सीमा प्रबंधन: चुनौतियां और अवसर
Arvind Gupta, Director, VIF

(यह निम्नलिखित आलेख 26 अक्टूबर 2021 को सुरक्षा और नीति पहल (एसएपीआइ/सापी) सम्मेलन में वाइईएफ के निदेशक द्वारा दिए गए मुख्य भाषण का अद्यतन संस्करण है।)

सीमावर्त्ती क्षेत्र विविध प्रभावों के अधीन हैं। किसी देश की परिधि अत्यंत संवेदनशील होती है। हमें उन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। ऐसा करने में चूक का नतीजा देश की सुरक्षा और समृद्धि के लिए गंभीर हो सकता है।

एक व्यवस्थित, शांतिपूर्ण, अपेक्षाकृत खुली सीमा-व्यवस्था सुरक्षा और समृद्धि के स्रोत हैं। यही कारण है कि दुनिया के कई क्षेत्रों में व्यापार और मानव यातायात के लिए सीमाओं को अपेक्षाकृत खुली और मुक्त रखने का प्रयास किया जाता है। सीमाएं पड़ोसियों को परिभाषित करती हैं और उनके साथ संबंधों को प्रभावित करती हैं।

भारत एक सभ्यतापरक राज्य है। इसके सांस्कृतिक पदचिह्न इसकी सीमाओं से बहुत आगे तक जाते हैं। दुर्भाग्य से, भारत के विभाजन के साथ, जो आकार बना, उसने भारत को भौगोलिक रूप से छोटा कर दिया। हालांकि खींची गई सीमाएं बनावटी और अराजक थीं। पाकिस्तान को दो-राष्ट्र सिद्धांत के एक खतरनाक आधार पर और इससे उत्पन्न भारी हिंसा के बाद बनाया गया था। इसलिए भारत-पाकिस्तान सीमा की विरासत आज भी जटिल एवं रक्तरंजित बनी हुई है।

तिब्बत के साथ, भारत के काफी पहले से सभ्यतागत संबंध थे। शायद इस लिहाजन भी, दोनों के बीच कोई सीमांकित सीमाएं नहीं थीं। लोग और विचार आसानी से सीमाओं को पार कर एक दूसरे मेलजोल करते थे। दोनों में सीमाओं की बजाय, प्रभाव के अपने कई क्षेत्र थे। लेकिन तिब्बत पर चीन के कब्जा करने के साथ ही इतिहास में पहली बार हमारे एवं तिब्बत के बीच में चीन के साथ एक सीमा-रेखा खींच गई। पर वह सीमा अभी भी अस्थिर है और निकट भविष्य में इसके ऐसे ही बने रहने की संभावना है।

सीमाओं की प्रकृति बदल रही है। जनसंख्या परिवर्तन, भू-भाग में परिवर्तन और आर्थिक विकास सब मिल कर सीमावर्त्ती क्षेत्रों की प्रकृति को प्रभावित करते हैं। वैश्वीकरण का भी तकाजा है कि सीमा पार की आवाजाही आसान बने। फिर भी, नागरिकों के अवैध पलायन और कोरोना की समस्या के चलते सीमा नियंत्रण के नियम सख्त होते जा रहे हैं।

सीमा-प्रबंधन एवं उसकी सुरक्षा के मामले में कोरा गप्प कोई मदद नहीं करता है। आज की वास्तविकता को देखते हुए हमें अपनी सीमाओं का प्रबंधन करना होगा।

भारतीय सीमाएं

भारत के पास सीमा प्रबंधन की समस्या बहुआयामी है। इसकी लंबी सीमा है। इसकी भूमि सीमा एवं तटीय सीमा क्रमशः 15000 किमी और 7500 किमी है। भारत के 16 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में 119 सीमावर्ती जिलों के 456 ब्लॉक अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगे हुए हैं। कई भारतीय राज्यों में लंबे तट हैं। भूमि सीमाओं का प्रबंधन तटीय और नदी की सीमाओं के प्रबंधन से बहुत अलग है।

भारतीय संदर्भ में, इसकी कुछ विशेषताएं हैं।

  • भारत की सीमा बांग्लादेश के साथ 4096 किलोमीटर, पाकिस्तान के साथ 3323 किलोमीटर, चीन के साथ 3488 किलोमीटर, नेपाल के साथ 1751 किलोमीटर, भूटान के साथ 699 किलोमीटर और म्यांमार के साथ 1643 किलोमीटर है।
  • पड़ोसी अक्सर शत्रुतापूर्ण हो जाते हैं।
  • सीमाई इलाके विविध और कठिन हैं।
    सीमावर्त्ती क्षेत्र अविकसित हैं।
  • देश के भीतरी इलाकों और अन्य देशों के साथ कनेक्टिविटी खराब है।
  • सीमावर्त्ती आबादी खुद को असुरक्षित महसूस करती है।
  • दूरदराज के इलाकों में सीमावर्त्ती इलाके आबादी रहित होते जा रहे हैं।
  • अवैध पलायन, इलाके के जनसांख्यिकीय अनुपात को बदलते हैं, वे एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं।
  • प्रतिबंधित सामग्री, हथियार और गोला-बारूद आदि की तस्करी बड़े पैमाने पर होती है।

सीमा सुरक्षा बलों को सीमा के समुचित प्रबंधन के लिए अपेक्षित सामग्री और वित्तीय संसाधनों, प्रशिक्षण और कौशल की आवश्यकता होती है।

सीमा प्रबंधन के लिए एक समग्र रणनीति और बहु-हितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। करगिल संघर्ष के मद्देनजर, सरकार ने देश में राष्ट्रीय प्रबंधन प्रणाली की समीक्षा के लिए चार टास्क फोर्स का गठन किया था। इनमें से एक सीमा प्रबंधन पर भी था। यह पहली बार था जब हमने राष्ट्रीय सुरक्षा प्रबंधन के हिस्से के रूप में सीमाओं को समग्र रूप में देखा था। इस टास्क फोर्स की दी गई सिफारिशों को मंत्रियों के एक समूह द्वारा स्वीकार किया गया था।

केंद्रीय गृह मंत्रालय में सीमा प्रबंधन विभाग (DBM) स्थापित किया गया था। यह डीबीएम देश में सीमा प्रबंधन प्रयासों का नेतृत्व कर रहा है। इसके द्वारा किए गए कुछ कार्य हैं: सीमा सुरक्षा बुनियादी ढांचे का निर्माण, व्यापार और लोगों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए एकीकृत चेक पोस्ट का निर्माण, तथा सीमावर्ती क्षेत्रों का सामाजिक-आर्थिक विकास। गृह मंत्रालय सीमा सुरक्षा बलों को सुसज्जित और प्रशिक्षित भी करता है।सीमा सुरक्षा बलों की तैनाती को कारगर बनाने के लिए एक सीमा एक बल के सिद्धांत को स्वीकार किया गया है।

सीमा सुरक्षा प्रबंधन में केंद्र और राज्य एजेंसियों के बीच घनिष्ठ समन्वय आवश्यक है। पर अक्सर ऐसा नहीं होता है। चूंकि भूमि राज्य का विषय है। इसलिए बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए, भूमि एवं पर्यावरण मंजूरी की एवं कई अन्य अनुमोदनों की आवश्यकता होती है। लेकिन केंद्र-राज्य संबंधों की जटिलता सीमा प्रबंधन को और अधिक कठिन बना देती है। वे सीमावर्ती क्षेत्रों में केंद्रीय एजेंसियों की मौजूदगी को अस्वीकृति के साथ देखते हैं।

भारत ने पिछले तीन दशकों में बाड़ और संबद्ध बुनियादी ढांचे के निर्माण में बहुत सारे संसाधन खर्च किए हैं। इसने सीमाओं की रक्षा और प्रबंधन के लिए सीमा सुरक्षा बलों की क्षमताओं का भी निर्माण किया है। घुसपैठ की जांच, तस्करी को कम करने, प्रतिबंधित पदार्थों पर अंकुश लगाने आदि पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

गृहमंत्रालय ने सीमा सुरक्षा बलों-बीएसएफ, आइटीबीपी, एसएसबी, एआर, कॉस्ट गार्ड को भी पेशेवर बनाया है। अक्सर अन्य विभाग जैसे विदेश मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय, रेलवे आदि भी इस अभ्यास में शामिल होते हैं।

फिर भी समस्याएं जस की तस हैं।

ऐसा लगता है कि गृहमंत्रालय का दृष्टिकोण सुविधा सुलभ कराने की बजाय अंकुश लगाने और विनियमित करने का है। हालांकि सीमा क्षेत्र की आबादी को विश्वास में लेना और स्थानीय आबादी में सरकार की नीतियों के प्रति विश्वास पैदा करना बहुत महत्त्वपूर्ण है।

सीमावर्त्ती क्षेत्रों को अधिक संपर्क और अधिक सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों की आवश्यकता है। वे जहां रहते हैं, वहीं रहने के लिए उन्हें अधिक सुरक्षा और ऐसे ही अधिक कारणों को सुलभ किए जाने की आवश्यकता है।
सीमावर्त्ती क्षेत्रों से अवैध घुसपैठ अत्यधिक अस्थिर करने वाला कारक हो सकता है। सीमा प्रबंधन की जिम्मेदार संस्थाओं को इसे ध्यान में रखना चाहिए।

इसमें अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी आवश्यक है। बीएसएफ और बीजीबी के बीच बेहतर समन्वय के कारण भारत-बांग्लादेश सीमा अब स्थिर हो गई है।

भारत का पूर्वोत्तर आसियान का प्रवेश द्वार है, जो अपेक्षाकृत समृद्ध क्षेत्र है। भारत आसियान के साथ अपने संबंध-संपर्क में सुधार के लिए प्रतिबद्ध है। आसियान को भारत के माध्यम से एशिया से जोड़ने का विजन प्रशंसनीय है लेकिन इसमें कई समस्याएं हैं। प्रमुख मुद्दा कनेक्टिविटी और क्षेत्र की विकास क्षमता का है। दूसरा मुद्दा उत्तर-पूर्व में विकास की सापेक्ष कमी का होना है। ऐसी आशंका है कि म्यांमार के साथ भारत की सीमाएं खोलने से हमारा पूर्वोत्तर चीनी सामानों से भर जाएगा। समस्या यह है कि यह पहले से ही अवैध तरीकों से हो रहा है।

असुरक्षित सीमाओं के चलते पूर्वोत्तर में ड्रग्स, हथियार और अन्य प्रतिबंधित पदार्थ आते रहते हैं। म्यांमार के साथ लगी हमारी सीमा झरझरी है और यह म्यांमार की तरफ से होने वाले उग्रवाद से पीड़ित है। यह स्थिति सीमा प्रबंधन को और अधिक कठिन बना देती है।

पूर्वोत्तर की पूरी क्षमता का दोहन किया जा सकता है, बशर्ते सीमा व्यापार आदि जैसी अनुशासित गतिविधियों को सुगम बनाया जाए और कनेक्टिविटी स्थापित की जाए। पूर्वोत्तर के क्षेत्रों को आसियान के साथ जोड़ा जा सकता है।

तटीय सीमाएं

तटीय सीमाओं का प्रबंधन पूरी तरह से एक अलग पैमाने की समस्या है। मुंबई आतंकवादी हमलों ने तटीय निगरानी को मजबूत करने की आवश्यकता को महूसस कराया है। तटरक्षक बल प्रादेशिक समुद्र में गश्त करते हैं जबकि नौसेना उच्च समुद्र में काम करती है।

समुद्री मार्गों का उपयोग लोगों, हथियारों, नशीली दवाओं और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी के लिए किया जाता है। हालांकि भारत ने समुद्री तटों की निगरानी में सुधार करने में कुछ प्रगति की है, लेकिन कुल सफलता हासिल करना अभी मुश्किल है। बड़ी सीमाओं के प्रबंधन में प्रौद्योगिकी का उपयोग अनिवार्य हो जाता है, चाहे वह भूमि पर हो या समुद्र या नदियों पर; विशेष रूप से जीपीएस में, उपग्रह निगरानी महत्त्वपूर्ण हो जाती है।

लाखों नावें और जहाज भारतीय समुद्रों से होकर गुजरते हैं। उनकी निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग के आधार पर एक समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। भारतीय नौसेना ने समुद्री क्षेत्र के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए व्हाइट शिपिंग और तटीय निगरानी रडार के लिए एक संलयन केंद्र स्थापित किया है।

सरकार तटीय सुरक्षा से निपटने के लिए एक समुद्री आयोग गठित करने पर विचार कर रही है। इससे समस्या पर आवश्यक ध्यान देने में मदद मिलेगी, उसके समन्वय में सुधार होगा और विभिन्न परियोजनाओं की निगरानी में मदद मिलेगी।

इसके साथ ही, तटीय पुलिस को मजबूत करने की जरूरत है। द्वीप क्षेत्रों की समस्याओं पर विशेष ध्यान देने और दृष्टिकोण की आवश्यकता है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह अत्यधिक रणनीतिक क्षेत्र होने के साथ-साथ पारिस्थितिकी रूप से नाजुक भी हैं। हमें इन द्वीपों के विकास के लिए विशेष नीतियों की आवश्यकता है। लक्षद्वीप द्वीप समूह के बारे में भी यही कहा जा सकता है।

दक्षिण एशिया दुनिया का सबसे कम एकीकृत क्षेत्र है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि इस क्षेत्र के लोगों के बीच स्वाभाविक समानताएं हैं। लेकिन आधिपत्य में अस्थिरता ने एकीकरण को प्रभावित किया है।

भारत के पास साउथ एशिया को एक संपूर्ण अर्थव्यवस्था में एकीकृत करने का दृष्टिकोण है। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क), दि वे ऑफ बंगाल मल्टी-सेक्टोरल टेक्नीकल एंड इकोनॉमिक को-आपरेशन (बिम्सटेक में बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका, थाइलैंड, म्यांमार, नेपाल एवं भूटान शामिल हैं।) और बीबीआइएन जैसे बहु-देशीय संगठन उस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए कनेक्टिविटी और अपेक्षाकृत मुक्त आवाजाही सुनिश्चित करने की आवश्यकता होगी।

सीमा प्रबंधन की चुनौती यह है कि यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि हमारी सीमाएं सुरक्षित हैं और फिर भी वे सुलभ हैं।

डीबीएम जैसे दृष्टिकोण समस्या के एक पहलू को देखते हैं लेकिन दूसरे को नहीं। इस खातिर हमें एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

सीमा प्रबंधन की कुंजी जन-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना और उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा में भागीदार बनाना है। इस काम में पड़ोसियों से भी अच्छा सहयोग जरूरी है।

इसके अलावा, हमें बेहतर सीमा प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों, आइटी और बुनियादी ढांचे के निर्माण के आधुनिक तरीकों का उपयोग करना चाहिए।

अच्छी सीमा प्रबंधन नीतियों को विकसित करने में, हमें यह भी पता होना चाहिए कि सीमा प्रबंधन नीतियों को बनाने और लागू करने में, राज्यों को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपने दायित्वों का पालन करना होगा। मानवाधिकार सम्मेलन, अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून पर जिनेवा सम्मेलन, विश्व व्यापार संगठन दोहा विकास एजेंडा और अदीस अबाबा कार्य योजना, अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध और प्रोटोकॉल के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आतंकवाद विरोधी रणनीति और संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य सभी प्रासंगिक हैं।

मैं यहां अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन, संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी द्वारा प्रकाशित एक लेख का एक उद्धरण आपके सामने रखता हूं:

"अच्छे सीमा प्रबंधन...एक दोहरे उद्देश्य की पूर्ति करता है, सीमा पार गतिविधियों को सुविधाजनक बनाने और सुरक्षा बनाए रखने, दोनों में ही राज्यों के हितों को संतुलित करने में मदद करता है। इस संतुलन को प्राप्त करना, सीमा प्रबंधन-नीतियों और कार्य के चार क्षेत्रों पर केंद्रित हस्तक्षेपों पर निर्भर करता है:1) पहचान प्रबंधन, 2) सीमा प्रबंधन सूचना प्रणाली (बीएमआइएस), 3) एकीकृत सीमा प्रबंधन (आइबीएम), और 4) मानवीय सीमा प्रबंधन (एचबीएम)।"

(https://www.iom.int/sites/g/files/tmzbdl486/files/our_work/ODG/GCM/IOM-Thematic-Paper-Border-Management.pdf)

भारत एक मजबूत और संतुलित सीमा प्रबंधन प्रणाली विकसित करने की प्रक्रिया में है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के साथ सीमा-पार आवाजाही को संतुलित करती है। हमें अच्छे बेधक प्रबंधन प्रथाओं का अध्ययन करने और उनका विकास करने की आवश्यकता है।

सीमा प्रबंधन दृष्टिकोण अभी खंडित और अलग-थलग है। शायद सीमा प्रबंधन के लिए हमें एक उच्च-स्तरीय सीमा प्रबंधन आयोग की आवश्यकता है, जो इस बारे में एक संपूर्ण सरकारी दृष्टिकोण को विकसित करे।

सीमा प्रबंधन केवल सीमा पर सुरक्षा बलों की तैनाती नहीं कर रहा है। हमें मुद्दों पर और गहराई से सोचने की जरूरत है। मुझे खुशी है कि श्री प्रदीप गुप्ता और तीन अत्यधिक अनुभवी सह-संस्थापकों द्वारा स्थापित सुरक्षा और नीति पहल (एसएपीआइ/सापी), प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सीमा प्रबंधन के मुद्दों को करीब से देखा जा रहा है। आत्मानिर्भर भारत के निर्माण में ये मुद्दे बहुत प्रासंगिक हैं। एक अद्वितीय थिंक टैंक के रूप में, सापी इन मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने, अत्याधुनिक शोध-अनुसंधान करने और सीमा प्रबंधन के लिए बहु-हितधारक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए नए विचार उत्पन्न करने में सक्षम होगा।

परिशिष्ट

सीमा प्रबंधन विभाग, गृह मंत्रालय, सीमा प्रबंधन के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण के हिस्से के रूप में राज्य सरकारों के माध्यम से सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम (बीएडीपी) लागू कर रहा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास स्थित दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की विशेष विकास आवश्यकताओं को पूरी करना और केंद्रीय/ राज्य/ बीएडीपी/स्थानीय योजनाओं के अभिसरण और भागीदारी दृष्टिकोण के माध्यम से आवश्यक बुनियादी ढांचे के साथ सीमावर्त्ती क्षेत्रों को संतृप्त करना है।

सातवीं पंचवर्षीय योजना में बीएडीपी की शुरुआत पश्चिमी क्षेत्र के सीमावर्त्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास और सीमावर्त्ती आबादी के बीच सुरक्षा की भावना को बढ़ावा देने के माध्यम से सीमावर्त्ती क्षेत्रों के संतुलित विकास को सुनिश्चित करने के लिए की गई थी। वर्तमान में इस कार्यक्रम के तहत 16 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों के 119 सीमावर्ती जिलों के 456 ब्लॉक अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर (यूटी), लद्दाख (यूटी), मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगे हुए हैं। इस कार्यक्रम के तहत सीमा से सटे इलाकों को प्राथमिकता दी जाती है।

बीएडीपी एक तरफ सामाजिक-आर्थिक बुनियादी ढांचे में अंतर को पाटने और दूसरी ओर, सीमावर्त्ती क्षेत्रों में सुरक्षा-वातावरण में सुधार करने के लिए पूरक राज्य योजना निधि द्वारा सीमावर्त्ती क्षेत्रों के विकास के लिए केंद्र सरकार का एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप है।


Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
Image Source: https://lotusarise.com/indian-geographical-extent-and-frontiers-upsc/

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