आर्थिक सर्वेक्षण एवं राष्ट्रीय सुरक्षा: क्या है सम्बन्ध
Arvind Gupta, Director, VIF

आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 हमें राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय में क्या बताता है? यह एक अजीब प्रश्न है क्यूँकी आमतौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा एवं अर्थव्यवस्था हमारी समझ के अनुसार अलग-अलग पहलू है| ये दोनों क्षेत्र उस समय तक एक दूसरे के संपर्क में नही आते जब तक की हम रक्षा, कानून एवं इनसे सम्बंधित व्यवस्थाओं के लिए पूँजी की चर्चा नही करते| इसलिए सामान्यतः आर्थिक सर्वेक्षणों में राष्ट्रीय सुरक्षा पर बात होती भी नही है|

हालाँकि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विषयों की गहरी समझ विकसित करने पर यह समझने में आसानी होती है की मजबूत व् टिकाऊ अर्थव्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद आवश्यक तत्व है| बल्कि अर्थव्यवस्था स्वयं ही राष्ट्रीय सुरक्षा की नीव है| इसमें असफल होने वाले देश आतंकवाद, ड्रग्स, मानव तस्करी आदि गंभीर समस्यायों से बहुत जल्दी पीड़ित होते है और इनके फलने-फूलने की जगह बन जाते है| वर्तमान में रोजगार, लैंगिक विमर्श, कौशल, तकनीक एवं विज्ञानं किसी भी देश की राष्ट्रीय सुरक्षा का महत्वपूर्ण अंग बन चुके है| इन्ही सब मुद्दों पर विस्तार से आर्थिक सर्वेक्षण में बात की जाती है| अतः राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े प्रचलनों में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए यह बेहद आवश्यक है कि वे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में जो कहा गया है उसे ध्यान पूर्वक समझे, आखिर यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण जो है|

आर्थिक सर्वेक्षण आगामी आर्थिक वृद्धि की संभावनाओं का जिक्र करते हुए बेहद उत्साहपूर्ण रहा है| सर्वेक्षण के मुताबिक 2018-19 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 7 से 7.5 की दर से बढ़त के आसार है| यह देश के लिए बेहद ख़ुशी की बात है| मगर सर्वेक्षण में तेल के बढ़ते दाम और वृहत भारतीय स्टॉक बाज़ार में संभावित तर्कहीन सुधारों के बारे में चेतावनी भी दी गयी है| दोहरी बैलेंस शीट की समस्या- बैंकों की कमजोर बैलेंस शीट और वे कर्जदारों जिन्होंने बैंक से कर्ज लिया है, के विषय में कुछ भी होना अभी बाकि है| इस क्षेत्र में कुछ कदम उठाये भी जा रहे है| इसके अलावा यह गिरते हुए निवेश एवं बचत दर के चक्र के बारे में भी आगाह करता है| इसका मतलब ये है कि ऊँची आर्थिक वृद्धि दर को हल्के में लेना ठीक नही|

उम्मीद की जा सकती है कि जिस ऊँची आर्थिक वृद्धि दर की भविष्यवाणी इस सर्वेक्षण में की जा रही है, वह सच साबित होगी और सरकारी कोष में इस माध्यम से अधिक पूँजी आ सकेगी जिसके माध्यम से रक्षा, कूटनीति एवं आंतरिक सुरक्षा पर बजट आवंटन में वृद्धि की जा सकेगी| हालाँकि सरकारी राजकोष में अधिक लगान, प्राप्तियों पर भी निर्भर करता है जिसका सीधा अर्थ अधिक कर वसूलना है|

वस्तु और सेवा कर के लागू होने के पश्चात् मूल रूप से अप्रत्यक्ष कर तंत्र में काफ़ी बदलाव आया है| आर्थिक सर्वेक्षण में इस विषय पर पूरा एक अध्याय समर्पित है| इसकी उपलब्धियाँ साफ़ है और अब शुरूआती मुश्किलों के बाद धीरे-धीरे जीएसटी का तंत्र सुचारू रूप से क्रियान्वन में आने लगा है| यह भी अच्छी खबर है| वस्तु एवं सेवा कर के लागू होने के पश्चात् प्राप्त होने वाले अप्रत्यक्ष कर का सही आंकलन करने में और अधिक समय लगने की संभावना भी अभी बनी हुई है|

पिछले कुछ महीनों की पूँजी अस्थिर रही है| केंद्र एवं राज्य के बीच कर के बंटवारें होने बाकि है| लेकिन यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है की अप्रत्यक्ष करदाताओं की संख्याँ में बेहतरीन वृद्धि हुई है| इस बात की संभावना भी बहुत अधिक है की वस्तु एवं सेवा कर लागू होने से राष्ट्रीय सुरक्षा को बल मिलेगा| चूँकि सरकार के पास कर के रूप में अच्छी-खासी पूँजी आ रही है और यह संख्या लगातार बढ़ भी रही है तो अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी के साथ इसके और बढ़ने के भी आसार है|
प्रत्यक्ष कर में स्थिति इतनी आशावादी नही है| यहाँ चिंता इस बात की है कि जीडीपी और कर का अनुपात भारत में केवल दस प्रतिशत से थोडा अधिक है, जो दुनिया में सबसे कम है| यानि करदाताओं में वृद्धि की सबसे ज्यादा जरूरत है| कुछ सुधार हुए अवश्य है मगर अभी हमें यह देखने की जरूरत है कि अगले साल प्रत्यक्ष कर में किस तरह का उछाल हमें देखने को मिल सकता है| सर्वेक्षण में द्वितीय श्रेणी व् तृतीय श्रेणी कर की वसूली में क्षेत्रीय प्रशासन अपनी क्षमतानुसार कर में छूट दिए जाने का जिक्र भी किया गया है, जो निचले स्तर पर सुधार की जरूरत को उजागर करता है|

आर्थिंक सर्वेक्षण में उन चार ‘विपरीत परिस्थितियों’ का भी जिक्र है, जिनके चलते आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था को खतरा हो सकता है| वे चार परिस्थितियाँ ये है- वैश्वीकरण पर नकारात्मकता ने संरक्षणवाद को जन्म दिया है जिससे निर्यात के अवसर सीमित हो रहे है, संरचनात्मक कारकों से संसाधनों को कम उत्पादकता से अधिक उत्पादकता की ओर हस्तांतरित करने की असमर्थता, उच्च-तकनीक ज्ञान पर आधारित मानव पूँजी की माँग की आपूर्ति, जलवायु परिवर्तन के चलते कृषि पर अधिक दबाव| ये सभी दीर्घ-कालीन समस्याएं है जिन्हें इतनी आसानी से सुलझाया नही जा सकता| इस दिशा में देश को कई ठोस कदम उठाने होंगे|

विरोधाभास ये है कि विश्व-विज्ञानं में इतने महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद आज इस क्षेत्र में श्रेष्ठ पायदान में कहीं आसपास भी नही है| तकनीकी तौर पर, भारत केवल निर्यात में सक्रिय है| प्रतिभा पलायन बेहद अनियंत्रित है| देश में पहले से मौजूद कुशल कार्यक्षमता का उपयोग, विदेशी कंपनियाँ कर रही है जो विश्व में शीर्ष पर है| अन्तरिक्ष व् परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में तकनीकी व् रणनैतिक पहलुओं पर आत्मनिर्भर होने में अभी हमें एक लम्बा समय लग सकता है| देश अभी नवाचार तकनीक को विकसित करने के सुचारू तंत्र को विकसित करने में सक्षम नही है जिसके तहत देसी तकनीक को उपजाया जा सके और साथ ही आविष्कारों एवं आविष्कारकों को उचित दिशा-दशा दी जा सके|

आर्थिक सर्वेक्षण में आर एंड डी क्षेत्र में जीडीपी का केवल एक प्रतिशत खर्च होने के मसले पर भी प्रकाश डाला है| इसका सीधा प्रभाव राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ता है| इस क्षेत्र में अन्य देश जीडीपी का एक अच्छा खासा हिस्सा खर्च करते है| वर्तमान में देश की लगभग 70 प्रतिशत रक्षा सम्बंधित तकनीक आयात की जाती है| साइबर सिक्यूरिटी के उद्योग में स्वदेशी हस्तक्षेप लगभग न के बराबर है| आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार आर एंड डी के क्षेत्र में खर्चे को दुगना करने की जरूरत है| विज्ञानं एवं तकनीक के क्षेत्र में निजी क्षेत्र के शैक्षणिक संस्थानों से भी अतिरिक्त संसाधनों को आगे आना चाहिए|

इस बात की सलाह भी दी गयी है की कारोबार को सुलभ बनाने के लिए देश में ‘विज्ञान को सुलभ’ बनाने की भी आवश्यकता है| यह एक जरुरी बिंदु है| भारत को गणित, विज्ञान में निवेश करने की आवश्यकता है और साइबर भौतिक तंत्र, कृषि, ऊर्जा भण्डारण, जेनोमिक्स, डार्क मैटर आदि से जुड़े क्षेत्रों में मिशन-आधारित सोच को विकसित करने की जरूरत है| ये कुछ ऐसे सुझाव है जो न केवल अर्थव्यवस्था को बल प्रदान कर सकते है बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी बढ़ावा देने में सक्रीय भूमिका निभाते है|

हालाँकि सीधे तौर पर आर्थिक सर्वेक्षण में इसका जिक्र नही है, परन्तु जलवायु परिवर्तन भी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती है| कृषि के क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों का जिक्र काफी विस्तार से किया गया है| सर्वे में एक शोध का हवाला देते हुए यह कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के दुष्परिणामों के कारण असिंचित जमीन में पैदा होने वाली फसल में 25 प्रतिशत तक कमी आ सकती है| साथ ही, इसके असर से होने वाली जलवायु की समस्या से निबटारे के लिए विशेष प्रयास करने पड़ सकते है जो की काफी खर्चीले साबित हो सकते है| इसके दुष्परिणामों में आपदा के भी काफ़ी आसार बनते है जिनके प्रबंधन हेतु व्यवस्था करने के लिए आपदा प्रबंधन जुड़े आवंटन में बढ़ोतरी करनी पड़ सकती है|

आज लैंगिक समानता एक गंभीर विमर्श का विषय है| किसी भी युद्ध, आपदा, बाढ़, सूखे, महामारी, आकाल, हिंसा, प्रव्रजन आदि के दौर में सबसे ज्यादा पीड़ा महिलाएं और बच्चे ही झेलते है| आर्थिक सर्वेक्षण में लैंगिक असामनता और बच्चियों की गुमशुदगी पर भी बात की गयी है| इसमें कोई शक नही कि हमारे देश में महिलाओं के प्रति भेदभाव, हमारी जड़ों में बस चुका है जो देश के सामाजिक-आर्थिक संरचना के लिए बेहद कमजोर कड़ी है| केवल स्त्री तो शक्ति कहने भर से परिवर्तन नही आएगा| जरूरत है कि स्त्रियों को सशक्त भी किया जाए| एक देश तबतक खुद में सशक्त नही हो सकता जब तक उसकी आधी जनसँख्या की परवाह नही की जाएगी|

कुल मिलाकर आर्थिक सर्वेक्षण से सारगर्भित रूप से कुछ महत्वपूर्ण बिंदु निकाले जा सकते है| भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना तेजी से बदल रही है जिसकी वजह पिछले कुछ वर्षों में उठाये गये महत्वपूर्ण कदम भी है और तकनीक के विकास, भू-राजनीती से जुडी वैश्विक स्तर पर तेल की कीमत, जैसे बाह्य कारक भी है| आर्थिक सर्वेक्षण देश की अर्थव्यवस्था का संतुलित विश्लेषण प्रस्तुत करता है| जहाँ यह सर्वेक्षण आर्थिक बेहतरी के उपायों का भी जिक्र करता है वहीँ आने वाले संकटों के बारे में सचेत भी करता है| निश्चित रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत अर्थव्यवस्था पर टिकी हुई है| इस बात की उम्मीद हम करते है की अगले आर्थिक सर्वेक्षण में राष्ट्रीय सुरक्षा पर केन्द्रित एक अध्याय अवश्य होगा|

(यह लेखक के निजी विचार है)


Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: https://newsclick.in/

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