राष्ट्रपति ट्रम्प की भारत यात्रा : सामरिक संदर्भ पर ध्यान देने की आवश्यकता
Arvind Gupta, Director, VIF

राष्ट्रपति ट्रम्प 24-25 फरवरी, 2020 को भारत की राजकीय यात्रा पर आ रहे हैं। भारत सरकार नि:संदेह भ्रमणकारी राष्ट्रपति के लिए लाल कालीन बिछायेगी। राष्ट्रपति के रूप में राष्ट्रपति ट्रम्प की यह पहली भारत यात्रा है। हालाँकि यह यात्रा उनके कार्यकाल के उत्तरार्ध में हो रही है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ट्रम्प के भारत दौरे को सुनिश्चित करने का श्रेय ले सकते हैं। एक बड़े पैमाने पर सार्वजनिक रिसेप्शन राष्ट्रपति के गुजरात पहुँचने का इंतजार कर रहा है जो विराटता और भव्यता में टेक्सास में "हाउडी मोदी" शो से मेल खाता हुआ होगा। भारत में उम्मीद है कि यह यात्रा दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करेगी। साथ ही, राष्ट्रपति ट्रम्प की अप्रत्याशित प्रकृति को देखते हुए, इस बात की चिंताएँ हैं कि यात्रा कैसे सफल हो सकती है।

भारत का दौरा करते समय, ट्रम्प जश्न और हर्षोल्लास के मूड में होंगे। कांग्रेस द्वारा महाभियोग चलाने के बाद, उन्हें सीनेट द्वारा बरी कर दिया गया है। डेमोक्रेट परेशान हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन कर रही है, रोजगार पैदा कर रही है। ट्रम्प राष्ट्रपति के रूप में दूसरे कार्यकाल के लिए अपनी जीत की संभावनाओं के बारे में आश्वस्त होंगे।

विदेश नीति के मोर्चे पर, ट्रम्प ने चीन को नरम किया है। संयुक्त राज्य अमेरिका-चीन का पहले चरण का व्यापार सौदा लगभग पूरी तरह से एकतरफा है, जो अमेरिका के पक्ष में है। चीन कोरोना वायरस के प्रकोप से जूझ रहा है जिसने शी के नेतृत्व को लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं। चीनी अर्थव्यवस्था मुश्किल में है। देश में सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता के बारे में सवालिया निशान हैं।
आत्मविश्वास से परिपूर्ण ट्रम्प ने अपनी मध्य-पूर्व योजना का खुलासा किया है जो इज़राइल के पक्ष में झुका है और इसे फिलिस्तीनियों ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है। राष्ट्रपति ट्रम्प इस तथ्य से सुकून पा सकते हैं कि खाड़ी के प्रमुख देश योजना के पक्ष-विपक्ष, दोनों तरफ हैं।

राष्ट्रपति ट्रम्प की यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब मई 2019 में आम चुनावों को बढ़िया से जीतने के बाद भाजपा ने लगातार चार राज्य के चुनाव हारे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी की स्थिति में है। भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर की स्थिति को संभालने के तरीके की अमेरिका में आलोचना की गयी है। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के मुद्दे पर पश्चिमी मीडिया का रवैया सरकार के प्रति शत्रुतापूर्ण रहा है। हालाँकि, भारत के वरिष्ठ अधिकारी इन मुद्दों पर अमेरिका के अपने समकक्षों के साथ संपर्क में रहे हैं, लेकिन ट्रम्प अपनी यात्रा के दौरान सार्वजनिक रूप से प्रतिक्रिया कैसे करते हैं, यह अनिश्चित है। जम्मू और कश्मीर पर, राष्ट्रपति ट्रम्प ने सार्वजनिक रूप से भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पेशकश की है, जिसे भारत ने अस्वीकार कर दिया है। इसलिए, श्री ट्रम्प जम्मू-कश्मीर पर क्या अप्रत्याशित कह सकते हैं, यह मेजबानों के लिए चिंता का विषय होगा।

अतीत में ट्रम्प ने भारत और अमेरिका के बीच व्यापार के प्रतिकूल संतुलन पर अपनी नाराजगी नहीं छिपायी है। उन्होंने भारत को 'टैरिफ किंग' बताया है। तथ्य यह है कि भारत-अमेरिका का वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार 140 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है और बढ़ता ही जा रहा है। वस्तुओं के व्यापार में प्रतिकूल संतुलन 2018-19 में महज लगभग 16 बिलियन डॉलर का रहा, जो बहुत ज्यादा नहीं है। भारत को अमेरिकी निर्यात बढ़ रहा है। फिर भी, अमेरिका ने कुछ भारतीय इस्पात और एल्यूमीनियम उत्पादों पर टैरिफ का बोझ लाद दिया है और सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (जीएसपी) को वापस ले लिया है। तब से, दोनों पक्ष मतभेदों को सुलझाने और एक स्वीकार्य व्यापार सौदे पर पहुँचने के लिए गहन बातचीत में लगे हुए हैं। ट्रम्प की यात्रा के दौरान किसी व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर किया जाना अच्छा होगा ताकि इन विवादास्पद मुद्दे हल कर लिये जायें। हालाँकि, अमेरिकी पक्ष कड़ा मोलभाव कर रहा है। वे अपने डेयरी उत्पादों, चिकित्सा उपकरणों और आईटी कंपनियों के लिए अधिक बाजार पहुँच की मांग कर रहे हैं और भारत की डेटा स्थानीयकरण नीतियों पर भी नाखुश हैं। यह अमेरिका पर निर्भर है कि वह व्यापार को सौदा-अवरोधक न बनने दे। वास्तव में, यह अमेरिकी हित में होगा कि वह भारतीय पक्ष से जो प्रस्ताव आता है, उसे स्वीकार करे, जो कि काफी पर्याप्त है।

रक्षा सहयोग भारत-अमेरिका संबंधों के सबसे भरोसेमंद स्तंभों में से एक के रूप में उभर रहा है। पिछले साल आयोजित दूसरा 2+2 संवाद सकारात्मक रहा है। लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (एलईएमओए) और कम्युनिकेशंस कॉम्पैटिबिलिटी ऐंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (कॉमकासा) पर हस्ताक्षर करने के साथ, दोनों पक्ष अब एक और बुनियादी समझौते पर चर्चा कर रहे हैं, जिसे बेसिक एक्सचेंज ऐंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बीईसीए) कहा जाता है। औद्योगिक सुरक्षा अनुबंध (आईएसए) भी पूरा किया डा चुका है। इससे भारत के लिए और अधिक अमेरिकी रक्षा निर्यात का रास्ता खुल जायेगा और भारतीय निर्माताओं को अमेरिकी कंपनियों की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में शामिल हो जाने से उन्हें उपकरणों की आपूर्ति करने में मदद मिलेगी। सरकार अमेरिका से अधिक उच्च तकनीक वाले उपकरण और हथियार खरीदने की इच्छुक है। भारत ने पिछले 10 वर्षों में पहले ही 18 बिलियन डॉलर के उपकरण और हथियार खरीद लिये हैं। इससे अमेरिकी पक्ष को खुशी होनी चाहिए। दोनों पक्ष रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार पहल (डीटीटीआई) को संस्थागत बनाने के लिए भी कदम उठा रहे हैं। डीटीटीआई मानक संचालन प्रक्रिया और डीटीटीआई उद्योग फोरम जैसे नये तंत्र स्थापित किये गय़े हैं। यह भारतीय निजी उद्योग को डीटीटीआई के संवाद शामिल करेगा। हालांकि, यह देखा जाना शेष है कि अमेरिकी कंपनियाँ वास्तव में अत्याधुनिक तकनीकों को भारत में किस हद तक स्थानांतरित करेंगी।

भारत पिछले दो वर्षों से अमेरिका से कच्चा तेल खरीद रहा है। यह एक खेल बदलने वाला घटनाक्रम है। हालांकि, भारत के लिए अमेरिकी तेल निर्यात अभी भी कम ही है, लेकिन भविष्य में बढ़ने की संभावना है क्योंकि भारत ने ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया है। तेल की बढ़ती खरीद ने व्यापार के संतुलन को भी कम कर दिया है। पिछले साल भारत ने अमेरिका से लगभग 20 लाख टन तेल खरीदा था। भारत-अमेरिका संबंधों में ऊर्जा सहयोग एक संभावनाशील क्षेत्र है।

ईरान पर, अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह निर्माण की सहमति जतायी है जैसा कि इसने अफगानिस्तान को स्थिर करने में मदद की थी। पिछली ‘2+2’ बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में यह जाहिर हुआ था। लेकिन ईरान की अमेरिकी रुख कड़ा बना रहेगा। भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यूएस-ईरान तनाव की स्थिति हाथ से न निकले।

अमेरिका में भारत के 40 लाख प्रवासी हैं। अमेरिका में लगभग 2 लाख भारतीय छात्र अमेरिकी अर्थव्यवस्था में लगभग 6 बिलियन डॉलर का योगदान करते हैं। भारतीय कंपनियों ने लगभग 116000 नौकरियों का सृजन करते हुए 16 बिलियन डॉलर का निवेश किया है। भारतीय पक्ष से, एच1बी वीजा एक प्रमुख मुद्दा है। लेकिन यह सौदा-अवरोधक नहीं हो सकता।

हाल के दिनों में, भारत-रूस संबंधों में गर्मजोशी आयी है, खासकर प्रधान मंत्री मोदी की व्लादिवोस्तोक की अत्यंत सफल यात्रा के बाद, जहाँ उन्होंने राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात की और रूस के सुदूर पूर्व के लिए 1 बिलियन डॉलर की लाइन क्रेडिट की घोषणा की। उम्मीद है कि दोनों पक्ष भारत-अमेरिकी संबंधों के विकास में भारत-रूस संबंधों को एक ठोकर नहीं बनने देंगे। यह स्पष्ट नहीं है कि अमेरिका भारत को प्रतिबंधों से छूट प्रदान करेगा और भारत को रूसी एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने देगा।

क्लिंटन, बुश और ओबामा ने भारत-अमेरिका सामरिक साझेदारी की नींव रखने और विकास में योगदान दिया है। यह परस्पर लाभकारी रहा है। ट्रम्प की यात्रा भारत-अमेरिका संबंधों को व्यापक सामरिक संदर्भ में रखने का एक अवसर है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संबंध छोटे मुद्दों और लंबी और पेचीदी व्यापार वार्ता में उलझ गये हैं। जबकि पहल महत्वपूर्ण है, पर सामरिक संदर्भ को छोड़ा नहीं जाना चाहिए। बड़े संदर्भ में संपूर्ण हिंद-प्रशांत क्षेत्र शामिल है, जहाँ चीन के उदय ने भू-राजनीतिक समीकरणों को काफी बदल दिया है, जो अमेरिका और भारत दोनों के नुकसानदायक है। पश्चिम की तरह भारत की सुरक्षा कमजोर है। पश्चिमी पक्ष पर, भारत और अमेरिका को अपनी स्थिति को बेहतर ढंग से समन्वित करने की आवश्यकता है, जैसा कि यह अफगानिस्तान या मध्य पूर्व पर है।
अमेरिका तालिबान के साथ समझौते तक पहुँचने की पूरी कोशिश कर रहा है। भारत इन वार्ताओं में शामिल नहीं रहा है। आंशिक रूप से ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत ने तालिबान से बात करने से इनकार कर दिया है। फिर भी, अगर अमेरिका और तालिबान किसी सौदे पर पहुँचते हैं, तो इसका क्षेत्र और भारत पर भी बड़ा प्रभाव पड़ेगा। उम्मीद है कि तालिबान से बातचीत करते हुए अमेरिका इस क्षेत्र में भारतीय हितों को ध्यान में रखेगा।

दो प्रमुख ज्ञान अर्थव्यवस्थाओं के रूप में, भारत और अमेरिका उभरती प्रौद्योगिकियों पर सहयोग और सहायता कर सकते हैं, जो नयी विश्व व्यवस्था को आकार देंगे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, 5जी, क्लाउड कंप्यूटिंग, मशीन लर्निंग, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, नीली अर्थव्यवस्था, स्वच्छ ऊर्जा, बायोइनफॉर्मेटिक्स, दवा उद्योग, कृषि, पानी आदि सहयोग के कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं। सहयोग से दोनों पक्षों को बड़े सामाजिक-आर्थिक लाभ प्राप्त होंगे। हम उभरती हुई परमाणु व्यवस्था, अंतरिक्ष सुरक्षा और साइबर सुरक्षा मुद्दों पर भी चर्चा कर सकते हैं। इन क्षेत्रों में सहयोग को गहरा करने के लिए ट्रम्प की यात्रा एक उत्कृष्ट अवसर है।

इस साल जनवरी में, अमेरिकी कांग्रेस ने तिब्बत नीति और समर्थन पर प्रस्ताव 4331 पारित किया। राष्ट्रपति के पास जाने से पहले प्रस्ताव को सीनेट में पारित किया जाना बाकी है। यह एक व्यापक संकल्प है जो दलाई लामा के उत्तराधिकारी की चयन प्रक्रिया में हस्तक्षेप किये जाने पर चीनी अधिकारियों के खिलाफ प्रतिबंधों का वादा करता है। तिब्बत में जो होता है, वह भारत के लिए बहुत महत्व रखता है। चीन तिब्बत का हिस्से के रूप में अरुणाचल प्रदेश पर दावे करता रहा है। यह स्पष्ट रूप से भारत के लिए अस्वीकार्य है। इसी तरह, चीन ने अनुच्छेद 370 में संशोधन के बाद औपचारिक विरोध किया है। ट्रम्प की यात्रा के दौरान, भारत शीर्ष ब्रीफिंग में इस बारे में वक्तव्य चाह सकता है कि अमेरिका तिब्बत की स्थिति को कैसे देखता है। दोनों देश शिनजियांग में उत्पन्न स्थिति पर भी चर्चा कर सकते हैं।

अमेरिका अपनी विदेश नीति में भारत के महत्व से अच्छी तरह वाकिफ है। उम्मीद है कि राष्ट्रपति ट्रम्प इस अवसर का उपयोग संबंधों को और गहरा करने के लिए करेंगे और विशिष्ट व्यापारिक मुद्दों को सफलता की कसौटी बना कर साझेदारी को पटरी से उतरने नहीं देंगे। व्यापार भारत-अमेरिका संबंधों का एकमात्र चालक नहीं हो सकता।

भारत में, यह आकलन है कि ट्रम्प के राष्ट्रपति के रूप में दूसरा कार्यकाल जीतने की संभावना है। इसलिए ट्रम्प की यात्रा को द्विपक्षीय सामरिक साझेदारी के भविष्य के लिए एक निवेश के रूप में देखा जाना चाहिए, जिसे भारत और पाकिस्तान, दोनों में समग्र राजनीतिक बिरादरी का समर्थन है।

(यह लेख लेखक की व्यक्तिगत विद्वतापूर्ण अभिव्यक्ति है। लेखक प्रमाणित करता है कि लेख/पेपर की सामग्री मौलिक है, अप्रकाशित है और इसे कहीं और प्रकाशन/वेब अपलोड के लिए प्रस्तुत नहीं किया गया है, और उद्धृत तथ्यों और आंकड़ों को आवश्यकतानुसार विधिवत संदर्भित किया गया है, और माना जाता है कि वे सही हैं)।


Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: https://images.indianexpress.com/2020/01/trump-modi.jpg

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