अमेरिका चीन व्यापार विवाद- अनिश्चित भविष्य
Dr Teshu Singh

चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा चीन-अमेरिका संबंधों के मौजूदा दौर में एक गंभीर मुद्दा बन गया है। पिछले पांच वर्षों के दौरान व्यापार घाटे में भारी बढ़ोतरी हुई है और यह डोनाल्ड ट्रंप की चीन नीति का प्रमुख केंद्र बन गया है।

वर्ष 2017 में इलेक्ट्रिक उपकरण, औद्योगिक मशीनें, कंप्यूटर्स, कंप्यूटर एस्सेसरीज, सेमी-कंडक्टर्स, दूरसंचार, वाहनों के कलपुर्जे एवं अन्य एस्सेसरीज, कपड़े, कपास, जूते, फर्नीचर, घरेलू वस्तुओं, घरेलू उपकरणों, मोबाइल फोन, खिलौने, खेलकूद के सामान और वीडियो उपकरणों जैसी तमाम चीनी वस्तुओं का अमेरिका में बड़े पैमाने पर आयात हुआ। वहीं अमेरिका ने सोयाबीन, नागरिक विमान, नई-पुरानी कारों के इंजन और अन्य कलपुर्जे चीन को प्रमुख रूप से निर्यात किए।

वस्तुओं के मोर्चे पर चीन के साथ अमेरिकी कारोबार

व्यापारिक रिश्तों को पटरी पर लाने के लिए चीन और अमेरिका ने 17-18 मई, 2018 को द्विपक्षीय वार्ता की ताकि इस मामले में दोनों पक्ष अपने विवाद सुलझा सकें। चीन के स्टेट वाइस प्रीमियर लियू ही ने जहां इसमें चीनी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया तो वहीं स्टीवन म्युशिन अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख थे। यह दोनों पक्षों के बीच हुई तीसरी बैठक थी। इससे पहले 3 मई, 2018 को स्टीवन म्युशिन के नेतृत्व में भी एक प्रतिनिधिमंडल बीजिंग गया था जिसमें विल्बर रॉस और रॉबर्ट लाइटाइजर भी शामिल थे। उस बैठक के दौरान दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि चीनी वस्तुओं पर प्रशुल्क लगाने को टाला जाएगा और लक्षित वस्तुओं की सूची को संशोधित करने के साथ ही वार्ता जारी रखने पर सहमति जताई। इससे पहले 1 मार्च, 2018 को लियू ही अमेरिका गए थे जहां व्यापार मुद्दे पर समझौते के लिए वह अमेरिकी वित्त मंत्री स्टीवन म्युशिन, गैरी कॉन और रॉबर्ट लाइटाइजर से मिले। वहां द्विपक्षीय आर्थिक एवं व्यापारिक रिश्तों पर दोनों पक्षों ने विचार विमर्श किया और व्यापक सहयोग के लिए आवश्यक परिवेश बनाने पर सहमत हुए।

आर्थिक एवं व्यापारिक रिश्तों पर हालिया दौर की बातचीत के बाद दोनों पक्षों ने एक संयुक्त बयान जारी किया। संयुक्त बयान में उल्लेख था कि चीन के साथ वस्तुओं के व्यापार घाटे में कमी लाने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएंगे और ‘चीनी लोगों के बढ़ते उपभोग, मांग और उच्च कोटि के आर्थिक विकास के लिए चीन अमेरिकी वस्तुओं और सेवाओं की भारी खरीदारी करेगा।’ इससे अमेरिका में वृद्धि एवं रोजगार सृजन को प्रोत्साहन मिलेगा। संयुक्त बयान में दोनों पक्ष अमेरिका से चीन को होने वाले कृषि एवं ऊर्जा निर्यात के मोर्चे पर सार्थक बढ़ोतरी के साथ ही विनिर्मित वस्तुओं और सेवाओं के व्यापारिक दायरे को बढ़ाने पर सहमत हुए। उन्होंने बौद्धिक संपदा संरक्षण के मुद्दे पर भी बात की, दो-पक्षीय निवेश बढ़ाने के साथ इन सभी मुद्दों पर उच्च स्तरीय सक्रियता बनाए रखने पर भी सहमत हुए।

संयुक्त बयान पर प्रतिक्रिया

संयुक्त बयान इस स्वीकृति के साथ आया कि द्विपक्षीय रिश्तों में स्थायित्व के लिए संतुलित आर्थिक रिश्ते बेहद महत्वपूर्ण हैं। संयुक्त बयान पर टिप्पणी करते हुए स्टीवन म्युशिन ने कहा कि हम ट्रेड वार यानी व्यापार युद्ध को टाल रहे हैं और व्यापार से जुड़ी हालिया वार्ता में काफी सार्थक प्रगति हुई है। वहीं लियू ने कहा, “हालिया व्यापार वार्ता की सबसे बड़ी उपलब्धि यही सहमति रही कि कोई ट्रेड वार नहीं होगा और दोनों पक्ष एक दूसरे पर प्रशुल्क लगाने की पहल नहीं करेंगे।” उन्होंने आगे कहा कि यह सकारात्मक, व्यावहारिक, रचनात्मक और उत्पादक कदम है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लु कांग ने कहा, “इस वार्ता का सबसे उल्लेखनीय परिणाम और सहमति यही रही कि दोनों पक्षों ने यह महसूस किया कि आर्थिक एवं व्यापारिक मुद्दों का वार्ता के माध्यम से उचित समाधान तलाशने की दरकार है और हमें एक दूसरे के यहां से आयातित वस्तुओं पर प्रशुल्क लगाने से बचना चाहिए।”

बढ़ते मतभेद

व्यापार वार्ताओं के साथ ही डोनाल्ड ट्रंप ने प्रमुख चीनी दूरसंचार कंपनी जेडटीई के खिलाफ ‘निर्यात विशेषाधिकारों से मनाही’ करते हुए सात साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया। उत्तर कोरिया और ईरान पर लगाए अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन करने के कारण अमेरिका ने जेडटीई पर हर्जाना लगाया। प्रतिबंध के बाद जेडटीई के शेयरों में आई खासी गिरावट के कारण हुए आर्थिक नुकसान से तमाम चीनियों की नौकरी पर संकट खड़ा हो गया। तीसरे दौर की व्यापार वार्ता से पहले डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट में कहा कि वह चीनी कंपनी को वापस व्यापारिक मोर्चे पर लाने में मदद कर रहे हैं। ट्रंप के रुख को स्पष्ट करते हुए बाद में स्टीवन म्युशिन ने कहा कि जेडटीई का मुद्दा व्यापारिक वार्ताओं से पूरी तरह अलग है। इसके अलावा व्यापार वार्ता के बीच में यह रिपोर्ट भी आई कि चीन व्यापार घाटे को घटाकर 200 अरब डॉलर तक लाने के लिए तैयार है। वहीं चीन ने व्यापार घाटे में इस तरह की बड़ी कटौती के लिए किसी भी छूट से इन्कार किया।

नेशनल पीपल कांग्रेस (एनपीसी) में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 19वीं कांग्रेस और चाइनीज पीपल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कांफ्रेंस (सीपीपीसीसी) में भी अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्तों में आ रही खटास ही चर्चा का प्रमुख विषय रही। फिर शी चिनफिंग ने अमेरिका के साथ व्यापारिक एवं कूटनीतिक मुद्दों को सुलझाने के लिए विशेष रूप से लियू ही और वांग किशान को नियुक्त किया।

आपको याद दिला दें कि अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान भी डोनाल्ड ट्रंप ने चीनी मुद्रा के मुद्दे को उठाया था। उनके राष्ट्रपति बनने के बाद फ्लोरिडा में हुई अनौपचारिक बैठक में दोनों पक्षों ने ‘व्यापार पर सौ दिवसीय योजना’ बनाने के साथ ही ‘अमेरिका-चीन व्यापक आर्थिक संवाद’ जैसी उच्च संस्था के गठन का फैसला किया। इस योजना के अंतर्गत चीन ने 14 साल में अपना पहला बीफ शिपमेंट लेने के साथ ही अमेरिकी तरलीकृत प्राकृतिक गैस खरीदने और अमेरिकी कंपनियों के लिए अपना वित्तीय सेवा क्षेत्र खोलने का आश्वासन भी दिया। हालांकि उत्तर कोरिया से मिल रही परमाणु धमकियों को रोकने में चीन द्वारा पर्याप्त मदद न मिलने के कारण व्यापार वार्ता भी अधर में अटक गई।

व्यापार मुद्दों से निपटने के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के साथ समझौते के लिए एक दोस्तरीय रणनीति अपनाई। उन्होंने एक एक्जीक्यूटिव मोमेरंडम यानी आधिकारिक आशय पत्र पर हस्ताक्षर करके अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) रॉबर्ट लाइटाइजर को चीन के बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) की पड़ताल करने के लिए कहा। अमेरिका-चीन संबंधों में आईपीआर का मसला लंबे समय से अटका हुआ है। दूसरा यही कि उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर एक लाटिक सेमी-कंडक्टर कंपनी खरीदने की चीनी कोशिशों में अड़ंगा लगा दिया। 1 मार्च, 2018 को डोनाल्ड ट्रंप ने एलान किया कि वह सभी देशों से आयात होने वाले स्टील पर 25 प्रतिशत और एल्युमीनियम पर 10 प्रतिशत का आयात शुल्क लगाएंगे। इसके जवाब में चीन ने 128 अमेरिकी उत्पादों पर प्रशुल्क लगा दिया।

तथाकथित ट्रेड वार को टालने को दरकिनार कर दें तो यह इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं करता कि अमेरिका-चीन व्यापारिक रिश्ते फिलहाल सुगम दिशा में बढ़ रहे हैं। व्यापार के मसले पर समझौते भी स्पष्ट नहीं हैं। 21 मई, 2018 को प्रवक्ता ने कहा, “इन दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच बढ़ते संवाद को देखते हुए हम इस बात की बमुश्किल ही गारंटी दे सकते हैं कि भविष्य में कोई और गतिरोध, मतभेद या विचलन नहीं आएगा। ” लियू ने भी चेताया कि द्विपक्षीय रिश्तों में ढांचागत समस्याओं को सुलझाने में और समय लगेगा। लंबे समय से अटका हुआ आईपीआर का मुद्दा भी तत्काल नहीं सुलझाया जा सकता। अमेरिकी वाणिज्य मत्री विल्बर रॉस इस मुद्दे पर वार्ता करेंगे।

चीन को लेकर अमेरिकी व्यापार नीतियां काफी हद दक्षिण चीन सागर में चीनी सैन्य गतिविधियों और उत्तर कोरिया के साथ उसके संबंधों को बिगाड़ने की चीन की भूमिका से निर्धारित होंगी। अमेरिका पहले ही रिम ऑफ द पैसिफिक अभ्यास (आरआईएमपीएसी), 2018 में शामिल होने को लेकर चीन को दिए न्योते को पहले ही निरस्त कर चुका है और लगातार चीन पर दबाव बढ़ा रहा है। तथाकथिक व्यापार युद्ध पर संघर्षविराम के कुछ दिनों बाद ही डोनाल्ड ट्रंप ने एलान किया कि वह चीन से आयातित हुई 50 अरब डॉलर की वस्तुओं पर 25 प्रतिशत का प्रशुल्क लगाएंगे।

व्यापार वार्ताओं का परिणाम अन्य देशों को भी प्रभावित करेगा। अब यह देखना होगा कि आने वाले दिनों में दोनों पक्ष कैसे इस मुद्दे से निपटते हैं और इस क्षेत्र के लिए इसके क्या व्यापक निहितार्थ होंगे।

(लेख में संस्था का दृष्टिकोण होना आवश्यक नहीं है। लेखक प्रमाणित करता है कि लेख/पत्र की सामग्री वास्तविक, अप्रकाशित है और इसे प्रकाशन/वेब प्रकाशन के लिए कहीं नहीं दिया गया है और इसमें दिए गए तथ्यों तथा आंकड़ों के आवश्यकतानुसार संदर्भ दिए गए हैं, जो सही प्रतीत होते हैं)


Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: https://www.channel4.com/news/impact-of-kremlin-announcement-on-us-china-trade-war

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