सीडीएस: समय आ गया इस विचार का
General NC Vij, PVSM, UYSM, AVSM

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ से अपेक्षा की जाती है कि एकसमान दर्जे वाले सेना प्रमुखों के बीच सबसे आगे रहते हुए वह परिपक्व तथा तीनों अंगों के हित वाली सलाह देंगे।

कहा जा रहा है कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) या कम से कम इसके हल्के प्रारूप यानी चीफ ऑफ स्टाफ समिति के स्थायी चेयरमैन की नियुक्ति होने ही वाली है। संक्षेप में कहें तो सीडीएस के लिए समर्थन इस तर्क के साथ जुटाया जा रहा है कि तीनों अंगों के बीच “तालमेल” बिठाने के लिए तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में सरकार को तीनों सेनाओं की ओर से एक ही सलाह देने वाली पेशेवर इकाई नियुक्त करने के लिए यह जरूरी है। सीडीएस सेना के तीनों अंगों में संभावित मतभेद समाप्त करने के उद्देश्य से था ताकि सरकार समझबूझकर सैन्य निर्णय ले सके। वह राष्ट्रीय कमान प्राधिकरण की शृंखला में महत्वपूर्ण कड़ी भी होता और परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से जुड़े विभिन्न पक्षों पर सलाह देता।

सीडीएस की नियुक्ति का सबसे अधिक औचित्य इसलिए है क्योंकि ठोस एवं किफायती राष्ट्रीय रक्षा नीति के लिए रणनीति तैयार करना बहुत महत्वपूर्ण है। यह बात भी निहित है कि सीडीएस बजट तैयार करने, उपकरण खरीदने, प्रशिक्षण, सैन्य अभियानों के संयुक्त सिद्धांत एवं योजना के मामले में सेनाओं के मध्य तालमेल को मजबूत करेगा, जो आधुनिक युद्ध के लिए अपरिहार्य है।

सीडीएस के विचार पर अभी तक सरकार की अनिश्चितता के साथ-साथ सेना के अंगों में भी कई चिंताएं जताई जा रही थीं। भीतर से ही विरोध हो रहा था क्योंकि सेना मुख्यालय को हाशिये पर धकेले जाने और सैन्य निर्णय प्रक्रिया से रक्षा अधिकारी वर्ग की पकड़ ढीली होने का डर था। परमाणु हथियारों को युद्ध के हथियार मानने से सैद्धांतिक इनकार के साथ ही यह तर्क दिया गया कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, सेना प्रमुखों एवं सामरिक बल के कमांडर का कॉलेजियम ही परमाणु रणनीति पर सर्वश्रेष्ठ सलाहकार की भूमिका निभा सकता है। अंत में सीडीएस को संयुक्त कमान का अगुआ माना गया, जिसे मौजूदा सैन्य नेतृत्व के अंतर्गत असाध्य माना गया क्योंकि यह नेतृत्व न तो बहुत उत्साही है और न ही सेवाओं के मध्य परिचालन कमान के मामले में पर्याप्त अनुभव वाला है।

इस तरह के डर पर मेरा इतना ही कहना है कि 17 एकल सैन्य कमान मुख्यालयों, जो अपने आत्मकेंद्रित सिद्धांत पर जोर देने के कारण विवादित हैं और तीन अलग-अलग प्रकार के युद्धों की तैयारी करते हैं, का होना एकीकृत सैन्य अभियानों के इस युग में अराजकता से कम नहीं है। निश्चित रूप से इसके बाद सीडीएस पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

इसके बावजूद हमारी अभियान संबंधी बाध्यताओं की कुछ विशेषताओं पर विचार करना होगा। भारत की अधिकतर जमीनी सीमाएं घुसपैठ और भूमि अतिक्रमण के मंडराते खतरे के कारण लगातार अस्थिरता में घिरी रहती हैं। इन स्थितियों में सेना को सदैव तैयार रहना पड़ता है। जब जंग लड़ने की बात आती है तो प्राथमिक जिम्मेदारी सेना की ही होती है। भावी युद्धों में भी पारंपरिक और सुनियोजित परमाणु हमलों का माध्यम भी यही होगी और लक्ष्य भी यही होगी। इसलिए हमारी सीमा के आरपार सैन्य अभियानों में सेना को मुख्य जिम्मेदारी निभानी होगी और सेनाध्यक्ष के लिए यह आवश्यक हो जाएगा कि वह अपने युद्ध के साधनों पर केंद्रीय नियंत्रण रखें। श्रीलंका या मालदीव जैसे सीमा से इतर क्षेत्रों में सैन्य अभियान होने पर संयुक्त कमान बनाई जा सकती है।

मेरा यह कहना है कि सीडीएस को हमारी कामकाजी और अभियान संबंधी जरूरतों के हिसाब से तैयार किया जाना चाहिए और उतने ही चरणों में लाया जाना चाहिए। इसे एक ही बार में सब कुछ करते हुए पूरा नहीं किया जा सकता। सेना के अंग विशेष के अभियान संबंधी एवं प्रशासनिक मामलों में सेना प्रमुखों की प्रमुख भूमिका बरकरार रखनी होगी।

इसके लिए नवनियुक्त सीडीएस को रणनीतिक बलों, अंडमान-निकोबार कमान, भविष्योन्मुखी विशेष बलों, साइबर एवं अंतरिक्ष कमानों, राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय एवं तटरक्षक बल का नियंत्रण सौंपा जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि पूंजीगत खरीद तथा संयुक्त सेवाओं से जुड़े सभी मामलों जैसे संयुक्त सैन्य सिद्धांत, बल का पुनर्गठन एवं प्रशिक्षण पर नव नियुक्त सी़डीएस का ही नियंत्रण होगा।

इस प्रकार पहले चरण में सीडीएस की भूमिका एवं जिम्मेदारियों में संयुक्त प्रबंधन एवं योजना के ऊपर बताए गए पक्ष शामिल होने चाहिए तथा उसके बाद सात से 10 वर्ष के भीतर हम उसे संयुक्त कमान में बदल सकते हैं।

सीडीएस से समान दर्जे वाले सभी सैन्य प्रमुखों से आगे रहते हुए परिपक्व एवं तीनों अंगों को ध्यान में रखने वाली सलाह देने की अपेक्षा की जाती है। इसके लिए सीडीएस के पास तीनों सेनाओं के बीच के मामलों में “उच्च मध्यस्थता” का अधिकार होना चाहिए। एक रणनीति को बढ़ावा देने के लिए इस संस्था को तीनों सेवाओं के एकीकृत कामकाज में तालमेल बिठाने की जरूरत होगी और तीनों सेनाओं की क्षमता में वृद्धि करनी होगी। साथ ही साथ सेना प्रमुखों को अभियान और कमान से जुड़े मामलों में अपना दबदबा बरकरार रखना होगा।


Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Published in India today on 11th May 2016, Image Source: https://www.flickr.com
(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are those of the author and do not necessarily reflect the official policy or position of the Vivekananda International Foundation)

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