए संभावना

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव यात्रा के बाद से, भारत-मालदीव संबंधों को एक महत्त्वपूर्ण बढ़ावा मिला है। इसके बाद मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह भी 2018 में भारत दौरे पर आए थे। मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद की संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति के साथ भारत के लिए आगे की संभावनाओं पर गौर करना आवश्यक है।

संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में यह पहली बार है, जब मालदीव उसका अध्यक्ष पद संभाल रहा है। शाहिद की उम्मीदवारी की घोषणा के तुरंत बाद, भारत उन्हें अपना समर्थन देने वाला पहला देश था। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के अध्यक्ष पद की अपनी भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है, क्योंकि अध्यक्ष ही महासभा में विचार के विषयों को तय करता है, और महत्त्व के मामलों पर अपना बयान जारी करता है। ऐसे में यह ऐहतियात जरूरी है कि ये विषय और बयान भारत के खिलाफ न हों, जैसा कि अतीत में कुछ मामलों में दिया गया है।

ऐसी आशा है कि इस वर्ष के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में मालदीव की अध्यक्षता भारत के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करेगी, जो भारत की सुरक्षा और अन्य हितों को संबोधित करती है। मालदीव के विदेश मंत्री ने भी 22-24 जुलाई 2021 को भारत का दौरा किया था। उन्होंने भारत के साथ संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष के रूप में अपनी प्राथमिकताओं पर चर्चा की और इनको हासिल करने में भारत से सहयोग की मांग की। मंत्री शाहिद ने भारतीय पीएम मोदी द्वारा यूएनजीए के 75वें सत्र में "सुधारित बहुपक्षवाद" की अवधारणा को दोहराया। भारत मालदीव के लिए एक प्राथमिकता है और यह तब दिखाई देता है, जब एफएम शाहिद ने अपने कार्यकाल के लिए अध्यक्ष-कार्यालय के शेफ-डी-कैबिनेट-नामित के रूप में संयुक्त राष्ट्र के भारतीय राजदूत नागराज नायडू को उप स्थायी प्रतिनिधि नियुक्त किया।

भारत के लिए प्रमुख प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में से एक आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी प्रतिक्रिया बनाना है, जिसे मालदीव के राष्ट्रपति ने भी अपने भाषण के दौरान अपने प्रमुख लक्ष्यों में से एक के रूप में उजागर किया। उन्होंने "आतंकवाद के पागलपन" और दुनिया के देशों को इसके खिलाफ लड़ने की आवश्यकता के बारे में बात की। यह भी कहा कि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई उनके अध्यक्ष पद की प्राथमिकताओं में से एक है। यहां यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत देश के भीतर अपना अभियान शुरू करने के 48 घंटों के भीतर चिकित्सा सहायता भेजने वाले और टीकों की आपूर्ति करने वाले पहले देशों में से एक था। मालदीव के राष्ट्रपति ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर भी चिंता जताई।

मालदीव संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का भी समर्थन करता है। हालांकि, सोशल मीडिया साइटों पर 'इंडिया आउट' अभियान के फिर से प्रारंभ होने ने भारत के लिए मालदीव की भावनाओं के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं;यद्पि, राजनीतिक नेतृत्व द्वारा ऊपर उल्लिखित विभिन्न घटनाओं में किया गया समर्थन स्पष्ट है। यामीन के शासन के दौरान मालदीव सरकार के अंतरराष्ट्रीय संबंध निचले स्तर पर चला गया था। हालांकि सोलिह सरकार ने भारत के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित करने के लिए अपेक्षित सक्रिय प्रयास किए हैं और भारत की "पड़ोस पहले" नीति के साथ अपनी नीति को "भारत पहले" के साथ सक्रिय रूप से बदला है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूएनजीए के 76वें सत्र को संबोधित करने के क्रम में मालदीव के राष्ट्रपति द्वारा संबोधित प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की भी पहचान की। पीएम मोदी ने कहा कि "आतंकवाद को एक राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने वालों पर इसका उल्टा असर पड़ेगा"। दशकों से लंबित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों को गति देने के लिए पीएम मोदी ने भी आवाज उठाई। उन्होंने लोकतंत्र के मानदंडों का भी समर्थन किया और यह कहकर अपने विश्वास की पुष्टि की कि "लोकतंत्र नतीजे दे सकता है, लोकतंत्र ने परिणाम दिया है"।

पीएम मोदी ने महासागर प्रणालियों के संरक्षण के लिए भी चिंता जताई क्योंकि वे व्यापार के लिए जीवन रेखा के रूप में काम करती हैं, और दुनिया के देशों को जलवायु परिवर्तन की परेशानियों से लड़ने और एसडीजी-17(सतत विकास लक्ष्य) के तहत वैश्विक भागीदारी बनाने की आवश्यकता जताई। अंत में, वह सबसे तात्कालिक चुनौती जिसका सामना दुनिया के देश कर रहे हैं, वह कोविड-19 है, जिसका समाधान अवश्य किया जाना चाहिए। भारत चिकित्सा सहायता और टीकों के साथ पीड़ित देशों का समर्थन करने में सबसे अग्रणी रहा है, और जल्द ही टीकों की आपूर्ति फिर से शुरू करेगा।

संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता और प्रभावशीलता के बारे में उठाए जा रहे सवालों के बावजूद, इसे दुनिया की दो-तिहाई से अधिक आबादी (प्यू रिसर्च पोल) द्वारा अनुकूल रूप से देखा जा रहा है। हालांकि, आने वाला वर्ष कोविड-19 के संक्रमण के फिर से उभरने, अफगानिस्तान और म्यांमार में राजनीतिक अस्थिरता, और क्षेत्रीय एवं बहुपक्षीय राजनीति के विभाजन, चीन के उदय तथा अमेरिकी-चीनी प्रतिद्वंद्विता के उभार; आदि मालदीव की "अध्यक्षता की आशा" के विविध चुनौतियों से घिरे-भरे होने की संभावना है।

संदर्भ

Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
Image Source: https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Maldives_flag_300.png

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