मंत्रिमंडल में फेरबदल: 2019 के लिए कसी कमर
Rajesh Singh

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में जो मंत्रिमंडलीय फेरबदल किया, उसमें चार महत्वपूर्ण घटक हैं: प्रोन्नति, अवनति, प्रवेश और निष्कासन। ऐसा करते समय प्रधानमंत्री ने मजबूत मंत्रिमंडल बनाने का प्रयास किया है, जो सरकार को 2019 के लोकसभा चुनावों में ले जाएगा। आने वाले महीनों में मामूली फेरबदल हो सकता है, लेकिन मोटा ढांचा पहले ही तैयार हो चुका है। भारतीय जनता पार्टी का 2014 का अभियान सुशासन के वायदे और कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के कमजोर प्रदर्शन के सामने प्रभावी नेतृत्व रखकर चलाया गया था। 2019 में भाजपा शासित राजग सरकार का प्रदर्शन ही चुनावी रण में प्रभावी कारक होगा। स्वाभाविक है कि संगठन के रूप में भाजपा महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, लेकिन वह प्रशासन के मोर्चे पर पार्टी के प्रदर्शन को सामने रखेगा। पार्टी के पास अपने विरोधियों की असफलताओं का फायदा उठाने का मौका नहीं होगा। यही कारण है कि अब से लेकर चुनाव तक के समय में नई टीम मोदी का प्रदर्शन और भी अहम हो गया है।

जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी के कई प्रमुख निर्णयों में देखा गया है, मंत्रिमंडलीय फेरबदल भी साहसिक और लीक से कुछ हटकर रहा है। जाति, संप्रदाय और क्षेत्र विशेष को खुश करने जैसा कुछ इस बार नहीं किया गया। जल्द होने वाले चुनावों के लालच में भी नहीं फंसा गया। उदाहरण के लिए गुजरात और हिमाचल प्रदेश दोनों स्थानों पर इस वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन इन दोनों राज्यों से किसी को भी केंद्रीय मंत्रिपरिषद में नहीं लिया गया। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश और बिहार, जहां विधानसभा चुनाव दूर हैं, को अतिरिक्त प्रतिनिधित्व मिल गया है। इसी प्रकार जातियों को खुश करने जैसा भी कुछ नहीं दिखता है। ऊंची और नीची जातियों को ठीकठाक जगह मिली है और किसी एक के पक्ष में पलड़ा झुका हुआ नहीं है। यह अपने चुनावी वोट बैंक का आधार बढ़ाने के भाजपा के संकल्प के ही अनुरूप है। हाल में हुए विभिन्न चुनावों में वह विभिन्न पक्षों के मतदाताओं को अपनी ओर खींचने में कामयाब रही है, चाहे ऊंची जाति हो, नीची जाति हो या नीचे समुदाय हों। पार्टी को 2014 में अपने प्रयोग में बहुत सफलता मिली थी और उसके बाद से उसे कई अन्य चुनावों में भी सफलता हासिल की है, जिनमें उत्तर प्रदेश भाजपा के मतदाताओं का आधार बढ़ने की शायद सबसे प्रभावी कहानी है। प्रधानमंत्री ने प्रतिभा और प्रदर्शन पर जोर देते हुए पार्टी के भीतर से पुराने अफसरशाहों यानी अधिकारियों को भी ले लिया, इसलिए मंत्रिमंडलीय फेरबदल में छोटी-मोटी बातों पर विचार करने की गुंजाइश न के बराबर थी। आलोचना के लिए कुछ नहीं मिला तो मोदी के विरोधियों ने यह कहना शुरू कर दिया है कि क्या भाजपा में प्रतिभा की इतनी कमी है कि अधिकारियों को सरकार में शामिल करना पड़ गया है। सबसे पहले तो वे भूल जाते हैं कि ये अधिकारियों को पार्टी में शामिल हुए समय बीत चुका है या 2014 से ही वे सरकार के मुखर समर्थक रहे हैं। इसके अलावा जो अधिकारी कई दशकों तक सरकारों के लिए काम कर चुके हैं और जिन के पास प्रशासन का बहुमूल्य अनुभव है, उन्हें शामिल किए जाने का विरोध करना कहां की समझदारी है। यह नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस ने प्रशासनिक प्रतिभाओं को सरकार में शामिल करने के लिए तो बहुत कुछ नहीं किया, लेकिन वह भी आधार परियोजना की कमान संभालने के लिए कंपनी जगत से नंदन नीलेकणी को लाई थी।

दूसरा आधा-अधूरा तर्क यह है कि अधिकारियों या पेशेवरों को ऐसे मंत्रालय दिए गए हैं, जिनका उनकी विशेषज्ञता वाले क्षेत्र से कुछ लेना-देना ही नहीं है। यह बेवकूफी भरा तर्क है। जिन राजनेताओं के पास किसी भी क्षेत्र की विशेषज्ञता नहीं है, उन्होंने महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाले हैं (और संभाल रहे हैं) और उनमें से कुछ तो बहुत अच्छा काम किया है। यह मानने कोई कारण ही नहीं है कि जब इन पेशेवरों को अपनी विशेषज्ञता से परे क्षेत्रों में चुनौती का सामना करना पड़ेगा तो वे नाकाम रहेंगे। यह भी याद रखना चाहिए कि ऊंचे पद पर पहुंचने के बाद अधिकारी प्रशासक और नेता बन जाते हैं - और प्रभावी प्रशासन तथा नेतृत्व ही सक्षम मंत्री के लिए आवश्यक है।

हाल के फेरबदल में नजर आए (और इस लेख की शुरुआत में बताए गए) चारों घटकों पर गहराई से विचार करने से पहले वर्तमान केंद्र सरकार और विशेषकर प्रधानमंत्री मोदी के विरोधियों द्वारा की जा रही एक और आलोचना पर बात करनी होगी। उनका कहना है कि भाजपा ने नए और पुराने सहयोगियों को नजरअंदाज किया है क्योंकि पार्टी को अपने संख्याबल का घमंड हो गया है। उनका इशारा सबसे नई सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) को शामिल नहीं किए जाने और सबसे पुरानी सहयोगी शिव सेना को किनारे रखे जाने की ओर है। पहली सहयोगी की बात करें तो लालू प्रसाद, जिनसे बिहार में नीतीश कुमार ने हाल ही में नाता तोड़ा है और भाजपा का हाथ थामा है, ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री को भाजपा पर भरोसा करने का अच्छा और कड़वा सबक मिला है। अन्य भाजपा विरोधी नेताओं ने खुश होकर शिव सेना का यह बयान याद दिलाया कि ‘राजग खत्म हो गया’ - दूसरे शब्दों में कहें तो सेना का गठबंधन में बने रहना मुखौटा भर है, जो देर-सबेर उतर सकता है। वास्तविकता यह है कि मंत्रिमंडलीय फेरबदल में जगह नहीं पाने वाली केवल जद (यू) और सेना ही नहीं हैं। फेरबदल में केवल भाजपा थी, उसकी सहयोगी नहीं। लेकिन यह भी सच है कि मंत्रिपरिषद में जद (यू) के शामिल होने की बात तो चल ही रही थी। बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन की सरकार बनाने के बाद जब नीतीश कुमार की पार्टी ने केंद्र में राजग का हिस्सा बनने की औपचारिक घोषणा की तो उम्मीदें बढ़ गई थीं। अटकलें थीं कि जद (यू) को कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्री का पद दिया जाएगा। मीडिया ने अनुमान लगाया कि भाजपा और नीतीश कुमार की पार्टी के बीच बातचीत में गतिरोध आ गया क्योंकि भाजपा उसे केवल एक मंत्री पद देना चाहती थी। दोनों के बीच दरार की अफवाह को तब बल मिला, जब जद (यू) नए मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुई (संयोग से शिव सेना भी दूर रही)। भाजपा इस मसले पर चुप ही रही, लेकिन नीतीश कुमार ने बाद में मीडिया से कहा कि असहमति की बातें गलत हैं क्येंकि इस बार के मंत्रिमंडलीय फेरबदल में मंत्री पद दिए जाने के बारे में भाजपा और उनकी पार्टी के बीच कभी चर्चा ही नहीं हुई। उन्होंने कहा, “जद (यू) को बेवजह इसमें घसीटा जा रहा है।”

इस बात की कोई वजह भी नजर नहीं आती कि भाजपा कथित घमंड के कारण जानबूझकर जद (यू) को नजरअंदाज करेगी। दोनों पार्टी हाल ही में एक साथ आई हैं और केंद्रीय मंत्रालय में जद (यू) के शामिल होने से दोनों के रिश्ते मजबूत हो जाते। यह संभव है कि बिहार की पार्टी को इस बार के फेरबदल में शामिल नहीं करने निर्णय दोनों का हो और जद (यू) को आगे जाकर मंत्रिमंडल में जगह मिल जाए। फिर भी मामले को शायद बेहतर तरीके से संभाला जा सकता था, कम से कम ऐसा दिखाया तो जा सकता था क्योंकि जद (यू) के नेताओं ने समारोह में यह कहते हुए हिस्सा नहीं लिया कि उन्हें न्योता ही नहीं दिया गया था। जद (यू) राजग के साथ आने के नीतीश कुमार के निर्णय के कारण उत्पन्न हुए आंतरिक असंतोष से उबर ले, उसके बाद वह केंद्र सरकार में शामिल हो सकती है। पार्टी के वरिष्ठ नेता शरद यादव ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया है और मुख्यमंत्री को चुनौती देने के लिए हाल ही में पार्टी कार्यकर्ताओं का सम्मेलन भी किया है। वह खुलेआम लालू प्रसाद और कांग्रेस से गलबहियां कर रहे हैं। जद (यू) ने यह कहते हुए शरद यादव की राज्य सभा सदस्यता खत्म करने की मांग की है कि वह पार्टी के खिलाफ गए हैं और उन्हें अयोग्य करार दिया जाना चाहिए। यादव को पहले ही सदन में जद (यू) के नेता पद से हटाया जा चुका है और उनका समर्थन करने वाले 21 विधायकों को पार्टी से निलंबित किया जा चुका है। नीतीश कुमार की अगुआई वाली जद (यू) और शरद यादव की अगुआई वाले पार्टी के धड़े के इन दावों ने स्थिति और खराब कर दी है कि वे ही असली जद (यू) हैं और पार्टी चिह्न भी उन्हें ही मिलना चाहिए। दोनों धड़े समाधान के लिए भारत के निर्वाचन आयुक्त का दरवाजा भी खटखटा चुके हैं। साथ ही शरद यादव खेमे ने इस घटनाक्रम के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय जाने की धमकी भी दी है। शायद प्रधानमंत्री को यही सही लगा कि पहले जद (यू) अपना अंदरूनी झगड़ा सुलझा ले और उसके बाद ही उसे सरकार में शामिल किया जाए। यह बात अलग है कि उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी पार्टी इस चुनौतीपूर्ण समय में नीतीश कुमार के साथ खड़ी है।

वास्तव में अन्नाद्रमुक को राजग में शामिल किए जाने की राह में भी आंतरिक फूट ही आड़े आ गई थी। जब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई पलानिस्वामी और पूर्व मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम के नेतृत्व वाले दोनों प्रतिद्वंद्वी गुटों ने मतभेद भुलाकर हाथ मिला लिए तो एकजुट अन्नाद्रमुक के राजग में शामिल होने की उम्मीदें बढ़ गई थीं। लेकिन तभी भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में बंद वी शशिकला के करीबी टीटीवी दिनाकरन की अगुआई वाले खेमे ने बड़ी संख्या में विधायकों का समर्थन हासिल कर खेल बिगाड़ दिया क्योंकि इतने विधायक मुख्यमंत्री पलानिस्वामी और उप मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम की नई सरकार को अस्थिर करने के लिए पर्याप्त थे। अब तमिलनाडु में सरकार की अगुआई करने वाले के सिर पर तलवार लटक रही है ओर राज्य में विपक्षी पार्टियां सरकार से बहुमत सिद्ध करने के लिए विश्वास मत की मांग कर रही हैं। संभव है कि अन्नाद्रमु द्वारा अंदरूनी समस्याएं सुलझा लिए जाने के बाद उसे राजग में शामिल कर लिया जाए और केंद्रीय मंत्रिपरिषद में जगह भी मिल जाए।

अब चारों घटकों में से पहले घटक प्रोन्नति की बात करते हैं। चार राज्य मंत्रियों को कैबिनेट दर्जा दिया जाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उनमें समान बात है उनका प्रदर्शन, जो वास्तव में सकारात्मक था और ऐसा माना भी जा रहा था। निर्मला सीतारामन, पीयूष गोयल, मुख्तार अब्बास नकवी और धर्मेंद्र प्रधान ने प्रधानमंत्री द्वारा तय किए गए लक्ष्य पूरे किए थे। स्वतंत्र प्रभार वाली वाणिज्य मंत्री के रूप में सीतारामन ने बेहद कुशलता के साथ लचीला लेकिन देश के हित वाला रुख अपनाते हुए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) समेत विभिन्न वैश्विक व्यापार मंचों पर देश की स्थिति बेहतर की। प्रोन्नति से केवल महीने भर पहले वह खाद्यान्न भंडार तथा कृषि में संरक्षण की विशेष प्रणाली जैसे विवादित मसलों पर डब्ल्यूटीओ में अड़ गई थीं। अर्जेंटीना में दिसंबर में होने वाले डब्ल्यूटीओ सम्मेलन में ई-कॉमर्स को केंद्रीय विषय बनाने की धनी देशों की लामबंदी के सामने झुकने से उन्होंने इनकार कर दिया। उनकी सादा कार्यशैली और अनावश्यक विवादास्पद टिप्पणियों से दूर रहने की क्षमता उनके पक्ष में गई। कुल मिलाकर उनको कैबिनेट का दर्जा दिया जाना सबसे विशेष रहा क्योंकि वह देश की पहली पूर्णकालिक महिला रक्षा मंत्री बनी हैं और उन्हें सुरक्षा पर कैबिनेट समिति में जगह मिल गई है। उनके सामने कई चुनौतियां हैं और उन्हें फौरन काम पर लग जाना है। यह उनकी क्षमताओं में प्रधानमंत्री के विश्वास का प्रमाण ही है कि उन्हें इतना दुष्कर काम दिया गया है। जिन तीन राज्य मंत्रियों को कैबिनेट दर्जा दिया गया है, वे पिछले फेरबदल में भी होड़ में थे। नकवी की प्रोन्नति होनी ही थी क्योंकि नजमा हेपतुल्ला को राज्यपाल बनाए जाने के बाद वह अकेले ही अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय पूरी सफलता के साथ संभाल रहे थे। वह भाजपा के वरिष्ठ और प्रमुख मुस्लिम चेहरे हैं। प्रधान और गोयल दोनों ने उन प्रमुख क्षेत्रों में परिणाम दिए थे, जिनमें प्रधानमंत्री फौरन काम चाहते थे - लाखों जरूरतमंद परिवारों को सस्ते या मुफ्त रसोई गैस सिलिंडर मुहैया कराना और कोयला तथा बिजली क्षेत्र को दुरुस्त करना। वास्तव में इन क्षेत्रों में सफलता ने भाजपा की हालिया चुनावी विजय में प्रमुख भूमिका निभाई, विशेषकर उत्तर प्रदेश में, जिसने पिछले एक दशक के खराब प्रदर्शन का सबसे अधिक दुष्परिणाम झेला है। गोयल को पारितोषित स्वरूप रेलवे मिला (कोयला उन्हीं के पास रहा) और प्रधान को (पहले से मौजूद पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के साथ) कौशल विकास भी दे दिया गया।

अवनति या महत्व कम किए जाने के मामले अधिक नहीं थे। प्रतिष्ठित नमामि गंगे परियोजना (प्रधानमंत्री का गंगा नदी को पुनर्जीवित करने का पसंदीदा विषय) उमा भारती से लेकर नितिन गडकरी को इसीलिए दे दिया गया क्योंकि नदी की सफाई में तेज प्रगति होती नहीं दिख रही थी। लक्ष्य निश्चित रूप से महत्वाकांक्षी है, जिसमें वर्षों लग सकते हैं, लेकिन शायद पर्याप्त प्रेरणा नहीं थी। नतीजा यह हुआ कि सरकार को इस मामले में प्रगति पर उच्चतम न्यायालय में लगातार प्रश्न झेलने पड़े और शर्मिंदा होना पड़ा। पेयजल एवं स्वच्छता का प्रभार के साथ भारती का कैबिनेट दर्जा तो बरकरार रहा, लेकिन मंत्रालय का अधिक महत्वपूर्ण भाग ले लिया जाना एक तरह से अवनति ही माना जा रहा है। सुरेश प्रभु ने रेल मंत्रालय गंवा दिया, लेकिन कहा जा सकता है कि फेरबदल से पहले ही उन्होंने इस्तीफे की पेशकश कर दी थी। इसके अलावा उनका दुर्भाग्य भी रहा कि मंत्रालयों में फेरबदल से ठीक पहले दो रेल दुर्घटनाएं हो गईं, जिसके कारण उन पर नैतिक जिम्मेदारी लेने का दबाव आ गया। रेल मंत्री के तौर पर वह असफल तो बिल्कुल भी नहीं रहे क्योंकि उन्होंने ऐसे कई सुधार आरंभ किए, जिनके परिणाम आने वाले महीनों में दिखेंगे। इसलिए उन्हें कैबिनेट मंत्री के तौर पर वाणिज्य मंत्रालय दिया जाना अवनति कहीं से भी नहीं है। एक अवनति जिसकी अपेक्षा कई लोग कर रहे थे और जो नहीं हुई, वह कैबिनेट मंत्री स्मृति ईरानी की थी। उनके पास सूचना एवं प्रसारण तथा कपड़ा दोनों मंत्रालय रहे, जिससे पता चलता है कि प्रधानमंत्री का उन पर विश्वास बना हुआ है। उन्हें इस बात का श्रेय तो दिया जाना चाहिए कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय से हटाए जाने के बाद से वह मेहनत से काम कर रही हैं और विवादों में भी कम रही हैं।

सीतारामन को बेहद महत्वपूर्ण मंत्रालय दिए जाने के अलावा चार पेशेवरों - आरके सिंह, सत्यपाल सिंह, हरदीप पुरी और के अल्फोंस - को राज्य मंत्री के तौर पर शामिल किया जाना फेरबदल की दूसरी खासियत रही। उनके पास प्रशासनिक, कानून-व्यवस्था तथा राजनयिक मामलों का विविधता भरा और गहरा अनुभव है। पूर्व केंद्रीय गृह सचिव और बिहार से लोकसभा सांसद आरके सिंह ने जब राज्य में पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा के टिकट वितरण पर प्रश्न उठाए थे तभी से उनके वनवास की अटकलें लगाई जा रही थीं। लेकिन प्रतिभा की जीत हुई। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अल्फोंस पहले राज्यपाल पद की होड़ में थे। यदि यह सच है तो बेहद प्रतिष्ठित पूर्व प्रशासनिक अधिकारी अल्फोंस को प्रसन्न होना चाहिए कि उस समय वह उससे बच गए थे। मुंबई के शीर्ष पुलिस अधिकारी के रूप में सत्यपाल सिंह ने आतंकवाद तथा समाज के प्रभावशाली वर्गों के साथ उसके रिश्तों की बात कई बार बेधड़क तरीके से उठाई थी। और संयुक्त राष्ट्र में भारत के दूत रह चुके हरदीप पुरी वैश्विक राजनयिक हलकों में जाने-पहचाने चेहरे हैं। इस तरह प्रधानमंत्री मोदी के सबसे कटु आलोचकों को भी इन नियुक्तियों में कुछ आपत्ति योग्य शायद ही मिले। हां, वे इस बात का रोना तो रो रहे हैं कि प्रधानमंत्री को राज्यसभा सदस्यों पर इतना अधिक निर्भर रहना पड़ा है। लेकिन वे शायद भूल जाते हैं कि मई, 2014 से पहले के दस वर्षों में तो प्रधानमंत्री भी राज्यसभा से ही थे!

नोटबंदी की ही तरह इसमें भी असंतोष के अधिक स्वर नहीं रहे हैं। राजीव प्रताप रूड़ी को जब यह संकेत मिल गया कि कौशल विकास - जिसमें प्रधानमंत्री सफलता चाहते हैं क्योंकि यह रोजगार से सीधे जुड़ा है - मंत्री के रूप में उनका प्रदर्शन संतोषजनक नहीं है तो फेरबदल से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने शालीनता के साथ मंत्रिमंडल छोड़ा, लेकिन कहा कि शायद वह अपनी सफलताओं के बारे में प्रधानमंत्री तथा अपनी पार्टी को ठीक से बताने में असफल रहे। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्री के रूप में मामूली सफलता हासिल करने वाले कलराज मिश्र ने भी त्यागपत्र दे दिया था। उन्हें यूं भी उनकी उम्र के कारण हटा दिया जाता। लेकिन कुछ खामियां अब भी हैं और उम्मीद है कि प्रधानमंत्री उन्हें जल्द ही ठीक कर देंगे। उदाहरण के लिए कृषि मंत्री के रूप में राधामोहन सिंह का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं माना जा रहा। फिर भी इस बार वह बच गए। प्रधानमंत्री ने अगले पांच वर्ष में कृषि आय दोगुनी करने का वायदा किया है और कृषि तथा सिंचाई क्षेत्र में भारी सुधारों की जरूरत है, साथ ही कई वर्षों से किसानों को आत्महत्या पर मजबूर करने वाले कृषि संकट से भी तुरंत निपटने की आवश्यकता है, इसे देखते हुए कृषि मंत्रालय में नया जोश चाहिए। हालांकि कुल मिलाकर कुछ भरोसे के साथ यह तो कहा ही जा सकता है कि नई टीम 2019 की लड़ाई के लिए तैयार है।

(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक टीकाकार और जन मामलों के विश्लेषक हैं)


Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: http://www.newindianexpress.com/nation/2017/sep/03/cabinet-reshuffle-here-is-the-full-list-of-council-of-ministers-1651950.html

Post new comment

The content of this field is kept private and will not be shown publicly.
6 + 3 =
Solve this simple math problem and enter the result. E.g. for 1+3, enter 4.
Contact Us