शी हजूर! म्यांमार के लिए ‘नए दौर’ में पुरानी शराब
Jaideep Chanda

म्यांमार उस समय बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) में एक तरह से शामिल हो गया था, जब मई 2017 में आंग सान सू ची पेइचिंग में पहले बेल्ट एंड रोड फोरम फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन में शामिल हुई थीं। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने फोरम में अपने भाषण में बीआरआई के संदर्भ में म्यांमार का उल्लेख भी किया था।1 उसके बाद अप्रैल 2019 में दॉ सू दूसरे बेल्ट एंड रोड फोरम में पहुंचे, जहां चीन द्वारा जल्द बनाई जाने वाली परियोजनाओं के रूप में प्रस्तावित 38 प्रस्तावों में से नौ पर दोनों में सहमति बनी, जिनमें तीन द्विपक्षीय समझौते थे। तीन द्विपक्षीय समझौतों में आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग पर समझौता, पांच वर्ष की आर्थिक एवं विकास सहयोग योजना 1अरब युआन यानी 14.45 करोड़ डॉलर अनुदान के साथ) पर सहमति पत्र और चीन-म्यांमारा आर्थिक गलियारा परियोजना पर एक सहमति पत्र शामिल था। 2 लेकिन कर्ज के मामले में चीन की संदिग्ध साख के कारण रूढ़िवादी नजरिया अपनाते हुए 29 परियोजनाओं पर हस्ताक्षर नहीं किए गए। 3,4

17-18 जनवरी 2020 को चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की पहली यात्रा5 दोनों राष्ट्रों के बीच राजनयिक संबंधों के 70 वर्ष पूरे होने का अवसर मनाने के लिए थी। चीनी उप विदेश मंत्री लोउ झाओहुई ने 17 जनवरी 2020 को पेइचिंग में मीडिया से बातचीत में कहा कि यात्रा का उद्देश्य रिश्तों को मजबूत करना; बेल्ट एंड रोड कार्यक्रम में सहयोग प्रगाढ़ करना और चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे यानी बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के म्यांमार में बनने वाले हिस्से को “मूर्त रूप” प्रदान करना था।

इससे पहले चीन के राष्ट्रीय मामलों के सलाहकार और विदेश मंत्री वांग यी म्यांमार गए और उन्होंने 7 दिसंबर 2019 को सेना समेत म्यांमार के समूचे नेतृत्व से मुलाकात की। दोनों पक्षों ने सामान्य बातचीत की, लेकिन वांग यी ने दोनों देशों के रिश्तों को ‘बाओबो’ (दोस्त और संबंधी ) की संज्ञा दी, जो पौक फॉ (बिरादराना) रिश्तों से एक कदम आगे हैं।6,7

प्रेस में शी चिनफिंग का आलेख

यात्रा शुरू होने से एक दिन पहले 16 जनवरी 2020 को यात्रा का माहौल बनाने के लिए चीनी राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित और “राइटिंग अ न्यू चैप्टर इन अवर मिलेनिया-ओल्ड फौक-फॉ फ्रेंडशिप” शीर्षक वाला लगभग 1300 शब्दों का आलेख म्यांमार के तीन अखबारों - म्यांमा अलिन डेली, द मिरर और द ग्लोबल न्यू लाइट ऑफ म्यांमार में प्रकाशित हुआ। जुमलेबाजी से भरे आलेख के पहले सात अनुच्छेदों में चीन-म्यांमार सहयोग के उदाहरण भरे हुए थे और आखिरी पांच अनुच्छेदों में संवाद भरे अगले कुछ दशकों के लिए वातावरण बनाने की उम्मीद थी। उसमें ‘नए अध्याय’, ‘नए खाके’, ‘नई रफ्तार’, ‘नए सार’, ‘नई प्रगति’, ‘नए प्रकार के अंतरराष्ट्रीय संबंध’ और ‘नए दौर’ जैसे शब्दों का जमकर प्रयोग किया गया था। साथ ही इस ‘नए बिंदु’ से ‘जारी रखने’, ‘प्रगाढ़ बनाने’, ‘बढ़ावा देने’, ‘व्यापक बनाने’ और ‘संवाद करने’ की उम्मीद जताई गई थी।8 कुल मिलाकर यही यात्रा का सार था... कोई बदलाव नहीं, बस यह समझकर हावी होता राष्ट्रवाद कि म्यांमार इतना समझदार हो गया है कि बड़े कर्ज के साथ आने वाले दबावों को समझने लगा है।9 जब बड़े-बड़े जुमले बीत गए तो पता चला कि ‘नए दौर’ में शराब पुरानी ही है 10

दिखावा

यात्रा के संबंध में धारणा द्विपक्षीय लाभों तक सीमित नहीं थी, जो हमें तब पता चलेगा, जब हम इस दौरान हस्ताक्षर किए दस्तावेजों की पड़ताल करेंगे। लेकिन इस यात्रा ने दोनों पक्षों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने दिखावा करने का मौका जरूर दिया। यात्रा के समय को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। यात्रा 23 जनवरी 2020 से ऐन पहले थी। 23 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय म्यांमार द्वारा कथित तौर पर रोहिंग्या का संहार किए जाने के खिलाफ गांबिया की शिकायत पर फैसला देने जा रहा था। इस गठजोड़ ने म्यांमार पर पश्चिम द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने एवं संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्ताव पारित किए जाने की आशंका खत्म कर दी (क्योंकि चीन संयुक्त राष्ट्र का स्थायी सदस्य है) और उसे निवेश तथा बुनियादी ढांचा मुहैया कराया। बदले में चीन को मलक्का की खाड़ी में अपने अड्डे के बचाव के लिए हिंद महासागर में प्रवेश का मौका मिल गया। वासतव में म्यांमार को चीन की भूराजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की धुरी बताया गया है11
वास्तव में यात्रा में राष्ट्रपति को यू विन मिंत, राष्ट्रीय मामलों की सलाहकार दॉ आंग सान सू ची, रक्षा सेवा के कमांडर इन चीफ मिंग आंग लेंग तथा ने पाई तॉ के अन्य अज्ञात राजनेताओं एवं धर्मगुरुओं से मुलाकात करनी थी। इसमें सहकारी दस्तोजों के आदान-प्रदान; चीन-म्यांमार राजनयिक संबंधों की 70वीं वर्षगांठ और चीन-म्यांमार संस्कृति एवं पर्यटन वर्ष की शुरुआत जैसे समारोह शामिल थे।

माइत्सोन बांध परियोजना रही ठप

दिलचस्प है कि विवादित माइत्सोन बांध परियोजना का जिक्र ही नहीं हुआ।12 माना जाता है कि राष्ट्रपति शी का इस परियोजना के क्रियान्वयन से भावनात्मक जुड़ाव है क्योंकि इस पर उन्होंने एक दशक पहले उपराष्ट्रपति रहते हुए हस्ताक्षर किए थे। ट्विटर इस यात्रा के दौरान परियोजना को पटरी पर लाने की अफवाहों13 से गूंजता रहा, लेकिन दोनों पक्षों के चुने हुए लोगों 14 ने सुनिश्चित किया कि कम से कम सार्वजनिक तौर पर परियोजना का जिक्र नहीं हो।

परियोजना पर जोर देने के कारण पहले मिल चुके घाव अब भी म्यांमार की जनता के दिलोदिमाग में ताजा होंगे। राष्ट्रपति शी की यात्रा से दो दिन पहले काचीन के 40 नागरिक समाज संगठनों ने उन्हें एक खुला पत्र लिखकर ठप पड़ी माइत्सोन बांध परियोजना को हमेशा के लिए खत्म करने का अनुरोध किया और कहा कि यह परियोजना म्यांमार की जनता की संपन्नता के लिए खतरा है और परियोजना आगे बढ़ी तो दोनों देशों के बीच दोस्ताना रिश्ते बिगड़ जाएंगे।15 नागरिक समाज संगठनों ने यांगून में चीनी दूतावास के सामने विरोध प्रदर्शन का प्रस्ताव भेजा, जिसे अधिकारियों ने ठुकरा दिया।16

दस्तावेजों पर दस्तखत

दो दिनों की यात्रा के दौरान राष्ट्रपति शी के सामने ही दोनों देशों के बीच 33 सहमति पत्रों, हस्तांतरण प्रमाणपत्रों, पत्रों, अभिरुचि पत्रों, प्रोटोकॉल दस्तावेजों और परियोजनाओं के क्रियान्वयन के पत्रों पर हस्ताक्षर हुए।

जिन परियोजनाओं के लिए समझौते हुए, उन पर सरसरी निगाह डालने से पता चलता है कि बहुत बड़ा कुछ नहीं हआ। दस्तावेज सामान्य प्रकृति के ही थे और अधिकतर पत्रों में एक भी कीमती परियोजना को अमली जामा पहनाने के बजाय सहयोग की इच्छा भर व्यक्त की गई थी। अधिकतर मामलों में परियोजना के ब्योरे यानी बोली लगाने और रकम का इंतजाम करने को भी अंतिम रूप नहीं दिया गया था और उन पर अभी बातचीत होनी है।17 इससे लगता है कि चीन केवल दिखावा कर रहा है और म्यांमार उसके साथ है क्योंकि सूची में कोई भी कीमती विवादित या नकारात्मक परियोजना नहीं है। माइत्सोन बांध जैसी किसी भी परियोजना से दूर रहना 2020 के चुनावों के लिहाज से जरूरी है। किंतु क्यौकफ्यू के इर्दगिर्द मौजूद बड़ी परियोजनाएं चुपचाप ही सही मगर चलती रहेंगी। किंतु इस परियोजना का भी विरोध होने का खतरा है क्योंकि बड़ी संख्या में स्थानीय लोग इससे आश्वस्त नहीं हैं और पूछ चुके हैं कि निवेश से आम आदमी को फायदा होगा या नहीं।18
दस्तावेजों का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया हैः

मीडिया का दृष्टिकोण

हैरत की बात है कि अंग्रेजी मीडिया इस कार्यक्रम के बारे में बहुत सतर्क और मौन रहा। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के लिए लिखते हुए कॉलिन कोह ने कहा कि म्यांमार की बिगड़ी हुई छवि पेइचिंग के लिए एक अवसर है चाहे मयांमार क्षेत्र में रणनीति संतुलन बनाए रखने के लिए सुरक्षित खेल ही क्यों न खेले।19 चीन ‘दोस्ताना रवैये वाला ताकतवर पड़ोसी’ होने का दिखावा कर रहा है मगर देशों को कर्ज के बोझ तले बुरी तरह दबा देने के उसके प्रयासों की बढ़ती खबरों के कारण मुखौटा धीरे-धीरे खिसक रहा है।20 परियोजनाओं में पारदर्शिता की चिर-परिचित कमी के कारण इन परियोजनाओं के पीछे की असल मंशा और नतीजे छिपे रह जाते हैं और स्थानीय लोग उनसे सशंकित हो जाते हैं।21 नैस्डैक में आए एक वेब आलेख22 में बताया गया है कि किस तरह निवेश ‘स्थानीय परंपराओं और मूल्यों का अनादर करता है तथा स्थानीय लोगों से सलाह-मशविरा नहीं करता है’, जो नागरिक समाज संगठनों द्वारा लिखे खुले पत्र में भी कहा गया था।

इसके अलावा दोनों पक्षों के साथ रहने और म्यांमार में काम कर रहे जातीय सशस्त्र संगठनों को हथियार मुहैया कराने की चीनी नीति का पर्दाफाश कर म्यांमार ने चीन को रक्षात्मक होने पर मजबूर कर दिया है। म्यांमार में हाल में हुई हथियारों की बड़ी बरामदगी के कारण देश भर में आक्रोश है क्योंकि इसमें चीन निर्मित और कंधे पर रखकर दागी जाने वाली एफएन-6 विमानरोधी मिसाइल भी शामिल थी, जिसने चीन की संदिग्ध भूमिका सबके सामने ला दी।23 मिज्जिमा मीडिया ने रक्षा सेवा द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से बताया कि म्यांमार के रक्षा सेवाओं के कमांडर इन चीफ से मुलाकात में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग को इस बात से इनकार करना पड़ा कि कि उनका देश म्यांमार में जातीय सशस्त्र संगठनों को हथियारों की आपूर्ति कर रहा है। शी के हवाले से कहा गया, “हम म्यांमार में जातीय सशस्त्र संगठनों को हथियारों की आपूर्ति के आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं। लेकिन वे दूसरे तरीकों से इन हथियारों को हासिल कर सकते हैं, इसलिए हम इस समस्या के समाधान के लिए इसकी पड़ताल करेंगे।”24

म्यांमार में चीन के सामरिक हितों की बुनियाद क्यौकफ्यू बंदरगाह में डाली गई है, जिसके इर्द-गिर्द परिवहन परिपथ, विशेष आर्थिक क्षेत्र और रिसॉर्ट तथा आवासीय परियोजनाओं समेत कई सहयोगी परियोजनाएं आरंभ हो जाएंगी। लेकिन रखाइन समुदाय को डर है कि उसी तरह फिर अधर में लटक जाएंगे, जैसे चीन की पिछली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं ने उन्हें जमीन और रोजगार दोनों से वंचित कर दिया था। क्यौकफ्यू एसईजेड वॉच ग्रुप के प्रतिनिधि श्री मोमो अए ने बताया कि “उनसे हमें कोई फायदा नहीं होगा, नौकरियां भी नहीं मिलेंगी।” 25

आगे क्या?

रोहिंग्या संकट के बाद होहल्ले के कारण पश्चिमी सेनाओं के हटने से खाली हुए कूटनीतिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थान को भरने के लिए चीन भागा आया है।26 लेकिन आज चीन को पछाड़कर सिंगापुर म्यांमार में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक बन गया है27 और म्यांमार के पास दूसरे एशियाई देशों जैसे जापान, कोरिया, थाईलैंड और भारत से व्यापार और निवेश के अधिक विकल्प मौजूद हैं। फिलहाल ऐसा लग रहा है कि म्यांमार को चीन की जितनी जरूरत है, उससे ज्यादा जरूरत चीन को म्यांमार की है।28 इसलिए म्यांमार ने अपने जोखिम को कम किया है वहीं चीन म्यांमार की भू-रणनीतिक स्थिति पर ही निर्भर है और युनान से हिंद महासागर में प्रवेश पाने के लिए म्यांमार पर निर्भर रहने के अलावा उस पर कोई अन्य विकल्प नहीं है।

मगर म्यांमार उथल-पुथल नहीं मचाना चाहता और अपने अंदरूनी हिस्सों में चीन के प्रभाव का संतुलन बनाए रखने के लिए खुद को सुरक्षित रखना चाहता है। इसलिए अब से लेकर नवंबर में होने वाले चुनावों तक बेल्ट एंड रोड कार्यक्रम में मौन गतिविधियां ही दिखेंगी। दॉ सू और नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी इस समय चीन-विरोधी भावनाओं के कारण जनांदोलन खड़ा होने का खतरा मोल नहीं ले सकते।

श्रीलंका के साथ रिश्तों में चीन का जो झगड़ालू रवैया रहा था, उस पर म्यांमार नजर रख रहा था। विदेश मंत्री वांग यी के इस बयान में झलक रहा घमंड म्यांमार को पच नहीं पाया है कि चीन किसी भी बाहरी तत्व को श्रीलंका के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप हरगिज नहीं करने देगा।29 इसी तरह हाल में आई इन खबरों को भी नजरअंदाज नहीं किया गया है कि चीन बाइबल और कुरान के विचारों की व्याख्या समाजवाद के बुनियादी मूल्यों के अनुरूप करने के लिए दोनों ग्रंथों को नए सिरे से लिखवा रहा है।30 म्यांमार में राष्ट्रीय नेतृत्व और आम जनता दोनों के दिमाग में ये बातें घूम रही होंगी।

भारत के लिए विकल्प

म्यांमार में भारत द्वारा अधिक सक्रियता दिखाए जाने की मांग लगातार उठ रही है।31 भारत भी इस बात का दोषी है कि जब पश्चिमी देश स्वर्णिम भूमि कहलाने वाले म्यांमार से हट रहे हैं तो भारत म्यांमार तथा स्वयं के लिए महत्वपूर्ण मौकों को लपक नहीं रहा है। तब इन परिस्थितियों में म्यांमार के लिए भारत की क्या कल्पना होनी चाहिए और उस कल्पना को साकार करने के लिए रणनीति क्या होनी चाहिए? मयांमार के बारे में भारत की कल्पना सीधे म्यांमार की भू-सामरिक स्थिति से जुड़ी है और दोनों देशों के रिश्ते धार्मिक, भाषाई एवं जातीय संबंधों की साझी विरासत से जुड़े हैं। स्थिर पूर्वोत्तर भारत के लिए म्यांमार में स्थिरता भी जरूरी है। इसीलिए म्यांमार का वास्तविक विकास ही प्राथमिक कल्पना है और उससे नतीजा यह निकलता है कि म्यांमार का सहयोग करने से उसे अपने पांवों पर खड़े होने में चीन पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी, जिससे भारत की सुरक्षा की स्थिति भी मजबूत होगी। इसे ही उस कल्पना या दृष्टि का व्यापक सिद्धांत मानते हुए जो रणनीति सामने आती है, वह नीचे के अनुच्छेदों में लिखी है।

सबसे पहले यह समझना और स्वीकार करना होगा कि म्यांमार को भारत से मिलने वाली सहायता चीन से आने वाले निवेश की बराबरी नहीं कर सकती। लेकिन म्यांमार में भारतीय सद्भाव को देखते हुए उसके निवेश एवं सहयोग को ‘दिलोदिमाग’ के चश्मे से देखना होगा। ‘दिल और दिमाग के निवेश’ के विचार का अर्थ ऐसे स्थानों और क्षेत्रों तक पहुंचना है, जहां छोटी मात्रा में लेकिन बड़ी संख्या में निवेश की जरूरत है। ‘दिल’ का मतलब ऐसे इलाकों और क्षेत्रों को तलाशना है, जहां निवेश की किल्लत है और जहां स्थानीय लोगों को उनकी पारंपरिक जीवनशैली से दूर किए बगैर उन पर अधिक से अधिक प्रभाव हो सकेगा। ‘दिमाग’ के जरिये यह सुनिश्चित करना है कि दिल वाली जरूरतें पूरी करते समय भी परियोजनाओं की वित्तीय व्यवहार्यता को नजरअंदाज नहीं किया जाए। इस तरह कम लेकिन लगातार और लंबे समय का मुनाफा और अफसरशाही की कम बाधाओं के साथ छोटे स्तर पर कई जगह काम करना बड़ी परियोजनाओं पर भारी पड़ जाएगा और उन भौगोलिक क्षेत्रों में निवेश मुहैया कराएगा, जिन्हें नजरअंदाज किया जाता है। ये उस तरह के निवेश होंगे, जो केवल स्थानीय रसूख वालों और निवेशकों को ही नहीं बल्कि आम आदमी को भी प्रभावित करते और फायदा दिलाते हैं।

दूसरी बात, म्यांमार को बहुराष्ट्रीय साझे उपक्रमों की संभावना पर विचार करना होगा और उन पर जोर देना होगा तथा चीन एवं भारत को भी खासकर चीन और म्यांमार के बीच पारंपरिक द्विपक्षीय उपक्रमों के बजाय इस प्रकार के उपक्रमों को स्वीकार करना होगा। इसका अच्छा उदाहरण प्रस्तावित चीन म्यांमार आर्थिक गलियारे के आर-पार जाने वाली म्यांमार-चीन गैस पाइपलाइन परियोजना की शक्ल में नजर आता है। इस परियोजना में साउथ ईस्ट एशिया पाइपलाइन कंपनी, म्यांमार ऑयल एंड गैस एंटरप्राइज, पोस्को देवू, ओनएनजीसी कैस्पियन ईएंडपी बीवी, भारतीय तेल एवं गैस प्राधिकरण और कोरिया गैस कॉर्पोरेशन ने एक साथ निवेश किया है और साथ मिलकर इसका निर्माण कर रही हैं। इसे चलाने और संभालने का जिम्मा साउथ-ईस्ट एशिया गैस पाइपलाइन कंपनी लिमिटेड पर है।32 बहुराष्ट्रीय संस्थाओं के जुड़ने से विशेषज्ञता मिलेगी और प्रणाली पर लगातार नजर रखी जाएगी, जिससे चीन का एकाधिकार खत्म हो जाएगा तथा परियोजनाओं में निष्पक्षता आएगी। इस तरह गतिविधियों में भारतीय निवेशकों की हिस्सेदारी भी हो जाएगी भारतीय तथा अन्य निवेशकों की मौजूदगी से म्यांमार के निवेशकों एवं जनता का भरोसा बढ़ेगा। भारत द्वारा चलाए जाने वाले ऐसे गठबंधन बिम्सटेक या भारत आसियान नेटवर्क अथवा जापान के साथ सहयोग का इस्तेमाल कर ‘दिल और दिमाग वाले निवेश’ के भरोसेमंद वैकल्पिक स्रोत भी उपलब्ध करा सकते हैं।33

अंत में भारत के पास तय समय पर और तय लागत में परियोजनाएं तैयार करने की व्यवस्था बनाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। कलादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्टेशन परियोजना का क्रियान्वयन इसका उदाहरण है, जो दो दशक पहले आरंभ होने के बाद भी आज तक पूरी नहीं हो सकी है। यह अफसरशाही की बेरुखी और जवाबदेही से बचने की व्यवस्थागत संस्कृति का नतीजा है। अपने वादों पर खरा नहीं उतरने की भारत की जो नकारात्मक छवि पड़ोसी देशों में बनी है, वह उसके कद और क्षेत्रीय नेतृत्व की उसकी आकांक्षाओं पर बहुत खराब असर डाल रही है।

संदर्भ
  1. पूरे भाषण के लिए देखें, http://www.xinhuanet.com/english/2017-05/14/c_136282982.htm (3 नवंबर 2019 को देखा गया)
  2. आंग जिन फायो थीन, “द बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव इन म्यांमारः स्टेयरिंग डाउन द ड्रैगन”, फ्रंटियर म्यांमार, 2 अगस्त 2019, https://frontiermyanmar.net/en/the-belt-and-road-initiative-in-myanmar-staring-down-the-dragon (24 नवंबर 2019 को देखा गया)
  3. थॉमस कीन, “म्यांमार सेट्स अ स्लोअर पेस फॉर द बेल्ट एंड रोड”, फ्रंटियर म्यांमार, 25 मई 2019, https://frontiermyanmar.net/en/myanmar-sets-a-slower-pace-for-the-belt-and-road. (23 नवंबर 2019 को देखा गया)
  4. https://www.irrawaddy.com/opinion/analysis/second-bri-forum-roundup-how-myanmar-fares.html (1 दिसंबर 2019 को देखा गया)
  5. राष्ट्रपति के रूप में पहली यात्रा, हालांकि उन्होंने उप राष्ट्रपति के रूप में 2009 में म्यांमार की यात्रा की थी। अन्यथा यह 19 वर्षों में किसी चीनी राष्ट्राध्यक्ष की पहली यात्रा थी। https://www.irrawaddy.com/news/burma/busy-schedule-awaits-chinese-president-xi-2-day-visit-myanmar.html (18 जनवरी 2020 को देखा गया)
  6. https://www.irrawaddy.com/opinion/commentary/beyond-the-cliche-of-pauk-phaw-china-and-myanmar-need-each-other.html
  7. चाइना ग्लोबल टेलीविजन नेटवर्क का वेब आलेख “चाइना म्यांमार प्लेज टु बूस्ट टाईज टु न्यू हाई”, 9 दिसंबर 2019, https://news.cgtn.com/news/2019-12-08/China-Myanmar-pledge-to-boost-ties-to-new-high-MfoRnWanRu/share_amp.html?__twitter_impression=true (18 जनवरी 2020 को देखा गया)
  8. China.org.cn का वेब आलेख, ‘फुल टेक्स्ट ऑफ शीज साइन्ड आर्टिकल ऑन म्यांमीज न्यूजपेपर्स’ http://www.china.org.cn/world/2020-01/16/content_75619897.htm 16 जनवरी 2020: (18 जनवरी 2020 को देखा गया)
  9. द रीनेगोशिएशन ऑफ द क्यौकफ्यू डी सी पोर्ट फ्रॉम 7 बिलियन डॉलर टु 1.3 बिलियन डॉलर बीइंग अ केस इन पॉइंट
  10. https://www.arabnews.com/node/1614701/world
  11. https://thediplomat.com/2020/01/xi-jinping-kicks-off-myanmar-state-visit/
  12. लगभग 3.6 अरब डॉलर की अनुमानित लागत वाली माइत्सोन बांध परियोजना के समझौते पर पूर्व वाइस सीनियर-जनरल मौंग आए और चीन के तत्कालीन उप राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने हस्ताक्षर किए थे। 6,000 मेगावाट के बांध का निर्माण 2009 में आरंभ हुआ था, लेकिन इस बांध के प्रति म्यांमार के लोगों में बहुत आक्रोश उत्पन्न हो गया क्योंकि देश की जनता इस बारे में एकमत थी कि बांध म्यांमार को कई प्रकार से नुकसान पहुंचाएगा और उसे बंद कर दिया जाना चाहिए। जनता के बीच व्याप्त चिंता का जवाब देते हुए राष्ट्रपति यू थीन सीन ने सितंबर 2011 में यह कहते हुए बांध परियोजना को रोक दिया (खत्म नहीं किया) कि यह “जनता की इच्छा के खिलाफ है।”
  13. हंटर मार्सटन का 16 जनवरी 2020 का ट्वीटः https://twitter.com/hmarston4/status/1217842316712476673?s=20 (18 जनवरी 2020 को देखा गया)
  14. नवंबर 2020 में चुनाव होने हैं।
  15. द इरावदी, वेब आलेख, “म्यांमार सीएसओज अर्ज शी चिनफिंग टु टर्मिनेट माइत्सोन डैम प्रोजेक्ट”, 16 जनवरी 2020, https://www.irrawaddy.com/news/burma/myanmar-csos-urge-xi-jinping-to-terminate-myitsone-dam-project.html (19 जनवरी 2020 को देखा गया)
  16. द इरावदी, वेब आलेख, “म्यांमार एक्टिविस्ट्स रिफ्यूज्ड यांगून एंबैसी प्रोटेस्ट ड्यूरिंग शी विजिट”, 17 जनवरी 2020: https://www.irrawaddy.com/news/burma/myanmar-activists-refused-yangon-embassy-protest-xi-visit.html
  17. https://www.ft.com/content/a5265114-39d1-11ea-a01a-bae547046735
  18. https://www.scmp.com/news/china/diplomacy/article/3046694/chinese-president-xi-jinping-wraps-myanmar-visit-string
  19. https://www.scmp.com/news/china/diplomacy/article/3046656/can-xi-jinpings-visit-help-china-cash-myanmars-image-crisis
  20. https://www.scmp.com/news/china/politics/article/3046435/china-turns-myanmar-friendly-giant-neighbourhood
  21. https://upnewsinfo.com/2020/01/16/myanmar-unrolls-a-welcome-mat-for-china-but-not-quite/
  22. https://www.nasdaq.com/articles/as-chinas-xi-visits-myanmar-ethnic-groups-rue-disrespectful-investment-2020-01-17
  23. https://www.asiatimes.com/2019/11/article/chinas-mobile-missiles-on-the-loose-in-myanmar/
  24. http://mizzima.com/article/chinese-president-denies-supplying-arms-ethnic-armed-groups
  25. https://www.arabnews.com/node/1614701/world
  26. https://www.washingtonpost.com/world/asia_pacific/when-xi-met-suu-kyi-china-embraces-myanmar-as-western-nations-pull-back/2020/01/17/04dfc4b6-373c-11ea-a1ff-c48c1d59a4a1_story.html
  27. https://www.enterprisesg.gov.sg/media-centre/news/2019/june/singapore-is-largest-investor-in-myanmar
  28. सो माइंत, संपादकीय, “लेवल प्लेइंग फील्ड?” मिज्जिमा वीकली, 5 दिसंबर 2019
  29. https://www.ndtv.com/world-news/china-says-wont-allow-outside-interference-in-sri-lankas-affairs-2164148
  30. https://www.dailysabah.com/asia/2019/12/25/china-to-rewrite-quran-bible-to-fit-socialist-values
  31. देखिए https://www.dailypioneer.com/2019/columnists/time-to-up--the-game.html;https://www.firstpost.com/india/indias-foreign-policy-for-next-5-years-new-delhi-must-stave-off-chinese-influence-on-myanmar-through-trade-development-assistance-6846731.html;http://eleventhcolumn.com/2019/06/26/what-india-must-focus-on-in-
  32. myanmar/;https://timesofindia.indiatimes.com/india/why-chinese-president-xi-jinpings-myanmar-visit-may-worry-india/articleshow/73324878.cms

  33. म्यांमार-चीन तेल एवं गैस पाइपलाइन परियोजना (म्यांमार वाला भाग) “स्पेशल रिपोर्ट ऑन सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी”: http://csr.cnpc.com.cn/cnpccsr/xhtml/PageAssets/mdbg2016-en.pdf (3 नवंबर 2019 को देखा गया)
  34. बीआरआई के जवाब में भारत के पास मौजूद विकल्पों पर व्यापक शोधपत्र के लिए देखें दर्शना बरुआ का “इंडियाज आंसर टु द बेल्ट एंड रोडः अ रोड मैप फॉर साउथ एशिया”, कार्नेगी इंडिया वर्किंग पेपर, अगस्त 2018: https://carnegieendowment.org/files/WP_Darshana_Baruah_Belt_Road_FINAL.pdf (1 दिसंबर 2019 को देखा गया)

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
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