चतुष्टय (क्वाड) शिखर सम्मेलन : उत्तर कोविड-19 काल में हिंद-प्रशांत क्षेत्र की रूपरेखा को परिभाषित करने का अवसर
Arvind Gupta, Director, VIF

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति जोए बाइडेन, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्काट मॉरिसन और जापान के प्रधानमंत्री यशोहिदे सुगा 12 मार्च 2021 को चतुष्टय (क्वाड) के पहले शिखर सम्मेलन स्तर के सुरक्षा संवाद में वर्चुअल रूप में सहभागी होंगे। यह शिखर बैठक फरवरी में चतुष्टय के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद हो रही है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में इस बैठक की परिणामों को गहरी दिलचस्पी से देखा जाएगा क्योंकि इस बैठक से समूह की कार्यप्रणाली में स्पष्टता लाने की अपेक्षा की जाती है, जो अभी तक स्वयं को परिभाषित करने की जद्दोजहद में जुटा हुआ है।

चतुष्टय की बुनियाद 2007 में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की पहल पर रखी गई थी। लेकिन यह क्षणभंगुर साबित हुई क्योंकि आस्ट्रेलिया जो चीन के साथ अपने रिश्ते को विकसित कर रहा था, वह इस प्रस्ताव को लेकर उदासीन बना रहा था। चतुष्टय को एक बार फिर से 2017 में अधिकारियों के स्तर पर पुनरुज्जीवित किया गया। अधिकारियों की बैठकों की श्रृंखला के बाद चतुष्टय के विदेश मंत्री-स्तर की पहली बैठक 2020 में हुई थी और इसके बाद फरवरी 2001 में हुई थी, जो चतुष्टय के विकास में एक मील का पत्थर साबित हुई।

चतुष्टय की बैठक का स्तर बढ़ाकर शिखर सम्मेलन स्तर का करने के निर्णय का संबंध हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन बढ़ती कट्टरता और उसका विस्तारवाद है। चीन ने स्थापित अंतरराष्ट्रीय नियम-कायदों के साथ बुरी तरह खिलवाड़ किया है। इसने क्षेत्रीय और वैश्विक चिंताएं बढ़ा दी हैं।

अब तक हुई चतुष्टय की बैठकों में, इसके वार्ताकारों ने एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र, नियम-आधारित व्यवस्था और नौवहन की आवाजाही की स्वतंत्रता की आवश्यकताओं पर गहरा बल दिया है। पर इनमें से बहुत सारी अवधारणाएं अभी तक अविकसित हैं और उन्हें व्यावहारिक पहलों में रूपांतरित किए जाने की आवश्यकता है। उम्मीद है कि यह शिखर सम्मेलन इस दिशा में कुछ स्पष्टता लाएगा।

यद्यपि चतुष्टय एक सुरक्षा संवाद की व्यवस्था है, इसके दायरे को बढ़ाकर इसमें आपूर्ति श्रृंखला सहयोग में लचीलापन, गुणवत्तापूर्ण ढांचे का निर्माण और साइबर सुरक्षा इत्यादि जैसे मामले को शामिल किया गया है। इसने चतुष्टय के लक्ष्यों के बारे में सवाल खड़ा किया है। इस लिहाज से यह शिखर सम्मेलन इस संदर्भ में कुछ स्पष्टता ला सकता है। व्यावहारिक कारणों से दूसरे के भागीदार सावधानीपूर्वक चीन का नाम नहीं लेते रहे हैं और इस धारणा को बनने देने से इनकार करते रहे हैं कि चीन को रोकने के लिए ही चतुष्टय के रूप में एक सुरक्षा सहयोग खड़ा किया जा रहा है। चीन ने शुरुआत में चतुष्टय की अवधारणा को खारिज कर दिया था। इसके विदेश मंत्री वांग यी ने अपने प्रसिद्ध वक्तव्य में इसे समुद्र में एक ‘झाग’ भर करार दिया था। लेकिन जैसे-जैसे चतुष्टय संवाद विकसित होता गया, चीन की चिंताएं बढ़ती गईं और उसने इसे एशियाई नाटो के रूप में मान कर देखना शुरू किया कि उसका गठन पेइचिंग के अभ्युदय को रोकने के लिए किया गया है।

रूस भी चतुष्टय को लेकर चीन की तरह संदेह करता है। उसे भय है कि चतुष्टय सुदूर पूर्व में उसके प्रभाव को क्षीण कर देगा। उसके विदेश मंत्री लावरोव, जो एक सख्त आलोचक हैं, उन्होंने चतुष्टय को पश्चिम के एक ‘नये खेल’ के रूप में देखा है, जिसमें भारत को चीन-विरोधी रणनीति में खींच लिया गया है। इस तरह, यह भारत-रूस संबंधों को भी नजरअंदाज करने का एक उपक्रम है।

आसियान के देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र भूसामरिक संरचना को लेकर अब तक उदासीन रहे हैं। इस क्षेत्र को लेकर उनके स्वयं के दृष्टिकोण रहे हैं। उन्हें भय है कि चतुष्टय और हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र की अवधारणा इस क्षेत्र में आसियान की केंद्रीयता को कहीं कमजोर न कर दे। वे अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती सामरिक शत्रुता के पाट में फंसना नहीं चाहते। हिंद-प्रशांत विचार को ग्रहणीय बनाने की गरज से चतुष्टय की बैठकों ने आसियान की केंद्रीयता को बनाए रखने पर बार-बार जोर दिया है।

चतुष्टय के नेताओं को इस केंद्रीय सवाल से रूबरू होना होगा : सुरक्षा सहयोग विकसित करने के लिए एक फोरम के रूप में चतुष्टय अभी कितनी दूर है? अभी हाल तक जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका यह अनुभव करते थे कि चीन को नाराज न करने के लिए भारत चतुष्टय के सुरक्षा आयामों में सहभागी होने को लेकर अनिच्छुक है। भारत इसको लेकर सतर्कता की स्थिति में था कि वह हिंद-प्रशांत अवधारणा के समावेशी होने के पक्ष में है। अब भारत अपनी हिचक छोड़ रहा है। पिछले वर्ष उसने 13 साल के अंतराल के बाद आस्ट्रेलिया को मालाबार में संयुक्त नौ सेना के अभ्यास के लिए आमंत्रित किया था, जहां उसके पहले भारत, अमेरिका और जापान की नौसेनाएं संयुक्त अभ्यास कर चुकी थीं। यह एक समय के लिए ही आमंत्रण था लेकिन ऑस्ट्रेलिया की सहभागिता उसके आगे भी नियमित स्तर की हो सकती है।

चतुष्टय के विकास क्रम में 2020 एक महत्वपूर्ण प्रस्थान बिंदु था, जब इसकी बैठक का स्तर बढ़ाकर विदेश मंत्री के स्तर का किया गया। इस साल के दौरान भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और अमेरिका को चीनी विस्तारवाद और कट्टरता के विभिन्न स्तरों से पाला पड़ा था। भारत को अपने उत्तर में वास्तविक सीमा नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ लंबे समय तक सैन्य टकराव में रहना पड़ा था। इसकी वजह से 2020 के जून में लद्दाख की गालवान घाटी में चीन के साथ हुई सैन्य झड़प में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत हुई थी। यह 1962 के बाद भारत-चीन संबंधों में सबसे खराब दौर है। इसी तरह, जापान भी पूर्वी चीनी सागर में स्थित सिनेकाकौ प्रायद्वीप के आसपास के जलक्षेत्र में चीन के अतिक्रमण की आंच में झुलस चुका है। यहां चीन ने एयर डिफेंस आईडेंटिफिकेशन जोन भी लागू कर दिया है। व्यापार मोर्चे पर ऑस्ट्रेलिया को चीन दंडित और प्रतिबंधित कर रहा है। वहीं, दक्षिण चीन सागर में, अमेरिकी सैन्य जहाजों की नियमित आवाजाही में हस्तक्षेप करता है। यहां चीन ने विवादित प्रायद्वीपों पर अपना कब्जा जमा रखा है और इस प्रकरण में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले की अवमानना कर रहा है। अमेरिका और चीन व्यापार और प्रौद्योगिकी प्रतिस्पर्धा में भी एक दूसरे के साथ भिड़े हुए हैं। बाइडेन प्रशासन ने चीन को एक सामरिक प्रतिस्पर्धी माना है।

अभी तक चतुष्टय देशों ने बैठकों के बाद वक्तव्य जारी करने से परहेज रखा है। इसके बजाए वह अलग-अलग बयान जारी कर यह संकेत देते हैं कि वे मुख्य अवधारणा और मसलों को लेकर समान स्थिति नहीं रखते हैं। इसलिए ही इसका प्रत्येक सदस्य चीन के साथ अपने संबंधों को लेकर एक लचीलापन बनाए रखना चाहता है। लिहाजा, इस दिशा में एक बड़ा विकास होगा अगर चतुष्टय के शिखर स्तर के सम्मेलन के बाद इसके नेता कोई संयुक्त बयान जारी करते हैं और फोरम के महत्वपूर्ण मसलों पर अपने साझा विचारों को व्यक्त करते हैं।

चतुष्टय का विकास एक संवाद मंच के रूप में हुआ है, जिसमें इसके सदस्य किसी प्रतिबद्धता से नहीं बंधे हैं। अनेक विशेषज्ञ महसूस करते हैं कि यह चतुष्टय को अपनी सही दिशा में रखने और विभिन्न क्षेत्रों में परिस्थितियों के मुताबिक द्विपक्षीय सहयोग-संबंधों को विकसित करने के लिए अपेक्षित लचीलापन लाने के लिहाज से महत्वपूर्ण है। कुछ विशेषज्ञ यह भी महसूस करते हैं कि चतुष्टय आवश्यक रूप से एक सुरक्षा संवाद है और इसीलिए इसमें अनेक विषयों को शामिल कर उसके असल मकसद को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए। यह देखना दिलचस्प होगा कि इसके नेता चतुष्टय को संवाद की एक औपचारिक व्यवस्था के रूप में रखते हैं या इसे अधिक संस्थागत चरित्र प्रदान करते हैं, जिसमें फोरम का अपना एक मुख्यालय होता है और इससे अलावा, अधिक से अधिक औपचारिक संरचनाएं शामिल होती हैं।

चतुष्टय जो भी आकार ग्रहण करता है, इस बारे में चतुष्टय के शिखर सम्मेलन स्तर की बैठक में लिये गये निर्णय का हिंद-प्रशांत क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। इसके नेताओं को इस बात पर जरा भी संदेह नहीं होगा कि चीन कमरे में बैठा एक बड़ा हाथी है, चाहे वे इसे खुलकर स्वीकार करें अथवा न करें। चतुष्टय के शिखर स्तर का सम्मेलन उत्तर-कोविड विश्व में हिंद-प्रशांत क्षेत्र की रूपरेखा को परिभाषित करने में संभवत: एक अग्रगामी कदम साबित होगा।

इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है। इसने चीन के साथ शांतिपूर्ण संबंध बनाए रखने के काम को पूरा किया है जबकि यह चीन के विस्तारवाद से पीड़ित नहीं हुआ है। भारत को चतुष्टय की रूपरेखा को गढ़ने में सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है।

Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)


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