वर्ष 2019 के दौरान विश्व परमाणु व्यवस्था में दो महत्वपूर्ण रुझान दिखे हैं - परमाणु अस्त्रों का प्रयोग टालने के वातावरण में अस्थिरता और परमाणु शक्ति संपन्न और उससे रहित देशों के बीच परमाणु अस्त्रों में कटौती की रफ्तार पर बढ़ता तनाव। बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स के अनुसार बीते वर्ष “वैश्विक सुरक्षा स्थिति” में “नई असमान्यता” देखी गई क्योंकि अमेरिका “अधिक सुरक्षित एवं सेहतमंद ग्रह की ओर ले जाने वाले वैश्विक समझौतों को तैयार करने एवं उनका समर्थन में नेतृत्वकारी भूमिका” को त्यागता दिखा, जो खतरनाक बात है। विशेष रूप से परमाणु अप्रसार की व्यवस्था को बढ़ावा देने के वॉशिंगटन के संकल्प पर निगाहें टिक गई हैं क्योंकि पूर्व एवं पश्चिम एशियाई क्षेत्रों समेत विभिन्न क्षेत्रों में क्षेत्रीय प्रसार की स्थिति बिगड़ती जा रही है।
पूर्वी एशिया में हनोई शिखर वार्ता नाकाम होने के बाद उत्तर कोरिया द्वारा कम दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों का परीक्षण और लंबी दूरी की मिसाइल तथा परमाणु अस्त्रों के परीक्षण फिर शुरू करने की उसकी धमकी एक बार फिर क्षेत्र को अस्थिरता के माहौल में ले जा रही है। हनोई में फरवरी, 2019 में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और किम जोंग-उन के बीच दूसरी शिखर वार्ता में दोनों पक्ष उत्तर कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण के बदले उठाए जाने वाले कदमों पर राजनयिक सहमति नहीं बना सके। शिखर बैठक की कूटनीति के अंतर्गत उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन ने परमाणु एवं मिसाइल परीक्षण रोकने तथा पुंगाई-री परमाणु परीक्षण स्थल बंद करने जैसे प्योंगयांग के “व्यावहारिक उपायों” के बदले प्रतिबंधों में राहत की मांग की। लेकिन “परमाणु निरस्त्रीकरण” के अतिरिक्त कदमों पर प्योंगयांग की सहमति से पहले प्रतिबंधों में ढील नहीं देने के वॉशिंगटन के फैसले ने बात बिगाड़ दी।
उसके बाद से प्योंगयांग संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को ठेंगा दिखाते हुए कम दूरी की पांच मिसाइलों के परीक्षण कर चुका है। इसी तरह 2018 में जेसीपीओए से बाहर होने के वॉशिंगटन के इकतरफा फैसले के बाद से पश्चिम एशिया में अमेरिका तथा ईरान के बीच तनाव बढ़ता गया है। सितंबर, 2019 में उस समय दोनों देश सैन्य टकराव के बेहद करीब पहुंच गए थे, जब अमेरिका ने ईरान पर सऊदी अरब के तेल संयंत्रों पर ड्रोन हमले का आरोप लगाया। ईरान पर “अधिकतम दबाव” की अमेरिका की नीति खुद उस पर ही भारी पड़ गई है और इससे ईरान की सरकार को क्षेत्रीय टकरावों का खतरा मोल लेने की हिम्मत भी मिल गई है।
क्षेत्रीय तनावों में इस प्रकार की बढ़ोतरी देखकर संकीर्ण पक्षपाती हितों को ताक पर रखकर दुनिया भर में अप्रसार व्यवस्था ले जाने के ट्रंप प्रशासन के संकल्प पर गंभीर संदेह उत्पन्न हो गए हैं।
2019 में परमाणु शक्ति का प्रयोग टालने की व्यवस्था में भी बड़ा खलल पड़ा क्योंकि वॉशिंगटन ने 1987 की मध्म दूरी वाली परमाणु शक्ति संधि (आईएनएफ) से निकलने का इकतरफा फैसला कर डाला। ट्रंप प्रशासन ने रूस पर इस संधि के प्रावधानों का उल्लंघन करने एवं संधि के तहत प्रतिबंधित मिसाइल परीक्षण करने का गंभीर आरोप लगा दिया। आईएनएफ के अलावा ट्रंप प्रशासन 2010 की नई रणनीति अस्त्र कटौती (न्यू-स्टार्ट) के विस्तार में भी आनाकानी कर रहा है। यह संधि 2021 में समाप्त होने वाली है। वैश्विक अस्त्र नियंत्रण व्यवस्था का अनिश्चित भविष्य और प्रतिबंधों की समाप्ति से प्रतिबंधित अस्त्रों की एक बार फिर वापसी हो सकती है।
उदाहरण के लिए 2019 में राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने परमाणु टॉरपीडो और परमाणु क्रूज मिसाइल समेत कई नई परमाणु सैन्य क्षमताओं का ऐलान किया, जिनमें से कोई भी मौजूदा अस्त्र नियंत्रण संधियों के अंतर्गत नहीं आती है। अमेरिका ने भी पहले प्रतिबंधित मध्यम दूरी के अस्त्रों का परीक्षण करने की योजना बता दी। परमाणु अस्त्रों एवं उन्हें चलाने की प्रणालियों के लगातार आधुनिक बनने और देशों की सामरिक नीतियों में परमाणु अस्त्रों की अहमियत बढ़ने से भविष्य में परमाणु अस्त्र व्यवस्था और भी अस्थिर हो सकती है।
पिछले वर्ष सामरिक विशेषज्ञों ने उभरती हुई तकनीकों के उथल-पुथल मचाने वाले असर पर भी चिंता जताई है। कृत्रिम मेधा, साइबर अस्त्रों, हाइपरसॉनिक वाहनों और लगातार निगरानी जैसी विभिन्न ‘उथल-पुथल मचाने वाली तकनीकों’ में अकेले या दूसरों के साथ मिलकर हो रहे तेज बदलावों ने वैश्विक परमाणु स्थिरता समाप्त की है और अस्त्रों का प्रयोग टालने की व्यवस्था पर भी उनका असर पड़ रहा है। ये तकनीकें परमाणु अस्त्रों की अप्रभावित रहने की क्षमता के लिए लगातार खतरा बनी हुई हैं और इस कारण इन्हें केवल जवाब देने के लिए ही तैनात करने की परमाणु शक्ति संपन्न देशों की क्षमता में भरोसा भी कम हो रहा है।
अनिश्चित वैश्विक परमाणु प्रशासन के बीच परमाणु अस्त्र संपन्न एवं परमाणु अस्त्र रहित देशों के बीच भी परमाणु निरस्त्रीकरण की रफ्तार पर मतभेद बढ़ रहे हैं। अमेरिका और रूस अपने परमाणु अस्त्रों के जखीरे को लगातार आधुनिक बना रहे हैं, इसलिए परमाणु अप्रसार एवं निरस्त्रीकरण को साथ-साथ चलाने का पी-5 देशों (5 परमाणु अस्त्र संपन्न देश) का वायदा खोखला होते देख परमाणु अस्त्र रहित देश बेहद नाराज हैं। इन घटनाओं से करीब 50 वर्ष पहले की गई परमाणु अप्रसार संधि के लगातार अस्थिर होने की बात कही जा रही है। दिलचस्प है कि 2020 में इस संधि को अनिश्चितकाल तक बढ़ाए जाने के 25 वर्ष पूरे हो रहे हैं।
कई परमाणु अस्त्र संपन्न एवं अस्त्र सहित देशों के बीच मौजूदा विवाद का असली कारण निरस्त्रीकरण की रफ्तार पर पनपी असहमति ही है। मौजूदा गतिरोध के कारण एनपीटी के बेकार हो जाने तथा परमाणु निरस्त्रीकरण, परमाणु अप्रसार एवं परमाणु के शांतिपूर्ण प्रयोग पर सहमति का कोई कारण ही नहीं रह जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है। पिछली बैठकों में उठाए गए मुद्दों पर किसी प्रगति के बगैर समीक्षा बैठकें संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण सम्मेलन की तरह बनकर रह जाएंगी, जिसमें 20 वर्षों से भी अधिक समय से कोई प्रगति ही नहीं हुई है।
किंतु वैश्विक अप्रसार की अपेक्षाओं के उलट बड़ी शक्तियों ने परमाणु अप्रसार के लिए अनुकूल स्थितियां तैयार करने में मिल-जुलकर प्रयास कम ही किए हैं। वैश्विक परमणु प्रशासन के भविष्य पर अमेरिका, रूस और चीन के बीच चल रहे विवाद को देखते हुए परमाणु अप्रसार संधि की 2020 समीक्षा बैठक में सफल परिणाम सामने आने की उम्मीद कम ही है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अमेरिका और रूस से न्यू-स्टार्ट की अवधि बढ़ाने तथा वैश्विक परमाणु व्यवस्था को और बिगड़ने से रोकने के लिए साथ काम करने की अपील लगातार कर रहा है, लेकिन यह अस्पष्ट ही है कि पी-5 देश वैश्विक अप्रसार व्यवस्था को कितना बचा सकते हैं। इसलिए वैश्विक परमाणु व्यवस्था का भविष्य 2020 में बेहद अनिश्चितता भरा दिख रहा है और बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि अमेरिका, चीन और रूस स्थिर तथा स्पष्ट परमाणु वातावरण तैयार करने के लिए काम करने की कितनी इच्छा रखते हैं।
(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>
Post new comment