औद्योगिक कारणों के लिये अधिग्रहित जमीनों का लैंड यूज बदलने के कारण
कर्नल शिवदान सिंह

नोएडा, ग्रेटर नोएडा तथा यमुना औद्योगीकरण विकास प्राधिकरणों के औद्योगीकरण पर पड़े प्रभावों का आकलन

हमारे देश में कहावत है- पहले रोजगार, फिर मकान और इसी कहावत को यथार्थ का रूप देने के लिए देश में स्वतंत्रता के बाद औद्योगीकरण तथा बेरोजगारी खत्म करने के लिए बहुत सी योजनाएं बनी और इन योजनाओं को संस्थागत रूप देने के लिए औद्योगिक विकास प्राधिकरणों का गठन देश के बहुत से महानगरों तथा नगरों के आसपास किया गया। इन प्राधिकरणों को स्थापित करने का मुख्य उददेश्य था कि औद्योगीकरण के लिए उद्योग स्थापित करने के लिए सारी सुविधाएं एक खिड़की से उपलब्ध हो जाये जैसा कि अक्सर सरकारें निवेश आकर्षित करने के लिए उद्योगपतियों तथा विदेशी निवेशकों से वायदा करती है और इस उददेश्य की पूर्ति के लिए ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दिल्ली के चारो तरफ नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुड़गांव, बहादुरगढ़, फरीदाबाद इत्यादि शहरों का विकास नये सिरे से किया गया। इसी उददेश्य की प्रमुखता को हर समय ध्यान में रखने के लिए नोएडा नाम से तात्पर्य है- न्यू ओखला इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट एरिया, ग्रेटर नोएडा-बहत्तर न्यू ओखला इंडस्ट्रीयल डेवलपमेन्ट तथा येड़ा-यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास एरिया।

उपरोक्त से तात्पर्य लगाया जा सकता है कि औद्योगीकरण इन तीनो में मुख्य उददेश्य था। इस उददेश्य पूर्ति के लिए अंग्रेजो द्वारा बनाये भूमि अधिग्रहण कानून 1894 का खुलकर प्रयोग करके प्रदेश सरकार ने इस क्षेत्र की ज्यादार भूमि का अधिग्रहण समय-समय पर कर लिया। उददेश्य था कि 70 प्रतिशत भूमि का उद्योगों तथा संस्थाओ के लिए प्रयोग किया जायेगा। परन्तु औद्योगीकरण के उददेश्यों की धज्जियां उड़ाते हुए राजनीतिज्ञों तथा नौकरशाहो की मिलीभगत से इस क्षेत्र में 90 प्रतिशत भूमि का प्रयोग आवासीय तथा कार्मिशयल और केवल 10 प्रतिशत ही उद्योगो के लिए छोड़ी गई और इस 10 प्रतिशत में समुचित औद्योगिक वातावरण न होने के कारण नोएडा, ग्रेटर नोएडा तथा येड़ा में अभी तक कोई ऐसी औद्योगिक इकाई स्थापित नहीं हो सकी जिसमें यहॉ का तथा देश के अन्य भागो से आये बेरोजगार नौजवानों को रोजगार मिल सके। इस तथ्य को स्वयं सत्यापित करने के लिए देश के प्रधानमंत्री तथा प्रदेश के मुख्यमंत्री दोनो को हैलीकाप्टर द्वारा इस पूरे क्षेत्र के ऊपर उड़ान भरकर स्वयं देखना चाहिए कि इन विकास प्राधिकरणों ने औद्योगिक विकास को किस प्रकार गति दी है।

उपरोक्त तथ्यों को उजागर करने के लिए उदाहरण इस प्रकार है। नोएडा एक्सटैंशन जमीन घोटाला यहॉ पर औद्योगिक विकास के नाम पर 16 गांवों की जमीन का अधिग्रहण वर्ष 2007-08 में किया गया ये गांव है पतवाड़ी, बिसरख, खैरपुर गूर्जर, देवला, रोजा याकूबपुर इत्यादि। और यह अधिग्रहण भूमि अधिग्रहण कानून के अरजेंसी क्लाज के तहत किया गया परन्तु फरवरी 2009 में इस जमीन की श्रेणी औद्योगिक से बदलकर ग्रुप हाउसिंग कर दी गयी। इसके बाद यह जमीन सुपरटेक, आम्रपाली और गौड़ संस समेत छोटे बड़े 100 बिल्डरो को आवंटित कर दी गयी। इस घोटाले में नोएडा विकास प्राधिकरण के 20 अधिकारी शामिल बताये जा रहे हैं जिनमें तत्कालीन सी0ई0ओ0, ए0सी0ई0ओ0 स्तर तथा अन्य अधिकारी है जिन्होंने मोटी रकम लेकर इसको अंजाम दिया। इसके बाद यमुना विकास प्राधिकरण का 600 करोड़ का जमीन आवंटन घोटाला आता है। इसके अंतर्गत यमुना प्राधिकरण ने 2008 में सैक्टर 17 ए में 1000 एकड़ जमीन अधिग्रहित कर माइक्रो एसडीजैड के नाम से योजना निकाली। इसमें 25 से 250 एकड़ तक के भूखंड शामिल किये गये। योजना के तहत 75 प्रतिशत हिस्सा मुख्य गतिविधि (कौर एक्टीविटी यानि एस0डी0जैड0) व 25 प्रतिशत पर आवासीय, कामर्शियल गतिविधियों की अनुमति थी परन्तु यह पूरी जमीन प्राधिकरण ने बिल्डरों को आधी कीमत पर अर्थात किसानो को दिये मुआवजे के आधे पर बिल्डरों को दे दी। इन बिलडरों ने पूरी जमीन पर केवल आवासीय तथा कामर्शियल प्रोजेक्टरो की योजना बनाकर बुकिंग कर दी और इस प्रकार प्राधिकरण को 600 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा। इसके साथ इसी क्षेत्र में चकबन्दी घोटाला हुआ। इस घोटाले में यमुना प्राधिकरण क्षेत्र के मुरसदपुर, असगरपुर, दनकौर तथा अट्टा फतेहपुर में चकबन्दी चल रही थी। इसके दौरान सम्बन्धित ग्रामों के पूरे भूमि रिकार्ड चकबन्दी अधिकारियों को सौंप दिये गये थे। इस प्रक्रिया का फायदा उठाकर चकबन्दी अधिकारियों ने इन गांवों में पड़ी सरकारी जमीन जो देहातों में अक्सर आधारभूत ढॉचे के लिए होती है, को अपने रिश्तेदारों तथा भू माफियाओं के नामो ंपर दिखा दी। इसमें ज्यादातर अधिकारियों की पत्नियों एवं सालों तथा भू माफियाओं के नाम सामने आ रहे हैं और सबसे बड़ी हैरात की बात है कि इस प्रकार नाम की हुई जमीन के मोटे मुआवजे जो करोड़ो में है, इनके रिश्तेदारो को बिना किसी जांच पड़ताल के दे दिये गये। बढ़ते प्रदूषण तथा प्रकृति का संतुलन बनाने के लिए 2004 में यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में 200 बीघा जमीन एक व्यक्ति को पेड़ लगाने के लिए 20 साल के पट्टे पर दी गयी थी परन्तु इसी क्षेत्र में पतंजलि उद्योग समूह को 4500 एकड़ भूमि इस 200 बीघा जमीन को मिलाकर प्राधिकरण ने आवंटित कर दी। उसके बाद आयुर्वेद की महिमा गाने वाले पतंजलि ने हजारो पेड़ो को बड़ी बेरहमी से कटवा दिया जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संज्ञान लेते हुए इन पेड़ो की कटाई पर रोक लगा दी है तथा गौतमबुद्धनगर के जिलाधिकारी को मौके की रिपोर्ट देने को कहा है। नोएडा के गेझा गांव में अभी-अभी 20 करोड़ कीमत की जमीन को भूमाफिया के चंगुल से मुक्त करवाया गया है। यह जमीन प्राधिकरण की थी जो भ्रष्टाचार के द्वारा प्राधिकरण के अधिकारियों ने माफिया को दे रखी थी और सूत्रो के अनुसार इस प्रकार करीब 10000 करोड़ कीमत की प्राधिकरण की जमीन नोएडा क्षेत्र के गांवा में प्राधिकरण कर्मियों की मिलीभगत एवं भ्रष्टाचार के द्वारा भू माफिया के कब्जे में है जिस पर इस माफिया ने प्लॉटिंग तथा बड़े-बड़े भवनो का निर्माण कर लिया है। सूचना के इस युग में मीडिया के द्वारा उपरोक्त घोटालो को उजाकर करने के कारण जनता के कुछ लोगो ने इन घोटालो की जांच तथा उचित कार्यवाही के लिए उ0प्र0 के हाईकोर्ट में याचिकाएं दाखिल की हुई हैं तथा इसके साथ-साथ कोर्ट के निर्देशों पर बहुत सी जांच एजेन्सियां ईडी, सी0बी0आई0 तथा प्रदेश पुलिस भी इन घोटालो की जांच कर हरी है। उपरोक्त घोटालो केवल वे है जो प्रकाश में आ सके अन्यथा ऐसे बहुत से घोटाले इन तीनो प्राधिकरणों में नौकरशाहो तथा राजनीतिज्ञों की मिलीभगत से हो चुके हैं, जिसका उदाहरण यादव सिंह प्रकरण है।

इस क्षेत्र के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में होने के कारण देश के ज्यादातर निवासी इस क्षेत्र में अपने लिए आवास की चाह रखते है। इसलिए बिल्डरो ने बड़ी रकम भ्रष्टाचार के द्वारा सम्बन्धित अधिकारियों तथा प्रभावशाली सत्ताधारियों को देकर इस क्षेत्र को रियल स्टेट की मंडी बना दिया। इन बिल्डरो ने खरीददारो को सुहावने सपने दिखाकर ऐसे फंदे तैयार किये जिसमें पूरे 3 लाख खरीददार इस समय अपनी जीवन भर की कमइार् लगाकर घरो के लिए बिल्डरो के आफिसो के सामने धरने प्रदर्शन कर रहे हैं। प्राधिकरण कर्मियों ने नोएडा एक्सटेंशन के 16 गांवों की जमीनो का लैंडयूज औद्योगिक से बदलने के लिए बिल्डरो से करीब 30 प्रतिशत जमीन की कीमत रिश्वत के रूप में पहले ही ले ली है और उसके बाद केवल जमीन की 10 प्रतिशत कीमत लेकर बिल्डरो को जमीन दे दी गयी। बिल्डरो ने ज्यादातर खरीददारो से बुकिंग का पैसा लेकर सम्बन्धित अधिकारियों को रिश्वतें दी तथा अपना व्यापार बढ़ाने के लिए और योजनाओं में भवन खरीददारो का पैसा लगा दिया। इसलिए बिल्डरो के पास आवासीय योजनाओं को पूरा करने के लिए धन ही नहीं है। इसलिए आम्रपाली, सुपरटेक तथा जे0पी0 इन्फ्राटेक जैसे बिल्डर दिवालिया होने के कगार पर है और उपरोक्त कारणों से बिल्डर नियत तिथि के 5-6 साल बाद भी खरीददारो को उनके फ्लैट नहीं दे पा रहे हैं। इस समय केवल नोएडा एक्सटेंशन के बिल्डरो पर प्राधिकरण के 10000 करोड़ बकाया है। भ्रष्टाचार में दिया धन तो कालाधन बन गया अब इन आवासीय योजनाओ के लिए कहीं से धन आने की उम्मीद नजर नहीं आ रही है।

देश के खरीददारो को बिल्डरो से धोखा दिलवाने में विकास प्राधिकरणों का बहुत बड़ा हाथ है। प्राधिकरणों ने इन बिल्डरो को केवल 10 प्रतिशत कीमत पर प्लाट देकर इन्हें खरीददार की नजर में प्राधिकरण द्वारा मान्य की श्रेणी में लाकर विश्वासकीय बना दिया। जबकि प्राधिकरणों को आवासीय योजनाओ के लिए बड़े-बड़े प्लॉट देने से पहले बिल्डरों की आर्थिक दशा का आकन उसी प्रकार करना चाहिए था जिस प्रकार एक बैंक कर्जा देने से पहले करती है। इसके साथ प्राधिकरणें को बिल्डर के द्वारा खरीददारो को मकान देने की तारीखों के हिसाब से इनकी योजना स्थलों का निरीक्षण करना चाहिए जिससे यह नजर रहे कि क्या बिल्डर अपने वायदे के अनुसार काम कर रहा है कि नहीं परन्तु ऐसा केवल इसलिए नहीं हुआ क्योंकि चारो तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला था। इसलिए जिन्होंने पहले ही इतनी रिश्वत ले रखी है वह किस मुॅह से निरीक्षण कर सकेंगे। और रोटी-कपड़ा-मकान जैसी आधारभूत जरूरतों में मकान को ही बिल्डरो-नौरकशाहों तथा राजनीतिज्ञों के गठजोड़ से इस प्रकार तोड़ा मरोड़ा है कि अब बहुत से खरीददारों की आशाएं ही खत्म हो चुकी है इसलिए अक्सर इस निराशा में बहुत से खरीददार धरने, प्रदर्शन के अलावा आत्महत्या जैसा कदम भी उठा रहे हैं।

औद्योगीकरण के नाम पर रियल एस्टेट मंडी बनने से जहॉ मकान खरीददारो के साथ धोखा हुआ। वही पर देश के बेरोजगारो के साथ भी बहुत बड़ा धोखा हुआ है। यदि इस राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में योजना के अनुसार नोएडा एक्सटेंशन के 16 गांवों की तथा येड़ा के सेक्टर 17 ए की जमीनों पर औद्योगीकरण हो गया होता तो यह क्षेत्र लाखो बेरोजगारों को रोजगार के साथ-साथ यहॉ से देश का औद्योगिक उत्पादन भी बढ़ा सकता था। आज भारत केवल आई0टी0 के लिए क्षेत्र के अलावा घरेलू उत्पादों में चीन से बहुत पीछे है इसलिए भारतीय बाजार चीनी उत्पादों से भरे पड़े है। उसका केवल एक ही कारण है कि चीन में पहले रोजगार तथा फिर मकान पर काम किया जाता है परन्तु हमारे यहॉ देश के ज्यादातर महानगर रियल एस्टेट की मंडी बन गये हैं जिन्हें किसी दूसरे देश में निर्यात भी नहीं किया जा सकता। रियल स्टेट के इन घोटालो तथा इस निवेश की मंडी के रूप में प्रस्तुत करके जहॉ खरीददारों को ही धोखा हुआ, वहीं पर देश की सम्पदा-धरती तथा अन्य भवन सामग्री का दुरूपयोग चारो तरफ देखा जा सकता जिस गंगा यमुना के दोआब में उपजाऊ जमीन फलों और सब्जियों से भरती होती, आज वह कंक्रीट के जंगल के रूप में अपने हाल पर रो रही है।

उपरोक्त स्थिति में माननीय उच्चतम न्यायालय ने सख्ती दिखाते हुये जे०पी० ग्रुप को 20 अक्टूबर 17 तक 2000 करोड़ अदालत में जमा करने के निर्देष जारी किये हैं तथा जे०पी० ग्रुप को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और यही हाल आम्रपाली तथा सुपरटेक का है। उद्योगों के लिये नियत भूमि को आवासीय में बदलने से यह साफ हो जाता है कि औद्योगिक विकास के लिये बनाये गये प्रधिकरण ही इस क्षेत्र मे उद्योग नहीं चाहते थे इसीलिये देष के बड़े निवेषक यू०पी० तथा बिहार में दूर होते चले गये। टाटा, बिड़ला और अम्बानी समूह ने कुलनिवेश का सिर्फ 5 फीसदी या उससे भी कम निवेश इन दोनों प्रदेशों में किया है। देश के शीर्ष 10 आद्यौगिक घरानों ने अपने कुल निवेश का 70 फिसदी केवल पाँच अन्य राज्यों में निवेश किया है। सेंटर पर मानटिरिंग इंडियन इकोनमी (सी०एम०आर०ई०) के आकड़ो के अनुसार उ०प्र० तथा बिहार में लंबी अवधि वाली औद्योगिक नीति का अभाव तथा बिजली-सड़क और अन्य आधारभूत संरचनाओं की मारी कभी इसका मुख्य कारण है।

अब जब दूरी जमीनों पर रियल स्टेट की रिहायशी इमारतों का ढांचा खड़ा हो गया तब उ0प्र0 की नयी सरकार ने उपरोक्त औद्योगिक जमीनों की घोटालो में जॉच कराकर दोषियों के विरूद्ध सख्त कार्यवाही का वायदा किया है। परन्तु इन सबके कारण देश को बहुत बड़ी आर्थिक तथा सामाजिक क्षति पहुँची है। जहाँ देश का औद्योगिक उत्पादन प्रभावित हुआ है, वहीं पर इस पूरे क्षेत्र में बेरोजगारी के कारण हर प्रकार के अपराध चारो तरफ बढ़ गये हैं। हताशा के कारण आत्महत्याएं आम देखी जा सकती हैं। अब केन्द्रीय तथा राज्य सरकारो को देश में नोएडा, ग्रेटर नोएडा तथा येड़ा जैसे औद्योगिक विकास प्राधिकरणों के कार्यकलापों का लेखा जोखा समय-समय पर करते रहना चाहिए जिससे ऊपर वर्णित हालात दोबारा अन्य स्थानों पर पैदा न हो।

संदर्भ :-

1. सेन्टर फार मानटरिंग इंडियन इकानमी (सीएमआईई)
2. माननीय उच्चतम न्यायालय का पारित आदेश - जे0पी0 ग्रुप के दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया के बारे में।
3. उ0प्र0 के मुख्यमंत्री के लैंड यूज बदलने तथा चकबन्दी घोटालो में दोषियों के विरूद्ध की कार्यवाही के आदेश।


Image Source: http://www.caravanmagazine.in/vantage/punjabs-state-approved-systems-farmers-prey-rural-debt

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