तालियां! - जम्मू-कश्मीर अब सचमुच भारत का हिस्सा है
General NC Vij, PVSM, UYSM, AVSM

तेजतर्रार हमला, सर्जिकल अभियान और अचंभा शब्दों का इस्तमाल सैन्य अभियानों में सबसे अधिक किया जाता है। लेकिन जम्मू-कश्मीर में भारत सरकार ने इससे भी बेहतर काम किया और 70 साल से चली आ रही समस्या को एक ही झटके में सुलझा दिया। सबसे बड़ी बात अचंभे की थी, सबका मुंह खुला रह गया!

नरेंद्र मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35ए को एक ही झटके में खत्म करने का साहसिक और ऐतिहासिक फैसला लिया है। सरकार ने एक कदम और आगे जाकर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में भी बांट दिया; जम्मू और कश्मीर को मिलाकर एक केंद्रशासित प्रदेश और लद्दाख के रूप में दूसरा प्रदेश। जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश में विधानसभा होगी। ये क्षेत्र केंद्र के सीधे नियंत्रण में आएंगे और केंद्र ने स्थिति सुधरने के बाद लद्दाख को हटाकर जम्मू-कश्मीर राज्य फिर बनाने का वादा किया है।

अनुच्छेद 370 और 35ए हटाए जाने को राज्य सभा और लोकसभा तथा समूचे भारत से व्यापक समर्थन मिला है। लोकसभा में इसे जबरदस्त समर्थन मिला और 80 फीसदी से अधिक वोट इसके समर्थन में पड़े। इस फैसले को राज्य सभा में भी दो-तिहाई से अधिक वोट हासिल हुए।

अनुच्छेद 370 और 35ए क्षणिक और अस्थायी उपायों के रूप में 1956 में लागू किए गए थे। इनसे राज्यों को कुछ स्वायत्तता, अपना संविधान, अलग झंडा और कानून बनाने की आजादी मिल गई। विदेशी मामले, रक्षा और संचार केंद्र सरकार के हाथ में ही रहे। ‘1975 के इंदिरा-शेख समझौते’ और केंद्र सरकार द्वारा साल-दर-साल जारी की गईं 40 से अधिक अधिसूचनाओं के जरिये 260 से अधिक कानूनों में संशोधन किया गया ताकि राज्य को बाकी देश के साथ लाया जा सके। आज जो अनुच्छेद 370 दिख रहा है, वह अंडे के छिलके के समान था। फिर भी राज्य को बाकी राज्यों के बराबर लाने और सच्चे अर्थों में पूरी तरह भारत में मिलाने के लिए इन अनुच्छेदों को हटाना पड़ा। कश्मीरी अलगाववाद की सबसे मजबूत जड़ संविधान के अनुच्छेद 370 में ही थी। निहित स्वार्थवश राजनीतिक जागीर खड़ी करने के लिए इसका दुरुपयोग किया गया था। इसे जाना ही था; 70 साल से ज्यादा समय किसी अस्थायी व्यवस्था के जारी रहने के लिए बहुत अधिक नहीं होता क्या?

अनुच्छेद अराजकतावादी थे और वर्तमान समय के अनुकूल नहीं थे। अनुच्छेद 35ए महिलाओं को राज्य के बाहर विवाह करने से रोकते थे और विवाह करने पर संपत्ति से उनका अधिकार खत्म हो जाता था। ये अनुच्छेद दलित-विरोधी भी थे क्योंकि वे दलितों को आरक्षण नहीं देते थे, जो उनका हक था। उन्होंने पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को मताधिकार नहीं दिया। उन्होंने शिक्षा का अधिकार नहीं दिया और विकास भी रोक दिया।

केंद्र द्वारा राज्य को बहुत धन दिया जाता था - पूरे देश में प्रति व्यक्ति 8,000 रुपये के मुकाबले जम्मू-कश्मीर में 27,000 रुपये प्रति व्यक्ति - इसके बाद भी राज्य भारत के अन्य राज्यों की तरह फल-फूल नहीं पाया है। यहां बेरोजगारी चरम पर है। राज्य में एक तरह से उद्योग हैं ही नहीं क्योंकि ये अनुच्छेद राज्य में कोई उद्योग लगने ही नहीं देते थे। अंधाधुंध भ्रष्टाचार राज्य का सबसे बड़ा अभिशाप था।

पाकिस्तान द्वारा छद्म युद्ध के रूप में चलाए जा रहे उग्रवाद और आतंकवाद के अभिशाप ने राज्य को बहुत नुकसान पहुंचाया। राज्य में 42,000 से अधिक लोगों ने जान गंवाई हैं। हजारों जवानों ने पाकिस्तान के छद्म युद्ध को रोकने के लिए लड़ते हुए शहादत दी है।

पाकिस्तानी संसद ने इस पर वैसी ही प्रतिक्रिया दी है, जैसी सोची जा रही थी। उन्होंने राजनयिक संबंध कम करने और भारत के साथ व्यापार रोकने जैसे निरर्थक कदम उठाए हैं। इनसे भारत की जगह उन्हें ही ज्यादा नुकसान होने की संभावना है। उन्हें इस बात की निराशा भी होगी कि उन्हें बाकी दुनिया से समर्थन ही नहीं मिला। उनके सदाबहार दोस्त चीन ने भी जम्मू-कश्मीर का जिक्र नहीं किया है और केवल लद्दाख की बात कहकर रह गया है। पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र जाकर इस मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की कोशिश करेगा, लेकिन इससे भी उसे फायदा होने की संभावना बहुत कम है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफी अन्नान ने 2001 में सार्वजनिक तौर पर कहा था कि यह भारत और पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मामला है। इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) से भी पाकिस्तान के समर्थन में कोई आवाज नहीं आई है।

हिंसक विरोध प्रदर्शनों पर काबू पाना इस समय भारत के लिए बड़ी चिंता होगी और जब स्थानीय ताकतें खुद को इस्लाम के मोर्चे पर फिर संगठित कर लेंगी तो ये प्रदर्शन जरूर होंगे। स्थिति को भारत के नियंत्रण से बाहर करने की उम्मीद में मस्जिदें दुष्प्रचार करेंगी और पाकिस्तान की अंदरूनी ताकतें भड़काएंगी तथा पूरा समर्थन देंगी। लेकिन ऐसा नहीं होने जा रहा क्योंकि भारत ऐसी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है। आतंकवादियों को भारत में भेजने का सबसे बड़ा हथियार आजमाना बेहद मुश्किल हो जाएगा। इसमें कुछ वक्त लगेगा, लेकिन जम्मू-कश्मीर में स्थिति निश्चित रूप से धीरे-धीरे सामान्य हो जाएगी। युवाओं को चरमपंथ की मुट्ठी से बाहर लाना और उनके साथ खड़े होना भारत की सबसे बड़ी चुनौती है।

2 अगस्त को जब 15 कोर के कोर कमांडर और पुलिस महानिदेशक ने एक संवाददाता सम्मेलन में एक स्नाइपर राइफल और जवानों को मारने वाली सुरंग दिखाईं तथा आगाह किया कि अमरनाथ यात्रा के लिए गंभीर सुरक्षा खतरे हैं और उसे रद्द करना पड़ेगा तथा आतंकवादी घाटी से लौट आए हैं तो उन्होंने इस फैसले की भूमिका तैयार कर दी थी। सेना में विभिन्न स्तरों पर इस समस्या से निपटने के अपने सैन्य अनुभव के कारण मुझे संदेह हो गया कि कुछ बड़ा होने जा रहा है - अनुच्छेद 35ए को रद्द किया जा सकता है, लेकिन इतने बड़े कदम की मुझे कल्पना भी नहीं थी।

मोदी सरकार को बधाई, जिसने भारत की देह पर पड़े उस बड़े छाले को खत्म कर दिया, जिसकी वजह से जम्मू-कश्मीर की जनता को बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी है। आजकल यह चुटकुला चल रहा है कि एमएस धोनी (एमएसडी), जिन्हें क्रिकेट में बड़ा फिनिशर माना जाता है, जम्मू-कश्मीर में सेना में शामिल हो चुके हैं, इसलिए अब खेल खत्म ही हो जाएगा। फर्क केवल इतना है कि एम का मतलब मोदी, एस का मतलब शाह और डी का मतलब डोभाल है। कितनी शानदार तिकड़ी और देश की कितनी बेहतरीन सेवा!

(लेखक वीआईएफ समुदाय के सदस्य हैं, पूर्व सेना प्रमुख और कैबिनेट मंत्री के दर्जे के साथ एनएमडीए के संस्थापक चेयरमैन हैं)


Translated by Shiwanand Dwivedi a(Original Article in English)
Image Source:
https://img.timesnownews.com/story/1564990840-JK-Map.jpg?d=400x300

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