शी जिनपिंग का तिब्बत दौरा अहम,भारत के लिए इसके खास मायने
Jayadeva Ranade

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग बिना किसी पूर्व घोषणा के ही तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र (टार) के दो दिवसीय दौरे (21-23 जुलाई) की शुरुआत में 21 जुलाई को न्यिंगची के मेनलिंग हवाईअड्डे पर पहुंचे। उनका यह दौरा तिब्बत के “शांतिपूर्ण तरीके से स्वतंत्रता” की 70 वीं वर्षगांठ के थोड़ा पहले भी किया गया था। इसलिए यह दौरा महत्वपूर्ण है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के इस दौरे में जातीय एकता, टार के जातीय स्कूलों में मंदारिन को प्राथमिक भाषा के रूप में बढ़ावा देने और चीन की मूलभूत विशेषताओं के साथ तिब्बती बौद्ध धर्म को समाजवाद से जोड़ने तथा अलगाववाद को रोकने के मुद्दे पर बल दिया गया था। यह दौरा चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को भारत के साथ लगी सीमा पर तैनात करने के लिए उत्साहित करेगा और यह दलाई लामा की उनके 85वें जन्मदिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दी गई शुभकामनाओं की प्रतिक्रिया में उठाया गया कदम भी हो सकता है। यह पीएलए द्वारा लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर नई पहल को भी प्रेरित कर सकता है।

शी जिनपिंग का न्यिंगची पहुंचने की खबर को काफी गोपनीय रखी गई थी। इसका खुलासा तभी किया गया, जब वह 21 जुलाई को न्यिंगची पहुंच गए। संभवत: यह गोपनीयता इसलिए बरती गई थी कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दौरे के दौरान तिब्बतियों की तरफ से किसी तरह का विरोध प्रदर्शन न हो जिससे कि राष्ट्रपति को शर्मिंदगी झेलनी पड़े। इसीलिए इसके पहले टार के नेताओं द्वारा अलगाववादी तत्वों और “दोमुंहे कार्यकर्ताओं” के विरुद्ध दी जाने वाली चेतावनियों में सहसा वृद्धि देखी गई थी। निजी तौर पर रिकॉर्ड किए गए वीडियो की क्लिपिंग से जाहिर हुआ शी जिनपिंग के इर्द-गिर्द सादे लिबास में सुरक्षाकर्मियों का बड़ा सख्त घेराव था। शी जैसे ही बारखोर स्ट्रीट में भीड़ का अभिवादन करने अपने वाहन से उतरे तो सुरक्षाकर्मियों की पेशानी पर तनाव साफ दिखाई दे रहा था। वीडियो क्लिप से यह भी जाहिर हुआ कि शी जिनपिंग के दौरे में सुरक्षाकर्मियों, पार्टी सदस्यों और समर्थक लोगों का बड़ा हिस्सा भीड़ में शामिल था। ल्हासा में भीड़ का अधिकांश हिस्सा जातीय हान समुदायों का था जबकि न्यिंगची में कई सारे तिब्बतियों और अन्य अल्पसंख्यक जातीय राष्ट्रवादी समूहों के लोग शामिल थे। बारकोड स्ट्रीट को आम जनता के लिए 22 जुलाई को बंद रखा गया था। अब इस बात के संकेत है कि शी जिनपिंग के दौरे की योजना हफ्तों पहले बना ली गई थी। तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग स्कूल के तीन सबसे बड़े मठों में से एक डेपुंग मठ ने बौद्ध संन्यासियों एवं नन के लिए 21 जून को ही एक "विशेष परामर्श सत्र" का आयोजन किया था। पोटाला पैलेस में 22 जुलाई को ही घोषणा कर दी थी कि यह मठ 22 जुलाई को आम जनता के लिए बंद रखा जाएगा क्योंकि इसकी “दीवारें के और बिजली के तार का निरीक्षण” किया जा रहा है, इस काम के पूरा होते ही, 23 जुलाई को फिर से इसे आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा।

चाइना की सरकारी न्यूज़ एजेंसी शिन्हुआ ने 23 जुलाई को शी के इस दौरे की खबर प्रकाशित की थी। जाहिर है कि चीन ने अपने राष्ट्रपति के तिब्बत दौरे के महत्व को कम करके उजागर किया था जबकि उनके साथ तीन पोलित ब्यूरो के सदस्य सहित अनेक उच्च स्तरीय अधिकारी भी आए थे। इन वरिष्ठ अधिकारियों में डिंग जुएक्सियांग, लियू हे, यांग शियाओडु, जनरल झांग यूक्सिया, चेन शी और हे लिफेंग शामिल थे। यह सूची ही शी के दौरे के एजेंडा और उसके मकसद को भली भांति उजागर कर देती है।

भारत के लिए शी की इस यात्रा के खास मायने है। शी का तिब्बत दौरा ऐसे समय में हुआ है, जब भारत और चीन के बीच सैन्य तनाव-फिलहाल लद्दाख क्षेत्र में-अपने शीर्ष पर है। शी जिनपिंग का टार का दौरा न्यिंगची से शुरू करने का निर्णय बेहद खास है क्योंकि यह इलाका भारत के अरुणाचल प्रदेश के ठीक सामने पड़ता है। चीन का अधिकारिका नक्शा भारत के अरुणाचल प्रदेश के अधिकतर भूभाग को अपनी सीमा में शामिल करता है। शी जिनपिंग का यह दौरा दुशांबे में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) सम्मेलन के दौरान 6 जुलाई को भारतीय और चीनी विदेश मंत्रियों की बातचीत के ठीक बाद हुआ है, जहां चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने दोनों देशों के बीच उत्पन्न मौजूदा गतिरोध के लिए भारत को ही जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि पीएलए अप्रैल 2020 की यथास्थिति को पुनः बहाल नहीं करेगी। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत-चीन संबंधों और भारत की सीमा की स्थिति पर कोई टिप्पणी नहीं की है और न ही सार्वजनिक रूप से यह कहा है कि सीसीपी सेंट्रल कमिटी (सीसी) के पोलित ब्यूरो या पोलित ब्यूरो स्टैंडिंग कमिटी के समक्ष इस विषय को एजेंडे के रूप में रखा गया है।

शी जिनपिंग इसके पहले भी दो बार टार के दौरे पर आ चुके हैं और हर बार इसकी शुरुआत न्यिंगची से की है। यह इसकी महत्ता को दिखाता है और यह भी कि वे इस प्रांत से निजी तौर पर जुड़े रहे हैं। यह इस संदर्भ में प्रासंगिक है कि शी जिनपिंग लगातार चीनी राष्ट्र के “महान कायाकल्प” का आह्वान करते रहे हैं। वह शत्रु विदेशी ताकतों द्वारा गलत तरीके से थोपी गई असमान संधियों में हड़प लिए गए भूभागों पर अपना दावा जताते रहे हैं। शी जिनपिंग की पहली तिब्बत यात्रा 1998 में हुई थी, तब वे फुजियान के पार्टी सेक्रेटरी के रूप में वहां निरीक्षण करने गए थे और फिर फुजियान के सहयोग से चलाए जाने वाले कार्यक्रम ‘ऐड तिब्बत’ के बारे में वहां बताया था। उस समय उनका दौरा न्यिंगची तक ही सीमित था। दूसरी बार, शी जिनपिंग ने जुलाई 2011 में “तिब्बत की शांतिपूर्ण स्वतंत्रता” की 60 वीं वर्षगांठ के मौके पर चीन के उपराष्ट्रपति के रूप में टार का दौरा किया था। उस समय भी उन्होंने अपने दौरे की शुरुआत न्यिंगची से की थी और बाद में वे शिगात्से तथा ल्हासा भी गए थे।

कुछ अन्य कारक भी हैं, जो न्यिंगची के दौरे के महत्व को रेखांकित करते हैं। न्यिंगची का सैन्य महत्त्व है और पीएलए की कई यूनिटें, मिलिशिया, बॉर्डर डिफेंस रेजिंमेंट एवं मिसाइलों का बेस भी वहां हैं। उस क्षेत्र में हाल ही में चीनी सैन्य गतिविधियों में इजाफा हुआ है। न्यिंगची एक प्रवेश द्वार भी है, जिस होकर सामरिक महत्त्व का रेलवे सिचुआन प्रांत की राजधानी चेंगदू से होकर गुजरता है और वह टार की राजधानी ल्हासा से जोड़ता है। इस रेल पथ बाकी बचा कार्य पूरा हो जाए तो वह तो यह दूसरा रेलवे मार्ग होगा, जो ल्हासा और शिगास्ते को मुख्य भूमि के अन्य प्रांतों से जोड़ेगा। इससे चेंगदू और ल्हासा के बीच 30 घंटे का मौजूदा सफर घट कर 10 घंटे का हो जाएगा। विश्व का सबसे बड़ा बांध ब्रह्मपुत्र नदी (यारलुंग सांगपो) पर ग्रेट बेंड में बनाया जा रहा है, और वह भी न्यिंगची में ही है।

न्यिंगची पहुंचने के बाद, शी जिनपिंग नियांग नदी पर बने पुल को देखने गए और वहां पर्यावरण संरक्षण के लिए किए जाने वाले प्रयासों की जानकारी ली और यारलुंग जंगबो नदी एवं नियांग नदी घाटी में प्राकृतिक जलाशयों के बारे में जाना। नियांग नदी यारलुंग सांगपो (ब्रह्मपुत्र) की पांच सहायक नदियों में एक है और यह न्यिंगची का मुख्य जलस्रोत है। शी जिनपिंग ने पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व तथा महत्त्वपूर्ण नदी घाटियों के जीर्णोद्धार, जीवन, पेड़-पौधे, एवं पर्वतों के संरक्षण पर जोर दिया। दोपहर में वे लिंझी शहर में संग्रहालय निर्माण की योजना तथा शहर के विकास का जायजा लेने गए थे। बाद में, शी जिनपिंग लिंझी शहर में ही बसे एक गाला गांव गए थे, जो वसंत के मौसम में आडू के खिलने के लिए ख्यात है। वे गांव के सुविधा सेवा केंद्र, "ग्रीन बैंक" विनिमय दुकानों, स्वास्थ्य कमरे इत्यादि को भी देखा और गांव के लोगों से मिले। वहां मौजूद एक ग्रामवासी दावा जिआनशेन ने कहा कि गत साल उसके परिवार की सालाना आय 300,000 युआन से भी अधिक हुई थी। शी जिनपिंग ने जवाब दिया कि “गाला गांव में बेहतर जीवन तिब्बत के आर्थिक एवं सामाजिक विकास का सूक्ष्म जगत है, जो 70 वर्षों के दौरान तिब्बत के शांति पूर्ण स्वतंत्रता से संभव हुआ है।” यहां से शी जिनपिंग ने न्यिंगची के पुराने एवं नये शहरों के मिलन स्थल पर अवस्थित गोंग्बू पार्क भी देखने गए।

22 जुलाई की सुबह, शी जिनपिंग लिंझी रेलवे स्टेशन का दौरा किया था, जो सिचुआन-तिब्बत रेलवे का एक अहम क्षेत्र है और इसे इस साल 25 जून को आरंभ किया गया है। शी इस पूरे रेल खंड की समग्र योजना एवं लहासा-न्यिंगची के निर्माण एवं अभियान का जायजा लिया। यहां उन्हें यान-न्यिंगची खंड की प्रगति रिपोर्ट सौंपी गई और लालिन को देखने के लिए उन्होंने स्पेशन ट्रेन की सवारी का भी आनंद लिया। शिन्हुआ ने खबर दी है कि शी जिनपिंग ने सिचुआन-तिब्बत रेलवे की योजना एवं उसके निर्माण का “बड़ा महत्त्व” बताया। उन्होंने रेखांकित किया कि सिचुआन-तिब्बत रेलवे तिब्बत के विकास को बढ़ावा देने तथा यहां के लोगों की आजीविका में सुधार लाने का एक बड़ा उपाय है। शी जिनपिंग और उनके दल-बल ने ल्हासा जाने के लिए फ्यूजिंग (बुलेट) ट्रेन में भी यात्रा की।

उसी दोपहर को शी ल्हासा पहुंच गए, जहां वे इसके पश्चिमी उपनगर के डेपुंग बौद्ध मठ देखने गए। उन्होंने यहां एक रिपोर्ट सुनी कि किस तरह डेपुंग बौद्ध मठ ने नवाचार को अपनाते हुए मठ के प्रबंधन को मजबूत किया है और डेपुंग मठ के “चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के नेतृत्व का समर्थन करने, समाजवाद का समर्थन करने और इतने वर्षों से मातृभूमि की एकता की रक्षा में किए जा रहे सक्रिय योगदान” की पुष्टि की।” शी जिनपिंग ने जोर दे कर कहा कि यह जरूरी है कि धार्मिक कार्यों के संबंध में पार्टी की बुनियादी नीति का पूरी तरह से क्रियान्वयन किया जाए, जनता के धार्मिक विश्वासों का आदर किया जाए, धार्मिक मामलों का प्रबंधन कानून के मुताबिक किया जाए तथा तिब्बती बौद्धधर्म को समाजवादी समाज के अंगीकार करने के लिए सक्रिय मार्गदर्शन किया जाए। बाडखोर स्ट्रीट में थोड़ी देर की चहलकदमी करने के बाद, शी जिनपिंग पोटाला पैलेस स्क्वायर आए और इसके संरक्षण एवं प्रबंधन के बारे में पूछा। शी ने रेखांकित किया कि तिब्बत को सभी जातीय समूहों ने संयुक्त रूप से विकसित किया है और तिब्बत का इतिहास सभी जातीय समूहों द्वारा लिखा गया है। उन्होंने कहा कि तिब्बत का विकास “एक नए ऐतिहासिक प्रारंभिक बिंदु पर है। जब तक हम चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का अनुसरण करते हैं और चीनी विशेषताओं के साथ समाजवाद के पथ का दृढ़तापूर्वक अनुगमन करते हैं, और राष्ट्रीय एकता की मजबूती के लिए मिल कर काम करते हैं, तो हम निश्चित ही दूसरी सदी के पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने में कामयाब हो जाएंगे और चीनी राष्ट्र के महान कायाकल्प के चीनियों के स्वप्न को साकार होते अनुभव करेंगे।” उसी शाम शी जिनपिंग ने पार्टी कार्यकर्ताओं एवं सभी जातीय समूहों के साथ तिब्बती पीपुल्स हॉल में एक राष्ट्रीय सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी लुत्फ लिया।

तिब्बतियों के प्रति एक स्पष्ट संकेत में, शी जिनपिंग ने फाकपा ल्हा गेलेक नामग्याल को याद किया। 1940 में पैदा नामग्याल ने 1950 में सीसीपी ज्वाइन किया था। वे भी एक ‘जीवित बुद्धा’ हैं।

23 जुलाई की सुबह, शी जिनपिंग ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र की पार्टी कमेटी एवं सरकार की प्रगति रिपोर्टें सुनी और उनकी उपलब्धियों की सराहना की। उन्होंने उम्मीद जताई कि पार्टी कमेटी एवं टार की सरकार एकजुट रहेगी तथा कार्यकर्ताओं एवं जनता का नेतृत्व करेगी, वह जनता के लिए ठोस काम करती और राष्ट्रीय सुरक्षा, सामाजिक स्थिरता एवं लोगों की खुशहाली को सुनिश्चित करती है। उन्होंने कहा कि “हमें अवश्य ही राष्ट्रीय एकता की शिक्षा में कायम रहना चाहिए” और “समाजवाद के मूल मूल्यों की शिक्षा, देशभक्ति की शिक्षा और अलगाववाद विरोधी शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए।” न्यिंगची प्रशासनिक इकाई को जातीय समूहों को मोड़ने की आवश्यकता पर बल देते हुए शी जिनपिंग ने चीनी राष्ट्र की महत्ता, चीनी संस्कृति, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना, तथा चीनी विशेषताओं वाले समाजवाद की महत्ता को रेखांकित किया। उन्होंने रेलवे, हाइवे तथा अन्य बड़ी संरचनाओं के निर्माणों को तेज करने तथा राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा के आधारों को तैयार करने के लिए गहरे सुधार एवं खुलेपन का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि विकास एवं सुरक्षा को अवश्य ही समन्वित किया जाना चाहिए। शी जिनपिंग ने “सीमा संरचना के निर्माण पर जोर दिया, और उन्होंने सभी जातीय समूहों के लोगों से सीमा में अपनी जड़ें पुख्ता करने, देश की रखवाली करने तथा अपने गृहनगरों के निर्माण के लिए प्रोत्साहित किया”। शी जिनपिंग ने पार्टी के इतिहास पढ़ने पर जोर दिया एवं ‘लाल रक्त’ को बनाए रखने की आवश्यकता जताई।

ऐसा प्रतीत होता है कि सुधार एवं आर्थिक नीतियों के क्रियान्वयन के मसले चीनी राष्ट्रपति के एजेंडा में सबसे ऊपर हैं। उनके पोलित ब्यूरो के एक सदस्य लियू हे चीन के उप प्रधानमंत्री हैं और सीसीपी के वित्तीय एवं आर्थिक मामलों के निदेशक कार्यालय में सेवा देते हैं, जिसके मुखिया राष्ट्रपति जिनपिंग हैं। उनका लिफेंग राष्ट्रीय विकास एवं सुधार आयोग (एनडीआरसी) के महत्त्वपूर्ण मंत्रालय के मंत्री हैं। ये दोनों ही ‘14 वीं पंचवर्षीय योजना एवं पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के दीर्घकालीन उद्देश्यों‘ के अंतर्गत टार से संबंधित परियोजनाओं पर विचार-विमर्श कर सकते हैं या उनकी समीक्षा कर सकते हैं। इनमें रक्षा संरचना संबंधी परियोजनाएं जैसे सामान्य उपयोग के लिए 20 हवाई अड्डों एवं एलएसी से सटे दो अतिरिक्त हाइवे के उन्नयन एवं विस्तार के मामले, यारलुंग सांगपो नदी के आसपास छोटे-छोटे असंख्य बांधों के निर्माण और इसी नदी के बड़े मुहाने पर विशालकाय बांध का निर्माण शामिल हैं। विकास की अन्य अनेक परियोजनाओं की भी समीक्षा की जाएगी। तिब्बत की कम आबादी को ध्यान में रखते हुए इन परियोजनाओं को पूरा करने के के लिए मुख्य भूमि से बड़ी संख्या में कामगारों एवं तकनीशिएनों को लाए जाने का एजेंडा है।

केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) के उपाध्यक्ष जनरल झांग यूक्सिया को शी जिनपिंग के दल में शामिल किए जाने से उनके दौरे के सैन्य मसले की पुष्टि हो गई है। वेस्टर्न थिएटर कमांड (डब्ल्यूटीसी) के हालिया नियुक्त कमांडर जनरल शू क्लिंग, इसके राजनीतिक कम्मिसार वू शेन्झोउ और लेफ्टिनेंट जनरल वांग कियांग, जिन्हें अप्रैल 2020 में डब्ल्यूटीसी वायुसेना के कमांडर के रूप में पदोन्नत किया गया है और समझा जाता है कि डब्ल्यूटीसी आर्मी (थल सेना) के कार्यवाहक कमांडर ने शी जिनपिंग एवं जनरल झांग यूक्सिया का न्यिंगची में स्वागत किया और उनके साथ ल्हासा की ट्रेन यात्रा में भी साथ रहे। जनरल शू क्लिंग एवं राजनीतिक कम्मिसार जनरल वू शेन्झोउ ल्हासा की सभा में शी जिनपिंग एवं झांग यूक्सिया की अगल-बगल में बैठे थे।

ल्हासा में शी जिनपिंग ने सैन्य अधिकारियों, उनके कर्मचारियों एवं दिग्गजों के साथ मुलाकात की। शी ने ल्हासा में अलग से एक हजार सैन्य अधिकारियों को संबोधित किया, जिनमें मेजर जनरल के रैंक से ऊपर के 32 से ज्यादा अफसर शामिल थे और बाकी कर्नल एवं उनके ऊपर के अधिकारी थे। शी ने इन अफसरों का अभिनंदन करते हुए “देश की सुरक्षा एवं उसके एकीकरण के साथ तिब्बत में शांति एवं स्थिरता बनाए रखने में उनके महती योगदान के लिए” उनका आभार व्यक्त किया। शी जिनपिंग ने कहा कि “इस सब के लिए, पार्टी एवं चीन के लोग उनका धन्यवाद” करते हैं। उन्होंने अपील की कि “सेना को पार्टी एवं उसकी विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए” और “उनका मस्तिष्क एक महाशक्तिशाली सेना बनने पर केंद्रित होना चाहिए। अफसरों को सैन्य निर्देशन का स्रोत होना चाहिए जिससे कि अपने मकसद को जिंदा रखना सुनिश्चित किया जा सके। उन्हें पुराने तिब्बत की भावना का अनुसरण करने की जरूरत है, जिसका आशय है कि उन्हें अपने पूर्वजों का और जो कुछ उन्होंने पिछले 70 सालों में तिब्बत में किया है, उनका अनुसरण करना चाहिए। उन्हें उनके पदचिह्नों पर चलना चाहिए और उनके कार्यों को आगे बढ़ाना चाहिए।” शी ने घोषणा की कि “वे तिब्बत के रुखे जलवायु एवं पर्यावरण की कठिन चुनौतियों को पहले ही पार कर चुके हैं और देश को संरक्षित किया है। ऐसा कर उन्होंने देश की महान सेवा की है। हालांकि उन्हें कड़े प्रशिक्षण जारी रखने एवं भविष्य के युद्धों के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है।”

लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बनी मौजूदा स्थिति और तनाव पर बैठक में अवश्य ही विचार किया गया होगा। यहां अगली कार्रवाइयों एवं अभियानों का अनुमोदन भी किया गया होगा। न्यिंगची और शिगास्ते के सामने सीमा के पूर्वी क्षेत्र को सक्रिय करने पर विचार किया गया होगा।

जनरल झांग यूक्सिया की मौजूदगी इशारा करती है कि उन पर अपने भतीजे के झांज ताओ के ताजा विवाद का कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ा है। ताओ ने चीन के दो प्रतिष्ठित वरिष्ठ वैज्ञानिकों पर इस महीने के प्रारंभ में हमला कर दिया था। इसके लिए पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था।

पोलित ब्यूरो के सदस्यों यांग जियाडु और चेन शी का समावेशन दिलचस्प है। इसका मतलब है कि पार्टी और अनुशासन के मामले पर भी बैठक में विचार हुआ था। यांग पोलित ब्यूरो के सदस्य हैं और राष्ट्रीय निगरानी आयोग के निदेशक हैं। उन्होंने अपने प्रारंभिक राजनीतिक जीवन में तिब्बत में काम किया है। चेन सी सीसीपी सीसी के पावरफुल संगठन विभाग के मुखिया हैं, जो कार्यकर्ताओं की पदोन्नति एवं तबादले, सेंट्रल पार्टी स्कूल में उनकी प्रतिनियुक्ति आदि मसलों पर फैसले लेते हैं।

पिछले वर्ष “दोहरे चेहरे” या “दो मुंहे” कार्यकर्ताओं के बारे में काफी बातें कही गई हैं। इसका आशय ऐसे कार्यकर्ताओं से हैं, जिनकी तैनाती तो प्राधिकरण करता है लेकिन उनकी निष्ठा दलाई लामा के प्रति होती है। यांग ने इस बारे में भी विचार किया होगा और ऐसे “संदिग्ध” कार्यकर्ताओं को दंडित करने के लिए टार के पार्टी सचिव वू यिंगजी एवं टार के चेयरमैन चे देल्हा से गुप्तगू की होगी। कार्यकर्ताओं की राजनीतिक संभावनाओं पर विचार किया होगा। यह संभव है कि वू यिंगजी, जो अब 65 वर्षीय बुजुर्ग हैं, उन्होंने टार के पार्टी सेक्रेटरी के रूप में अपना कार्यकाल पूरा कर लिया है और उन्हें पेइचिंग भेजा जा सकता है। यदि ऐसा है तो संभव है कि उनके उत्तराधिकारी के नाम पर भी विचार किया गया होगा। हाल के महीनों में यह गौर किया गया है कि टार के कैडरों में, चे दल्हा और यान जिन्हाई की अहमियत बढ़ी है। इनमें चे सुरक्षा की मजबूती के लिए सीमावर्ती जिलों के दौरे करते रहे हैं और टार के पार्टी सचिव के वू यिंगजी के साथ पिछले साल पेइचिंग भी गए थे और इस साल भी वह नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) के सत्र में भाग लेने गए थे। उन्होंने इसके सत्र के समापन पर एक महत्त्वपूर्ण आलेख भी लिखा था, जो पीपुल्स डेली में 11 मार्च 2021 को प्रकाशित हुआ था।

शी जिनपिंग के दौरे ने नीतियों पर निश्चित ही प्रभाव डाला होगा, जिसे अब टार में क्रियान्वित किया जा रहा है। शी जिनपिंग ने इन मसलों पर अपनी वकालत की हैः तिब्बत सीमा की मजबूती एवं उसकी सुरक्षा की बात की; उन्होंने ‘जियाओकांग’ (सम्पन्न) सीमा रक्षा गांवों का उल्लेख किया; तिब्बती बौद्धवाद में चीनी गुणों-विशेषताओं वाले समाजवाद का स्वीकरण-समावेशन के लिए कहा; जातीय एकता का निर्माण; पार्टी की मजबूती एवं इसके प्रति सदस्यों की निष्ठा सुनिश्चित करने; जातीय स्कूलों में मंदारिन को प्राथमिक भाषा बनाने एवं हान संस्कृति को उजागर करने; चीन के बेल्ट एवं रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) के अंतर्गत रेलवे एवं हाईवे समेत परिवहन संजाल के विकास को गति देने और उसे पश्चिम की तरफ बढ़ाने; और पीएलए को मजबूती देने की बात की है।

शी का दौरा अहम है और टार के लिए पहले से ही बनाई गई योजना में बदलावों के लिए बड़ा अभिप्रेरण होगा। उनकी यात्रा ने भारत पर भी प्रभाव डाला है। अब भारत को भी एलएसी पर चीनी सैन्य गतिविधियों के और बढ़ने तथा तिब्बत में सीमा सुरक्षा ढांचे के निर्माण में तेजी आने का अनुमान लगा लेना चाहिए। इनमें से ज्यादातर परियोजनाओं को 2030 तक पूरा हो जाने का अनुमान है।

Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)


Image Source: https://theasialive.com/wp-content/uploads/2021/07/Xi-Jinping-Tibet-750x430.jpg

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