उभरती विश्व व्यवस्था के बारे में क्या कहती हैं ये बैठकें
Arvind Gupta, Director, VIF

पहले समूह-7 की बैठक (11 जून) हुई, इसके बाद नॉर्थ अटलांटिक काउंसिल की बैठक (14 जून) हुई, फिर रूस-अमेरिका के बीच शिखर सम्मेलन (16 जून) हुआ और रूस-चीन मित्रता संधि को अगले 5 वर्ष तक बढ़ाने के लिए वर्चुअल बैठक (28 जून) हुई। ये तमाम बैठकें या शिखर सम्मेलन हमें उभरते विश्व के स्वरूप एवं संरचना के बारे में महत्वपूर्ण संकेत देते हैं।1

समूह-7 की बैठक यह दिखाने का एक प्रयास था कि पश्चिमी विश्व बुनियादी लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों को लेकर पूरी तरह एकजुट है। उनके नेताओं ने शिखर वार्ता के दौरान व्यक्त किए गए विचारों को इस सावधानी से तैयार किया था कि उससे रूस एवं चीन के विरुद्ध पश्चिमी देशों की संघबद्ध होने का संदेश जाए। समूह-7 की बुनियादी थीम यह थी कि चीन और रूस अधिनायकवादी है, वे लोकतंत्र नहीं हैं; इसलिए वे चुनौतीपूर्ण हैं और रणनीतिक शत्रु हैं। इस लिहाजन, उनके साथ आवश्यकता पर आधारित संवाद ही संभव हो पाएगा।

समूह-7 ने चीन से “मानवाधिकारों का आदर करने और (अपने नागरिकों को) बुनियादी स्वतंत्रता” प्रदान करने के लिए कहा गया है तो रूस से उसके “अस्थिरता फैलाने वाले व्यवहारों और गड़बड़ गतिविधियों, जिनमें अन्य देशों की लोकतांत्रिक पद्धतियों में दखल देना शामिल है, को रोकने, और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और प्रतिबद्धताओं” को पूरी करने के लिए कहा गया है।

समूह-7 देशों के नेता एक वैश्विक संरचना पहल (बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड) की संकल्पना के साथ दुनिया के सामने आए हैं, जो चीन की बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव का विकल्प प्रस्तुत करती है। इन नेताओं ने यह भी दिखाया कि वे वैक्सिन को लेकर विकासशील दुनिया की चिंताओं के प्रति वास्तव में संवेदनशील हैं। उन्होंने वादा किया कि वे 2022 के अंत तक विकासशील देशों को एक बिलियन वैक्सीन की आपूर्ति कर देंगे। चीनी आधारभूत ढांचा और टीकाकरण की उसकी पहल अभी चल रही है, जबकि समूह-7 की तरफ से टीकाकरण के ब्योरे पर अभी काम होना बाकी है।

समूह-7 ने लोकतांत्रिक और गैर-लोकतांत्रिक दुनिया के बीच एक विभाजक रेखा खींच दी है, खासकर शिन्जियांग और हांगकांग के संबंध में। उन्होंने समूचे ताइवान स्ट्रेट में “शांति और स्थिरता के महत्व पर जोर दिया है और स्ट्रेट के बाहर के मसले को भी शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने के लिए उत्साहित किया है।” विज्ञप्ति में आगे कहा गया कि, “हम पूर्वी और दक्षिणी चीन सागरों में स्थिति को लेकर बेहद गंभीर हैं और यहां की यथास्थिति में बदलाव करने तथा तनाव बढ़ाने के किसी भी एकतरफा प्रयासों का पुरजोर विरोध करते हैं।”

ये सूत्रीकरण रूस और चीन दोनों के साथ एक असहज सहअस्त्तित्व को दर्शाते हैं। दोनों पक्षों के बीच लगातार रन-इन की उम्मीद करनी चाहिेए।

नॉर्थ अटलांटिक काउंसिल मीटिंग

यह बैठक पिछले 14 जून को ब्रसेल्स में हुई थी, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने भाग लिया था। इसके बाद तैयार की गई विज्ञप्ति रूस पर अधिक स्पष्ट थी, जबकि चीन से मिलने वाली सुरक्षा चुनौती की प्रकृति पर गौर किया गया था।2

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नाटो के आत्मविश्वास को डगमगा दिया था। फ्रांस के राष्ट्रपति ने तो एक बार नाटो को ‘ब्रेन डेड’ तक कह दिया था। लेकिन बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका नाटो के पुनर्नवीकरण में अब गहरी दिलचस्पी ले रहा है, जिससे उसके पुनरुज्जीवन के कुछ संकेत मिल रहे हैं। ट्रांस-अटलांटिक संधि का पुनर्निर्माण किया जा रहा है। 2030 का एजेंडा तैयार हो गया है, जिसमें सुरक्षा के बदले वातावरण को ध्यान में रखते हुए एक नई सुरक्षा अवधारणा बनाने के लिए कोशिश जारी है।

नाटो काउंसिल की विज्ञप्ति में रूस से मिलने वाली चुनौतियों को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है : रूस बहु-क्षेत्रीय सैन्य क्षमता का निर्माण कर रहा है, उसकी भाव-मुद्राएं अधिकाधिक रूप से दबंग हैं, उसकी बढ़ी-चढ़ी नौसैनिक क्षमताएं और नाटो की सीमा के आसपास सहित क्षेत्र में उसकी गतिविधियां उकसाने वाली हैं, और वह बड़े पैमाने पर बिना किसी सूचना के और त्वरित अभ्यास करता है, क्रीमिया में उसकी लगातार सैन्य लामबंदी बनी हुई है, तो कलिनिनग्राद में दोहरी मारक क्षमता वाले प्रक्षेपास्त्रों की तैनात कर दिया है, बेलारूस के साथ उसका सैन्य एकीकरण है, और नाटो व उसके सहयोगी देशों के आकाशमार्ग का वह लगातार अतिक्रमण-उल्लंघन कर रहा है, यूरो-अटलांटिक क्षेत्र की सुरक्षा पर बढ़ते खतरे और नाटो-सीमाएं एवं उसके पार अस्थिरता फैलाने में उसका हाथ है।” इसलिए रूस के साथ संवाद तब तक स्थगित रहेगा, जब तक कि यह “अंतरराष्ट्रीय विधि और इसके अंतरराष्ट्रीय दायित्वों एवं जिम्मेदारियों के अनुपालन का भाव प्रदर्शित नहीं करता।”

इनमें जो सबसे दिलचस्प बात है, वह यह कि नाटो ने चीन में गहरी रुचि लेना शुरू कर दिया है। पहली बार नाटो नेताओं ने अपनी आधिकारिक विज्ञप्ति में यह स्वीकार किया है कि नियम-कायदे पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और खुद उसके सहयोगियों को चीन की तरफ से बहुआयामी चुनौतियां मिल रही हैं। विज्ञप्ति में बेहद स्पष्ट तरीके से कहा गया है कि “घोषित महत्त्वाकांक्षाएं एवं दखलकारी व्यवहार” को “नियम पर चलने वाली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था” के समक्ष तथा “सहयोगियों की सुरक्षा के प्रासंगिक क्षेत्रों” में चुनौतियां पेश करते हुए देखा जा रहा है। इसके साथ ही, चीन का द्रुत गति से परमाणु हथियारों के जखीरों को बढ़ाना, इसकी बढ़ती सैन्य क्षमताएं, सैन्य-नागरिक सहमेल की रणनीति, रूस के साथ उसके सैन्य संबंध और यूरो-अटलांटिक क्षेत्र में चीन-रूस के संयुक्त युद्धाभ्यासों पर चिंताएं जताई गईं थीं। विज्ञप्ति में यह निर्णय किया गया कि “गठबंधन के सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए चीन से बातचीत” की जाए।

नाटो चीन के साथ अन्यमनस्क ढंग से बातचीत करता है। लेकिन अब यह चीन से “संवाद में सार्थक भागीदारी निभाने, आत्मविश्वास का निर्माण करने, और अपने परमाणु हथियारों की क्षमताएं और उनके प्रयोग के सिद्धांतों के बारे में पारदर्शी उपाय अपनाने पर जोर देता है।” चीन ने अपने परमाणु हथियारों और क्षमताओं के बारे में विचार-विमर्श के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। अब यह देखना बाकी है कि क्या वह नाटो के प्रस्ताव को स्वीकार करेगा। ऐसा होता नहीं दिखता है।

पुतिन –बाइडेन शिखर वार्ता

नाटोअटलांटिक काउंसिल की बैठक के बाद, 15 जून को जिनेवा में बाइडेन और पुतिन की भेंट हुई थी। इस बहुप्रतीक्षित शिखर वार्ता से कुछ ठोस नतीजे भी मिले थे-अमेरिका और रूस के राजदूत अपने पदों पर लौट आए थे और दोनों पक्षों ने हथियारों के नियंत्रण को लेकर ‘रणनीतिक स्थिरता संवाद’ शुरू करने पर सहमत हुए थे। वे साइबर सुरक्षा पर भी चर्चा करेंगे। लेकिन यह कमोबेश वहीं रुक जाता है। पुतिन के शब्दों में बाइडेन के साथ बैठक “रचनात्मक भावना” के साथ हुई। दोनों नेताओं ने नाटकीयता और बड़बोलेपन से से परहेज रखा। बाइडेन और पुतिन ने अपनी शिखर बैठक के बारे में अपने आकलन के लिए प्रेस के साथ अलग-अलग बातचीत की।3

अमेरिका के रणनीतिक वर्तुल में, रूस को चीन से बड़ा खतरा माना जाता है। अमेरिकी कांग्रेस ने तो 2017 में ही रूस को अपना “शत्रु और प्रतिस्पर्धी” घोषित किया था। बाइडेन प्रशासन द्वारा जारी अंतरिम राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में भी रूस की चर्चा उसी भावना के अनुरूप की गई है। पुतिन-बाइडेन शिखर वार्ता ने भी अमेरिका के उस आकलन में या उसके आशय में कोई बदलाव नहीं लाया है।

अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुतिन ने विभिन्न विषयों का जिक्र किया जिन पर अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ उनका विचार-विमर्श हुआ था। उनकी सूची पर गौर करें तो बातचीत का दायरा यूक्रेन से लेकर साइबर सुरक्षा, मानवाधिकारों, रूसी विपक्षी नेता एलेक्सी नवलनी की कैद से लेकर रूस पर लगाए गए कारोबार और आर्थिक प्रतिबंधों एवं रूस की आर्कटिक-नीतियों तक फैला था। बैठक के बाद रूसी राष्ट्रपति ने बाइडेन “एक अनुभवी राजनेता” बताया, जिन्होंने एक बार पुतिन को ‘हत्यारा’ तक कह दिया था।

वहीं दूसरी तरफ, बाइडेन ने अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अमेरिका रूस के साथ एक “स्थिर और प्रत्याशित संबंध” रखना चाहता है। द्विपक्षीय हितों की बात जहां आएगी, अमेरिका उसे सहयोग करेगा। पुतिन को यह जानना चाहिए कि अमेरिका क्यों उसके साथ ऐसा व्यवहार करता है। इसको लेकर रूस को कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए। बाइडेन ने पुतिन से कहा था कि मानवाधिकार “उन दोनों के बीच बातचीत की मेज पर हमेशा बने रहने वाला मुद्दा है।”

अमेरिका इस बात को लेकर काफी चिंतित है कि उसकी आधारभूत पर संरचना पर हमला रूस में रह रहे समूहों द्वारा की जा रही है। बाइडेन ने पुतिन को प्रस्ताव दिया कि हमें “कुछ महत्वपूर्ण संरचनाओं को आक्रमण के दायरे से बाहर रखना चाहिए-जैसे साइबर या अन्य उपक्रमों को इससे परे रखना चाहिए।” साइबर विवाद का एक बेहद जटिल क्षेत्र है। शिखर वार्ता के बाद, अमेरिकी कम्पनियों पर बड़े पैमाने पर रैनसमवेयर हमले हुए थे, आरोप है कि वे सारे के सारे हमले रूस में बैठे समूह द्वारा किए गए थे। यह देखना अभी बाकी है कि साइबर सुरक्षा को लेकर बातचीत कैसे आगे बढ़ती है और यह भी कि क्या दोनों पक्ष इस मसले से निपटने के लिए कुछ तौर-तरीके बनाएंगे।

दोनों पक्षों ने ईरान परमाणु कार्यक्रम, अफगानिस्तान, सीरिया और यूक्रेन के मसलों पर भी विचार-विमर्श किया था। यह बातचीत रणनीतिक संवाद के तहत हुए थे और इस पर कोई डील नहीं हुई थी।

बाइडेन ने कहा है कि और देखेंगे कि ये चीजें 6 महीने से लेकर साल भर में क्या रूप लेती हैं। दोनों पक्ष धरातलीय नतीजों के आधार पर एक दूसरे पक्ष की गंभीरता का आकलन करेंगे।

चीन-रूस मित्रता संधि

28 जून को रूसी राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ वर्चुअल बैठक के बाद, 2001 में हुई रूस-चीन मित्रता संधि की अवधि को अगले 5 साल के लिए बढ़ा दी गई। शी जिनपिंग ने चीन-रूस संबंध को “वैश्विक मामलों में एक स्थिरताकारी भूमिका निभाने” के रूप में निरूपित करते हुए कहा कि दोनों देश “सच्ची बहुपक्षीय और वैश्विक न्याय” का अनुपालन कर रहे हैं। पुतिन ने चीन के साथ सैन्य गठबंधन को लेकर एक रणनीतिक रहस्यमयता का आवरण बनाए रखा। पिछले वर्ष उन्होंने चीन के साथ सैन्य संबंधों को खारिज कर दिया था लेकिन भविष्य में ऐसी किसी संभावना को सर्वथा नकारा भी नहीं था।

लौटना महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता के दौर का

इन तीन महत्वपूर्ण बैठकों के जरिए पश्चिमी जगत रूस और चीन से निबटने की कोई राह पाने की कोशिश कर रहा है। रूस अपने को निचोड़े जाने से बचने की कोशिश कर रहा है तो चीन एक “नए प्रकार” के संबंध के लिए इच्छुक है, जो उसकी श्रेष्ठता का आदर करे। ऐसे में, नए विश्व की रूपरेखा इस बात पर निर्भर करेगी कि अमेरिका, चीन और रूस किस तरह एक नया संतुलन बना पाते हैं। इन सब के बीच एक बात तो स्पष्ट है कि हम लोग महाशक्ति की प्रतिद्ंद्विताओं के रूबरू हैं। ये शत्रुताएं यूरोप में खेल करेंगी, भूमध्यसागर में, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, आर्कटिक और यूरेशिया में अपना खेल दिखाएंगी। ये तीन देश सैन्य, अंतरिक्ष, समुद्र और साइबर क्षेत्र में भी सक्रिय रहेंगे। जो देखने के लिए बाकी बचता है, वह यह कि किस तरह ये प्रतिद्ंद्विताएं दुनिया में मैनेज हो पाती हैं, जहां जलवायु परिवर्तन, महामारियों एवं प्रौद्योगिकी के लिए दौड़ जैसी अन्य चालक शक्तियां अपने पूरे शबाब पर हैं।

पाद-टिप्पणियां
  1. समूह-7 शिखर वार्ता की पूरी विज्ञप्ति इस लिंक पर उपलब्ध है-https://www.whitehouse.gov/briefing-room/statements-releases/2021/06/13/carbis-bay-g7-summit-communique/
  2. ब्रसेल्स की सरकारी सूचना के पाठ के लिए देखें https://www.nato.int/cps/en/natohq/news_185000.htm?selectedLocale=en
  3. बाइडेन के साथ शिखर वार्ता के बाद पुतिन की टिप्पणी की पांडुलिपि के लिए देखें https://www.rev.com/blog/transcripts/russian-president-vladimir-putin-press-conference-transcript-after-meeting-with-biden-english-translation और बाइडेन की प्रतिक्रिया की पांडुलिपि के लिए देखें https://www.rev.com/blog/transcripts/joe-biden-press-conference-transcript-after-meeting-with-putin

Translated by Dr Vijay Kumar Sharma(Original Article in English)


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