दक्षिण चीन सागर विवाद: गलती ठीक करना
Gautam Sen

चीन ने संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (अनक्लोस) पर हस्ताक्षर किए हैं, अमेरिका ने नहीं। दक्षिण चीन सागर लगभग चालीस वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। अनुमान है कि यहां से समुद्र के रास्ते प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख करोड़ डॉलर का व्यापार होता है और दुनिया के एक तिहाई व्यापारिक जहाज हर वर्ष यहीं से गुजरते हैं। यह दुनिया में व्यापार के सबसे महत्वपूर्ण रास्तों में से है। इसमें ऊर्जा और समुद्री जीवन की प्रचुर संभावनाएं हैं। यहां 11 अरब बैरल तेल और 190 लाख करोड़ घन फुट प्राकृतिक गैस का भंडार होने का अनुमान है। दुनिया भर में जो मछलियां पकड़ी जाती हैं, उनका 12 प्रतिशत हिस्सा दक्षिण चीन सागर में ही होने का अनुमान है। चीन की साम्यवादी सरकार 1947 के एक पुराने नक्शे के सहारे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा ठोकती है। इस समय दक्षिण चीन सागर पर विभिन्न देशों के विवादित दावे हैं, जो नीचे दिए गए हैं।



चीन के ऊपर अब जमीन पर कब्जा कर और द्वीप बनाने की कोशिश कर दक्षिण चीन सागर में 3,200 एकड़ क्षेत्र तैयार करने का आरोप है। मध्यस्थता पैनल का हाल का फैसला फिलीपींस-चीन विवाद से संबंधित है, लेकिन इससे क्षेत्र में अन्य देश भी अतिक्रमण की शिकायत वाले दावे करेंगे। इसीलिए चीन पर दक्षिण चीन सागर गतिरोध को बातचीत के जरिये निपटाने का भारी दबाव उत्पन्न हो गया है।

विभिन्न विश्लेषक मीडिया में कहते रहे हैं कि “कोई भी और रास्ता चीन के अंतरराष्ट्रीय रुतबे को नुकसान पहुंचाएगा। चीन समझता है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की बढ़ी हुई उपस्थिति - जिसने 2012 में शुरू की गई ‘एशिया की धुरी’ नीति के साथ ही संस्थागत जामा पहन लिया है - चीन के उभार को रोकने के लिए है। कई विश्लेषक मानते हैं कि यदि अमेरिका अलग-अलग देशों के साथ सुरक्षा साझेदारी के बजाय क्षेत्रीय सहयोग को प्राथमिकता देता है तो दक्षिण चीन सागर में तनाव का समाधान आसान होगा। अमेरिका की सक्रिय कूटनीति जापान, भारत और एक सीमा तक ऑस्ट्रेलिया को दक्षिण चीन सागर में ‘नौवहन की स्वतंत्रता’ अभियान में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करती है।” स्थायी मध्यस्थता अदालत के फैसले पर चीन की प्रतिक्रिया दक्षिण चीन सागर पर श्वेत पत्र के रूप में आई, जिसे चीन की राज्य परिषद के सूचना कार्यालय ने 13 जुलाई, 2016 को जारी किया। 13,375 शब्दों के इस श्वेत पत्र में 143 अनुच्छेद हैं। प्रस्तावना में ही सात अनुच्छेद हैं, जो चीन का रुख बताते हैं और वे अनुच्छेद नीचे दिए गए हैं। नीचे दिया गया नीतिगत दस्तावेज तैयार करते समय चीन की स्पष्टता दर्शाने के लिए पांच अन्य शीर्षक जोड़े गए हैं:

दक्षिण चीन सागर पर चीन के श्वेत पत्र का सार

प्रस्तावना

  1. चीन की मुख्यभूमि के दक्षिण में स्थित और संकरी खाड़ी तथा जलमार्ग के जरिये पूर्व में प्रशांत महासागर एवं पश्चिम में हिंद महासागर से जुड़ा हुआ दक्षिण चीन सागर उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तक फैला हुआ आंशिक रूप से बंद समुद्र है। इसके उत्तर में मुख्यभूमि तथा चीन का ताइवान दाओ है, दक्षिण में कालीमंतम द्वीप और सुमात्रा द्वीप, पूर्व में फिलीपींस द्वीपसमूह तथा पश्चिम में भारत-चीन प्रायद्वीप तथा मलय प्रायद्वीप है।
  2. चीन के ननहाई झुदाओ (दक्षिण चीन सागर द्वीपसमूह) में दोंगशा कुंदाओ (दोंगशा द्वीपसमूह), शिशा कुंदाओ (शिशा द्वीपसमूह), झोंगशा कुंदाओ (झोंगशा द्वीपसमूह) और नांशा कुंदाओ (नांशा द्वीपसमूह) शामिल हैं। इन द्वीपों में विभिन्न संख्या और आकारों वाले द्वीप, चट्टानें, छिछला जल और मूंगे की चट्टानें शामिल हैं। नांशा कुंदाओ द्वीपों एवं चट्टानों की संख्या तथा भौगोलिक क्षेत्रफल के मामले में सबसे बड़ा है।
  3. दक्षिण चीन सागर में चीनी जनता की गतिविधियां 2,000 वर्ष पहले से चल रही हैं। ननहाई झुदाओ और उसके आसपास के जल को तलाशने, नाम देने और ढूंढने एवं इस्तेमाल करने वाला चीन पहला देश है और वहां लगातार, शांति के साथ तथा प्रभावी रूप से उसकी संप्रभुता एवं अधिकार क्षेत्र बना हुआ है। ननहाई झुदाओ पर चीन की संप्रभुता एवं दक्षिण चीन सागर में उसके अधिकार तथा हितों की स्थापना का लंबा इतिहास है और वे इतिहास तथा कानून में मजबूती से दर्ज हैं।
  4. समुद्र के आरपार एक दूसरे के सामने स्थित पड़ोसी चीन और फिलीपींस घनिष्ठता के साथ आदान-प्रदान करते रहे हैं और कई पीढ़ियों से दोनों के बीच मैत्री है। 1970 के दशक तक दोनों के बीच कोई जमीनी अथवा समुद्री सीमा संबंधी विवाद नहीं था। लेकिन उसके बाद फिलीपींस ने चीन के नांशा कुंदाओ में घुसपैठ करना और कुछ द्वीपों तथा चट्टानों पर कब्जा करना शुरू किया और इन द्वीपसमूह तथा चट्टानों के मुद्दे पर चीन के साथ क्षेत्रीय विवाद खड़ा हो गया। इसके अलावा समुद्री अंतरराष्ट्रीय कानून तैयार होने के साथ ही दक्षिण चीन सागर के कुछ समुद्री क्षेत्रों को लेकर दोनों के मध्य समुद्री सीमांकन विवाद खड़ा हो गया।
  5. चीन और फिलीपींस ने दक्षिण चीन सागर में अपने विवाद निपटाने के लिए किसी तरह की बातचीत नहीं की है। लेकिन दोनों देशों ने समुद्री विवादों के समुचित प्रबंधन पर कई दौर की बातचीत की और संबंधित विवादों को बातचीत तथा विचार-विमर्श के जरिये सुलझाने पर सहमति जताई, जो बात तमाम द्विपक्षीय दस्तावेजों में भी कही गई है। दोनों देशों ने 2002 में दक्षिण चीन सागर में पक्षों के आचार संबंधी घोषणापत्र में संबंधित विवाद बातचीत एवं विचार-विमर्श के जरिये निपटाने का संकल्प भी किया है। इस दस्तावेज पर चीन और आसियान के सदस्य देशों ने संयुक्त रूप से हस्ताक्षर किए हैं।
  6. जनवरी, 2013 में फिलीपींस सरकार उपरोक्त सहमति और संकल्प से पीछे हट गई और अकेले ही दक्षिण चीन सागर मध्यस्थता आरंभ कर दी। फिलीपींस ने इस स्थलीय विवाद को जानबूझकर गलत तरीके से पेश किया, जबकि यह न तो संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (अनक्लोस) के तहत आता है और न ही समुद्री सीमांकन विवाद की श्रेणी में है, जिसे अनक्लोस के अनुच्छेद 298 के अनुसार चीन के 2006 के अपवाद घोषणापत्र के द्वारा अनक्लोस विवाद निर्णय प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया। यह अनक्लोस विवाद निपटारा प्रक्रिया का साफ दुरुपयोग था। फिलीपींस ने ऐसा करके चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता एवं समुद्री अधिकारों तथा दक्षिण चीन सागर में उसके हितों को छीनने की कोशिश की थी।
  7. यह दस्तावेज का उद्देश्य तथ्य स्पष्ट करना तथा दक्षिण चीन सागर में चीन और फिलीपींस के बीच संबंधित विवाद के पीछे का सच उजागर करना है। इसके साथ ही इसका उद्देश्य दक्षिण चीन सागर के मसले पर चीन का पुराने रुख एवं नीति को दोहराना भी है ताकि मुद्दे की जड़ तक पहुंचा जा सके और भ्रम दूर किया जा सके।

शेष पांच खंड

  1. ननहाईझुदाओ चीन का विरासत में मिला क्षेत्र है, अनुच्छेद 8-54
  2. दक्षिण चीन सागर में चीन और फिलीपींस के मध्य संबंधित विवाद की उत्पत्ति, अनुच्छेद 55-72
  3. चीन और फिलीपींस दक्षिण चीन सागर में अपने विवादों को सुलझाने के लिए सहमत हो चुके हैं, अनुच्छेद 73-91
  4. फिलीपींस ने लगातार ऐसे कदम उठाए हैं, जिन्होंने इन विवादों को पेचीदा बनाया है, अनुच्छेद 92-119
  5. दक्षिण चीन सागर मसले पर चीन की नीति, अनुच्छेद 121-143। महत्वपूर्ण पहलू नीचे दिए गए हैं:
  • दक्षिण चीन सागर में शांति एवं स्थिरता बनाए रखने के लिए चीन महत्वपूर्ण ताकत है। यह संयुक्त राष्ट्र मांगपत्र के सिद्धांतों एवं उद्देश्यों का पालन करता है और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करने एवं उन्हें बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। यह अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान करते हुए उसके अनुसार ही चलता है.... चीन पारस्परिक लाभकारी सहयोग के जरिये पूरी तरह लाभ वाले परिणाम चाहता है और दक्षिण चीन सागर को शांति, सहयोग एवं मैत्री का सागर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
  • चीन का अनुरोध है कि इस क्षेत्र से बाहर के देश इस संबंध में क्षेत्र के देशों द्वारा किए जा रहे प्रयासों का सम्मान करें एवं दक्षिण चीन सागर में शांति एवं स्थिरता बनाए रखने में रचनात्मक भूमिका निभाएं।
  • ननहाईझुदाओ और उसके आसपास के जलक्षेत्र पर अपनी संप्रभुता बनाए रखने के मामले में चीन अडिग है। कुछ देशों ने नांशाकुंदाओ के क्षेत्रों पर अवैध दावे किए हैं और कुछ द्वीपों एवं चट्टानों पर बलपूर्वक कब्जा भी किया है। के विषय में चीन अडिग है... वह अमान्य है। चीन ऐसे कृत्यों का लगातार और दृढ़ता के साथ विरोध करता है और उन देशों से चीन के क्षेत्र में अतिक्रमण रोकने की मांग करता है।
  • यह सर्वमान्य है कि भूमि क्षेत्र के मसले अनक्लोस के अंतर्गत नहीं आते हैं। इसीलिए नांशाकुंदाओ में क्षेत्र विवाद से अनक्लोस का कोई संबंध नहीं है।
  • चीन मानता है कि दक्षिण चीन सागर में समुद्री सीमांकन का मसला प्रत्यक्ष संबंध रखने वाले देशों से बातचीत के जरिये समानता के साथ सुलझाया जाना चाहिए।
  • 1996 में अनक्लोस को स्वीकार करते हुए चीन ने कहा था कि, “चीनी गणराज्य अपने सामने अथवा पड़ोस के तट पर स्थित देशों के साथ समुद्री अधिकार क्षेत्र की सीमाएं निर्धारित करने का काम बातचीत के जरिये अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर एवं समानता के सिद्धांत के अनुसार करेगा।”
  • चीन अपने विरुद्ध किसी प्रकार के समुद्री दावे के एकतरफा प्रयास को स्वीकार नहीं करेगा। न ही चीन ऐसे किसी कार्य को स्वीकार करेगा, जिससे उसके समुद्री अधिकारों तथा दक्षिण चीन सागर में उसके हितों को नुकसान पहुंचता हो।
  • क्षेत्र एवं समुद्री सीमा निर्धारण के मसलों पर चीन अपने ऊपर थोपे जा रहे किसी भी प्रकार के विवाद निपटारे के माध्यम को स्वीकार नहीं करेगा और न ही तीसरे पक्ष के जरिये समाधान की किसी व्यवस्था को स्वीकारेगा।
  • चीन डीओसी के पूर्ण एवं प्रभावी क्रियान्वयन के लिए आसियान सदस्य देशों के साथ कार्य करने के लिए सदैव प्रतिबद्ध है और व्यावहारिक समुद्री सहयोग को सक्रिय रूप से बढ़ावा देता है। चीन अंतरराष्ट्रीय कानून के अंतर्गत समुद्री यात्रा करने एवं समुद्र के ऊपर उड़ान भरने की सभी देशों की आजादी को बनाए रखने एवं संचार के समुद्री मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृतसंकल्प है... दक्षिण चीन सागर में अंतरराष्ट्रीय कानून के अंतर्गत यात्रा करने एवं उसके ऊपर से उड़ान भरने की स्वतंत्रता के मामले में किसी देश को कभी समस्या नहीं हुई है।
  • चीन मानता है कि चीन एवं आसियान सदस्य देशों को मिलकर दक्षिण चीन सागर में शांति एवं स्थिरता बरकरार रखनी होगी। दक्षिण चीन सागर चीन और उसके पड़ोसियों के बीच संचार सेतु है और शांति, मैत्री, सहयोग तथा विकास का बंधन है। देशों की सुरक्षा, विकास एवं समृद्धि तथा इस क्षेत्र के लोगों के कल्याएण के लिए दक्षिण चीन सागर में शांति एवं स्थिरता आवश्यक है। दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में शांति, स्थिरता, समृद्धि एवं विकास चीन एवं आसियान के सदस्य देशों की साझा आकांक्षा एवं जिम्मेदारी है और यह सभी देशों के हित में है।
  • चीन इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अनवरत प्रयास करता रहेगा।

    चीन के कूटनीति संबंधी प्रयास

    फिलीपींस ने जिन 15 बिंदुओं को लेकर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत का रुख किया था, अदालत ने उनमें से लगभग सभी को सही ठहराते हुए चीन के विरुद्ध फैसला सुना दिया। उस फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए चीन लगातार कूटनीतिक प्रयास करता रहा है। चीन ने अदालत के अधिकार क्षेत्र पर सवाल खड़ा करते हुए और दक्षिण चीन सागर एवं उसके संसाधनों पर ऐतिहासिक अधिकारों का सार्वजनिक दावा करते हुए कार्यवाही का बहिष्कार कर दिया। उसने 13 जुलाई, 2016 को दक्षिण चीन सागर पर वह व्यापक श्वेत पत्र प्रस्तुत किया और सार्वजनिक कर दिया, जिसकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है। 25 जुलाई 2016 को लाओ गणराज्य के वियंतिएन में बैठक के बाद जारी होने वाले आसियान सदस्य देशों एवं चीन के विदेश मंत्रियों के संयुक्त बयान में चीन का नाम नहीं आए, यह सुनिश्चित करने को ही चीन ने अपना एकमात्र लक्ष्य एवं उद्देश्य बना लिया। संयुक्त बयान के अंतिम भाग में कहा गयाः

    “डीओसी की 10वीं वर्षगांठ पर 2012 में 15वें आसियान-चीन शिखर सम्मेलन में स्वीकार किए गए संयुक्त बयान को याद करते हुए;

कहा जाता हैः

  1. दक्षिण चीन सागर में यात्रा करने और उसके ऊपर से विमान उड़ाने की जो स्वतंत्रता 1982 के अनक्लोस समेत अंतरराष्ट्रीय कानून के सर्वमान्य सिद्धांतों द्वारा निर्धारित कर गई है, सभी पक्ष उसके प्रति सम्मान एवं प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं।
  2. संबंधित पक्ष अपने क्षेत्रीय एवं अधिकार संबंधी विवादों को किसी प्रकार की धमकी अथवा बलप्रयोग के बगैर प्रत्यक्ष संबंध रखने वाले संप्रभु देशों द्वारा 1982 के अनक्लोस समेत अंतरराष्ट्रीय कानूनों के सर्वमान्य सिद्धांतों के अनुसार मैत्रीपूर्ण बातचीत एवं सलाह-मशविरे के माध्यम से शांतिपूर्ण साधनों की सहायता से सुलझाने का संकल्प करते हैं।”

यह स्वीकार करना होगा कि इस कूटनीतिक मसले पर चीन ने जबरदस्त सफलता हासिल की है। इसका श्रेय अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए चीन की आक्रामक कूटनीति को जाता है।

चीन का सामरिक रुख

इससे पहले 14 जुलाई, 2016 को मध्यस्थता आदेश पर टिप्पणी करते हुए चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा, “आदेश अमान्य है और बाध्यकारी नहीं है। चीन इसे स्वीकार नहीं करता।” बाद में चीन के सहायक विदेश मंत्री ने दक्षिण चीन सागर के ऊपर वायु सुरक्षा पहचान क्षेत्र (एडीआईजेड) घोषित करने के चीन के कथित अधिकार को दोहराया। उन्होंने कहा कि चीन एडीआईजेड को लागू करेगा या नहीं, यह चीन के सामने आने वाले खतरे के स्तर पर निर्भर करेगा।

अपने सामरिक आधार को और बल देने के लिए चीन ने बहुमुखी रास्ता अपनाया है। उस इतनी सफलता तो मिली ही है कि अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में शक्ति संतुलन की तस्वीर बदलने के लिए अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है। हालांकि अमेरिका ने वाहक पोतों के समूह को दक्षिण चीन सागर से गुजारने की अपनी आजादी का इस्तेमाल किया, लेकिन 27 जुलाई को उसे अपने शीर्ष नौसेना कमांडर को चीन भेजना पड़ा, जब चीन ने दक्षिण चीन सागर में विशाल सैन्य अभ्यास आरंभ कर दिया, सैन्य अभ्यास के दौरान समूचे इलाके में शेष विश्व का प्रवेश निषिद्ध कर दिया, रूस के साथ सितंबर, 2017 में संयुक्त सैन्य अभ्यास करने की घोषणा कर दी और गहन मिसाइल प्रक्षेपण अभ्यास कर डाले। चीन ने सभी विदेशियों को अनुमति के बगैर दक्षिण चीन सागर में प्रवेश नहीं करने का परामर्श जारी कर दिया है और चेतावनी दी है कि प्रवेश करने पर पकड़े गए तो दो वर्ष तक की कैद होगी।

अभी तक दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में चीन के सामरिक हितों की स्थापना के बाद केवल जापान ने अपने सामरिक रुख की घोषणा करने वाला श्वेत पत्र जारी किया है। यह श्वेत पत्र 484 पृष्ठों का है, जिसे जापान के मंत्रिमंडल ने 2 अगस्त, 2016 को मंजूरी प्रदान की और संक्षेप में इसके प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:

  1. उत्तर कोरियाः रिपोर्ट कहती है कि प्योंगयांग ने संभवतः हथियारों के लिए छोटे परमाणु अस्त्र तैयार करने की क्षमता हासिल कर ली है और 10,000 किलोमीटर (6,200 मील) की दूरी तक पहुंचने वाली मिसाइल भी प्राप्त कर ली हैं। “उत्तर कोरिया की सैन्य गतिविधि ने कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव बढ़ा दिया है और जापान के लिए ही नहीं बल्कि क्षेत्र की सुरक्षा एवं अंतरराष्ट्रीय समाज के लिए गंभीर एवं आसन्न खतरा बन गया है।”
  2. चीनः चीन की तेजी से विस्तार करती एवं आक्रामक रुख वाली समुद्री एवं हवाई गतिविधि एवं उसकी सैन्य तैयारी में पारदर्शिता की कमी ने क्षेत्र में सैन्य संतुलन अस्थिर कर दिया है। विरोधाभासी समुद्री दावों पर चीन के कुछ कदम खतरनाक हरकत हैं , जिनसे अप्रत्याशित स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।... इनके कारण भविष्य की तस्वीर पर गंभीर चिंताएं उत्पन्न होती हैं।”
  3. दक्षिण चीन सागरः दक्षिण चीन सागर में चीन द्वारा भमि को पुनः प्राप्त करना एवं निर्माण करना उकसावे जैसा है। हिंद महासागर की ओर बढ़ते हुए चीन समुद्र से मिली जमीन का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्य के लिए करने का प्रयास कर रहा है। पेइचिंग को फिलीपींस के साथ समुद्री विवादों का निपटारा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता द्वारा हाल में दिए गए निर्णय को स्वीकार करना चाहिए।
  4. पूर्वी चीन सागरः रिपोर्ट कहती है कि जापानियों के नियंत्रण वाले जिस द्वीपसमूह पर दोनों दावा करते हैं, चीन ने उसके आसपास गतिविधियां तेज कर दी हैं और चीन का एक युद्धपोत क्षेत्र में जापान के दावे वाले जलक्षेत्र के ठीक बाहर वाले पानी में प्रवेश कर गया। पूर्वी चीन सागर में गतिविधियां बढ़ने से जापान को पिछले वर्ष 570 से अधिक बार चीनी युद्धक विमानों के विरुद्ध कमर कसनी पड़ी थी। जापान विवादित द्वीप को सेंकाकू कहता है और चीन उसे दिआओयू पुकारता है।

मीडिया रणनीति

दुनिया भर में मीडिया के मोर्चे पर पाकिस्तान, भारत तथा उपमहाद्वीप के अन्य देशों में चीनी राजनयिक तथा उनके सैन्य सहयोगियों ने संवाददाता सम्मेलनों को संबोधित किया, चीनी दृष्टिकोण को बिना किसी भ्रम के सामने रखने के लिए क्षेत्र के विचार संस्थानों तक गए, कभी-कभार तो गैरकूटनीतिक और सख्त भाषा का इस्तेमाल भी किया ताकि सुनने वालों के मन में इस बारे में कोई भ्रम नहीं रह जाए कि चीन चाहता है कि दक्षिण चीन सागर को उसी नजरिये से देखा जाए, जिससे वह देखना पसंद करता है और जो वह देखता है, वही सच है। चीन पूरी दुनिया को बारीक इशारा कर रहा है कि अपने राष्ट्रीय हित के मामले में वह राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक स्तर पर अपनी सुविधा के मुताबिक कोई भी कदम उठाएगा चाहे वह कदम कानूनी, राजनीतिक अथवा नैतिक आधार पर वैश्विक दृष्टिकोण से कितना भी भिन्न क्यों न हो।

47 स्ट्रीट, 7 अवेन्यू और ब्रॉडवे के बीच स्थित टाइम्स स्क्वायर के उत्तरी छोर पर चीनी सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की जो विशाल स्क्रीन लगी है, चीन ने 30 जुलाई, 2016 के बाद से ही “दक्षिण चीन सागर में चीन की ऐतिहासिक भूमिका एवं दृष्टिकोण” को प्रचारित करने के लिए हर दस मिनट बाद उस पर वीडियो विज्ञापन चलाना शुरू कर दिया है, जिसे बहुत दूर से भी देखा जा सकता है। आम तौर पर उस स्क्रीन पर या तो चीन के दर्शनीय स्थानों के व्यावसायिक वीडियो दिखाए जाते हैं या चीन की चीन की राजनीतिक एवं आर्थिक गतिविधियों जैसे आधी दुनिया को वन रोड, वन बेल्ट के जरिये जोड़ने की बुनियादी ढांचा योजना की झलकियां दिखाई जाती हैं, जो देश और विदेश में मध्य साम्राज्य की नई कहानी को नियंत्रित करने की बड़ी योजना का हिस्सा है। कहा जाता है कि चीन इस पर 2-3 लाख डॉलर प्रतिमाह खर्च करता है © मेटे होम। चीन से पहले ऐसे किसी देश की बात ध्यान में नहीं आती है, जिसने अपने राष्ट्रीय हित के लिए मीडिया का इतना व्यापक इस्तेमाल करने की कोशिश की हो।

उपमहाद्वीपीय व्यवस्था का उद्भव

यह जानना दिलचस्प है कि चीन जानबूझकर और योजनाबद्ध तरीके से एक उपमहाद्वीपीय व्यवस्था तैयार करने में जुटा है, जिसमें सरकार का व्यापक बाहरी रवैया उसके भीतर के रवैये पर आधारित रहता है। मेंडलबॉम (1988) ने ऐसी ही परिकल्पना की थी कि मजबूत देश अपनी सुरक्षा को अधिकतम स्तर तक पहुंचाने के लिए विस्तार करते हैं। कमजोर देशों के पास यदि कोई विकल्प नहीं होता है तो वे मजबूत देशों के आगे घुटने टेक देते हैं अन्यथा वे खुद को मजबूत देशों से दूर कर या अन्य देशों के साथ हाथ मिलाकर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। नव-यथार्थवादी व्यवस्था का सिद्धांत बताता है कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था “प्रक्रिया” एवं “ढांचे” से बनी है और यह सिद्धांत “ताकत एवं हित” की व्यवस्था के भीतर देशों के व्यवहार की व्याख्या करता है। इसीलिए बसरुर हमें बताते हैं कि ““पारस्परिक संवाद की तीव्रता” का सिद्धांत कार्य करने की गति प्रदान करता है क्योंकि तीव्रता व्यवस्था का गुण है, उसके सदस्य देशों का नहीं।”

चीन ने आज अपना रुख विदेश एवं सामरिक नीति पर केंद्रित कर दिया है और इसके लिए उसने उपमहाद्वीपीय व्यवस्था तैयार की है, जिसमें आसियान तथा चीन किसी पर निर्भर नहीं हैं, लेकिन दक्षिण चीन सागर उन पर निर्भर है। इस पर आसियान के सदस्य, जो कमजोर देश हैं, चीन जैसे मजबूत देश के आगे झुक गए हैं और मजबूत तथा कमजोर की जमात के बीच में रहने वाले भारत जैसे देश ने खुद को उसमहाद्वीपीय व्यवस्था, जिसका केंद्र दक्षिण चीन सागर है, से दूर रखते हुए अपने सुरक्षा हितों की रक्षा करने का दूरदर्शिता भरा काम किया है। जब से दक्षिण चीन सागर में ऊर्जा तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों की संभावना में बाकी दुनिया की रुचि बढ़ी है, विशेषकर उसके बाद से दक्षिण चीन सागर को मिलाते हुए उपमहाद्वीपीय व्यवस्था तैयार करने और बढ़ाने में चीन को सफलता मिली है अथवा नहीं, यह कुछ समय बाद लिखा जाने वाला इतिहास ही बताएगा।

निष्कर्ष

इसमें कोई संशय नहीं कि इस समय चीन विश्व राजनीति में प्रमुख स्थान पाने की विशेष राजनीतिक इच्छाशक्ति वाली बड़ी ताकत के रूप में उभर रहा है। उसने अपनी सामरिक गतिविधियों और कूटनीतिक कौशल के जरिये बड़ी शक्तियों और उनके सहयोगियों पर प्रभाव डालकर यह दिखाया भी है। अभी तो इस सीमित उपमहाद्वीपीय व्यवस्था पर उसका ही नियंत्रण है।


Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)

Published Date: 2nd December 2016, Image Source: https://associazioneeuropalibera.wordpress.com

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