उत्तर-दक्षिण पारगमन गलियारा
Amb D P Srivastava, Distinguished Fellow, VIF

पारगमन गलियारे (ट्रांजिट कॉरिडॉर)

ईरान की भौगोलिक स्थिति और भारत के साथ उसकी निकटता रूस तथा स्वतंत्र राष्ट्रकुल (सीआईएस) के देशों तक पहुंचने के लिए उसे आदर्श पारगमन (ट्रांजिट) केंद्र बनाती हैं। वह देश राजनीतिक रूप से स्थिर है और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। इसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इस वर्ष 5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है। प्रतिबंध हटने से उसके साथ कारोबार करना और सरल हो गया है। बंदर अब्बास बंदरगाह से उत्तर की ओर जाने वाला अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण पारगमन गलियारा (आईएनएसटीसी) कई अक्ष रेखाओं से गुजरता है। कैस्पियन सागर में अमीराबाद बंदरगाह और तुर्कमेनिस्तान के साथ ईरान की भू सीमा से होकर गुजरता इंचबारुन रेल और सड़क के रास्ते बंदर अब्बास से जुड़े हैं। इंचबारुन रेलवे क्रॉसिंग का उद्घाटन कजाकस्तान, तुर्कमेनिस्तान और ईरान के राष्ट्रपतियों ने दिसंबर 2014 में किया था। बंदर अब्बास ईरान के कैस्पियन सागर तट के पश्चिमी छोर पर अस्तारा बंदरगाह से सड़क द्वारा जुड़ा है; रश्त और अस्तारा के बीच रेलवे लाइन नहीं है। मशद से और तुर्कमेनिस्तान के साथ ईरान की सीमा पर पूर्वोत्तर में सरक्स के साथ बंदर अब्बास रेलमार्ग से जुड़ा है। इस तरह अच्छा खासा बुनियादी ढांचा पहले ही मौजूद है। 2014 में फेडरेशन ऑफ फ्रेट फॉरवर्डर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफएफएफएआई) ने भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के झंडे तले एक प्रायोगिक परीक्षण भी किया था। बंदर अब्बास से सड़क के रास्ते अस्तारा बंदरगाह और अमीराबाद बंदरगाह के उत्तर की ओर दो कंटेनर भेजे गए।

ईरान में कैस्पियन सागर पर बने अस्तारा, बंदर अंजाली और अमीराबाद बंदरगाह रूस के अस्ताराखान बंदरगाह से बखूबी जुड़े हैं। अस्ताराखान से मॉस्को के लिए रेल लाइन भी है। भारत से यूरोप होते हुए सेंट पीट्सबर्ग और रूस जाने वाले पारंपरिक मार्ग के बजाय इस मार्ग से समय में लगभग 40 प्रतिशत और खर्च में 30 प्रतिशत की बचत होगी। ईरान के बंदरगाह कजाकस्तान में अकताऊ बंदरगाह से भी इसी तरह जुड़े हुए हैं। कजाकस्तान ने ईरान में अमीराबाद बंदरगाह के विकास में भी हिस्सा लिया था और उसे गेहूं के निर्यात के लिए इस्तेमाल करता है।

एफएफएफएआई के एक अध्ययन के अनुसार मुंबई में जेएनपीटी से मॉस्को के बीच 8,700 नॉटिकल मील की वर्तमान दूरी आईएनएसटीसी के कारण घटकर 2,200 नॉटिकल मील तथा भूमि पर 3,000 किलोमीटर ही रह जाएगी। खर्च की बात करें तो 20 फुट के कंटेनर की ढुलाई पर आने वाला 1,400 डॉलर का व्यय घटकर 1,250 डॉलर रह जाएगा। कंटेनर पहुंचने में लगने वाला 32 से 37 दिन का समय भी घटकर 19 दिन ही रह जाएगा।

आईएनएसटीसी से ईरान के रास्ते सीआईएस देशों तक माल पहुंचाने में लगने वाला भी समय और खर्च बहुत कम हो जाएगा। मौजूदा रास्ता या तो पूर्व में चीन की ओर तथा फिर चक्कर लगाते हुए पश्चिम में सीआईएस देशों की ओर जाने का है या जॉर्जिया के पोती बंदरगाह का रास्ता है और वह भी लंबा है।

भारत और सीआईएस देशों के बीच बहुत कम व्यापार होने का एक कारण सीधे रास्ते की कमी भी है। रूस और सीआईएस देशों की अर्थव्यवस्था कुल मिलाकर 1.6 लाख करोड़ डॉलर से भी अधिक की है। सभी स्रोतों से सीआईएस देशों में होने वाला कुल आयात 6,700 करोड़ डॉलर से अधिक का है। इस आयात में भारत की हिस्सेदारी केवल 36.25 करोड़ डॉलर या 0.54 प्रतिशत ही है। रूस का वैश्विक आयात 19,300 करोड़ डॉलर का है, लेकिन भारत की हिस्सेदारी केवल 158.7 करोड़ डॉलर अथवा 0.82 प्रतिशत ही है। पूरा ब्योरा नीचे तालिका में दिया गया हैः

ट्रांजिट व्यापार

प्रतिबंध के दौरान भी ईरान से गुजरकर होने वाला व्यापार जारी रहा; उस पर किसी प्रकार की रोक नहीं थी। कैस्पियन पर ईरानी बंदरगाहों से होकर उत्तर जाने वाले ज्यादातर माल में ज्यादातर दुबई के रास्ते होने वाला निर्यात था। बंदर अंजाली में भी रूस से मशीनरी, लकड़ी और इस्पात पहुंचते थे।

आर्थिक सहयोग संगठन (ईसीओ) के सदस्य भी ईरान को ट्रांजिट केंद्र के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे। यह देशों का क्षेत्रीय समूह है। इसमें तुर्की से पाकिस्तान तथा सीआईएस देशों की ओर पूर्व-पश्चिम अक्ष पर होने वाला व्यापार भी शामिल है। ईरान, ओमान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और कजाकस्तान के बीच हुआ अशगाबाद समझौता भी ट्रांजिट व्यापार में वृद्धि करेगा।

किंतु ईरान से होने वाले ट्रांजिट व्यापार की मात्रा कम है। पोर्ट एंड मैरिटाइम ऑर्गनाइजेशन (पीएमओ) के अनुसार ईरान के बंदरगाहों से होने वाले कुल व्यापार में ट्रांजिट व्यापार की हिस्सेदारी केवल 7.4 प्रतिशत और 7.09 प्रतिशत रही। प्रतिबंध हटने के बाद बीमा, बैंकिंग एवं जहाजरानी क्षेत्र में हुए समझौतों से इसमें तेजी आनी चाहिए।

प्रतिबंधों के बाद ईरान

प्रतिबंध हटने से ईरान के साथ कारोबार आसान हो जाना चाहिए। इससे ट्रांजिट व्यापार में भी वृद्धि होगी। प्रतिबंधों के दौरान ट्रांजिट के ईरान वाले हिस्से और बीमा में दिक्कत आती थीं। प्रतिबंध हटने के बाद अब ये दिक्कतें हल हो सकती हैं। इसके बाद भारत से रूस या सीआईएस देशों के लिए यात्रा कागजात के केवल एक सेट के साथ पूरी होना संभव हो जाएगा। सीधा भुगतान होने से लेनदेन की लागत भी कम होनी चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण पारगमन गलियारा ईरान में शुरू होता है। ईरान स्थिर देश है और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। इकनॉमिक इंटेलिजेंस (ईआईयू) की अगस्त, 2016 की रिपोर्ट के अनुसार 2016 से 2020 के बीच पश्चिम एशिया और उत्तर अफ्रीका में ईरान संभवतः सबसे तेज वृद्धि दर्ज करेगा। तेल की कीमतें कम रहने के बावजूद इस वर्ष ईरान का जीडीपी 5 प्रतिशत बढ़ने की संभावना है। ईआईयू की रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि मुद्रास्फीति 2015 के 13.7 प्रतिशत से घटकर जून, 2016 में 6.8 प्रतिशत रह गई है।

ईरान के पास व्यापार अधिशेष भी है और चालू खाते का अधिशेष भी। आयात का कुल मूल्य 52.4 अरब डॉलर से बढ़कर 62.1 अरब डॉलर होने की संभावना है। ईआईयू की रिपोर्ट अनुमान जताती है कि 2016 से 2020 तक जीडीपी की 4.4 प्रतिशत औसत वार्षिक दर के साथ चालू खाते का अधिशेष बरकरार रहेगा।

अल्जियर्स में हाल ही में हुई ओपेक की बैठक में ईरान, लीबिया और नाइजीरिया को उत्पादन में कटौती से छूट दे दी गई है और ओपेक की प्रतिबंध की सीमा में कटौती पर सहमति हुई है। ईरान सरकार की योजना है कि ओपेक में कच्चे तेल की 40 लाख बैरल प्रतिदिन की अपनी हिस्सेदारी फिर हासिल की जाए। अगस्त में उसने प्रतिदिन 36 लाख बैरल का उत्पादन किया था। ईरान का तेल निर्यात 21 लाख बैरल प्रतिदिन पहुंच गया है, जो प्रतिबंध से पहले के 22 लाख बैरल प्रतिदिन के बिल्कुल करीब है। ईरान सरकार के राजस्व में तेल निर्यात की बड़ी हिस्सेदारी है, लेकिन तेल राजस्व पर इसकी निर्भरता क्षेत्र के अन्य देशों के मुकाबले कम है। इसकी अर्थव्यवस्था विविधता भरी है।

ईरान के साथ बैंकिंग के रास्ते खुल रहे हैं। यूरोपीय संघ के कई बैंक पहले ही ईरान में कामकाज बहाल कर चुके हैं। अमेरिकी प्रतिबंध के दौरान अमेरिकी डॉलर में भुगतान संभव नहीं होते, लेकिन यूरो, जापानी येन, स्विस फ्रैंक या किसी अन्य मुद्रा में भुगतान पर कोई रोक नहीं है।

चाबहार

बंदर अब्बास बंदरगाह आईएनएसटीसी के लिए मुख्य बंदरगाह है, लेकिन चाबहार-जहेदान रेल लाइन बनने के बाद चाबहार बंदरगाह को भी इस मार्ग से जोड़ा जा सकेगा। जहेदान पश्चिम में बाफ रेलवे जंक्शन से जुड़ा है, जो दक्षिण में बंदर अब्बास से और ईरान के पूर्वोत्तर में मशद तथा सरक्स से जुड़ा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा के दौरान इरकॉन ने रेल लाइन का यह हिस्सा तैयार करने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसमें भारत की ओर से 1.6 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता भी शामिल है। वित्तीय सहायता के नियम कायदे अभी तय होने हैं। बेहतर है कि समूचा चाबहार-जहेदान-मशद रेल गलियारा तैयार हो जाए। इससे उत्तरी ईरान के लिए जहेदान-बाफ-मशरद रेलवे लाइन की तुलना में सीधा और छोटा रास्ता मिल जाएगा। मशद पहले ही ईरान-तुर्कमेनिस्तान सीमा पर सरक्स से जुड़ा हुआ है। तुर्कमेनिस्तान पहुंचने के बाद माल को मध्य एशिया में पहुंचाना आसान होगा, जहां रेल व्यवस्था बहुत विकसित है।

वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर)

ईरान ‘वन बेल्ट वन रोड’ कार्यक्रम के अंतर्गत परियोजनाओं पर चर्चा कर रहा है। चीन ने पूर्वी चीन से उत्तरी ईरान तक 6,000 किलोमीटर लंबी रेल लाइन पहले ही बना ली है। ओबीओआर बुनियादी ढांचा तैयार करेगा तो उससे व्यापार में सहूलियत ही होगी। ओबीओआर तथा आईएनएसटीसी के बीच कोई टकराव नहीं होना चाहिए। दोनों एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं। आईएनएसटीसी से जाने वाला यातायात ओबीओआर के बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल कर सकता है और ओबीओआर में आईएनएसटीसी के ढांचे का इस्तेमाल हो सकता है।

आगे का रास्ता

ट्रांजिट व्यापार बढ़ाने के लिए ईरान के भीतर बुनियादी ढांचा सुधारने की जरूरत है। रश्त-अस्तारा रेल लाइन पूरा करना भी इसमें शामिल है। इसके लिए बंदर अब्बास-अमीराबाद और बंदर अब्बास-इंच बारुन रेल गलियारों में सुधार की जरूरत भी होगी।

अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण पारगमन गलियारे का पूरा इस्तेमाल करने के लिए भारत को टीआईआर (ट्रांसपोर्ट इंटरनेशनॉक्स रूटियर) तथा सीओटीआईएफ (रेल द्वारा अंतरराष्ट्रीय ढुलाई से संबंधित संधि) पर दस्तखत भी करने होंगे। ये संधियां सड़क तथा रेल यातायात के नियमन से संबंधित हैं।

भारतीय बंदरगाहों तथा ईरान के बीच जहाजों की सीधी आवाजाही शुरू करने की भी जरूरत है। विशेष तौर पर चाबहार बंदरगाह के लिए इसकी जरूरत है, जहां जहाजों की नियमित आवाजाही नहीं है।

प्रधानमंत्री मोदी की ईरान यात्रा के दौरान चाबहार-जहेदान रेल लाइन के लिए 1.6 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता का वायदा किया गया था। इस वायदे पर बातचीत होनी चाहिए और जल्द ही इसका क्रियान्वयन होना चाहिए। इसके बाद रेल लाइन को मशद तक बढ़ाने की भी जरूरत होगी।

व्यापारिक रास्ते विकास के वाहक होते हैं। संपर्क बेहतर होने से क्षेत्र के सभी देशों को फायदा मिलेगा।

(लेखक वीआईएफ के विशिष्ट फेलो हैं तथा ईरान में भारत के राजदूत रह चुके हैं)


Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Published Date: 2nd November 2016, Image Source: http://www.torangdarya.com

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