संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में अपने संबोधन में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान पर करारा हमला बोला। उन्होंने दावा किया कि ईरान ने तेहरान में एक परमाणु भंडार छिपाया हुआ है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) से उक्त जगह का मुआयना करने के लिए भी कहा। जबसे ट्रंप प्रशासन ने संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (जेसीपीओए) से कदम पीछे खींचे हैं तबसे मामलों को अपने हाथ में लेने को लेकर इजरायल में नई ऊर्जा एवं उत्साह का संचार हुआ है।
ऐसा कोई भी कदम पहले से अस्थिर इस क्षेत्र में तनाव को और ज्यादा बढ़ाएगा। इस पर पलटवार करते हुए ईरानी विदेश मंत्री मोहम्मद जवद जरीफ ने कहा कि इजरायल के परमाणु हथियार कार्यक्रम की कहीं अधिक निगरानी और पड़ताल करने की दरकार है। यह पहला अवसर नहीं था जहां नेतन्याहू ने किसी सार्वजनिक मंच पर ऐसे कथित साक्ष्य रखे। इससे पहले भी वह तेहरान में परमाणु अभिलेखों के फोटो भी दिखा चुके हैं जिसके बारे में उनका कहना है कि इससे साबित होता है कि परमाणु करार का पालन करने की ईरान की कोई मंशा नहीं है। उससे भी पहले एक आयोजन में नेतन्याहू कथित तौर पर एक ईरानी ड्रोन का हिस्सा दिखा चुके हैं कि उसने इजरायल के हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया।
ये बातें उनके अमेरिकी संरक्षकों के भी अनुकूल हैं। ईरानी राष्ट्रपति रूहानी को ‘भला आदमी’ कहने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया था कि ईरानियों के साथ वह कोई बैठक करने नहीं जा रहे हैं। यूएनजीए में अपने भाषण में ईरान को लेकर उनका लहजा बेहद सख्त था और उन्होंने उसके लिए क्रूर, तानाशाह और भ्रष्ट जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। ईरान को आगे धमकाते हुए उसे आतंक का प्रमुख पैरोकार बताते हुए उन्होंने कहा कि ईरान को जनसंहारक हथियार रखने की इजाजत नहीं दी जा सकती। वहीं ईरानियों ने ट्रंप की प्रचार केंद्रित कूटनीति को खारिज करते हुए उनसे वार्ता की मेज पर लौटने के लिए कहा।
ईरानी पी-4 प्लस वन के समूह में ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, जर्मनी और चीन के साथ सक्रियता बढ़ाने में सफल रहा है। वहीं यूरोपीय संघ ने भी अमेरिकी रुख का विरोध किया है और अमेरिका द्वारा इससे कदम पीछे खींचने के बावजूद जेएसपीओए के तहत स्वीकृत प्रावधानों के अनुरूप उससे संबद्ध रहने का अनुरोध किया है। ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों से उस पर पड़ने वाले प्रभाव को दूर करने के लिए उन्होंने एक भुगतान तंत्र बनाने पर भी सहमति जताई है। यह देखने वाली बात होगी कि अपने मकसद में यह कदम कितना कारगर साबित होगा और ईरान को इस मुश्किल से बचा पाएगा।
अस्ताना प्रक्रिया के प्रायोजक और रूस, तुर्की और ईरान के राष्ट्राध्यक्षों ने 7 सितंबर को तेहरान में बैठक की। इसमें उन्होंने सीरियाई युद्ध और सीरियाई शहर इदलिब के भविष्य पर भी चर्चा की जो अभी भी जमात अल नुसरा (अल कायदा) जैसे विरोधी गुट के कब्जे में है। साथ ही मुक्त सीरियाई सेना के शेष हिस्से पर भी विमर्श हुआ। सीरियाई युद्ध ने न केवल व्यापक जनसंहार और विध्वंस के रूप में देश की तस्वीर बिगाड़ दी, बल्कि इसने यूरोप में शरणार्थियों की आवक बढ़ाकर एक नए किस्म के संकट को भी जन्म दिया है।
हालांकि इन देशों में भी कुछ मतभेद उभरकर सामने आए जहां इदलिब के मसले पर तुर्की रूस से सहमत नहीं था, लेकिन इन देशों ने सीरियाई विद्रोहियों को अमेरिकी हथियारों की आपूर्ति की एक सुर में निंदा की। ये विद्रोही बशर अल असद सरकार को अपदस्थ करने में जुटे हैं। इस सम्मलेन के केंद्र में मुख्य विषय इदलिब का ही छाया रहा। जानकारों के अनुसार सरकार का कोई भी आक्रामक कदम शहर में मानवीय मोर्चे पर भारी तबाही का कारण बन सकता है।
जहां सम्मेलन काफी हद तक यह सुनिश्चित करने में सफल रहा कि कुछ समय के लिए ही सही इदलिब को उसके हाल पर छोड़ देते हैं, लेकिन दीर्घकालिक शांति स्थापित करने के दृष्टिकोण से इसमें कुछ ठोस नहीं हुआ। तीनों देशों के सीरिया में अलग-अलग किस्म के हित जुड़े हुए हैं। तुर्की जहां शरणार्थियों के एक और जत्थे से बचना चाहता है तो ईरान हिजबुल्ला के साथ सीरिया में अपनी मौजूदगी बनाए रखना चाहता है। वहीं असद सरकार को बचाए रखकर रूस अपने क्षेत्रीय हितों को साधने में जुटा है।
ईरानियन रिवोल्यूशनरी गार्ड परेड पर हमला ईरान के सबसे प्रमुख लड़ाकू दस्ते के स्वाभिमान एवं प्रतिष्ठा पर करारा प्रहार है। यह हमला यही दर्शाने के लिए किया गया कि यहां तक कि रिवोल्यूशनरी गार्ड भी सुरक्षित नहीं हैं। इन गार्डों को सामान्य तौर पर इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) भी कहा जाता है जो केवल अयातुल्ला अली खुमैनी के प्रति जवाबदेह हैं और केवल सर्वोच्च नेता को ही रिपोर्ट करते हैं।
इस हमले की जिम्मेदारी ईरानी सजातीय अरब संगठन अहवद नेशनल रेजिस्टेंस ने ली है। ईरान ने अमेरिका और सऊदी अरब जैसे खाड़ी देशों को इस हिंसा के लिए दोषी ठहराया है। हालांकि ईरान ने अपने दावे के समर्थन में कोई साक्ष्य नहीं दिए हैं, लेकिन आईआरजीसी ने कड़ी जवाबी कार्रवाई करने का संकल्प दोहराया है। यह आईआरजीसी के इतिहास में सबसे भयावह हमलों में से एक था।
पहले यरूशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देकर हलचल मचा देने और अपनी तथाकथित मध्य पूर्व योजना का खुलासा करने में अक्षम रहे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने दावा किया कि वह द्विराष्ट्र सिद्धांत समाधान का समर्थन करते हैं। इसके साथ ट्रंप ने यूएनजीए सम्मेलन से इतर इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू से मुलाकात भी की। हालांकि दो महीनों में शांति समझौते को लेकर अमेरिकी योजना अभी तक स्पष्ट नहीं है।
जहां दोनों पक्षों को अपने लंबे समय से कायम मतभेद सुलझाने की आवश्यकता है। वहीं ट्रंप की शांति योजना को लेकर फलस्तीन के रुख का अभी कोई पता नहीं विशेषकर इस तथ्य को ध्यान में रखकर कि राष्ट्रपति अब्बास ने किसी भी वार्ता में शामिल होने से इन्कार कर दिया है और गाजा में लगातार हिंसक वारदातें हो रही हैं। जबसे अमेरिकी दूतावास यरूशलम स्थानांतरित हुआ है तबसे इजरायल का हौसला इतना बढ़ गया है कि उसकी कुछ गतिविधियां शांति प्रक्रिया में बाधा बन सकती हैं।
रूस ने सीरियाई सुरक्षा बलों को एस-300 मिसाइल देने की धमकी दी है। इजरायल इस कदम का पुरजोर विरोध कर रहा है। रूस ने यह कदम सीरिया में रूसी इल्युशिन प्लेन गिराए जाने के बाद उठाया है जिसमें 15 रूसी फौजियों की मौत हो गई थी। इजरायल का कहना है कि सीरियाई पक्ष की ओर से विमान गिराया गया जबकि रूसी इस हादसे के लिए अप्रत्यक्ष रूप से इजरायल को दोष दे रहे हैं। जवाबी कार्रवाई के तौर पर रूस ने सीरिया को एस-300 एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल देने का फैसला किया है। इसका विरोध कर रहे इजरायल का मानना है कि गैरजिम्मेदार हाथों में यह मिसाइल पहुंचने से यह समूचे क्षेत्र के लिए बहुत खतरनाक है। इसके अलावा उन्होंने कहा है कि वे प्रतिकूल ठिकानों पर हमले जारी रखेंगे। इजरायल मानता है कि इस क्षेत्र विशेषकर सीरिया में रूसी प्रभाव काफी बढ़ गया है और उसे खुद अपने हित सुरक्षित रखने के लिए रूसी सहयोग की दरकार है। ऐसे में उसे नहीं लगता कि दोनों देशों के संबंधों में गिरावट आएगी।
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