चीन द्वारा छल-कपट(धोखा), नकार, विखंडन और दुष्प्रचार (डी-4)
Col Pradeep Jaidka (Retd.)

छिपकली, गिरगिट और सारस अपने पर आए खतरों तथा अपने अस्तित्व को बचाने के लिए छल करते हैं। मनुष्य दूसरों में भ्रम पैदा करने, उसे चकित कर देने, अपना फायदा उठाने और जीत हासिल करने के लिए छल का सहारा लेते हैं। महाभारत में ऐसे उदाहरण प्रचुरता में भरे पड़े हैं। अन्य उदाहरण हैं, टार्जन युद्ध, सिकंदर का रात में सिंधु नदी पार करने, जीमरमैन टेलीग्राम इत्यादि। एक उपकरण के रूप में छल-कपट साभिप्राय धमकी के विश्लेषण के दो सदिश -क्षमताओं और इरादों-को या तो छिपाती है या उसे बढ़ा देती है। चीनी छल-प्रपंच को रचने, तिकड़म करने तथा राजनीतिक एवं चातुर्यपूर्ण चालबाजी को एक परिष्कृत कला में बदलने में एकदम माहिर है, जिसका प्रभाव सार्थक, ठोस धमकी-विश्लेषण पर पड़ता है। चीन खुले रूप से साइबर आक्रामकता, इलेक्ट्रॉनिक जासूसी, सूचना चुराने और सूचना युद्धों (जो इस आलेख के विमर्श से बाहर है) का समर्थन करता है। इस संदर्भ में प्राचीन चीनी अभिशाप: "आप दिलचस्प समय में रह सकते हैं" अधिक ध्यान खींचता है।

यद्यपि छल-कपटपूर्ण व्यवहार और उपयोग के संकेत प्राचीन काल से ही मिलते रहे हैं, लेकिन इसके बारे में विस्तृत विमर्श आसानी से नहीं मिलते। प्रस्तुत आलेख चीनी युद्ध तंत्र और छल-कपट की मोर्चाबंदी का विश्लेषण करता है। इस संदर्भ में अधिकतर उदाहरण प्राचीन भारत और चीनी घटनाक्रमों को सन सू की शिक्षा को अन्य चिंतकों के साथ तुलनात्मक रूप से ग्रहण किया गया है। इनमें से कुछ मेक्रो (रणनीतिक), सैन्य परिचालन और सामरिक) स्तरों तथा उनके हालिया उपयोग के रूप में सूचीबद्ध और संबद्ध किया गया है।

चीनी चिंतन और मानसिकता पर ऐतिहासिक प्रभाव

चीनी चिंतन और मानसिकता पर पड़े कई प्रभावों में से मुख्यत: दो ऐतिहासिक प्रभावों-वेइ ची खेल और तीन साम्राज्यों के इतिहास-को वर्तमान चीनी चिंतन को उजागर करने के लिए चुना गया है।

शतरंज 8x8 के ग्रिड बोर्ड पर खेला जाता है और उसके खिलाड़ी पूर्व निर्धारित स्थितियों से संचालित होते हैं। इस बारे में पहले से तय नियम के मुताबिक विरोधी के ‘राजा’ पर कब्जा करने के पहले रगड़ करते रहना है। इसके विपरीत, 25 सौ साल पुराना वेइ ची खेल 361 अंतर विभाजक बिंदुओं के साथ 19×19 के ग्रिड पर दो खिलाड़ियों के बीच खेल जाता है। प्रतिद्वंदी अपने समूह के जीवित स्थिति के प्रति सतर्क रहते हैं और अंतर विभाजक बिंदुओं पर स्टोन्स को जोड़कर ढांचा और संभावित भू भागों का निर्माण करते हैं। इसका लक्ष्य अपने अधिकार क्षेत्र का विस्तार करना और प्रतिद्वंदी के कमजोर समूहों पर तब तक आक्रमण करना है, जब तक कि वह उनके आगे घुटने न टेक दे।( शतरंज में बूट की स्थितियां 10,130 अनुमानित हैं जबकि वेइ ची में 2 × 10170).

वेइ ची को एक बड़े बोर्ड (क्षेत्र) में, जो लंबा (समय, धैर्य के लिहाज से) खेला जाता है। इसमें खेल के लिए व्यापक क्षेत्र होता है और हर एक चाल (अस्पष्टता और लचीलापन) से पहले विचार करने के लिए कई और अधिक विकल्प होते हैं। यह खेल “स्थिति निर्धारण” (पोजिशनिंग) और अपने “क्षेत्र के विस्तार” पर केंद्रित है। टकराव पर कम जोर देते हुए की जाने वाली पैंतरेबाजी) इसके प्रभावों को वर्तमान समय में भू-भाग को हासिल करने के प्रति चीनी ललक में देखा जा सकता है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इस परिदृश्य के कम देखा जाता है, जब चीन शोधार्थी और वैज्ञानिक अमेरिका में उच्च प्रौद्योगिकी की जानकारी हासिल करने जाते हैं। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के चीनी उल्लंघन को इसी संदर्भ में देखा जा सकता है।.

तीन साम्राज्यों के इतिहास से यह जाहिर होता है कि उत्तर की राजधानी अपने संसाधनों और सैन्य बलों की अपेक्षा दक्षिण के कमतर सू और वेइ ची के लिए खतरा थे। सू राजधानी अपने ही समान कमजोर के साथ गठजोड़ की मांग करता था, जिसकी नदियों और पर्वतों से घिरे क्षेत्र उसकी सैन्य कमजोरियों को एक तरह से ढक देता था।अंतर्निहित अस्पष्टता, छल-छद्मता और रहस्यमयता वेइ ची के उद्भव में आमूल परिवर्तन लाता है और तीन साम्राज्यों के इतिहास चीनी मानसिकता, संस्कृति और सामरिक चिंतन में उत्कीर्ण हैं। यह बताता है कि चीनी का अंतर्निहित झुकाव पहले के यूएसएसआर से लेकर हाल के वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) के देशों के साथ उसके संबंध अपने भविष्य को लक्षित है।

खेल जीतने के लिए कोई भी दीर्घावधि की चतुर रणनीतियां बनाता है। सैन्य रणनीतिकारों; जैसे शूअन यू (वेइ राज्य), झोउ यू (वू स्टेट) और ज़ुआंग लियांग (शू साम्राज्य) आज भी चीनी साहित्य और लोकप्रिय संस्कृति में समादृत हैं। पीएलए मार्शल पेंग देहुई और पीएलएएन एडमिरल लियू हुआंग क्रमशः चीनी सेना एवं नौसेना की रणनीतियों को एक स्वरूप प्रदान करने के लिए आदरणीय हैं। आज, राष्ट्रीय नीतियों को गढ़ने में शी जिनपिंग का समर्थन कर रहे रणनीतिकार संभवत: चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) और सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (सीएमसी) के सदस्य होंगे।

सामयिक प्रभाव

दूसरे विश्व युद्ध के बाद द्विध्रुवीय दुनिया का उदय हुआ। वैश्विक दखल के लिए प्रौद्योगिकी के विकास पर ध्यान दिया जाने लगा। शक्तिशाली नौ सैनिक क्षमता हासिल करना इसकी पूर्व शर्त बन गई।रिपब्लिक चीन के लोग दूरस्थ खिलाड़ी के रूप में माने जाने वाले रिपब्लिक चीन के लोग अपने आंतरिक मामलों में मगन थे। अमेरिका का कोरिया और वियतनाम युद्ध में कूदने के बाद ही चीन की तरफ दुनिया का ध्यान गया। इसके अलावा, चीन ने ताइवान के विरुद्ध नौ सैन्य बल को तैनात नहीं किया जिसने किसी का ध्यान अपनी तरफ खींचे बगैर एकांत भाव से 1980 की दशक तक अपना विकास जारी रखा। इसके बाद ही चीन ने विश्व मंच पर अपने उपस्थिति दर्ज कराना शुरू किया। चीन की सेना ने भी आधुनिकीकरण और प्रौद्योगिकी दखल के युग के प्रति बढ़ते हुए सैन्य संख्या बल की सर्वोच्चता हासिल करने के कार्यक्रम को स्थगित रखा था। चीन में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, औद्योगिक उड्डयन एवं अंतरिक्ष, मिसाइल तकनीक और हथियार प्रणाली क्षमता हासिल करने के कार्यक्रमों को गोपनीय तरीके से जारी रखा और इसे दूसरों की निगाहों से बचाया। आज के चीन ने राष्ट्रहित को बढ़ावा देने के लिए अपनी नागरिक प्रतिभा और सैन्य प्रौद्योगिकी को एक साथ मिला दिया है। उसकी अधिकतर योजनाएं दीर्घावधि की हैं और इन्हें पूरी तरह गोपनीय रखा गया है। दूसरों को भ्रम में डालने वाली किंतु विनम्र तैयारियां काफी पहले से की जाती है। और आखिरकार जब ये घटनाएं घटती हैं, तो दुश्मन को चकित करने का उसका लक्ष्य हासिल हो जाता है।

तकनीकी निगरानी और छल

इस विश्वास का विश्लेषण करना समीचीन होगा की इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस(ईएल आईएनटी), सिग्नल इंटेलिजेंस (एसआइजीआइएनटी), रडार इंटेलिजेंस (आरएडीआइएनटी), इमैजिनरी इंटेलिजेंस (आइएमआइएनटी) (समुच्चयता में इसे ही ‘टेक्कनिट’ कहा जाता है) धोखा देने के प्रयासों को उजागर करते हैं, इसलिए वास्तविक खतरों के विश्लेषण में इससे सहायता मिलती है। यह याद रखा जाना चाहिए कि उसके इनमें से प्रत्येक तकनीक और सेंसर से मिलने वाली सूचनाएं-संकेत विशिष्ट हैं। यह तर्क तभी ठीक से चल पाता है,जब इच्छित लक्ष्य ‘D4 ’को चिह्नित करने और उसे कम करने के बाद समयबद्ध समग्र मूल्यांकन के लिए सभी ‘इनपुट्स’ को जोड़ दिया जाता है। इसके विपरीत, अगर पहलकर्ता अपनी डी-4 योजना को क्रियान्वित करने के लिए अपेक्षित सावधानियों पर अमल करता है, तो यह तर्क फेल हो जाएगा।

ऐतिहासिक भाषा विज्ञान और दार्शनिक प्रभाव

चीनी नेतृत्व अपने कई प्राचीन चिंतकों की अवधारणाओं और पुराने मुहावरों का उपयोग करता है, जो प्रायः ऐतिहासिक संदर्भों और अभिप्रायों के साथ राष्ट्रीय सामरिक नीति को बनाने और उसको निर्देशित करता है। ऐसी अभिव्यक्तियां भाषागत दृष्टि से अपारदर्शी रहती हैं और बाहरी व्यक्ति को भ्रमित करती हैं। इनमें से कुछ परस्पर प्रतिध्वनित होती हैं और आधुनिक चीन के सिद्धांत और व्यवहारों को निरंतर प्रभावित करती हैं।

सुन त्ज़ु : उनके सूत्र नीति वाक्यों “सेना की तैनाती में गोपनीयता से बढ़कर कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है,” “अपने दुश्मन को जानो और अपने आप को,” “युद्ध दुश्मन को धोखा देने का एक तरीका है,” की प्रासंगिकता जरा भी कम नहीं हुई है।

ताई-पई यिन-चिंग (ली च्युआन, तांग राजवंश,618–907 सीई)

उनकी ये घोषणाएं, “सैन्य नीति को अवश्य ही गोपनीय रखना चाहिए और उसके बारे में जहां-तहां प्रसारित नहीं करना चाहिए”; “ गैर परंपरागत योजनाएं और धोखा देने वाली मानसिक तरकीबें विनाशकारी निर्दयता देती हैं, इसके बिना सेना प्रभावी नहीं हो सकती;” और “जब तुम्हारा मस्तिष्क किसी चीज को हासिल करने की योजना बना रहा है, तो इससे दूर रहने का ढोंग करो”,आदि आज भी प्रासंगिक हैं।

शिह त्ज़ु, (960-1126 सीई) द्वारा संग्रहित किए गए सात सैन्य श्रेष्ठ साहित्य पर व्याख्यानों तथा एक सौ अपरंपरागत सामरिक नीतियां समरभूमि में छल-प्रपंच पर जोर देती हैं, खासकर विदेशी दूतों को मन कैसे जीता जाए, और झूठी या गुमराह करने वाली सूचनाओं के जरिए किस तरह से उन्हें भरोसा दिलाया जाए, आदि के बारे में बताती हैं।

36 युक्तियां (Stratagems) : इसे मौलिक रूप से मिंग राजवंश( 1368-1644 सीई)के दौरान संग्रहित किया गया था, जिन्हें “छल-प्रपंच का अवतार और अंतिम सैद्धांतिक संरचना माना जाता है।”

देंग जियाओपिंग की 24 कैरेक्टर स्ट्रेटजी

“24 कैरेक्टर स्ट्रेटजी” अनावश्यक उकसावों से भरसक बचने, अत्यधिक अंतरराष्ट्रीय दायित्वों से परहेज करने और दीर्घावधि में चीन की ताकत का निर्माण करने के भविष्य के विकल्पों को व्यापक करने का पाठ प्रस्तुत करती है।

छल प्रपंच- इसके निर्देशक सिद्धांत और व्यवहार

विभिन्न चिंतकों की नजर में छल-प्रपंच बहुआयामी प्रतीत होता है। विरोधियों की क्षमताओं और इरादों को समझने के लिए कल-बल-छल अपनाने के अलावा, छल-कपट विरोधी की क्षमताओं के ह्रास के संदर्भ में भविष्य के लक्ष्य के लिए भी जोड़-तोड़ करता है। एक उदाहरण लिया जा सकता है: एक “सांप” को नजदीक से देखने पर वह रस्सी मालूम देता है, लेकिन आखिरकार वह कोलतार की लकीर में बदल सकता है।

वर्तमान चीन में भी छल-कपट उसके चिंतन का विषय बना हुआ है। चीनी संस्कृति इस विचार को बढ़ावा देती है कि किसी के साथ अनावश्यक रूप से विवाद नहीं होना चाहिए लेकिन उसे रणनीतिक उपलब्धि हासिल करने के लिए अधिकतम स्तर पर भ्रमों की जगह बनानी चाहिए। चीन की यह सोच “युद्ध यकीनन एक युद्ध होता है-जिसमें मृत्यु तक लड़ा जाता है”; में यह अंतर्निहित है कि इस क्षेत्र में नैतिकता पर ध्यान देने की कोई गुंजाइश नहीं है। पीएलए का साहित्य इस पर जोर देता है कि अपनी अग्रिमता हासिल करने के लिए छल-कपट का विभिन्न स्थितियों में गत्यात्मक रूप से उपयोग करना चाहिए। सुन त्ज़ु का निर्देशक सिद्धांत है कि सामरिक नीति बनाने और युद्ध को निर्देशित करने में अवश्य ही निपुण होना चाहिए। इस लिहाजन, चीनी छल-कपट को सृजित करने और अवधारणाओं में हेर-फेर करने में उस्ताद हैं और समय गुजरने के साथ-साथ छल-कपट उनके युद्धों का अविभाज्य हिस्सा बन गया है।

परिणामस्वरूप, दुश्मनों को गुमराह करने और अन्य तरीकों( जैसे साइबर आक्रमणों, इलेक्ट्रॉनिक जासूसी और सूचनाओं के युद्धों) के साथ परंपरागत युद्ध का पाट चौड़ा करने को लेकर डी-4 चीनी मानसिकता में निर्मित हो गया है। चीन राष्ट्रीय सुरक्षा नीति और सैन्य-योजना में डी-4 का उपयोग एक अहम कारक के रूप में करता है।

चीन के ज्यादातर छल-कपटपूर्ण व्यवहार सीधी नजरों से ओझल हैं। बहुत थोड़े से चीनी नागरिक और सैन्य मीडिया स्रोत इनके बारे में कुछ नजरिया देते हैं-खासकर सेना के छल-कपट के बारे में। कई चीनी विश्लेषकों के आकलन निम्नलिखित वक्तव्यों के लिहाज से प्रासंगिक हैं:-

सुन त्ज़ु के बारे में आठवीं सदी के टिप्पणीकार झांग यू का कहना है-“यद्यपि सेना का उपयोग धर्मार्थ और औचित्यपूर्ण होता है, उनकी जीत के लिए यह आवश्यक है कि वे छल-कपट पर भरोसा करें”।

त्सो-चुआन गैर-आक्रामकता संधि को तोड़ने सहित शांति संधियों और बहाने से गठबंधन के अनुबंधों से जानबूझ कर छेड़छाड़-त्सो-चुआन (अनेक मामलों में इसकी समरूपता दिखती है)

सीधी लड़ाई से बचना

चीन नागरिक नीति में धोखेबाज़ी की मदद लेता है, जो शांति के समय की उसकी कारगर रणनीति होती है ताकि वह लड़ाई से बच सके और उसे रणनीतिक लाभ हासिल हो सके जो युद्ध को या तो टाल दे या उसे अनावश्यक बना दे। युद्ध अंतिम विकल्प होता है और इस बात की स्वीकारोक्ति होती है कि नागरिक नीति विफल हो गयी है। पीएलए वेस्टर्न थीयटर कमांड (डब्ल्यूटीसी) में भारत से लगी 3488 किलोमीटर लंबी एलएसी और लद्दाख़ से लगी 1597 किलोमीटर की सीमा पर जो हुआ उसके लिए चीन ज़िम्मेदार है और यह घटनाक्रम इसी नीति का प्रमाण है।

चीन के नीति-निर्णायकों का प्रशिक्षण ऐसा है कि वे मुश्किल भरी परिस्थिति में भी अपने ग़ुस्से पर क़ाबू बनाए रख पाते हैं; वे उकसावे की किसी कार्रवाई से उत्तेजित नहीं होते बल्कि शांत बने रहते हैं और अपने ग़ुस्से और उग्र तेवर पर क़ाबू रखते हैं लेकिन वे ऐसा सब कुछ करते हैं ताकि उनके विरोधी या दुश्मन ग़ुस्से में आएँ और अपना आपा खो दें।

यह ‘किरकिरी होने’ की बात से भी जुड़ा है। किरकिरी होने की बात को लंबी बातचीत और भटकनेवाले व्यवहार के लिए दोषी लोगों को दंड देकर टाला जा सकता है। यहाँ तक कि पीएलए की दोहरी नियंत्रण व्यवस्था वास्तव में किरकिरी रोकने के लिए ही है। सेना बाहरी तौर पर दुश्मनों को दूर रखती है जबकि सीपीसी राजनीतिक महासचिवों के माध्यम से नियंत्रण रखती है, जिनके पास ज़्यादा अधिकार होता है और जो सीधी लड़ाई में शामिल चीनी सेना की किसी कार्रवाई को निष्फल कर सकती है या उस पर प्रतिबंध लगा सकती है। (चीन का अपने सभी 14 पड़ोसियों के साथ उनसे लगे लगभग 22,116 किलोमीटर लंबी ज़मीनी सीमा पर विवाद चल रहा है)

प्रलोभन/झाँसा

पीएलए दो तरह के छद्म तरीक़े का प्रयोग करता है-एक जिसको इंफ़्लेट किया (फुलाया) जा सकता है और दूसरा ठोस। यह किसी वस्तु या घटना की नक़ल के लिए है ताकि अपने विरोधी की निगरानी व्यवस्था को वह भरमा सके। ये दोनों ही व्यवस्था हल्की, सस्ती, आसानी से कहीं ले जा सकने वाली, आसानी से असेंबल और प्रयोग की जा सकने वाली है। कई तरह के साजो-सामान जैसे टैंक, विमान, तोपख़ाना, ट्रेन, प्रक्षेपास्त्र चलाने वाले वाहन और अन्य तरह के उपकरणों को चलाने का अभ्यास इसमें किया जा सकता है। उदाहरण के लिए ‘इंफ़्लेटेबल’ टैंक का वजन सिर्फ 35 किलो होता है, इसे इस तरह समेटा जा सकता है कि यह एक सैनिक के बैकपैक में आ जाए और जिसे चार मिनट के अंदर इंफ़्लेट करके प्रयोग करने की स्थिति में लाया जा सके

इंफ़्लेटेबल डिकॉय के ऊपर का आवरण ऐसा होता है कि यह पत्थर या धातु की तरह लगे। ठोस धातुओं के बने डिकॉय इंफ़्लेटेबल की तुलना में ज़्यादा वास्तविक लगते हैं और ये पूरी तरह मूल के आकार की तरह ही दिखते हैं। ऐसा दावा किया जाता है कि ये डिकॉय किसी प्रक्षेपास्त्र को छोड़े जाने के इंफ़्रारेड पहचान या ऐसे वाहनों की नक़ल करते हैं और इसके लिए गर्म पानी की मदद लेते हैं। इन डिकॉय को वास्तविक वाहनों की तरह चलाने से दुश्मनों की निगरानी व्यवस्था को धोखा दिया जा सकता है; उनके आक्रमण को ज़्यादा वास्तविक उच्च गुणवत्ता वाले लक्ष्य से भटकाया जा सकता है या दुश्मनों के आकलन को भ्रमित किया जा सकता है।

पीएलए रॉकेट फ़ोर्स (पीएलएआरएफ) का धोखा देने का तरीक़ा

विशेष इंजीनियरिंग और छद्मावरण यूनिट पीएलएआरएफ का अविभाज्य हिस्सा है। ये धोखा देने और भरमाने के लिए कई तरह के उपाय करते हैं जैसे, वे सेना की ट्रेन को ऐसे दिखा सकते हैं जैसे वह आम लोगों को ले जाने वाली ट्रेन हो; डीएफ-21 प्रक्षेपास्त्र लॉंचर को साधारण ईंधन ट्रक और डीएफ-10 लॉंचर को साधारण कार्गो ट्रक के रूप में दिखा सकता है; वे फ़र्ज़ी सैनिकों को साजो-सामान के साथ विशेष कार्य के लिए बने वाहनों में सैनिकों के वास्तविक यूनिट की तरह दिखा सकते हैं; वे पुराने, बेकार उपकरणों को बाहर रख कर वास्तविक उपकरणों को छिपा देते हैं और इस तरह अपने दुश्मनों के टोही उपकरणों का ध्यान वास्तविक उपकरणों से दूर बँटाने में सफल रहते हैं।

मिलिशिया की मदद

चीन की स्थानीय मिलिशिया फ़ोर्स ऐसे दलों को काम पर लगाती है, जो भरमाने का काम कर सकें। वे डिकॉय लगते हैं, उन्हें छद्मावरण में रखने में मदद करते हैं, इनको सामने लाने, प्रदर्शित करने, लेजर निर्देशित हथियारों को धोखे से रोकने और बलूनों और भूसों का प्रयोग करते हैं।

रणनीतिक धोखेबाज़ी

ऐतिहासिक रूप से, चीनियों ने शांति के समय अपनायी जानेवाली छद्म नीति को एक बहुत ही उन्नत रणनीति के रूप में लागू किया है ताकि वह युद्ध को टाल सके। उदाहरण के लिए युद्ध ख़त्म होने से पहले और बाद में कम्युनिस्टों और राष्ट्रवादियों के बीच इस छद्म नीति को लागू करना; वर्साय संधि में अमेरिका और रूस के साथ चीन की राजनयिक धोखेबाज़ी; 1950 के कोरियाई युद्ध में चीनी ‘स्वयंसेवकों’ की भागीदारी और अमरीकी प्रतिभूतियों में चीन के सरकारी धन का निवेश। ऐसे ही उदाहरण हैं।

वर्तमान में वह जिन हथकंडों को अपना रहा है, उसमें चीनी वैज्ञानिकों को अमेरिका के विभिन्न प्रतिष्ठानोें में छात्र के रूप में भर्ती करना ताकि वे उन्नत वैज्ञानिक और तकनीकी जानकारियों तक पहुँच सकें; एशिया में अपनी विस्तारवादी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए कोरोना वायरस का गुपचुप प्रयोग और इस तरह शिनजियांग, हांगकांग में मानवाधिकार हनन के मामलों और व्यापार युद्ध की विफलता से दुनिया का वह ध्यान भटका सकने जैसी बातें शामिल हैं। पीएलए शांति के समय में अपने सैनिकों को वापसी और उनको छिपने के कार्य के लिए प्रशिक्षित करने में लगी रहती है और इसके लिए वह आकाश में टोही उपग्रहों के मिथ्याभ्यास का सहारा लेती है।

पीएलए की कुछ कमियों और कमज़ोरियों में जो बातें शामिल हैं, उनमें प्रमुख यह है कि 1980 के दशक के बाद से उसे वास्तविक युद्ध का कोई अनुभव नहीं है। वर्तमान पीएलए में ‘निर्धारित अवधि वाले सैनिक’ शामिल हैं। इसके वर्तमान नेतृत्वकर्ता और कैडर को आधुनिक युद्ध लड़ने का अनुभव नहीं है। आधुनिक तकनीक के बल पर लड़ी जानेवाली लड़ाई की परिकल्पना को अपनाने के बाद अपने सैनिकों को प्रशिक्षित करना और उन्हें विकसित करना और इसको अंजाम देने के लिए जरूरी संस्थागत उपाय करने की ज़रूरत होती है। कुछ लोगों का कहना है कि बीजिंग की परेड में शामिल होनेवाले सैनिकों की संख्या युद्ध में शामिल होनेवाले सैनिकों से ज़्यादा होती है। चीन की इन चिर-परिचित कामियों के बावजूद, शी जिनपिंग ने 2015 के अंत में पीएलए के इतिहास का सर्वाधिक महत्वाकांक्षी और बहुत दूरगामी सुधारों को लागू किया। उन्होंने पीएलए को बार-बार लड़ाई के लिए तैयार रहने का आह्वान किया है।

यद्यपि चीन ने कई सफलताओं और सैनिक सुधारों की घोषणा की है, पर पीएलए ने अभी तक कोई बड़ी लड़ाई शुरू नहीं की है और वह भारत के ख़िलाफ़ सिर्फ ‘थाह लेने की कार्रवाई’ ही करती रही है। बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन अग्रीमेंट (बीईसीए) पर चीन की प्रतिक्रिया यह रही है कि अमेरिका भारत-चीन के बीच होनेवाले विवादों से खुद को दूर रखे क्योंकि यह द्वीपक्षीय मामला है।

चीन ने एक बहुत ही बड़ा डाटा सेंटर बनाया है, जो 645,000 वर्ग मीटर क्षेत्र में है और पटोला पैलेस, ल्हासा के पास इसने 10000 मशीन कैबिनेट लगा रखा है। ये 5G तकनीक पर आधारित हैं और 530 एमबी प्रति सेकेंड की गति से काम करते हैं और इसे निंगसुन टेक्नोलोजीज ने दक्षिण एशिया-नेपाल, बांग्लादेश, और पाकिस्तान में संचार केंद्र के रूप में चलाने के लिए लगाया है। पर इसे जहां लगाया गया है, वहाँ से भारत-तिब्बत सीमा, दक्षिण एशिया में हथियारों को लगाने और युद्ध क्षेत्र में संचार की ज़रूरतों को पूरा किया जा सकता है। इन स्टेशनों का वास्तविक उद्देश्य वही है, जो अर्जेंटीना के पैटगोनीआ में चीन का अंतरिक्ष स्टेशन कर रहा है।

क्या ऊपर जिन बातों का ज़िक्र किया गया है वह इस बात का संकेत हो सकता है कि चीन डी-4 का इस्तेमाल अपनी क्षमता को बढ़ाने और अपनी मंशा को छिपाने के लिए कर रहा है?

छद्म चीनी युद्ध रणनीति को लेकर शास्त्रीय सीख
सुन त्ज़ु की सीख

युद्ध शुरू करने के बारे में पीएलए की समझ सुन त्ज़ु की बातों पर आधारित है जो धोखे, जासूसी, ख़ुफ़ियागिरी, गोपनीयता और मनोवैज्ञानिक ऑपरेशन का प्रयोग सिखाता है ताकि दुश्मनों को दिग्भ्रमित और हतोत्साहित किया जा सके और ‘आदर्श रूप में बिना लड़ाई लड़े ही जीत हासिल की जा सके’। सुन त्ज़ु का जिस तरह से पीएलए ने विश्लेषण किया है, वह इस बात की पुष्टि करता है कि अपने दुश्मनों को भ्रमित करना चीन की लड़ाई के तरीक़े में पूरी तरह समाहित है। यह निर्मम लड़ाई की सक्षम नीति के उतना ही उलट है जितना नैतिक मूल्यों के विपरीत अनावश्यक रक्तपात।

पीएलए युद्ध की गत्यात्मकता पर जोर देता है और पूर्व निर्धारित रणनीतियों के आधार पर लड़ाई करने की बात का विरोध करता है, जो कि पूर्वाभासी स्थितियों पर आधारित होता है। पीएलए कमांडरों को युद्ध के मैदान में वास्तविक स्थितियों के बऱअक्स फुर्तीला और लचीला भ्रामक प्रत्युत्तर देने को कहता है। इस तरह, सुन त्ज़ु की बातों का पीएलए की व्याख्या लड़ाई में चीन की रणनीतियों और उसकी कार्रवाइयों को समझने के लिए जरूरी है।

‘परंपरागत की तुलना में ग़ैर परंपरागत युद्ध के महत्व को ज़्यादा बढ़ाना’।

‘इस बात को स्वीकार करना कि बदलाव युद्ध की तरकीब को हमेशा ही बदलता रहता है, और युद्ध में अपनी श्रेष्ठता को नियंत्रित करके इसका लाभ उठाता है’।

यह देखना दिलचस्प है कि सुन त्ज़ु के ‘धोखा देने के 12 तरीक़े’, जिसे तीन श्रेणियों में रखा गया है और विभिन्न तरह की बदलती हुई परिस्थितियों के लिए नियम बनाए गए हैं-को हाल में भारत-चीन के संदर्भ में किस तरह से लागू किया गया है। (भारत के बारे में जो उदाहरण हैं उन्हें इटैलिक में दिया गया है)

छल-कपट
  1. जब कोई सक्षम होता है, तो असक्षम होने का अहसास कराता है।
  2. वैकल्पिक तौर पर, जब आप मज़बूत होते हैं,तब कमज़ोर दिखायी देते हैं और कमज़ोर होते हैं,तब मज़बूत होने का अहसास कराते हैं। जब आप सक्रिय होते हैं, तो निष्क्रिय होने का आभास देते हैं।
  3. जब कोई पास होता है, तो दूर होने का आभास देता है।
  4. जब कोई दूर होता है, तो पास होने का आभास देता है।
  5. तिब्बत में ग्रीष्म प्रशिक्षण के बहाने और उसके बाद गल्वान और पैंगोंग त्सो क्षेत्रों में विभिन्न चीनी कार्रवाइयों में सेनाओं को लामबंद करने,उन्हें एकत्र करने जैसे तमाम उदाहरण ऊपर बताये गये तौर-तरीक़ों में दिखायी देते हैं।
  6. जब शत्रु फ़ायदा उठाने के लालच में हो,तो सामान्य तौर-तरीक़ों से कुछ अलग (हालात के मुताबिक़ लचीलापन) तौर-तरीक़े अपनाते हुए विरोधियों को लालच में फ़ांसना।

  7. जब विरोधी के बीच उथल-पुथल मचा हों, तो उन्हें दबोच लेना। (कोविड-19 और आर्थिक मंदी में फंसे भारत से फ़ायदा उठाना)
  8. जब शत्रु निरापद हों, तो उन्हें लेकर तैयारी करना।
  9. जब शत्रु मज़बूत हों, तो उनसे बचना।
  10. यूएस-चाइना ट्रेड वॉर और चीनी सागर में टकराव से बचने के लिए सूची 7 और 8 में व्यक्त की गयी धारणाएं दिखती हैं।
  11. तोड़-मरोड़ और इनकार (विरोधी को कमज़ोर करना), जब विरोधी नाराज़ हों, तो उन्हें भड़काना।

  12. पीएलए की किताबों में दलील है,"अगर शत्रु पक्ष का सेनापति उतावला हो, अड़ियल हो और ख़ुद के ऊपर भरोसा करने वाला हो, तो उसे नाराज़ करने के तौर-तरीक़ों के बारे में सोचें, जिससे कि उस राज्य के विवेक के ख़त्म हो जाने की स्थति में वह युद्ध में शामिल हो सके।" इस उक्ति के अनुरूप बातचीत के दौरान पहले वाले रुख़ से बार-बार पीछे हटने में देखा जाता है।
  13. निष्कर्ष,“अगर दुश्मन का मनोबल ऊंचा हो, तो उसकी ताक़त से बचें, इंतज़ार करें या उसके मनोबल को गिरने दें और फिर उस पर हमला करें।” जब विरोधी विनम्र हों, तो उन्हें अहंकारी बना दें।

  14. (ट्रम्प के शासनकाल में) यूएस-चाइना ट्रेड वॉर ऊपर की सूची,9 और 10, दोनों का उदाहरण है। जब विरोधी एक दूसरे के साथ मित्रवत हों, तो उनके बीच मतभेद पैदा कर दें।
  15. उदाहरण- भारत के विरोधियों को धन मुहैया कराना; नेपाल में लगातार अपने प्रभाव को बढ़ाना; लद्दाख में लड़ाई की निरर्थकता और भारतीय सैनिकों और भारतीय प्रतिष्ठानों को तटस्थ सहायता प्रदान करने के लिहाज़ से (भारतीय सैनिकों की लोक भाषा में) प्रसारण को लेकर लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल करना। जब विरोधी सहज हों, तो उन्हें बेचैन करे दें।

चीन को अपने दावे वाले क्षेत्रों के समर्थन में ऐतिहासिक मानचित्र और दस्तावेज़ों के निर्माण के लिए जाना जाता है। उनकी दूसरी चाल जानबूझकर लगातार पैंतरा बदलते रहने की है,ताकि चल रही बातचीत पटरी से उतर जाये,इसके लिए वे हर बैठक में एक नयी मांग रख देते हैं,जिससे कि ख़तरे के मूल्यांकन और नीति निर्माण में अनिश्चितता बढ़ जाये।

इसकी नवीनतम मांग है कि दोनों पक्ष पैंगोंग त्सो क्षेत्र में फ़िंगर 4 को ‘नो मैन्स लैंड’ के रूप में मान ले।

सूची 12 से जो निष्कर्ष निकलता है,वह है: (a) "छल-कपट की गति को बनाये रखें,बाधा डालें और दुश्मन को परेशान करें" और (b) "दुश्मन को डराने के लिए ख़ुद को सामने रख दें।" (a) के उदाहरण हैं: डोकलाम, चुमार, डेपसांग की वे घटनाएं, जिनमें पीएलए ने सैन्य संचालन शुरू करने के बाद एक चिंतातुर नज़रिया अपनाया। (b) के उदाहरण हैं: अरुणाचल से लेकर लद्दाख तक कई छोटी-छोटी झड़पें शुरू करना, भारत को रक्षात्मक रवैया अपनाने और अपनी सेना को तितर-बितर करने के लिए मजबूर कर देना। भारत की रणनीतिक चिंताएं अरुणाचल से नहीं, बल्कि लद्दाख से जुड़ी हुई थीं।

यह सलाह कि "अगर विरोधी का मनोबल ऊंचा हो,तो उसकी सामर्थ्य से बचें, उसमें हताशा पैदा करें और उसके मनोबल के गिरने का इंतजार करें, और फिर उस पर हमला कर दें","जब वह तैयार नहीं हो,तो उस पर हमला करें” में अनुगूंजित होती है; तब आगे आयें,जब वह आपसे ऐसा करने की उम्मीद नहीं कर रहे हों।”

"दुश्मन को भ्रमित करने के लिए झूठ का दिखावा करें।" शुरुआत में चीन गाल्वान और हॉट स्प्रिंग्स से हटने को तैयार था, लेकिन पैंगगोंग और डेप्सांग से नहीं; कुछ इमेजरी इंटेलीजेंस विश्लेषकों ने चीनी उपग्रह से मिली ‘पिंक टेंट’ की फ़ोटो की बात को माना है। पीएलए ने भी सार्वजनिक मांग की अनदेखी करते हुए गालवान में किसी भी तरह के हताहत से इनकार किया था। बाद में, कुछ बटालियन बड़े पैमाने पर निर्माण की धारणा बनाने के लिए तत्काल संघर्ष क्षेत्र के पीछे तैनात किये गये थे, जबकि ज़मीन पर सीमावर्ती सैनिकों को आख़िरी छोर पर स्थित अस्पतालों से खाली करवाया जा रहा था।

कुल मिलाकर, युद्ध के हथियार के तौर पर ‘छल-कपट’ की अहमियत को लेकर सुन त्ज़ु की तरफ़ से दी गयी ये सलाहें कुछ इस तरह शिक्षा देती हैं:

‘याद रखें, अपनी युद्ध रणनीति को तैयार करते हुए छल-कपट और धोखे को हथियार बनायें और बुद्धि की लड़ाई में जीत हासिल करें।’

‘जब आप बेहद सक्षम हों ,तो हमला करने में असमर्थ होने का नाटक करें।’

‘जब शत्रु तैयार हो, तो युद्ध को लेकर अपनी तत्परता को छिपायें।’

‘अगर आप किसी नज़दीकी जगह पर हमला करने की योजना बना रहे हों, तो आपको दूरस्थ जगह से हमला करने का नाटक करना चाहिए और इसके उलट भी करना चाहिए।’

‘अपने दुश्मन की क्षमता को हल्के में नहीं लें। ऐसे दुश्मन के ख़िलाफ़ दोगुनी सावधानी बरतें।’

देंग जियाओपिंग की "24 कैरेक्टर स्ट्रेटजी"

छह वाक्यांशों में हर चार-शब्द वाला वाक्यांश का अनुवाद किया गया है, जिसका अर्थ है- “ख़ामोशी के साथ नज़र रखें; अपनी स्थिति को सुरक्षित करें; शांति के साथ मामलों का सामना करें;अपनी क्षमताओं को छिपाये रखें और अपने मौक़े के प्रति सचेत रहें; ख़ुद को प्रचार-प्रसार से दूर रखना अच्छा है; और नेतृत्व का दावा कभी न करें।” ये "24 कैरेक्टर स्ट्रेटजी अनावश्यक उकसावों से बचने, अत्यधिक अंतर्राष्ट्रीय बोझों को दूर करने और लंबे समय में चीन की शक्ति के निर्माण के ज़रिये भविष्य के विकल्पों को अधिकतम करने की एक कार्यप्रणाली की वक़ालत करती हैं।

ख़ास तौर पर हित साधने वाला जो वाक्यांश है, वह यह है-"अपनी ताक़त को छिपाने और सही वक़्त के इंतज़ार को लेकर रणनीतिक धैर्य के साथ चौकन्ना रहें और प्रचार-प्रसार से बचें ",यह बात सुन त्ज़ु की उस सलाह में भी प्रतिध्वनित होती है,जिसमें वह कहता है, "इसलिए, जब सक्षम हों, तो अक्षम होने का नाटक करें; जब सक्रिय हो,तो निष्क्रियता का नाटक करें।"

इस सलाह का पालन अक्सर उन परिस्थितियों में किया जाता है, जहां विरोधी मज़बूत होता है। यह शत्रु या विरोधी को उसके वर्चस्व को लेकर उदासीनता की ओर ले जाती है। कमज़ोर पक्ष कमजोरी की मुद्रा से परहेज़ करता है और चुपचाप अपनी क्षमताओं का निर्माण करता है ताकि प्रतिद्वंद्वी की स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त समय मिल सके,जिससे कि रणनीतिक स्थिति को अपने फ़ायदे के मनमाफ़िक बदला जा सके। इसका एक अच्छा उदाहरण अमेरिकी चीन व्यापार युद्ध है,जहां अमेरिका और बाक़ी दुनिया के लिए दुर्लभ भूमि खनिजों (रिम) के प्रसंस्करण के लाभ को बरक़रार रखते हुए चीन ने अपनी मंशा ज़ाहिर नहीं होने दी। (रिम के आवश्यक उपयोग मिसाइल मार्गदर्शन प्रणाली,रात में दिखाने वाले उपकरण में होते हैं)।

छल-कपट या धोखे की छत्तीस युक्तियां

इन्हें छह श्रेणियों में विभाजित किया गया है,जिनमें से प्रत्येक में ऐसे छोटे-छोटे वाक्यों का हवाला दिया गया है, जिसमें प्रेरक अनुक्रम हैं, उदाहरण के लिए आगे बढ़ने और पीछे हटने, हमला करने और बचाव की कार्रवाई जैसी परस्पर विपरीत बातों का उल्लेख किया गया है। यह समूह कुछ इस तरह हैं: जीत की युक्तियां; बचाव की युक्तियां; हमले की युक्तियां; झड़प की युक्तियां; विलय की युक्तियां; हार की युक्तियां।

इनमें से कुछ की चर्चाएं संक्षेप में नीचे की गई हैं:

रणनीति 2- झाओ को बचाने के लिए वेइ ची को चारो तरफ़ से घेर लेना; इसका मतलब यह है कि जब दुश्मन इतना ताक़तवर हो कि वह सीधे-सीधे हमला कर सकता हो, तो उसकी उन चीज़ों पर हमला करो,जो उनके लिए ख़ास अहमियत रखती हों। इसका प्रमाण म्यांमार, भूटान और नेपाल को प्रभावित करता चीन है।

रणनीति 6-पूर्व दिशा में किसी हमले का नाटक करें और पश्चिम दिशा में हमला कर दें; इसे शुरुआत में देप्सांग में देखा गया,पूर्वी लद्दाख से पहले इसे डोकलाम की झड़प में देखा गया।

रणनीति 19-खाना पकाने के बर्तन के नीचे से जलावन की लकड़ी निकालने की रणनीति या कुल्हाड़ी से लकड़ी निकालने की रणनीति: जब दुश्मन इतना ताक़तवर हो कि सामने से मुक़ाबला नहीं किया जा सकता हो, तो आपको सबसे पहले उसकी बुनियाद पर हमला करके उसे कमज़ोर करना चाहिए और उसकी शक्ति के स्रोत पर हमला कर करना होगा। यहां गलवान में पीछे हटने का हवाला दिया जा सकता है।

रणनीति 30-मेज़बान और अतिथि विनिमय की गुंज़ाइश बनाएं: सहयोग, आत्मसमर्पण, या शांति संधियों की आड़ में दुश्मन के शिविर में घुसपैठ करके दुश्मन को भीतर से हरायें। इस तरह,आप उसकी कमजोरी का पता लगा सकते हैं और इसके बाद जब दुश्मन के पहरेदार निश्चिंत हो जायें,तो उसकी ताक़त के स्रोत पर सीधा वार करें।

रणनीति 33-मतभेद दिखाने की रणनीति: यह रणनीति शत्रु और उसके दोस्तों, सहयोगियों, सलाहकारों, परिवार, कमांडरों, सैनिकों और आबादी के बीच चुपके से कलह पैदा करके दुश्मन की क्षमता को कमज़ोर करने की सलाह देती है। इससे उसे आंतरिक विवादों के निपटारे में उलझाये रखा जा सकेगा और हमला करने या बचाव करने की उसकी क्षमता इससे दुष्प्रभावित होगी। उदाहरण: पीआरसी और कांग्रेस पार्टी के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर।

निष्कर्ष

भू राजनीतिक वातावरण में छल-कपट की अपरिहार्यता का स्वीकार रूखे आश्चर्य के विरुद्ध एक प्रभावी आश्वासन होगा। पीएलए के छल-कपटपूर्ण व्यवहारों को नजरअंदाज करना या उन्हें कमतर आंकना, आत्मतोष तो पैदा करेगा और जोखिम बढ़ाएगा, वही पीएलए की क्षमताओं को बढ़ा-चढ़ा कर देखने से अप्रत्याशित फायदे होंगे। किसी भी सूरत में डी-4 के उपयोग की चीनी इच्छा और बाध्यता को प्रत्याशित मानना चाहिए, उसे पहचाना जाना चाहिए और इसके अनुरूप निरंतरता के आधार पर उसका प्रतिरोध करना चाहिए। इसी तरह से, पीएल की सर्वाधिक मूल्य की परिसंपत्तियों जैसे छलावरण के तहत सनद्ध मिसाइलों की जगहों का पता लगाने, साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्धों के बारे में जानकारियां हासिल करने, भविष्य में डाटाजुटाने के काम को किया जाना चाहिए। यही वे क्षेत्र हैं, जहां प्रतिद्वंदी हम से आगे हैं।

परंपरागत चिंतक, जो छल-कपट और अन्य पहलों को अनैतिक मानकर उसे छोड़ देते हैं, वे इसमें अंतर्निहित घनत्वों की पहचान में सक्षम नहीं होंगे। निरंतर सतर्कता से सभी को और क्षेत्र के भविष्य को उचित लाभांश मिलेगा।

Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
Image Source: https://imgk.timesnownews.com/story/36_stratagem.jpg?tr=w-600,h-450,fo-auto

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