आसियान एवं आसियान सम्मेलनः ‘एक्टिंग ईस्ट’ के लिए अवसर एवं चुनौतियां
Brig Vinod Anand, Senior Fellow, VIF

सितंबर 2016 की शुरुआत कई महत्वपूर्ण सम्मेलनों के साथ हो रही है। पहला जी-20 शिखर सम्मेलन है, जिसके बाद आसियान से जुड़े कई सम्मेलन होंगे, जिनमें 11वां पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और 14वां आसियान-भारत शिखर सम्मेलन शामिल हैं। जी-20 सम्मेलन पूर्वी चीन के हांगझू में 4-5 सितंबर 2016 को हो रहा है और और आसियान से जुड़े सम्मेलन 6 से 8 अक्टूबर के बीच वियंतिएन तथा लाओस में होंगे। दोनों सम्मेलन दक्षिण चीन सागर के संबंध में फिलीपींस एवं चीन के बीच विवाद पर स्थायी मध्यस्थता अदालत के महत्वपूर्ण फैसले के बाद हो रहे हैं। इस बात की पूरी संभावना है कि अदालत के फैसले तथा अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करने के मसलों को चीन चाहे जितना भी दूर रखने की कोशिश करे, सम्मेलनों के दौरान उन पर चर्चा की जा सकती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-20, आसियान-भारत तथा पूर्वी एशिया सम्मेलन में जाएंगे। उससे पहले वह वियतनाम की यात्रा करेंगे। पिछले 15 वर्षों में भारत के किसी प्रधानमंत्री की यह पहली वियतनाम यात्रा होगी, लेकिन भारत का शीर्ष राजनीतिक एवं सैन्य नेतृत्व राजनीति, आर्थिक, रक्षा एवं सुरक्षा संबंध मजबूत करने के लिए लगातार इस मित्र देश के संपर्क में रहा है। वियतनाम में प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत किसी ‘प्यारे दोस्त’ सरीखा होगा और वह देश वास्तव में उन्हें ऐसा ही मानता है। जी-20 सम्मेलन से पहले वियतनाम की उनकी यात्रा से चीन को कुछ राजनीतिक संकेत प्राप्त होंगे।

सबसे पहले तो इससे सिद्ध होगा कि भारत सरकार ने सैन्य एवं असैन्य क्षमताएं स्थापित करने में वियतनाम को महत्वपूर्ण रणनीतिक सहयोग दिया है। ऐसा विचार भी है कि भारत-वियतनाम सहयोग का वर्तमान स्तर संतोषजनक तो है, लेकिन मजबूत रक्षा एवं सुरक्षा संबंधों के साथ ही आर्थिक, सांस्कृतिक एवं सभ्यतागत संबंधों को सुदृढ़ करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। द्विपक्षीय संबंधों के इन सभी पक्षों पर प्रधानमंत्री मोदी की वियतनाम यात्रा के दौरान और भी प्रगति हो सकती है। उदाहरण के लिए जहां तक रक्षा सहयोग की बात है, ‘मेक इन इंडिया’ पर जोर दिए जाने तथा रक्षा क्षेत्र में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को मंजूरी मिलने से भारत की रक्षा निर्यात नीति पर असर होगा और भारत को प्रक्षेपास्त्र तथा अन्य आधुनिक रक्षा उपकरणों की आपूर्ति वियतनाम को करने का विकल्प मिल जाएगा। संयुक्त प्रशिक्षण अभियान तथा रक्षा कर्मियों के प्रशिक्षण में सहयोग को भी रफ्तार मिल सकती है।
मई 2015 में वियतनाम के रक्षा मंत्री की भारत यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने 2015 से 2020 के लिए ‘रक्षा सहयोग पर संयुक्त दृष्टिपत्र’ पर हस्ताक्षर किए थे। उस समय प्रधानमंत्री ने कहा था कि वियतनाम के साथ रक्षा एवं सामरिक संबंध मजबूत करने के लिए भारत पूरी तरह प्रतिबद्ध है। इसीलिए उनकी आगामी यात्रा के दौरान द्विपक्षीय रक्षा एवं सुरक्षा समझौतों में नए तरीकों से गहराई आ सकती है। जून 2016 में रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर की वियतनाम यात्रा के दौरान वियतनामी सीमा रक्षकों ने अपनी तटवर्ती एवं समुद्री सुरक्षा मजबूत करने के लिए तेज गति के इंटरसेप्टर विमान खरीदने का निविदा दस्तावेज मैसर्स लार्सन एंड टुब्रो को सौंपा था। उस सौदे पर प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान हस्ताक्षर हो सकते हैं।

दूसरी बात यह है कि क्षेत्र में उभरते सामरिक एवं सुरक्षा वातावरण के बारे में दोनों देशों का दृष्टिकोण भी साझा है। इसीलिए इस यात्रा का समय एकदम सही है क्योंकि यह फिलीपींस और चीन के बीच दक्षिण चीन सागर विवाद पर मध्यस्थता अदालत के फैसले के फौरन बाद हो रही है। फैसला फिलीपींस के पक्ष में गया है किंतु इसका प्रभाव सभी पर होगा। दोनों देशों में वृद्धि की वार्षिक दर अच्छी है और दोनों की अर्थव्यवस्थाएं भी एक-दूसरे की पूरक हैं, इसीलिए इस यात्रा से आपसी समझ को नए स्तर तक ले जाने में मदद मिलेगी।

तीसरी बात, प्रधानमंत्री मोदी समझते हैं कि भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को लागू करने में वियतनाम मुख्य भूमिका निभाएगा। इसीलिए द्विपक्षीय आर्थिक एवं रणनीतिक रिश्ते मजबूत होने से यह नीति का फायदा मिलेगा। यात्रा बहुपक्षीय संदर्भों में भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वियतनाम ‘मेकॉन्ग गंगा कोऑपरेशन इनीशिएटिव’ का भी सदस्य है। यह उपक्षेत्रीय समूह है, जिसे भारत, म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया तथा वियतनाम के बीच विभिन्न प्रकार से संपर्क बढ़ाने के लिए बनाया गया है। आसियान-भारत बैठकों में भारत के प्रयासों को समर्थन देने में वियतनाम की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस), एशियाई क्षेत्रीय मंच (एआरएफ) तथा आसियान के रक्षा मंत्रियों की बैठक जैसे बहुपक्षीय मंचों पर वह भारत के साथ ही रहा है, जिससे भारत की एक्ट ईस्ट नीति के उद्देश्य पूरे होने में मदद हुई है। वास्तव में 2015 से 2018 तक आसियान में भारत के देश-समन्वयक के रूप में वियतनाम का नामांकन ही बताता है कि आसियान के साथ भारत के बहुमुखी रिश्तों के लिए वियतनाम कितना महत्वपूर्ण है।

चौथी बात यह है कि भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति, सुरक्षा एवं स्थायित्व बरकरार रखने के लिए अमेरिका, जापान, वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया तथा आसियान देशों एवं अन्य शक्तियों के साथ सहयोग भरा प्रयास करना चाहता है। चीन के साथ अपने संबंधों में टकराव के बगैर ही ऐसा करने का भारत का प्रयास है। वियंतिएन में ईएएस के दौरान उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी दक्षिण चीन सागर पर भारत के रुख को दोहराएंगे और क्षेत्र में मौजूद टकराव का शांतिपूर्ण समाधान तलाशने में सहयोग करेंगे।

जहां तक आसियान सम्मेलन का सवाल है, उसके नेता दक्षिण चीन सागर पर एकीकृत रुख पेश करने की कोशिश करेंगे, लेकिन चीन आसियान सदस्यों के बीच आम सहमति नहीं होने देने की हरसंभव कोशिश करेगा, जैसा वह अतीत में भी करता रहा है। वास्तव में आसियान की केंद्रीयता, एकता और अखंडता को मजबूत करना हमेशा ही चुनौती भरा रहा है और दक्षिण चीन सागर के मसले पर एकीकृत मोर्चा बनाने की कोशिश में ऐसा खास तौर पर होता है। आसियान के सभी सदस्य और खास तौर पर वे सदस्य, जो चीन की आक्रामक नीतियों के शिकार हैं, यह चाहेंगे कि चीन इस मसले से बहुपक्षीय स्तर पर निपटे, लेकिन चीन द्विपक्षीय आधार को तरजीह देगा। ध्यान देने की बात है कि आसियान से जुड़े सम्मेलनों की मेजबानी कर रहा लाओस चीनी खेमे के ज्यादा करीब माना जाता है और कंबोडिया अतीत में चीन का समर्थन करता रहा है। इसीलिए आसियान के अन्य नेताओं को आक्रामक एवं दबदबा कायम करने की इच्छा वाली उभरती ताकतों से निपटने के लिए एकीकृत प्रयास मजबूत करने का महत्व ऐसे देशों को समझाने के लिए कड़ा प्रयास करना होगा, जिन ताकतों के अनिश्चित व्यवहार तथा अंतरराष्ट्रीय नियमों के उल्लंघन से बेजा टकराव का खतरा बढ़ जाता है।

नवंबर, 2015 में कुआलालंपुर में संपन्न पिछले आसियान-भारत सम्मेलन में आसियान नेताओं ने भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ और ‘मेक इन इंडिया’ नीतियों का स्वागत किया था तथा ऐसे प्रयासों को आसियान के समुदाय निर्माण के प्रयासों का पूरक बताया था। भारत तथा आसियान ने ‘आसियान 2025: फोर्जिंग अहेड टुगेदर’ दस्तावेज में दी गई दृष्टि तथा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक साथ काम करने की अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया है। आसियान-भारत की ‘पार्टनरशिप फॉर पीस, प्रोग्रेस एंड प्रॉस्परिटी’ (2016-2020) को क्रियान्वित करने के लिए आसियान एवं भारत के नेताओं द्वारा पिछले वर्ष ‘प्लान ऑफ एक्शन’ (पीओए) स्वीकार किया गया था। पीओए 2016-2020 में सहयोग के तीन व्यापक क्षेत्र हैं - राजनीतिक तथा सुरक्षा, आर्थिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक सहयोग। पीओए के क्रियान्वयन के लिए कार्यों की समीक्षा आगामी सम्मेलनों के दौरान किए जाने की अपेक्षा है। आसियान भारत के ‘मेकॉन्ग-गंगा कोऑपरेशन’ एवं बंगाल इनीशिएटिव फॉर ‘मल्टीसेक्टोरल टेक्निकल एंड इकनॉमिक कोऑपरेशन’ (बिम्सटेक) जैसे कार्यक्रमों में सहयोग करता रहा है, जिनका उद्देश्य संपर्क को बढ़ावा देना, क्षेत्रीय संवाद को बढ़ावा देना तथा क्षेत्रीय अखंडता को तेज करना है, जिसके लिए समझ बढ़ाना भारतीय कूटनीति का महत्वपूर्ण एजेंडा होगा।

वस्तुओं के मामले में आसियान-भारत मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर लगातार वृद्धि हुई है, लेकिन व्यापार की मात्रा भारत-चीन व्यापार की तुलना में कम ही रही है। इसी प्रकार भारत को सेवा क्षेत्र में एफटीए के जरिये आसियान के साथ अपने आर्थिक संबंधों में असंतुलन कुछ हद तक खत्म करने की उम्मीद है क्योंकि ये संबंध भारत की अपेक्षा के अनुरूप आगे नहीं बढ़ सके हैं। किंतु रक्षा एवं सुरक्षा संबंधों के क्षेत्र में आसियान के लगभग सभी राष्ट्रों के साथ भारत के मजबूत द्विपक्षीय संबंध हैं।

कूटनीतिक स्तर पर आसियान देश भारत को हितकारी शक्ति मानते हैं। यह दृष्टिकोण क्षेत्र में उभरते रणनीतिक समीकरण में सकारात्मक योगदान कर सकता है और वास्तव में इससे भारत के लिए मजबूत मंच तैयार होगा।


Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Published Date: 13th September 2106, Image Source: http://www.alamy.com
(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of the Vivekananda International Foundation)

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